“वे मतदाता सूची से मेरा नाम कैसे हटा सकते हैं … क्या मैं मर गई हूँ? आज आप मुझे वोट नहीं डालने दे रहे हैं, कल आप राशन कार्ड से मेरा नाम हटा सकते हैं, फिर जमीन के रिकॉर्ड से... यह अन्याय कहां खत्म होगा?' दलित महिला हेमलता ने कहा, जिनका नाम कथित तौर पर 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची से हटा दिया गया था।
पिछले साल विधानसभा चुनाव 2022 में नोएडा गौतमबुद्धनगर में अनुसूचित जाति की महिला का वोट काटकर मताधिकार से वंचित करना प्रशासन को महंगा पड़ गया। महिला ने अदालत में लड़ाई लड़ी कि जाति के आधार पर उसके साथ भेदभाव किया गया है और उसका मताधिकार छीन लिया गया है। उसके पक्ष में फैसला आया और एससी-एसटी कोर्ट के आदेश पर नोएडा पुलिस द्वारा पूर्व एसडीएम सदर (वर्तमान में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के ओएसडी) तथा दो तहसीलदारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है।
“वे मतदाता सूची से मेरा नाम कैसे हटा सकते हैं … क्या मैं मर गई हूँ? आज आप मुझे वोट नहीं डालने दे रहे हैं, कल आप राशन कार्ड से मेरा नाम हटा सकते हैं, फिर जमीन के रिकॉर्ड से... यह अन्याय कहां खत्म होगा?' हेमलता ने कहा, जिनका नाम कथित तौर पर 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची से हटा दिया गया था।
पीड़िता हेमलता
मामला गौतमबुद्धनगर जिले के रोशनपुर गांव की रहने वाली दलित महिला हेमलता का है जो घर के साथ खेत का भी काम देखती हैं, जबकि उनके पति महेंद्र कुमार एक मजदूर हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार, चुनाव के दिन को याद करते हुए हेमलता बताती है कि: “मैं हर किसी की तरह मतदान करने के लिए लाइन में खड़ी थी। लेकिन जब मेरी बारी आई तो बूथ पर मौजूद मतदान अधिकारियों ने कहा कि (मेरा नाम) रिकॉर्ड में नहीं है, इसे हटा (काट) दिया गया है। यह बहुत ही असामान्य था। अगर मैंने 2017 के चुनाव में मतदान किया था, तो अब मुझे मतदान से कैसे अयोग्य ठहराया जा सकता है?”
ज्यादातर लोग इसे 'सरकारी' गलती मानकर चलने देते है और छोड़ देते है, लेकिन हेमलता चुप नहीं रहीं। "मतदाता सूची से सिर्फ मेरा ही नाम नहीं हटाया गया था लेकिन लोग बोलते नहीं हैं, वे परेशानियों और परिणामों से डरते हैं, लेकिन मैंने सोचा कि मुझे इसके खिलाफ लड़ना चाहिए।
हेमलता ने पहले संबंधित थाने में और फिर पुलिस कमिश्नरेट में शिकायत की। जब कुछ नहीं हुआ, तो उसने जिले के एससी/एसटी कोर्ट का रुख किया। 23 नवंबर, 2022 को विशेष न्यायाधीश ज्योत्सना सिंह ने पुलिस को तत्कालीन एसडीएम (सदर) और दो तहसीलदारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया। फैसले के 60 दिन बाद, दनकौर पुलिस ने पूर्व सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (सदर) व वर्तमान में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के ओएसडी रजनीकांत, तहसीलदार अखिलेश सिंह व विनय भदौरिया के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। इसके अलावा प्राथमिकी में 4-5 अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया है।
कोर्ट आदेश में कहा गया है: “…आवेदक का नाम जातिगत द्वेष और उसे निचली जाति का व्यक्ति मानने के चलते मतदाता सूची से हटा दिया गया और उसके वोट देने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया। इतना ही नहीं, चुनाव आयोग को एक जाली प्रमाण पत्र पेश किया गया कि मतदाता सूची में कोई त्रुटि नहीं है और कोई पात्र नाम गायब नहीं है। दूसरी ओर, मतदाता सूची में बहुत सारी अनियमितताएं थीं और यह जानबूझकर किया गया था।”
आदेश में कहा गया है “आवेदन के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार, प्रथम दृष्टया, यह स्पष्ट है कि विपरीत पक्ष ने एक संज्ञेय अपराध किया है, जिसकी पुलिस द्वारा जांच की जानी चाहिए। इसलिए, न्याय के हित में, आवेदन स्वीकार किया जाता है।”
