प्रदर्शनकारियों ने कहा कि सरकार के आश्वासन के बावजूद अब तक इस दिशा में कोई ठोस क़दम नहीं उठाया गया है, जिससे मजबूरन उन्हें एक बार फिर से सड़क पर उतरना पड़ा है।
मध्य प्रदेश में चुनावी समर के बीच हजारों संविदा स्वास्थ्यकर्मियों ने सोमवार, 29 मई को राजधानी भोपाल में प्रदर्शन किया। इस दौरान इन स्वास्थ्य कर्मियों का सीएम आवास पहुंचने का भी कार्यक्रम था लेकिन पुलिस ने इन्हें बीच में ही रोक कर केवल प्रतिनिधिमंडल को मुख्यमंत्री निवास जाने की अनुमति दी। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि बीजेपी की सरकार और सीएम शिवराज सिंह चौहान ने उनके साथ वादाखिलाफी की है। उन्हें मांगे पूरी करने का आश्वासन देकर भी अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिससे मजबूरन उन्हें एक बार फिर से सड़क पर उतरना पड़ा है।
बता दें कि नेशनल हेल्थ मिशन के अंतर्गत आने वाले प्रदेशभर के करीब 32 हज़ार संविदा स्वास्थ्यकर्मी बीते लंबे समय से अपने नियमितीकरण समेत अपनी अन्य मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। पिछले महीने अप्रैल में 21 दिनों की हड़ताल के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद इन संविदा स्वास्थ्यकर्मियों को आश्वासन दिया था कि उनकी कई मांगें 15 मई तक पूरी कर दिया जाएंगी। लेकिन डेडलाइन के कई दिनों बाद भी जब अभी तक सरकार की ओर से कोई आदेश जारी नहीं हुआ, तो इन कर्मचारियों ने सोमवार को प्रदर्शन की चेतावनी जारी की।
भेदभाव झेलने के साथ ही कम वेतन में ज्यादा काम करते हैं संविदाकर्मी
मध्य प्रदेश संविदा स्वास्थ्य अधिकारी/ कर्मचारी संघ के विपिन सक्सेना ने न्यूज़क्लिक को बताया कि सोमवार का आह्वान महासंघ के साथ है, जिसमें स्वास्थ्य कर्मियों के साथ ही अन्य विभागों के लोग भी शामिल हैं। इस प्रदर्शन का मुख्य उद्देश्य सीएम साहब को उनके वादे और आश्वासन को याद दिलाना है, जो उन्होंने खुद संविदा कर्मियों से किया है और अब तक उसे लागू नहीं करवा पाए हैं।
विपिन के मुताबिक बीते महीने 21 दिन की हड़ताल के बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान ने खुद प्रदेश स्तरीय प्रतिनिधिमंडल से सीएम हॉउस में चर्चा करते हुए 15 मई तक 5 जून 2018 की नीति लागू करने, जिसमें नियमित के समान 90 प्रतिशत वेतन देने सहित अन्य तीन मांगों को पूरा करने और आदेश जारी करने का आश्वासन दिया था। इसके बाद ही तत्काल प्रभाव से हड़ताल को खत्म कर दिया गया था। लेकिन आज तक इस पर कोई कार्यवाही सामने नहीं आई है, जिसके चलते एक बार फिर सभी स्वास्थ्यकर्मी सड़कों पर उतरने को मजबूर हुए हैं। क्योंकि स्वास्थ्य कर्मियों का इस बार साफ कहना है कि सिर्फ आश्वासन के आधार पर अब वो शांत नहीं बैठेंगे उन्हें ठोस आदेश चाहिए।
क्या है संविदा स्वास्थ्य कर्मियों की प्रमुख मांगें?
