बिग मनी, बिग फार्मा और बिग करप्शन

Written by Girish Malviya | Published on: May 10, 2020
आज से दो साल पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गर्भ नाल से जुड़ा हुआ संगठन स्वदेशी जागरण मंच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर एक अजीब सी माँग करता है कि हितों में टकराव के आधार पर नचिकेत मोर को भारतीय रिजर्व बैंक के बोर्ड से हटाया जाए।




आप कहेंगे कि ये बिल गेट्स की श्रृंखला में नचिकेत मोर का क्या काम? नचिकेत मोर को तो इकनॉमी से जुड़े लोग तो एक बैंकर के बतौर जानते है। उन्होंने कुछ समितियों का नेतृत्व भी किया है जिनकी सिफारिशों के आधार पर जनधन योजना जैसी बड़ी ओर महत्वपूर्ण योजना की परिकल्पना की गई थी।

आपकी जानकारी के लिये बता दूं कि 2016 के मध्य से 2019 तक नचिकेत मोर बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (बीएमजीएफ) के हेड थे। कमाल की बात यह है कि इस पद पर रहते हुए भी उन्हें मोदी सरकार ने आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्ति दे दी थी, जबकि मोदी सरकार लगातार बड़े एनजीओ के पर कतरने का काम करती आई थी तो फिर नचिकेत मोर में ऐसा क्या खास था ?

स्वदेशी जागरण मंच के सह - संयोजक अश्विनी महाजन ने मोदी को लिखे गए पत्र में कहा, ‘भारतीय रिजर्व बैंक के बोर्ड में नचिकेत मोर को बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं है। यह हितों में टकराव का बिल्कुल सीधा मामला है, क्योंकि उनके प्रधान नियोक्ता बीएमजीएफ को विदेशी फंड प्राप्त होता है और आरबीआई फंड का नियामक है।’मोर बीएमजीएफ के भारत मे पूर्णकालिक प्रतिनिधि हैं। बीएमजीएफ केंद्रीय गृह मंत्रालय की सख्त निगरानी में है और विदेशी स्रोतों से सक्रियता से धन प्राप्त कर रहा है।

लेकिन सिर्फ एक यही वजह नही थी जिसकी वजह से स्वदेशी जागरण मंच उनकी आरबीआई में उपस्थिति का विरोध कर रहा था। स्वदेशी जागरण मंच अपने पत्र में आगे लिखता है, 'गृह मंत्रालय बीएमजीएफ पर इन आरोपों के कारण नजर रख रहा है कि यह फाउंडेशन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए काम कर रहा है ताकि स्वास्थ्य एवं कृषि क्षेत्रों में सरकारी नीतियों को उनके पक्ष में प्रभावित कर सके।'

ध्यान दीजिए' स्वास्थ्य एवं कृषि क्षेत्रों में'। आगे अपने इस पत्र में स्वदेशी जागरण मंच मांग करता है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अलावा नीति आयोग, भारतीय मेडिकल अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और केंद्रीय कृषि, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालयों को निर्देश दिए जाएंगे कि वे ऐसे संगठनों एवं उनके प्रतिनिधियों से दूरी बनाए रखें।

ये हैरानी की बात है कि स्वदेशी जागरण मंच इस पत्र में ICMR का नाम लेता है। स्वदेशी जागरण मंच के सह - संयोजक अश्विनी महाजन आगे कहते है कि 'हाल में मीडिया में कुछ खबरें आई थीं जिनमें आरोप लगाए गए थे कि बीएमजीएफ ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटेजीज (जीएचएस) नाम के एक एनजीओ की फंडिंग कर रहा है ताकि वह भारत में वैश्विक तौर पर व्यर्थ दवाएं इस्तेमाल करने के लिए जरूरी प्रयास करे।'

यह एक बड़ी महत्वपूर्ण बात हमे पता लगती है जो बिल गेट्स फाउंडेशन के द्वारा तथाकथित रूप से किये जा रहे 'परोपकार' की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है और वो है वैश्विक तौर पर व्यर्थ दवाओं को भारत मे इस्तेमाल किये जाने का प्रयास करना। यह सारी बाते मैं नहीं कह रहा हूँ, यह कह रहा है दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवक संगठन कहे जाने वाला आरएसएस का एक सवसे महत्वपूर्ण संगठन।