यही नहीं, अदालत ने कहा था कि एक सप्ताह के भीतर मामला दर्ज किया जाना चाहिए, लेकिन इसका भी अनुपालन नहीं किया गया। हेमलता को एक बार फिर, आदेश को लागू कराने के लिए, जिले के संबंधित एसएचओ और एसीपी के खिलाफ अदालत का रुख करना पड़ा।
उसके वकील, राजकुमार ने कहा कि.. "पुलिस ने 12 जनवरी को आदेश का पालन नहीं करने के लिए 'कुछ कारणों' का हवाला देते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। जबकि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम 1989 स्वयं में कहता है कि यदि कोई अनुसूचित जाति के सदस्य को मतदान न करने या किसी विशेष उम्मीदवार को वोट देने या कानून द्वारा प्रदान किए गए तरीके से अलग तरीके से मतदान करने के लिए मजबूर करता है या धमकाता है तो यह एक अपराध है। दूसरा, प्रत्येक जिले को चुनाव आयोग को एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होता है कि मतदाता सूची में कोई त्रुटि नहीं है और कोई भी योग्य नाम नहीं हटाया गया है…”
एडवोकेट- राजकुमार
उन्होंने कहा कि नाम तभी हटाया जा सकता है जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गई हो, उसने अपना निवास स्थान बदल लिया हो या कोई डुप्लीकेट नाम हो। यही नहीं, सूची से किसी का नाम हटाने से पहले 15 दिन का नोटिस देना भी जरूरी है।
उधर, पुलिस के अनुसार मामले की जांच सहायक पुलिस आयुक्त-3 (ग्रेटर नोएडा) कर रहे हैं। प्राथमिकी आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467 (जाली रिकार्ड बनाना), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को वास्तविक के रूप में उपयोग करना), 120 बी (आपराधिक षड़यंत्र), 166 (सरकारी सेवक द्वारा कानून की अवहेलना), और 167 (लोक सेवक द्वारा चोट पहुँचाने के इरादे से गलत दस्तावेज़ तैयार करना)। एफआईआर में एससी/एसटी एक्ट, 1989 की धारा 3 भी जोड़ी गई है।
आसान नहीं था अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा
हेमलता के अनुसार अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा आसान नहीं था। कहा कि अब केस दर्ज होने के बाद उसके घर अफसरों का जमावड़ा लगा है जो अब केस वापस लेने और वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने की बात कर रहे हैं। केस वापस लेने से इनकार करने के साथ ही हेमलता कहती हैं कि जब पोलिंग बूथ से वहां मौजूद अधिकारी, उसे वोटर लिस्ट में नाम काट दिए जाने की बात कह रहे थे, तब उसने अधिकारियों से काफी गुहार लगाई लेकिन निराश होकर लौटना पड़ा था।
हेमलता कहती हैं कि वह गांव से 3-4 किलोमीटर पैदल जाती और फिर टेंपो पकड़कर कोर्ट पहुंचती है। उसके दो बच्चे हैं। पति मजदूरी करता है लेकिन उसे कोर्ट पर भरोसा है। न्याय मिलेगा।
एससी एसटी एक्ट में 1995 से है प्रावधान
संविधान बचाओ ट्रस्ट के संयोजक एडवोकेट राजकुमार कहते है कि अनुसूचित जाति जनजाति के व्यक्ति को मताधिकार से वंचित करना एससी-एसटी एक्ट 1989 में दंडनीय अपराध है। एक्ट में यह प्रावधान 1995 में आ गया था, परंतु अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों की अज्ञानता और चुनाव आयोग की अकर्मण्यता के चलते देश भर में कभी इस अपराध में मुकदमे दर्ज नहीं हुए। प्रत्येक चुनाव में एससी-एसटी के लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित किया जाता रहा है, जब विधानसभा चुनाव 2022 में प्रत्येक बूथ पर कमजोर वर्गों के लाखों वोट कटवा दिए गये तो मुजफ्फरनगर, चंदौसी आदि करीब दर्जनभर जिलों में अनुसूचित जाति के लोगों द्वारा मुख्य चुनाव आयुक्त, मुख्य निर्वाचन अधिकारी उत्तर प्रदेश, संबंधित जिला अधिकारी, एसडीएम तहसीलदार के विरुद्ध मुकदमे डाले गए। थाना, कप्तान, एससी एसटी एक्ट कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक का दरवाजा लोगों ने खटखटाया गया। खास है कि जनपद बिजनौर के पवन कुमार ने भी पिछले दिनों अफजलगढ थाने में एसडीएम व तहसीलदार के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट और धोखाधड़ी में मुकदमा दर्ज कराया था।