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के संविदा कर्मचारियों को विभाग में रिक्त पदों पर नियमित किया जाए। अन्य कर्मचारियों को 5 जून 2018 को सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा पारित की गई नीति रेगुलर कर्मचारियों के समकक्ष 90% वेतनमान तत्काल लागू किया जाए। सीएचओ कैडर को MLHP तहत नियमित किया जाए।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से हटाकर आउटसोर्स ठेका प्रथा खत्म की जाए। सपोर्ट स्टॉफ कर्मचारियों को पुनः राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में मर्ज किया जाए अथवा विभाग में रिक्त पदों पर समायोजन किया जाए। निष्कासित कर्मचारियों को शत-प्रतिशत वापस लिया जाए।
5 दिसंबर से 3 जनवरी तक की गई अनिश्चितकालीन हड़ताल के दौरान जिन कर्मचारियों पर पुलिस प्रकरण दर्ज किए गए हैं, उन्हें तत्काल वापस लिया जाए।
प्रदर्शनकारी स्वास्थ्य कर्मियों का कहना है कि वो 2013 से लगातार अपनी मुख्य मांगों को लेकर शासन प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं। लेकिन अब तक उनकी किसी समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ है। उनका वेतन अन्य विभागों के कर्मचारियों की तुलना में बहुत कम है, जिसके चलते उन्हें आर्थिक दिक्कतों का भी सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा उनके काम के घंटे भी बहुत ज्यादा हैं और सरकारी अधिकारी लगातार उनका मानसिक शोषण भी करते हैं।
संविदा कर्मियों का ये भी कहना है कि नियमित कर्मचारियों से ज्यादा काम करने के बाद भी उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है। सुविधाओं के नाम पर अधिकारी अड़ियल रवैया दिखाते हैं। छुट्टियां इन्हें मिलती नहीं है और न ही नई योजनाओं के लिए ट्रेनिंग। अधिकारी कुछ पूछने पर भी बेरूखी से जवाब देते हैं, जिससे इन लोगों का मनोबल लगातार गिरता जा रहा है। इन कर्मचारियों को उम्मीद थी कि सीएम के आश्वासन के बाद इनकी कई समस्याएं हल हो जाएंगी, लेकिन यहां भी इन्हें निराशा ही हाथ लगी।
गौरतलब है कि इस साल के आखिर में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में युवाओं, महिलाओं और कर्मचारियों के आक्रोष ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इस कार्यकाल में राज्य में बीजेपी की सरकार वैसे भी जोड़-तोड़ से बनी है। बीते चुनावों में कांग्रेस को जीतने के बाद भी 15 महीने में ही सत्ता छोड़नी पड़ी और बीजेपी को एक बार फिर मौका मिल गया। हालांकि इस बार बीजेपी के समक्ष तमाम प्रदर्शनों की चुनौती है, जो आगामी चुनावों में उसके खेल को बिगाड़ सकती है।
Courtesy: Newsclick
मध्य प्रदेश में चुनावी समर के बीच हजारों संविदा स्वास्थ्यकर्मियों ने सोमवार, 29 मई को राजधानी भोपाल में प्रदर्शन किया। इस दौरान इन स्वास्थ्य कर्मियों का सीएम आवास पहुंचने का भी कार्यक्रम था लेकिन पुलिस ने इन्हें बीच में ही रोक कर केवल प्रतिनिधिमंडल को मुख्यमंत्री निवास जाने की अनुमति दी। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि बीजेपी की सरकार और सीएम शिवराज सिंह चौहान ने उनके साथ वादाखिलाफी की है। उन्हें मांगे पूरी करने का आश्वासन देकर भी अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिससे मजबूरन उन्हें एक बार फिर से सड़क पर उतरना पड़ा है।
बता दें कि नेशनल हेल्थ मिशन के अंतर्गत आने वाले प्रदेशभर के करीब 32 हज़ार संविदा स्वास्थ्यकर्मी बीते लंबे समय से अपने नियमितीकरण समेत अपनी अन्य मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। पिछले महीने अप्रैल में 21 दिनों की हड़ताल के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद इन संविदा स्वास्थ्यकर्मियों को आश्वासन दिया था कि उनकी कई मांगें 15 मई तक पूरी कर दिया जाएंगी। लेकिन डेडलाइन के कई दिनों बाद भी जब अभी तक सरकार की ओर से कोई आदेश जारी नहीं हुआ, तो इन कर्मचारियों ने सोमवार को प्रदर्शन की चेतावनी जारी की।
