नई दिल्ली। यूरोपीय संसद के बीस सदस्यों ने भारत सरकार और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को पत्र लिखकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई पर चिंता व्यक्त की है। सांसदों ने भारत से आग्रह किया है कि वह अपने यहां नागरिक समाज कार्यकर्ताओं के लिए खुला माहौल बनाए।
सांसदों ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के संदर्भ में कानून और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद, जनजातीय मामलों के मंत्री जुअल ओराम और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत और एनएचआरसी के संपर्क अधिकारी को संबोधित करते हुए पत्र लिखा है।
यूरोपीय सांसदों ने लिखा, ‘भारत दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यूरोपीय संघ का एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है। दोनों के संबंध मानवाधिकारों, लोकतंत्र और कानून के शासन के साझा मूल्यों पर आधारित हैं। यही कारण है कि हम देश भर में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों पर हाल ही में हुए हमलों और कार्रवाई से चिंतित हैं।’
भारत सरकार को लिखे गए पत्र में सांसद कहते हैं, ‘देश में सभी हिरासत में लिए गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को छोड़ें, उनके खिलाफ सभी आरोपों को हटाएं और बिना किसी खतरे के उन्हें अपना काम करने की अनुमति दें।’
पत्र में एक के बाद एक कई घटनाओं का हवाला दिया गया है। पत्र की शुरुआत जनवरी 2018 में हुए भीमा कोरेगांव हिंसा के लिए पिछले साल जून में गिरफ्तार किए गए तीन दलित सामाजिक कार्यकर्ताओं, एक प्रोफेसर और एक सामाजिक कार्यकर्ता की गिरफ्तारी से की गई है। उन पर गैर-कानूनी गतिविधियां (निवारक) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए गए थे।
एक महीने बाद, झारखंड पुलिस ने राज्य सरकार की आलोचना के लिए आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वाले 20 सामाजिक कार्यकर्ताओं पर राजद्रोह के मामले दर्ज किए थे।
फिर अगस्त में, सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंजाल्विस, वरवारा राव, गौतम नवलखा और अरुण फरेरा को विभिन्न शहरों में गिरफ्तार किया गया, उन पर आतंकवाद से संबंधित आरोप लगाए गए।
एक अन्य दलित कार्यकर्ता, डिग्री प्रसाद चौहान को भी पुलिस द्वारा अर्बन नक्सल मामले में फंसाने का उल्लेख किया गया है।
पत्र में केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित और वित्त पोषित सलेम-चेन्नई ग्रीन कॉरिडोर ’राजमार्ग परियोजना का विरोध करने के लिए पिछले साल जून में वलारमाठी मढायन और पीयूष मानुष की गिरफ्तारी का भी उल्लेख किया गया है।
इसके अलावा, प्रवर्तन निदेशालय ने बेंगलुरु में एमनेस्टी इंटरनेशनल के भारतीय कार्यालय पर छापे मारकर 25 अक्टूबर को एनजीओ के बैंक खाते को फ्रीज करने की बात पत्र में लिखी गई है।
पत्र में कहा गया है, भारत में नागरिक स्वतंत्रता, भूमि और पर्यावरणीय अधिकारों, स्वदेशी और अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए लड़ने वालों और भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ माने जाने वालों की गिरफ्तारी, न्यायिक उत्पीड़न और हत्या दरअसल उन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को डराने का उदाहरण है।’
यूरोपीय मंत्रियों ने भारत से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर की जा रही कार्रवाइयों को समाप्त तत्काल समाप्त करने, सभी को रिहा करने, आरोपों को हटाने और सभी न्यायिक उत्पीड़न को रोकने का आग्रह किया है।
इसके साथ ही पत्र में लिखा गया है कि भारतीय अधिकारियों को नागरिक समाज के लिए खुला माहौल तैयार करने और एक ऐसा वातावरण बनाने की दिशा में काम करना चाहिए जिससे मानवाधिकार कार्यकर्ता अपना काम कर सकें।
साभार- द वायर
सांसदों ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के संदर्भ में कानून और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद, जनजातीय मामलों के मंत्री जुअल ओराम और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत और एनएचआरसी के संपर्क अधिकारी को संबोधित करते हुए पत्र लिखा है।
यूरोपीय सांसदों ने लिखा, ‘भारत दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यूरोपीय संघ का एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है। दोनों के संबंध मानवाधिकारों, लोकतंत्र और कानून के शासन के साझा मूल्यों पर आधारित हैं। यही कारण है कि हम देश भर में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों पर हाल ही में हुए हमलों और कार्रवाई से चिंतित हैं।’
भारत सरकार को लिखे गए पत्र में सांसद कहते हैं, ‘देश में सभी हिरासत में लिए गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को छोड़ें, उनके खिलाफ सभी आरोपों को हटाएं और बिना किसी खतरे के उन्हें अपना काम करने की अनुमति दें।’
पत्र में एक के बाद एक कई घटनाओं का हवाला दिया गया है। पत्र की शुरुआत जनवरी 2018 में हुए भीमा कोरेगांव हिंसा के लिए पिछले साल जून में गिरफ्तार किए गए तीन दलित सामाजिक कार्यकर्ताओं, एक प्रोफेसर और एक सामाजिक कार्यकर्ता की गिरफ्तारी से की गई है। उन पर गैर-कानूनी गतिविधियां (निवारक) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए गए थे।
एक महीने बाद, झारखंड पुलिस ने राज्य सरकार की आलोचना के लिए आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वाले 20 सामाजिक कार्यकर्ताओं पर राजद्रोह के मामले दर्ज किए थे।
फिर अगस्त में, सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंजाल्विस, वरवारा राव, गौतम नवलखा और अरुण फरेरा को विभिन्न शहरों में गिरफ्तार किया गया, उन पर आतंकवाद से संबंधित आरोप लगाए गए।
एक अन्य दलित कार्यकर्ता, डिग्री प्रसाद चौहान को भी पुलिस द्वारा अर्बन नक्सल मामले में फंसाने का उल्लेख किया गया है।
पत्र में केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित और वित्त पोषित सलेम-चेन्नई ग्रीन कॉरिडोर ’राजमार्ग परियोजना का विरोध करने के लिए पिछले साल जून में वलारमाठी मढायन और पीयूष मानुष की गिरफ्तारी का भी उल्लेख किया गया है।
इसके अलावा, प्रवर्तन निदेशालय ने बेंगलुरु में एमनेस्टी इंटरनेशनल के भारतीय कार्यालय पर छापे मारकर 25 अक्टूबर को एनजीओ के बैंक खाते को फ्रीज करने की बात पत्र में लिखी गई है।
पत्र में कहा गया है, भारत में नागरिक स्वतंत्रता, भूमि और पर्यावरणीय अधिकारों, स्वदेशी और अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए लड़ने वालों और भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ माने जाने वालों की गिरफ्तारी, न्यायिक उत्पीड़न और हत्या दरअसल उन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को डराने का उदाहरण है।’
यूरोपीय मंत्रियों ने भारत से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर की जा रही कार्रवाइयों को समाप्त तत्काल समाप्त करने, सभी को रिहा करने, आरोपों को हटाने और सभी न्यायिक उत्पीड़न को रोकने का आग्रह किया है।
इसके साथ ही पत्र में लिखा गया है कि भारतीय अधिकारियों को नागरिक समाज के लिए खुला माहौल तैयार करने और एक ऐसा वातावरण बनाने की दिशा में काम करना चाहिए जिससे मानवाधिकार कार्यकर्ता अपना काम कर सकें।
साभार- द वायर