बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का एक अॉडियो इन दिनों चर्चा में है, जिसमें वे जाट प्रतिनिधियों के साथ बातचीत कर रहे हैं। उनकी दलील है कि सिर्फ़ ‘दंगा नहीं, जाटों से बीजेपी से 600 साल पुराना रिश्ता है। जिसे थोड़ा दिमाग़ लगाने से समझा जा सकता है। ‘
समझा जा सकता है कि सांप्रदायिक विद्वेष बीजेपी की रणनीति का कितना महत्वपूर्ण हिस्सा है। वह देश को 600 साल पुरानी लड़ाइयों में धकेलना चाहती है ताकि अगले कुछ बरस तक वह चुनाव जीत सके। दंगा ‘ही’ नहीं, लेकिन वह भी बीजेपी-जाटों के रिश्ते की पहचान है।
बहरहाल, ख़बर है कि 11 फ़रवरी को जाटलैंट ने अमित शाह की कोशिश को नकार दिया। ख़बर यह भी है कि पूरे यूपी का मूड ध्रुवीकरण के ख़िलाफ़ है यानी हिंदू-मुसलमान के झगड़े या इसे लेकर शोलाबयानी करके वोट हासिल करना मुश्किल हो रहा है।
यह संयोग नहीं कि इस बीच ज़यादातर हिंदी चैनलों में जमकर ‘हिंदू मुसलमान’ हो रहा है। ‘तीन तलाक़’, ‘भारत में रहने वाले सभी जन हिंदू हैं’ या ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ जैसे मुद्दों पर जमकर बहस हो रही है। इन चैनलों को ना गन्ने की क़ीमत से दरकार है और न पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमत से। रोज़ ऐसे ही किसी भड़काऊ मुद्दे पर संघ और बीजेेपी के प्रतिनिधि दाढ़ी-टोपी वाले मौलानाओं से लड़ते नज़र आ रहे हैं। बिना दाढ़ी-टोपी वाले मुसलमानों को चैनल मुसलमान नहीं मानते। बहसों में वही सब करने की कोशिश की जाती है जो बीजेपी की इच्छा है। पिछले दिनों सबसे तेज़ आज तक पर बात यहाँ तक पहुँची कि बीजेपी प्रवक्ता सम्बित पात्रा और संघ के कथित जानकार राकेश सिन्हा कुर्सी से उठ खड़े होकर हमलावर मुद्रा में मौलानाओं की ओर बढ़े। मौलाना भी कहाँ कम थे। शायद उनको भी इसीलिए लाया गया था। वे भी भिड़ गए। एक सवाल के जवाब में किसी मौलाना ने कहा कि राम ने भी सीता को छोड़ दिया था, जिसके बाद राकेश सिन्हा और सम्बित पात्रा हिंदुओं से माफ़ी माँगने का शोर मचाने लगे। काफ़ी देर तक तमाशा होता रहा। चैनल को टीआरपी मिलती रही।
अब, ज़रा इंडिया टीवी को देखिए। ‘यूपी के मुसलमान के मन में क्या है’- नाम से कार्यक्रम बना तो बहनजी के साथ पर्दे पर मुख़्तार अंसारी का चेहरा था। गोया अंसारी के पास सारे मुसलमानों का ठेका है जिसने बहनजी के साथ डील कर ली है। इस ‘वॉल’ का प्रचार मैनेजिंग एडिटर अजित अंजुम अपने ट्वीट पर कर रहे थे। सोशल मीडिया में ऐसी ही तस्वीरें प्रचारित करके कहा जाता है कि जब सारे मुसलमान एकजुट होकर वोट दे रहे हैं तो सारे हिंदू भी मिलकर बीजेपी को दें। एक तरह से देखें तो इंडिया टीवी बीजेपी का काम आसान कर रहा है।
