मोदी सरकार के घमंड के खिलाफ असहयोग आंदोलन की राह पर किसान

Written by Navnish Kumar | Published on: December 10, 2020
मोदी सरकार के 'घमंड' के खिलाफ किसान गांधी के असहयोग आंदोलन की राह चल पड़े हैं। बुधवार को किसान संगठनों ने एक सुर में मोदी सरकार के संशोधन प्रस्तावों को सिरे से खारिज कर दिया। वहीं, असहयोग आंदोलन की तर्ज पर आंदोलन के फैलाव की रणनीति का ऐलान किया है। इससे साफ है कि किसानों का मनोबल बढ़ा हुआ है तो सरकार सकते में हैं और उसे कुछ सूझ नहीं रहा कि क्या करें। लेकिन इसके बावजूद मोदी सरकार 'मैं ही सब कुछ' की तर्ज पर अपने घमंड और जबरदस्ती के तथाकथित सुधारों पर अड़ी है और उसके नेता अभी भी किसान को कभी भ्रमित तो कभी भोला-भाला बताकर खारिज करने पर तुले हैं। 



दूसरी ओर, किसान जान व समझ गए हैं कि इन क़ानूनों को मोदी जिस प्रकार की धींगा-मुश्ती से लाये हैं और अब राज्य की शक्ति के बल पर इन्हें जिस प्रकार अमली जामा पहनाने की  कोशिश की जा रही है, उससे इतना लाभ जरूर हुआ है कि इसने पूरे कृषक समाज को एक झटके से जागृत व एकजुट कर दिया है। अब मोदी-शाह कंपनी कितने तिकड़में क्यों न कर लें, किसान आंदोलन को दबाना उसके लिए आसान नहीं होगा। अडानी अम्बानी (रिलायंस मॉल) के उत्पादों का बहिष्कार, भाजपा नेताओं और जिला मुख्यालयों के घेराव की असहयोग की राह पर आंदोलन के फैलाव की रणनीति भी इसी ओर इशारा कर रही है कि किसान भ्रमित नहीं हैं बल्कि सरकार ही उसे भ्रमित करने पर तुली है। 
 
दरअसल सारे विवाद की जड़ में मोदी सरकार का अहंकार और झूठ छिपा है। यही कारण है कि वह निरंतर एक के बाद एक मनमाने एकतरफा फ़ैसले कर रहे व लोगो पर थोप रहे हैं। सर्वविदित तथ्य है कि घर-परिवार में भी अगर मुखिया (चौधरी), बिना किसी सलाह मशविरे 'मैं ही सब कुछ' की तर्ज पर अपनी सोच व ज्ञान (राय) को पूरे परिवार पर थोपना शुरू कर दे और थोपता ही चला जाए तो वह घर तेजी से विनाश और टूट की ओर बढ़ चलता है। आज 130 करोड़ लोगों के भाषाई से लेकर जाति-धर्म और मान्यताओं की विविधता वाले परिवार (भारत देश) का मुखिया (प्रधान सेवक) हूबहू यही सब करता दिख रहा है। हर भारतीय की ज़िंदगी पर सीधे असर डालने वाले फैसलें तक प्रधान सेवक, बिन सोचे विचारे व सलाह मशविरे के लेने और थोपने का काम कर रहे हैं। 

यह हाल तब है, जब संविधान व नीति निर्माताओं ने प्रधान सेवक को सलाह मशविरे के लिए पूरी कैबिनेट, मंत्रीमंडल, तमाम एक्सपर्ट कमेटियां, राज्य सरकारें, नौकरशाह और विषय विशेषज्ञों की पूरी फौज मौजूद हैं जिस का बोझ देश के लोग अपने सिर ढो रहे है। यही नहीं, भाजपा का अपना मार्गदर्शक मंडल भी हैं लेकिन समस्या सत्ता की 'मैं ही सब कुछ' वाली सोच हो तो कोई क्या कर सकता है। भाजपा सरकार की जगह मोदी सरकार, कैबिनेट निर्णय की जगह मोदी स्ट्रोक और ब्रांड मोदी आदि सभी इसी 'मैं ही सब कुछ' की अधपकी, अपरिपक्व व तानाशाही वाली सोच का प्रतिबिंब हैं 