2018 से पहले 2017 में टीकाकरण में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन भारत मे एक्सपोज हो चुका था। 2017 में बिल गेट्स और भारत सरकार के बीच हुआ एक अहम करार तोड़ दिया गया। ये करार इम्युनाइजेशन टेक्निकल सपोर्ट यूनिट से जुड़ा हुआ था। दरअसल गेट्स फाउंडेशन पिछले कई वर्षों से ITSU (इम्युनाइजेशन टेक्निकल सपोर्ट यूनिट) के लिए फंडिंग कर रहा था। जिसके तहत करीब 2.7 करोड़ शिशुओं का हर साल टीका करण किया जाता था। गेट्स फाउंडेशन राजधानी में टीकाकरण के काम को देखती थी उसकी रणनीति तय करती थी और सरकार को सलाह देती थी।

टीकाकरण में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन किसी से छुपी हुई नहीं थी। हमने पिछली पोस्ट दो बूंद जिंदगी की ओरल पोलियो वैक्सीन और HPV वैक्सीन के बारे आपको बताया था लेकिन इसके अलावा भी जितने वैक्सीन इस संगठन की सहायता से लगाए गए, उनके रिजल्ट भी बाद में संदिग्ध पाए गए। इसलिए स्वदेशी जागरण मंच द्वारा उस पर भी सवाल खड़े किए जाने के कारण जांच की गई और कोई कार्यवाही तो नहीं की गई। बस इतना किया गया कि बीएमजीएफ को इस प्रोग्राम से दूर कर दिया गया।

बहरहाल स्वदेशी जागरण मंच ने एक NGO ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटेजीज का इसमे नाम लिया था तो ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटेजीज क्या काम करता है। यह जानना जरूरी था तो उसकी वेबसाइट पर जो जानकारी मिलती है। वो ये है कि डेविड गोल्ड और विक्टर ज़ोनाना ने वर्ष 2002 में GHS की स्थापना की। GHS की स्थापना के समय उन्होंने एचआईवी एक्टीविज्म, मीडिया, उद्योग व सरकारी संस्थाओ में अपने व्यक्तिगत कार्य के अनुभवों से आधार निर्मित किया। इसके परिणामस्वरूप एक ऐसी कंपनी सामने आई जो उन्नत संचार व एडवोकेसी के माध्यम से संस्थाओं की मदद करती है।

यानी कि एक तरह का पीआर का काम करना
वो आगे लिखते हैं 'संक्रामक रोगों पर काम के अपने आरंभिक अनुभव से आगे बढ़ते हुए हमने मुद्दों पर विशिष्ट विशेषज्ञता का विस्तार किया जिसमें स्वास्थ्य व विकास संबंधी चुनौतियों की विविधता शामिल है, जिसका क्षेत्र शोध एवं विकास से लेकर जलवायु परिवर्तन से होते हुए परिवार नियोजन सेवाओं तक है। अब हमारे राष्ट्रीय कार्यालय अमेरिका, ब्राजील, भारत, चीन, अफ्रीका और यूरोप में है।'

GHS इंडिया की स्थापना नई दिल्ली में वर्ष 2010 में हुई यह वही समय था जब बिल गेट्स इस दशक को टीकाकरण का दशक घोषित कर रहे थे। GHS इंडिया अपने बारे में बताते हुए लिखता है
'नीति निर्माताओं, प्रोग्राम मैनेजरों और अन्य निर्णय लेने वालों के बीच महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्याओं की प्राथमिकता सुनिश्चित करने के लिए, हम भारत सरकार और राज्य सरकारों के साथ ही साथ अन्य प्रमुख हितधारकों और तमाम क्षेत्रों के प्रभावी लोगों व संस्थाओं के साथ भी मिलकर काम करते हैं।

हम क्षेत्रीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर 'मीडिया' के साथ मिलकर भी काम करते हैं, ताकि स्वास्थ्य संबंधी विमर्श को अधिक विस्तार मिले और भारतीय मीडिया में स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को उजागर करने के लिए अधिक अनुकूल वातावरण निर्मित हो सके।'

शायद अब आपके समझ मे आ सके कि मीडिया क्यो वैक्सीन के बेजा इस्तेमाल के बारे में, व्यर्थ दवाओं के भारत मे इस्तेमाल होने के बारे में कोई खबरे क्यो नही दिखाता है। सिर्फ पॉजिटिव खबरे ही क्यो दिखाई जाती है।

(क्रमशः)

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