गोदी मीडिया के वजूद को चुनौती देता किसानों का अख़बार 'ट्रॉली टाइम्स'

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: December 21, 2020
भगत सिंह का यह कथन कि “पिस्तौल और बम इंक़लाब नहीं लाते, बल्कि इंक़लाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है.” गोदी मीडिया द्वारा किसान आन्दोलन के दुष्प्रचार के ख़िलाफ़ किसानों द्वारा निकाले जा रहे अख़बार “ट्रॉली टाइम्स” का यह मूल वाक्य है. किसान आंदोलन के बीच से अख़बार का निकलना भारतीय मीडिया के इतिहास का सबसे शर्मनाक दिन है. जिस भारतीय मीडिया का इतिहास अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ अख़बार निकाल कर संपादकों के जेल जाने का रहा हो, उस मीडिया के सामने अगर किसानों को ख़ुद की आवाज को जनता तक पहुंचाने के लिए अगर अख़बार निकालना पड़े तो यह शर्मसार करने वाली बात है.  



लगातार मीडिया पर से उठता भरोसा और मुद्दों से भटकाती ख़बरें परोसती गोदी मीडिया के बीच ‘ट्रॉली टाइम्स’ का आना तमाम वर्ग के आन्दोलनरत जनता के लिए एक सुखद और उम्मीद भरी ख़बर भी है, साथ ही यह जनता के उस विश्वास के बने रहने का सूचक भी है जो समझते हैं कि अख़बार भले ही सरकार के हाथों बिक गया हो लेकिन आज भी एक ऐसे अख़बार के होने का महत्व है- ऐसा अख़बार जिसमें सही सूचनाओं का होना ज़रूरी है. सरकारी भक्ति में लीन मीडिया से लड़े बग़ैर और उसको चुनौती दिए बगैर भारत में लोकतंत्र की कोई भी लड़ाई जीती नहीं जा सकती. आज इसमें कोई शक नहीं है कि गोदी मीडिया सरकार के साथ मिलकर लोकतंत्र की हत्या करने पर उतारू है, लेकिन विडंबना यह है कि जनता के अधिकारों का हनन गोदी मीडिया द्वारा जनता के पैसों से ही किया जा रहा है. अकबर इलाहाबादी की यह लाईन कि “खींचो न कमानों को न तलवार निकालो जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो” आज चरितार्थ हो रही है.

मीडिया जो लोकतंत्र में जनता की आवाज़ मानी जाती रही है आज सिर्फ सरकार को ही खुश करने की कोशिश में नज़र आ रही है. नतीजतन आन्दोलन की आवाज़ को तेज करने के लिए आन्दोलनकर्ता अपना अख़बार निकालना शुरू कर चुके हैं जो सरकार भक्ति में लिप्त मीडिया के वजूद पर प्रश्न चिन्ह है. जब मीडिया सरकार को चुन लेती है तो जनता को अपना अख़बार चलाना पड़ता है. किसानों का यह अख़बार पंजाबी और हिन्दी में है. लोकतान्त्रिक राजनीति में राजनीतिक दलों का सत्ता में आना और सत्ता से बाहर जाना लोकतंत्र की खूबसूरती है, लेकिन चुनावी सफलताओं की आड़ लेकर मोदी सरकार के लगातार झूठ बेचने के धंधे पर मीडिया द्वारा मुहर लगाना शर्मनाम भी है और जनविरोधी भी. दुर्भाग्यवश वर्तमान मीडिया का यही चरित्र बन गया है. इतना ही नहीं, कॉरपोरेट घरानों की हितैषी सरकार द्वारा सोशल मीडिया फेसबुक और इन्स्टाग्राम तक से किसान आन्दोलन द्वारा चलाए जाने वाले पेज ‘किसान एकता मोर्चा’ को हटवाए जाने का प्रयास किया गया जिसे जनता के भारी विरोध के बाद फिर से बहाल कर दिया गया है. यह आन्दोलन से भयभीत सरकार के डर को दर्शाता है. वर्तमान सरकार न सिर्फ किसान विरोधी है बल्कि हर उस आम जनता के खिलाफ है जो अपने हक़ और अधिकारों के लिए सरकार का विरोध करता है या सरकार की मुख़ालफ़त करता है. 

किसानों को खालिस्तानी और आतंकवादी घोषित कर गोदी मीडिया ने किसानों को यह जता दिया कि उनकी लड़ाई कॉरपोरेट घरानों के साथ-साथ गोदी मीडिया से भी है. मेनस्ट्रीम मीडिया का रुख देखकर वीर सिंह और उनकी टीम ने 4 पन्ने का यह अख़बार निकाला है. यह नाम ‘ट्रॉली टाइम्स’ एक और आंदोलनकारी सुरमीत मावी ने दिया है.

आज मीडिया और जनता के बीच का रिश्ता बदल गया है. मीडिया ने सरकार का साथ चुना है तो किसानों ने अपना अख़बार चुन लिया है. ट्रॉली ही इस ऐतिहासिक किसान आन्दोलन की पहली पहचान थी उसी आधार पर इस अख़बार का नाम ट्रॉली टाइम्स रखा गया. इस अख़बार के पहले दिन के पहले पन्ने की हेड लाईन थी ‘लड़ेंगे, जुड़ेंगे और जीतेंगे’. 

सरकार द्वारा किसान आंदोलन को कमजोर बनाने के उद्देश्य से नाम के किसान खड़े किए जा रहे हैं. किसानों को बाँटने की कोशिश बीजेपी सरकार की पुरानी चाल है. देश के परिधानमंत्री, अब किसानों जैसा परिधान पहन कर पोस्टर किसान की भूमिका में नजर आने लगे हैं. इस आन्दोलन का असर इतना तो हो रहा है कि सरकार के मंत्री सहित प्रधानमंत्री को किसान का रूप धारण करना पड़ा है. डिजिटल भारत की बात करने वाले ग्लोबल प्रधानमंत्री का हल को कंधे पर लेकर फ़ोटो खिंचवाना इनके एक और नाटकीय अंदाज को दिखाता है. डिजिटल सम्मलेन द्वारा भारत के प्रधानमंत्री ने देश भर की 2300 ग्रामपंचायत के किसानों को संबोधित किया है. जिसमें उन्होंने किसान आंदोलन के बारे में भ्रामक बातें कही हैं. सरकार द्वारा फैलाए जा रहे ऐसे ही भ्रमों को चुनौती देने का काम किसानों का यह अख़बार कर रहा है.

ट्रॉली टाइम्स कॉरपोरेट घरानों की मिल्कियत वाले मीडिया के सामने नागरिक पत्रकारिता एक जागता उदाहरण है. सच्ची ख़बरों पर हर नागरिक का अधिकार है. लेकिन मेनस्ट्रीम मीडिया ने इस अधिकार को पूरी तरह उपेक्षित कर दिया है. लगातार झूठ परोस, सही और तटस्थ सुचना न और उसके बजाय बार-बार झूठ परोसना यह सही मायनों में जनता की अपेक्षाओं का अपमान है. मेनस्ट्रीम मीडिया की कामयाबी में जनता के विश्वास और सहयोग को नकारा नहीं जा सकता. अब वक्त है कि वही जनता मीडिया को सबक सिखाए. ऐसा किया जा सकता है ट्रॉली टाइम्स जैसे कई और जनता के अख़बार के प्रकाशन द्वारा. ऐसे जन अख़बारों द्वारा ही सही मायनों में गोदी मीडिया के झूठ से लड़ा जा सकता है. 

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