छत्तीसगढ़: एनजीओ के जाल में फंसे सरकारी स्कूल

Written by Mahendra Narayan Singh Yadav | Published on: November 13, 2018
छत्तीसगढ़ में रमन सिंह सरकार ने सरकारी स्कूलों को अपने चहेते लोगों के एनजीओ के हवाले करके बरबाद करने की जो साजिश की, उसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं।

chhattisgarh school

स्कूली बच्चों को पढ़ाने और शिक्षकों को प्रशिक्षण देने का काम अब एनजीओ के हवाले ही है।

नईदुनिया की रिपोर्ट के मुताबिक, बहुत सारे संस्थान अलग-अलग जिलों में अपना प्रयोग कर रहे हैं, और राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) में भी किताब लेखन के काम में ज्यादातर एनजीओ ही हावी हैं और शिक्षकों की भूमिका इसमें काफी सीमित हो गई है।
का है।

पिछले सालों में अपडेट हुईं किताबों में दिगंतर, विद्या भवन सोसाइटी, एकलव्य, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन, आइसीसी फाउंडेशन आदि ने काम किया है।

राज्य में बच्चों के किताब लेखन के लिए एससीईआरटी और जिलों के डाइट्स के औचित्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इसी तरह, सर्व शिक्षा अभियान के तहत शाला त्यागी बच्चों के लिए हुमाना पीपुल टू पीपुल इंडिया की ओर से प्रस्तावित किताब कदम को छपवाकर पढ़ाया जा रहा है जो कि हरियाणा की संस्था है। रूम टू रीड संस्था बच्चों को लाइब्रेरी में किताबें उपलब्ध करा रही है।

यही हाल ट्रेनिंग व्यवस्था का है। एससीईआरटी और डाइट्स के बजाय एनजीओ ही यह काम कर रहे हैं। इसके तहत, एलएलएफ यानी लर्निंग लैंग्वेज फाउंडेशन शिक्षकों को ट्रेंड होने का सर्टिफिकेट देता है। चॉकलेट संस्था शरीर प्रताड़ना किये बगैर बच्चों को पढ़ाने का गुर सिखाता है। द टीचर एप संस्थान द टीचर एप के जरिए शिक्षकों को ऑनलाइन ट्रेनिंग देता है। इसी तरह, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन शिक्षकों को टीचर्स प्रोफेशनल डेवेलपमेंट में काम कर रहा है। आइएफआइजी शिक्षकों में लैंग्वेज का काम रहा है।

नईदुनिया की रिपोर्ट के अनुसार, संपर्क क्लास के जरिए अंग्रेजी और गणित के लिए किट दी जा रही है। वहीं बाधवानी फाउंडेशन की ओर राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) में वोकेशनल कोर्स के लिए इस संस्थान के मॉड्यूल पर काम हो रहा है। आउटसोर्सिंग के जरिये वोकेशनल की पढ़ाई चल रही है। लर्निंग लिंक फाउंडेशन और मैजिक बस फाउंडेशन दोनों संस्थान मिलकर दिशा कार्यक्रम चला रहे हैं। राज्य के 89 मिडिल स्कूल में इसमें संज्ञानात्मक और सह संज्ञानात्मक क्षमता बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं।

इसी तरह, आरटीई वाच और प्रथम संस्था बच्चों के उपलब्धि स्तर और मूलभूत सुविधाओं की जांच कर रहे हैं।

कुल मिलाकर, सारी स्कूली व्यवस्था एनजीओ के सुपुर्द कर दी गई है और शिक्षकों की भूमिका बहुत सीमित हो चुकी है।

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