यही कारण है कि मोदी सरकार का हर निर्णय चाहे नोटबंदी हो या जीएसटी व लॉकडाउन, सभी में संशोधनों के पैबंद पर पैबंद लगाने के बाद भी, लोगों को राहत कम परेशानी ज्यादा मिली है। इन सब कानूनों के ट्रेक रिकार्ड को देखें तो सभी की जड़ में बिन आगा-पीछा सोचे फैसले लेना है और बाद में पीछे हटते हुए असफलता छिपाने व ध्यान भटकाने को लव जिहाद जैसे नैरेटिव खड़े करने और कानूनों में संशोधनों के पैबंद लगाना भर ही है।

याद करें कि नोटबंदी की घोषणा किस उद्देश्य से हुई थी और बाद में मूल मकसद को छोड डिजिटल इकॉनोमी, जनधन खाते जैसे कितने गोलपोस्ट असफलता को छुपाने और लोगों को भरमाने को गढ़े गए। ऐसे ही जीएसटी में छह महीनों में इतने संशोधन व फेरबदल हुए कि व्यापारियों और आर्थिकी दोनों की ऐसी कमर टूटी कि छोटे कारोबारियों से लेकर अब राज्य सरकारों को भी मन ही मन लग रहा है कि इससे अच्छा तो पुरानी व्यवस्था ही ठीक थी।

हालांकि कृषि क्षेत्र हो या कोई और, सुधार जरूरी हैं लेकिन सत्ता (प्रधान सेवक) की 'मैं ही सब कुछ' और सपने में हुए इलहाम के अंदाज में बिना किसी को विश्वास में लिए जो निर्णय लिए हैं उनसे सुधार कम, गुड-गोबर ज्यादा हुआ है और लोगों को फायदे की जगह नुकसान उठाने पड़े हैं। 

यही कारण है कि जीएसटी से जिन छोटे व्यापारियों और कारोबारियों का भला होना था वे और ज्यादा रो रहे हैं। श्रम कानूनों से जिन मजदूरों का भला होना था लेकिन वे और ज्यादा आंशकित व परेशान हैं। और अब कृषि कानूनों से जिन किसानों का भला होना था वो सड़को पर हैं।

यही नहीं, कई दौर की बातचीत के बावजूद केंद्र सरकार किसान संगठनों को मनाने में नाकाम रही। बुधवार शाम को केंद्र के मुख्य मांगों से इतर, कुछ संशोधन के पैबंद के प्रस्ताव को ठुकराते हुए किसान संगठनों ने अपनी मांगों पर टस से मस न होने की बात कही। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र से जुड़े तीनों नए कानून पूरी तरह वापस हों और सरकार न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य की गारंटी का कानून लाए, इससे कम पर किसान संगठन मानने को तैयार नहीं हैं। दरअसल, सरकार एमएसपी पर भी कोरे आश्वासन का ही भरोसा दे रही हैं जबकि किसान एमएसपी को कानूनी दरजा देने की मांग कर रहे थे। किसान जान गए हैं कि मोदी सरकार में आश्वासन का मतलब, एक जुमले से ज्यादा कुछ नहीं है।

किसान संगठनों ने देशभर में रिलायंस और अडाणी के उत्‍पादों का बहिष्‍कार करने का फैसला किया है। इसके अलावा बीजेपी के मंत्रियों व जिला मुख्यालयों का घेराव किया जाएगा। 14 दिसंबर को पूरे देश में धरना प्रदर्शन होगा। इसके साथ ही 12 दिसंबर तक दिल्‍ली-जयपुर हाइवे और दिल्‍ली-आगरा हाइवे रोका जाएगा व टोल प्‍लाजा फ्री कर दिए जाएंगे। असहयोग आंदोलन की इस रणनीति से किसानों ने सरकार के साथ क्रोनी पूंजीवाद को भी सीधी चुनौती दे दी है।

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