(गुजरात के पाटन जिला स्थित वडावली गांव में पांच से आठ हज़ार की भीड़ ने मुस्लिम बस्ती पर हमला कर के करीब 100 घरों को 24 मार्च को जला दिया था और भारी लूट मचाई थी। गांव के अधिकतर पुरुष उस वक्त हाजी अली के उर्स में बाहर गए हुए थे। पुलिस हमलावरों के साथ थी, तो तबाही बड़े पैमाने पर हुई। गांव के हिंदू ग्रामीणों ने मुस्लिमों की काफी मदद करने की कोशिश की लेकिन वे नाकाम रहे। दो लोग हमले में मारे गए। कुछ अस्पताल में भर्ती हैं। यह एक ऐसे गांव की कहानी है जहां की पंचायत ने ढाई साल के लिए मुस्लिम महिला को सरपंच चुना था और उसके बाद आधा कार्यकाल हिंदू को सरपंच होना था। एक झटके में तीन घंटे के भीतर सारा ताना-बाना टूट कर बिखर गया। राष्ट्रीय मीडिया ने इस घटना को रिपोर्ट नहीं किया। अकेले scroll.in ने इस घटना पर 1 अप्रैल को रिपोर्ट छापी है। घटना की ज़मीनी तथ्यान्वेषी पड़ताल करने के लिए एडवोकेट एसएस सैयद और विनोद चंद बंबई से गांव का दौरा करने गए थे। इन्होंने अपनी तथ्यान्वेषी रिपोर्ट तीन दिन पहले जारी की है, लेकिन मीडिया में उसे भी रिपोर्ट करने वाला कोई नहीं है। अकेले ironyofindia.com नामक वेबसाइट ने उसे छापा है जिसे catchnews ने साभार अपने यहां प्रकाशित किया है। हिंदी में यह रिपोर्ट विनोद चंद की फेसबुक वॉल से लेकर हम यहां छाप रहे हैं – संपादक)
आज 10 अप्रैल है। पंद्रह दिन हो गए जब हिंदुओं की भीड़ ने एक निहत्थे गांव पर दिनदहाड़े 1.30 से शाम 4.00 बजे के बीच स्थानीय पुलिस के संरक्षण में हमला किया था और मुसलमानों के मकानों को व्यवस्थित तरीके से लूटा और जलाया था।
इस लूट और आगजनी में करोड़ों की संपत्ति नष्ट हो गई, घरेलू सामानों को तोड़-फोड़ दिया गया, नकदी और गहने लूट लिए गए। बकरियों तक को नहीं छोड़ा गया। पिस्तौल और तलवारें लेकर आई सशस्त्र भीड़ उन्हें खोल कर साथ ले गई।
जिन 150 घरों का सर्वे किया गया, उनमें 100 से ज्यादा पूरी तरह लूट कर जला दिए गए थे। बमुश्किल 50 मकान इस तबाही में बच गए थे क्योंकि स्टेट रिजर्व पुलिस के वहां पहुंचने के बाद भीड़ भाग गई।
समूची घटना की शुरुआत एक स्कूल में दो छात्रों के बीच झड़प से हुई। पड़ोस के गांव का एक लड़का मधुमक्खी के छत्ते में ढेला फेंक रहा था जिसे स्थानीय मुस्लिम लड़के ने ऐसा करने से मना किया। जब हिंदू लड़के ने विरोध किया तो दोनों में मारामारी हो गई।
घंटों के भीतर 5000 से 8000 लोगों की भीड़ सुनसर, धरमपुरी और आसपास के गांवों से उस गांव में पहुंच गई। उनके पास तलवारें, पिस्तौलें और जलाने वाले रसायन थे।
हमलावर भीड़ का आकार इतना बड़ा था कि पुलिस ने स्थानीय औरतों को भाग कर छुप जाने की सलाह दे दी। यहां तक कि गांव में मौजूद लड़के और पुरुष भी डर के मारे छुप गए।
इसके बाद काफी व्यवस्थित तरीके से भीड़ ने एक-एक कर के घरों को जलाया। वे सारी नकदी और गहने आलमारियां तोड़ कर ले गए और जाने से पहले सब कुछ जला गए।
उन्होंने टीवी सेट, फ्रिज, दरवाज़े, वाहन, कारें और मोटरसाइकिलें तोड़ दीं जो आज भी गांव के मुस्लिम आबादी वाले इलाके में बिखरे पड़े हैं।