यह सिर्फ़ एक कार्यक्रम की बात नहीं है। अचानक रजत शर्मा की आपकी अदालत में अमर सिंह नमूदार हो गए, जिन्होंने आज़म खाँ को ‘राष्ट्रद्रोही’ बताते हुए अखिलेश की पार्टी को ‘हराने का आह्वान’ किया। अमर सिंह को अचानक पता चला है कि आज़म खाँ कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते हैं और एबीपी के पूर्व नेता रजत शर्मा अपने चैनल में इसका रहस्योद्घाटन करते हैं। अमर सिंह नोटबंदी के लिए मोदी की तारीफ़ करते हैं और स्टूडियो में आमंत्रित जनता जमकर तालियाँ बजाती है। नोटबंदी से भले ही सौ से ज़्यादा लोग मर गए हों और अर्थव्यवस्था की गिरावट एक स्वीकृत तथ्य हो,लेकिन रजत शर्मा की जनता इसके पक्ष में नारा बुलंद करती है। उधर, इस अदालत के जज और ‘संघप्रिय’ पत्रकार राहुल देव ‘पारे जैसे चमकदार और अदम्य बेबाकी के प्रतीक’अमर सिंह को बाइज़़्ज़त बरी कर देते हैं। समझना मुश्किल नहीं कि अमर सिंह एपीसोड यूपी चुनाव में बीजेपी को फ़ायदा पहुँचाना था।
ज़ी न्यूज़ जैसे चैनल की तो बात ही बेकार है जिसने सांप्रदायिक विद्वेष की अपनी घोषित टीआरपी नीति बना ली है। आईबीएन7 से रूप बदलकर न्यूज़18इंडिया हुआ अंबानी का चैनल भी उसी राह पर है। पिछले दिनों इस चैनल ने ‘सबसे बड़ा दंगल’ कराया जिसमें मुद्दा राम बन गए। और इनपुट हेड सुमित अवस्थी ट्वीट करके पूछने लगे कि ‘क्या राम का नाम लेना इतना बुरा है ?’
सुमित का एक और ट्वीट देखिए जिसमें वह ‘सबसे बड़ी बहस’को देखने का आग्रह है जिसमें कांग्रेस, एसपी, आरएलडी ने बीजेपी को रोकने के लिए हर तरह की कोशिश की।
बीजेपी को रोका जाना सुमित अवस्थी को बिलकुल भी बरदाश्त नहीं। वे बीजेपी प्रवक्ताओं की शैली में ही बीजेपी विरोधियों को घेरते हैं। उनका यह ट्वीट इसकी मिसाल है।
ज़्यादातर हिंदी चैनल यूपी में ध्रुवीकरण की कोशिश में जुटी बीजेपी के सबसे विश्वस्त सहयोगी हैं। यूपी की जनता का विवेक कसौटी पर है। वह तय करेगी कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा। लेकिन पत्रकारिता की कसौटी पर कसें तो ये चैनल चुनाव के पहले ही बुरी तरह हार चुके हैं।
शर्म इनको मगर नहीं आती !
.बर्बरीक
समझा जा सकता है कि सांप्रदायिक विद्वेष बीजेपी की रणनीति का कितना महत्वपूर्ण हिस्सा है। वह देश को 600 साल पुरानी लड़ाइयों में धकेलना चाहती है ताकि अगले कुछ बरस तक वह चुनाव जीत सके। दंगा ‘ही’ नहीं, लेकिन वह भी बीजेपी-जाटों के रिश्ते की पहचान है।
बहरहाल, ख़बर है कि 11 फ़रवरी को जाटलैंट ने अमित शाह की कोशिश को नकार दिया। ख़बर यह भी है कि पूरे यूपी का मूड ध्रुवीकरण के ख़िलाफ़ है यानी हिंदू-मुसलमान के झगड़े या इसे लेकर शोलाबयानी करके वोट हासिल करना मुश्किल हो रहा है।
यह संयोग नहीं कि इस बीच ज़यादातर हिंदी चैनलों में जमकर ‘हिंदू मुसलमान’ हो रहा है। ‘तीन तलाक़’, ‘भारत में रहने वाले सभी जन हिंदू हैं’ या ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ जैसे मुद्दों पर जमकर बहस हो रही है। इन चैनलों को ना गन्ने की क़ीमत से दरकार है और न पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमत से। रोज़ ऐसे ही किसी भड़काऊ मुद्दे पर संघ और बीजेेपी के प्रतिनिधि दाढ़ी-टोपी वाले मौलानाओं से लड़ते नज़र आ रहे हैं। बिना दाढ़ी-टोपी वाले मुसलमानों को चैनल मुसलमान नहीं मानते। बहसों में वही सब करने की कोशिश की जाती है जो बीजेपी की इच्छा है। पिछले दिनों सबसे तेज़ आज तक पर बात यहाँ तक पहुँची कि बीजेपी प्रवक्ता सम्बित पात्रा और संघ के कथित जानकार राकेश सिन्हा कुर्सी से उठ खड़े होकर हमलावर मुद्रा में मौलानाओं की ओर बढ़े। मौलाना भी कहाँ कम थे। शायद उनको भी इसीलिए लाया गया था। वे भी भिड़ गए। एक सवाल के जवाब में किसी मौलाना ने कहा कि राम ने भी सीता को छोड़ दिया था, जिसके बाद राकेश सिन्हा और सम्बित पात्रा हिंदुओं से माफ़ी माँगने का शोर मचाने लगे। काफ़ी देर तक तमाशा होता रहा। चैनल को टीआरपी मिलती रही।
