जस्टिस होसबेट सुरेश जन्मदिवस पर सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस ने लॉन्च किया संग्रह

Written by CJP Team | Published on: July 22, 2020
नई दिल्ली। जस्टिस होसबेट सुरेश कानून के चमकते सितारे और मानवाधिकार न्यायशास्त्र के दिग्गज रहे हैं, खासतौर पर सेवानिवृत्ति के बाद के सालों में उन्होंने जो काम किए वह आज भी हमारे दिलों में जिंदा हैं। उन्होंने फैक्ट फाइंडिंग मिशनों, लोगों के लिए न्यायाधिकरणों और जन सुनवाई की एक श्रृंखला के जरिए बेजुबानों को आवाज प्रदान की जिससे शोषितों और पीड़ितों की न्याय तक पहुंच हो सके।



20 जुलाई को उनके जन्मदिन पर सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस ने इन सभी न्यायाधिकरणों और जनसुनवाइयों की रिपोर्ट का एक संग्रह लॉन्च किया। इस संग्रह में दिसंबर 1992 से जनवरी 1993 के बीच हुए हुए मुंबई दंगों की जांच, रामाबाई नगर में जुलाई 1997 की पुलिस गोलीबारी, 2002 के गुजरात नरसंहार की एक जांच और बहुत कुछ शामिल हैं।  

इस संग्रह को हॉस्ट करने की प्रेरणा के बारे में बताते हुए सीजेपी की सचिव और मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा कि  जस्टिस सुरेश के लिए न्याय का मतलब दूर दराज और वंचित वर्गों के लिए गरिमा के साथ जीवन के अधिकार के मूल्यों को एक जीवंत और स्थायी सिद्धांत बनाना था।

सीजेपी को इस पहल के लिए कई मानवाधिकार रक्षकों से प्रोत्साहन के शब्द मिले हैं। भारत की आइरन लेडी के नाम से जानी जाने वाली मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने उन्हें अन्याय की ओर आंखे खोले का श्रेय देते हुए कहा, मैं अपने ही मूल राज्य मणिपुर में आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA) के कारण मानवाधिकारों के उल्लंघन की वास्तविक घटनाओं की गवाही देने आई थी। इसके बाद केवल मैंने ही जस्टिस सुरेश के नेतृत्व में फैक्ट फाइंडिंग ज्यूडिशरी कमीशन पर आधारित इंटर्नशिप में हिस्सा लिया था।  

मजलिस की महिला अधिकार कार्यकर्ता फ्लाविया एग्नेस ने कहा, यदि उनके द्वारा लिखी गईं सभी रिपोर्टों को किया जा सका तो पिछले तीन दशकों के दौरान हुए मानवाधिकारों के उल्लंघन पर अध्ययन करने के लिए भावी पीढ़ियों के लिए एक सत्य संग्रह तैयार करेंगे। 

उन्होंने कहा कि जो लोग मानवाधिकारों के विषय के साथ शैक्षणिक स्तर पर या जमीनी स्तर पर एक कार्यकर्ता के रूप में लगे हुए हैं ऑनलाइन संग्रह उनतक आसानी से पहुंच प्रदान करेगा। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जस्टिस सुरेश का जीवन और कार्य भावी पीढ़ियों के लिए आशा की किरण के रूप में काम करेंगें जिन्हें आज जो हम देख रहे हैं, उससे कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी काम करना पड़ सकता है।

वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई ने कहा, 'यह वाकई बहुत प्रशंसनीय है कि सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस जस्टिस सुरेश की सेवानिवृत्ति के बाद के दस्तावेजों का एक संग्रह बना रहा है। यह उनके जन्मदिन पर लॉन्च किया जा रहा है जो दोगुना संतुष्टि देने वाला है।' 

दिवंगत जस्टिस सुरेश की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा, जस्टिस सुरेश विशेष रूप से सेवानिवृत्ति के बाद जनता के आदमी के रूप में जाने जाते थे। जब भी और जहां भी मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ, वह खुद गहराई तक चले गए। उन्होंने सीधे उल्लंघन के पीड़ितों से मिलने और उनके साथ दया और सहानुभूति के साथ बातचीत करने पर जोर दिया। 

जस्टिस सुरेश ने मानवाधिकारों के अंतर्निहित सिद्धांतों को फिर से लागू करने में कैसे मदद की, इस पर प्रकाश डालते हुए लोक राज संगठन के संजीवनी जैन ने कहा, जस्टिस सुरेश जीवन के अधिकार के एक अपहोल्डर थे जिन्होंने रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, बिजली आदि जैसे विषयों पर जोर दिया। यह भारतीय संविधान में परिभाषित जीवन के अधिकार की एक रचनात्मक और महत्वपूर्ण व्याख्या थी।

हम इस प्रयास में सपोर्ट के लिए जस्टिस होसबेट सुरेश के परिवार के आभारी हैं। उनकी बेटियां रजनी सोंदूर, शालिनी प्रसाद और मालिनी कनाल ने विशेष रूप से हमारे लिए कुछ शब्द लिखे,  'हम उनके आदर्शों को आत्मसात करते हुए बड़े हुए हैं। इस वेबसाइट के साथ हमें उम्मीद है कि उनका काम कई लोगों को उनके नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रेरित करेगा।'

मानवाधिकार रक्षकों और कानून आड़तियों ने हमें प्रोत्साहन के शब्द लिखे हैं। इनमें वरिष्ठ अधिवक्ता गायत्री सिंह, कार्यकर्ता जॉन दयाल, द कॉस्टल एक्शन नेटवर्क, द सीआईईडीएस कलेक्टिव और कई अन्य शामिल हैं। 

आज तो बस शुरूआत है। हम आने वाले महीनों में और अधिक संसाधनों को जोड़ना जारी रखेंगे और समय के साथ क्षेत्रीय भाषाओं में बी सामग्री उपलब्ध कराएंगे। हमें उम्मीद है कि यह संग्रह सीजेपी और सभी लोगों को मानवाधिकारों के बारे में बताने में सक्षम होगा जो न केवल जस्टिस होसबेट सुरेश के नक्शेकदम पर चलने के लिए बल्कि न्यायशास्त्र को और अधिक विकसित करने में अग्रणी साबित होगा। 

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