स्थानीय हिंदू ग्रामीणों ने मुसलमानों को बचाने की भरसक कोशिश की लेकिन भीड़ को इससे कोई लेना-देना नहीं था।
स्थानीय पुलिसवालों और भीड़ के साथ आई पुलिस की निष्क्रियता ने इतने बड़े पैमाने पर तबाही होने दी और जायदाद नष्ट हुई।
गुजरात बीजेपी/आरएसएस की हिंदुत्व की प्रयोगशाला है। बीजेपी जब से सत्ता में आई है, उसने धर्म और फर्जी राश्अ्रवाद का इस्तेमाल देश को सांप्रदायिक व धार्मिक लाइन पर बांटने में किया है। गोधरा की घटना के बाद 2002 में हुए दंगे अब भी राज्य औश्र देश के नागरिकों के दिलो दिमाग में ताज़ा हैं।
अब बीजेपी ने उन छोटे गांवों की ओर अपना ध्यान मोड़ दिया है जहां मुसलमानों की भारी आबादी है।
गांव पर यह सुनियोजित हमला, जहां एक छोटी सी घटना पर कुछ घंटों के भीतर ही हज़ारों लोगों को इकट्ठा कर लिया गया, इस बात का संकेत है कि बीजेपी/आरएसएस/हिंदुत्व की ताकतें गुजरात में अमन-चैन से जी रहे मुसलमानों पर व्यवस्थित हमलों की योजना बना रही हैं।
वे पूरी तरह जातीय सफ़ाया कर देना चाहते हैं।
वडावली में मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ हमारी मुलाकात के दौरान उन्होंने हमें बताया कि वडावली के हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच कोई मनमुटाव नहीं था और वास्तव में उनके गांव ने पांच साल में आधी अवधि के लिए मुस्लिम महिला को सरपंच के बतौर पंचायत में चुना था। बाकी का आधा हिस्सा हिंदू सरपंच रहना तय था जिसे अभी चुना जाना बाकी था। ज्यादातर मुस्लिम आबादी यहां पटेलों के यहां मजदूरी का काम करती है। इनमें किसान थोड़े ही हैं और किसी के पास अपनी ज़मीन नहीं है। कुछ मुसलमान दूसरे गांवों से आकर यहां बस गए हैं क्योंकि उन्हें उनके गांवों से जबरन भगाया गया था क्योंकि हिंदू बहुल गांव में वे अल्पसंख्यक हो गए थे।
गांव में जमायते उलेमा हिंदी एक राहत शिविर चला रहा है। उसने जलाए गए मकानों के दोबारा निर्माण के लिए पैसों का इंतज़ाम भी किया है। एक बार गांव दोबारा बन जाए, तो जमात ने परिवारों को बरत आदि घरेलू सामग्री देने का भी वादा किया है। अधिकतर प्रभावित लोग इंदिरा आवास योजना के तहत निर्मित मकानों में रह रहे थे और कुछ मकान तो महज साल दो साल पुराने थे।
प्रभावित लोगों के तरीकबन सभी अहम कागज़ात मकान के साथ खाक हो चुके हैं।
पाटन के कलक्टर घटना के सात दिन बाद इस गांव के दौरे पर आए। उनका दफद्यतर गांव से केवल 30 किलोमीटर दूर है।
किसी भी राजनीतिक दल, चाहे बीजेपी या कांग्रेस के नेता ने यहां का दौरा नहीं किया है।
जानलेवा भीड़ के इकतरफा हमले में प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए कोई सरकारी पहल अब तक नहीं की गई है।
एक पीडि़त को उसके गुप्तांग में 19 बार गोली मारी गई। डॉक्टर उसके गुप्तांग में से छर्रे निकाल पाने में कामयाब हो गए हैं और वहां पट्टी बंधी हुई है।
खुशकिस्मती से जान का कोई खास नुकसान नहीं हुआ क्योंकि गांव के पुरुष हाजी पीर के सालाना उर्स में गए हुए थे, हालांकि एक शख्स की मौत भी उसके परिवार के लिए भारी होती है।
कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है लेकिन उनसे कोई भी माल अब तक बरामद नहीं हुआ है।
करीब पांच पीडि़तों का इलाज अमदाबाद के वाडिलाल अस्पताल में अपने खर्च से जारी है और उन्हें मदद की ज़रूरत है।
सरकार ने किसी भी पीडि़त के लिए कोई भी मुआवजा घोषित नहीं किया है।
ये मुसलमान दरअसल भारत के नए यतीम हैं। इन्हें केवल वोट के लिए भरमाया जाता है और इनसे उम्मीद की जाती है कि ये तथाकथित ‘सेकुलर’ दलों को वोट दें, लेकिन ये सेकुलर दल भी अपनी पहचान इन मुस्लिमों के साथ जोड़ा जाना पसंद नहीं करते ताकि कहीं बहुसंख्यक हिंदू वोटबैंक इनसे नाराज़ न हो जाए।
आज 10 अप्रैल है। पंद्रह दिन हो गए जब हिंदुओं की भीड़ ने एक निहत्थे गांव पर दिनदहाड़े 1.30 से शाम 4.00 बजे के बीच स्थानीय पुलिस के संरक्षण में हमला किया था और मुसलमानों के मकानों को व्यवस्थित तरीके से लूटा और जलाया था।
इस लूट और आगजनी में करोड़ों की संपत्ति नष्ट हो गई, घरेलू सामानों को तोड़-फोड़ दिया गया, नकदी और गहने लूट लिए गए। बकरियों तक को नहीं छोड़ा गया। पिस्तौल और तलवारें लेकर आई सशस्त्र भीड़ उन्हें खोल कर साथ ले गई।
जिन 150 घरों का सर्वे किया गया, उनमें 100 से ज्यादा पूरी तरह लूट कर जला दिए गए थे। बमुश्किल 50 मकान इस तबाही में बच गए थे क्योंकि स्टेट रिजर्व पुलिस के वहां पहुंचने के बाद भीड़ भाग गई।
समूची घटना की शुरुआत एक स्कूल में दो छात्रों के बीच झड़प से हुई। पड़ोस के गांव का एक लड़का मधुमक्खी के छत्ते में ढेला फेंक रहा था जिसे स्थानीय मुस्लिम लड़के ने ऐसा करने से मना किया। जब हिंदू लड़के ने विरोध किया तो दोनों में मारामारी हो गई।
घंटों के भीतर 5000 से 8000 लोगों की भीड़ सुनसर, धरमपुरी और आसपास के गांवों से उस गांव में पहुंच गई। उनके पास तलवारें, पिस्तौलें और जलाने वाले रसायन थे।
हमलावर भीड़ का आकार इतना बड़ा था कि पुलिस ने स्थानीय औरतों को भाग कर छुप जाने की सलाह दे दी। यहां तक कि गांव में मौजूद लड़के और पुरुष भी डर के मारे छुप गए।
इसके बाद काफी व्यवस्थित तरीके से भीड़ ने एक-एक कर के घरों को जलाया। वे सारी नकदी और गहने आलमारियां तोड़ कर ले गए और जाने से पहले सब कुछ जला गए।
उन्होंने टीवी सेट, फ्रिज, दरवाज़े, वाहन, कारें और मोटरसाइकिलें तोड़ दीं जो आज भी गांव के मुस्लिम आबादी वाले इलाके में बिखरे पड़े हैं।
स्थानीय हिंदू ग्रामीणों ने मुसलमानों को बचाने की भरसक कोशिश की लेकिन भीड़ को इससे कोई लेना-देना नहीं था।
स्थानीय पुलिसवालों और भीड़ के साथ आई पुलिस की निष्क्रियता ने इतने बड़े पैमाने पर तबाही होने दी और जायदाद नष्ट हुई।
गुजरात बीजेपी/आरएसएस की हिंदुत्व की प्रयोगशाला है। बीजेपी जब से सत्ता में आई है, उसने धर्म और फर्जी राश्अ्रवाद का इस्तेमाल देश को सांप्रदायिक व धार्मिक लाइन पर बांटने में किया है। गोधरा की घटना के बाद 2002 में हुए दंगे अब भी राज्य औश्र देश के नागरिकों के दिलो दिमाग में ताज़ा हैं।
अब बीजेपी ने उन छोटे गांवों की ओर अपना ध्यान मोड़ दिया है जहां मुसलमानों की भारी आबादी है।