अब, ज़रा इंडिया टीवी को देखिए। ‘यूपी के मुसलमान के मन में क्या है’- नाम से कार्यक्रम बना तो बहनजी के साथ पर्दे पर मुख़्तार अंसारी का चेहरा था। गोया अंसारी के पास सारे मुसलमानों का ठेका है जिसने बहनजी के साथ डील कर ली है। इस ‘वॉल’ का प्रचार मैनेजिंग एडिटर अजित अंजुम अपने ट्वीट पर कर रहे थे। सोशल मीडिया में ऐसी ही तस्वीरें प्रचारित करके कहा जाता है कि जब सारे मुसलमान एकजुट होकर वोट दे रहे हैं तो सारे हिंदू भी मिलकर बीजेपी को दें। एक तरह से देखें तो इंडिया टीवी बीजेपी का काम आसान कर रहा है।
यह सिर्फ़ एक कार्यक्रम की बात नहीं है। अचानक रजत शर्मा की आपकी अदालत में अमर सिंह नमूदार हो गए, जिन्होंने आज़म खाँ को ‘राष्ट्रद्रोही’ बताते हुए अखिलेश की पार्टी को ‘हराने का आह्वान’ किया। अमर सिंह को अचानक पता चला है कि आज़म खाँ कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते हैं और एबीपी के पूर्व नेता रजत शर्मा अपने चैनल में इसका रहस्योद्घाटन करते हैं। अमर सिंह नोटबंदी के लिए मोदी की तारीफ़ करते हैं और स्टूडियो में आमंत्रित जनता जमकर तालियाँ बजाती है। नोटबंदी से भले ही सौ से ज़्यादा लोग मर गए हों और अर्थव्यवस्था की गिरावट एक स्वीकृत तथ्य हो,लेकिन रजत शर्मा की जनता इसके पक्ष में नारा बुलंद करती है। उधर, इस अदालत के जज और ‘संघप्रिय’ पत्रकार राहुल देव ‘पारे जैसे चमकदार और अदम्य बेबाकी के प्रतीक’अमर सिंह को बाइज़़्ज़त बरी कर देते हैं। समझना मुश्किल नहीं कि अमर सिंह एपीसोड यूपी चुनाव में बीजेपी को फ़ायदा पहुँचाना था।
ज़ी न्यूज़ जैसे चैनल की तो बात ही बेकार है जिसने सांप्रदायिक विद्वेष की अपनी घोषित टीआरपी नीति बना ली है। आईबीएन7 से रूप बदलकर न्यूज़18इंडिया हुआ अंबानी का चैनल भी उसी राह पर है। पिछले दिनों इस चैनल ने ‘सबसे बड़ा दंगल’ कराया जिसमें मुद्दा राम बन गए। और इनपुट हेड सुमित अवस्थी ट्वीट करके पूछने लगे कि ‘क्या राम का नाम लेना इतना बुरा है ?’
सुमित का एक और ट्वीट देखिए जिसमें वह ‘सबसे बड़ी बहस’को देखने का आग्रह है जिसमें कांग्रेस, एसपी, आरएलडी ने बीजेपी को रोकने के लिए हर तरह की कोशिश की।
बीजेपी को रोका जाना सुमित अवस्थी को बिलकुल भी बरदाश्त नहीं। वे बीजेपी प्रवक्ताओं की शैली में ही बीजेपी विरोधियों को घेरते हैं। उनका यह ट्वीट इसकी मिसाल है।
ज़्यादातर हिंदी चैनल यूपी में ध्रुवीकरण की कोशिश में जुटी बीजेपी के सबसे विश्वस्त सहयोगी हैं। यूपी की जनता का विवेक कसौटी पर है। वह तय करेगी कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा। लेकिन पत्रकारिता की कसौटी पर कसें तो ये चैनल चुनाव के पहले ही बुरी तरह हार चुके हैं।
शर्म इनको मगर नहीं आती !
.बर्बरीक