भेदभाव झेलने के साथ ही कम वेतन में ज्यादा काम करते हैं संविदाकर्मी
मध्य प्रदेश संविदा स्वास्थ्य अधिकारी/ कर्मचारी संघ के विपिन सक्सेना ने न्यूज़क्लिक को बताया कि सोमवार का आह्वान महासंघ के साथ है, जिसमें स्वास्थ्य कर्मियों के साथ ही अन्य विभागों के लोग भी शामिल हैं। इस प्रदर्शन का मुख्य उद्देश्य सीएम साहब को उनके वादे और आश्वासन को याद दिलाना है, जो उन्होंने खुद संविदा कर्मियों से किया है और अब तक उसे लागू नहीं करवा पाए हैं।
विपिन के मुताबिक बीते महीने 21 दिन की हड़ताल के बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान ने खुद प्रदेश स्तरीय प्रतिनिधिमंडल से सीएम हॉउस में चर्चा करते हुए 15 मई तक 5 जून 2018 की नीति लागू करने, जिसमें नियमित के समान 90 प्रतिशत वेतन देने सहित अन्य तीन मांगों को पूरा करने और आदेश जारी करने का आश्वासन दिया था। इसके बाद ही तत्काल प्रभाव से हड़ताल को खत्म कर दिया गया था। लेकिन आज तक इस पर कोई कार्यवाही सामने नहीं आई है, जिसके चलते एक बार फिर सभी स्वास्थ्यकर्मी सड़कों पर उतरने को मजबूर हुए हैं। क्योंकि स्वास्थ्य कर्मियों का इस बार साफ कहना है कि सिर्फ आश्वासन के आधार पर अब वो शांत नहीं बैठेंगे उन्हें ठोस आदेश चाहिए।
क्या है संविदा स्वास्थ्य कर्मियों की प्रमुख मांगें?
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के संविदा कर्मचारियों को विभाग में रिक्त पदों पर नियमित किया जाए। अन्य कर्मचारियों को 5 जून 2018 को सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा पारित की गई नीति रेगुलर कर्मचारियों के समकक्ष 90% वेतनमान तत्काल लागू किया जाए। सीएचओ कैडर को MLHP तहत नियमित किया जाए।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से हटाकर आउटसोर्स ठेका प्रथा खत्म की जाए। सपोर्ट स्टॉफ कर्मचारियों को पुनः राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में मर्ज किया जाए अथवा विभाग में रिक्त पदों पर समायोजन किया जाए। निष्कासित कर्मचारियों को शत-प्रतिशत वापस लिया जाए।
5 दिसंबर से 3 जनवरी तक की गई अनिश्चितकालीन हड़ताल के दौरान जिन कर्मचारियों पर पुलिस प्रकरण दर्ज किए गए हैं, उन्हें तत्काल वापस लिया जाए।
प्रदर्शनकारी स्वास्थ्य कर्मियों का कहना है कि वो 2013 से लगातार अपनी मुख्य मांगों को लेकर शासन प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं। लेकिन अब तक उनकी किसी समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ है। उनका वेतन अन्य विभागों के कर्मचारियों की तुलना में बहुत कम है, जिसके चलते उन्हें आर्थिक दिक्कतों का भी सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा उनके काम के घंटे भी बहुत ज्यादा हैं और सरकारी अधिकारी लगातार उनका मानसिक शोषण भी करते हैं।
संविदा कर्मियों का ये भी कहना है कि नियमित कर्मचारियों से ज्यादा काम करने के बाद भी उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है। सुविधाओं के नाम पर अधिकारी अड़ियल रवैया दिखाते हैं। छुट्टियां इन्हें मिलती नहीं है और न ही नई योजनाओं के लिए ट्रेनिंग। अधिकारी कुछ पूछने पर भी बेरूखी से जवाब देते हैं, जिससे इन लोगों का मनोबल लगातार गिरता जा रहा है। इन कर्मचारियों को उम्मीद थी कि सीएम के आश्वासन के बाद इनकी कई समस्याएं हल हो जाएंगी, लेकिन यहां भी इन्हें निराशा ही हाथ लगी।
गौरतलब है कि इस साल के आखिर में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में युवाओं, महिलाओं और कर्मचारियों के आक्रोष ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इस कार्यकाल में राज्य में बीजेपी की सरकार वैसे भी जोड़-तोड़ से बनी है। बीते चुनावों में कांग्रेस को जीतने के बाद भी 15 महीने में ही सत्ता छोड़नी पड़ी और बीजेपी को एक बार फिर मौका मिल गया। हालांकि इस बार बीजेपी के समक्ष तमाम प्रदर्शनों की चुनौती है, जो आगामी चुनावों में उसके खेल को बिगाड़ सकती है।
Courtesy: Newsclick