गांव पर यह सुनियोजित हमला, जहां एक छोटी सी घटना पर कुछ घंटों के भीतर ही हज़ारों लोगों को इकट्ठा कर लिया गया, इस बात का संकेत है कि बीजेपी/आरएसएस/हिंदुत्व की ताकतें गुजरात में अमन-चैन से जी रहे मुसलमानों पर व्यवस्थित हमलों की योजना बना रही हैं।
वे पूरी तरह जातीय सफ़ाया कर देना चाहते हैं।
वडावली में मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ हमारी मुलाकात के दौरान उन्होंने हमें बताया कि वडावली के हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच कोई मनमुटाव नहीं था और वास्तव में उनके गांव ने पांच साल में आधी अवधि के लिए मुस्लिम महिला को सरपंच के बतौर पंचायत में चुना था। बाकी का आधा हिस्सा हिंदू सरपंच रहना तय था जिसे अभी चुना जाना बाकी था। ज्यादातर मुस्लिम आबादी यहां पटेलों के यहां मजदूरी का काम करती है। इनमें किसान थोड़े ही हैं और किसी के पास अपनी ज़मीन नहीं है। कुछ मुसलमान दूसरे गांवों से आकर यहां बस गए हैं क्योंकि उन्हें उनके गांवों से जबरन भगाया गया था क्योंकि हिंदू बहुल गांव में वे अल्पसंख्यक हो गए थे।
गांव में जमायते उलेमा हिंदी एक राहत शिविर चला रहा है। उसने जलाए गए मकानों के दोबारा निर्माण के लिए पैसों का इंतज़ाम भी किया है। एक बार गांव दोबारा बन जाए, तो जमात ने परिवारों को बरत आदि घरेलू सामग्री देने का भी वादा किया है। अधिकतर प्रभावित लोग इंदिरा आवास योजना के तहत निर्मित मकानों में रह रहे थे और कुछ मकान तो महज साल दो साल पुराने थे।
प्रभावित लोगों के तरीकबन सभी अहम कागज़ात मकान के साथ खाक हो चुके हैं।
पाटन के कलक्टर घटना के सात दिन बाद इस गांव के दौरे पर आए। उनका दफद्यतर गांव से केवल 30 किलोमीटर दूर है।
किसी भी राजनीतिक दल, चाहे बीजेपी या कांग्रेस के नेता ने यहां का दौरा नहीं किया है।
जानलेवा भीड़ के इकतरफा हमले में प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए कोई सरकारी पहल अब तक नहीं की गई है।
एक पीडि़त को उसके गुप्तांग में 19 बार गोली मारी गई। डॉक्टर उसके गुप्तांग में से छर्रे निकाल पाने में कामयाब हो गए हैं और वहां पट्टी बंधी हुई है।
खुशकिस्मती से जान का कोई खास नुकसान नहीं हुआ क्योंकि गांव के पुरुष हाजी पीर के सालाना उर्स में गए हुए थे, हालांकि एक शख्स की मौत भी उसके परिवार के लिए भारी होती है।
कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है लेकिन उनसे कोई भी माल अब तक बरामद नहीं हुआ है।
करीब पांच पीडि़तों का इलाज अमदाबाद के वाडिलाल अस्पताल में अपने खर्च से जारी है और उन्हें मदद की ज़रूरत है।
सरकार ने किसी भी पीडि़त के लिए कोई भी मुआवजा घोषित नहीं किया है।
ये मुसलमान दरअसल भारत के नए यतीम हैं। इन्हें केवल वोट के लिए भरमाया जाता है और इनसे उम्मीद की जाती है कि ये तथाकथित ‘सेकुलर’ दलों को वोट दें, लेकिन ये सेकुलर दल भी अपनी पहचान इन मुस्लिमों के साथ जोड़ा जाना पसंद नहीं करते ताकि कहीं बहुसंख्यक हिंदू वोटबैंक इनसे नाराज़ न हो जाए।