संविधान में है व्यवस्था
राजकुमार बताते है कि संविधान के आर्टिकल 324 के अनुसार, मतदाता सूची बनाना और स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराना भारत निर्वाचन आयोग की संवैधानिक ड्यूटी है। यही नहीं, अंतिम मतदाता सूची के प्रकाशन से पहले जिलाधिकारी से भारत निर्वाचन आयोग यह प्रमाण पत्र लेता है कि मतदाता सूची का परीक्षण कर लिया गया है और मतदाता सूची त्रुटि रहित है और इसमें किसी मतदाता का नाम छूटा नहीं है। इस प्रकार हेमलता के मामले में भारत निर्वाचन आयोग और जिलाधिकारी गौतमबुद्धनगर की भी मुश्किलें बढ सकती हैं। राजकुमार के अनुसार, जिन धाराओं में हेमलता का मुकदमा दर्ज हो रहा है उसमें महामहिम राष्ट्रपति द्वारा जारी राजाज्ञा, 14 अप्रैल 2016 के अनुसार पीड़ित को चार लाख रुपए की सहायता देने का भी प्रावधान है एफआईआर पर एक लाख, आरोपपत्र न्यायालय में दाखिल होने पर दो लाख और अवर न्यायालय से सजा होने पर एक लाख रुपए की पीड़ित सहायता तत्काल दिये जाने की व्यवस्था एससी-एसटी एक्ट में की गई है।
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पिछले साल विधानसभा चुनाव 2022 में नोएडा गौतमबुद्धनगर में अनुसूचित जाति की महिला का वोट काटकर मताधिकार से वंचित करना प्रशासन को महंगा पड़ गया। महिला ने अदालत में लड़ाई लड़ी कि जाति के आधार पर उसके साथ भेदभाव किया गया है और उसका मताधिकार छीन लिया गया है। उसके पक्ष में फैसला आया और एससी-एसटी कोर्ट के आदेश पर नोएडा पुलिस द्वारा पूर्व एसडीएम सदर (वर्तमान में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के ओएसडी) तथा दो तहसीलदारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है।
“वे मतदाता सूची से मेरा नाम कैसे हटा सकते हैं … क्या मैं मर गई हूँ? आज आप मुझे वोट नहीं डालने दे रहे हैं, कल आप राशन कार्ड से मेरा नाम हटा सकते हैं, फिर जमीन के रिकॉर्ड से... यह अन्याय कहां खत्म होगा?' हेमलता ने कहा, जिनका नाम कथित तौर पर 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची से हटा दिया गया था।
पीड़िता हेमलता
मामला गौतमबुद्धनगर जिले के रोशनपुर गांव की रहने वाली दलित महिला हेमलता का है जो घर के साथ खेत का भी काम देखती हैं, जबकि उनके पति महेंद्र कुमार एक मजदूर हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार, चुनाव के दिन को याद करते हुए हेमलता बताती है कि: “मैं हर किसी की तरह मतदान करने के लिए लाइन में खड़ी थी। लेकिन जब मेरी बारी आई तो बूथ पर मौजूद मतदान अधिकारियों ने कहा कि (मेरा नाम) रिकॉर्ड में नहीं है, इसे हटा (काट) दिया गया है। यह बहुत ही असामान्य था। अगर मैंने 2017 के चुनाव में मतदान किया था, तो अब मुझे मतदान से कैसे अयोग्य ठहराया जा सकता है?”
ज्यादातर लोग इसे 'सरकारी' गलती मानकर चलने देते है और छोड़ देते है, लेकिन हेमलता चुप नहीं रहीं। "मतदाता सूची से सिर्फ मेरा ही नाम नहीं हटाया गया था लेकिन लोग बोलते नहीं हैं, वे परेशानियों और परिणामों से डरते हैं, लेकिन मैंने सोचा कि मुझे इसके खिलाफ लड़ना चाहिए।
हेमलता ने पहले संबंधित थाने में और फिर पुलिस कमिश्नरेट में शिकायत की। जब कुछ नहीं हुआ, तो उसने जिले के एससी/एसटी कोर्ट का रुख किया। 23 नवंबर, 2022 को विशेष न्यायाधीश ज्योत्सना सिंह ने पुलिस को तत्कालीन एसडीएम (सदर) और दो तहसीलदारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया। फैसले के 60 दिन बाद, दनकौर पुलिस ने पूर्व सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (सदर) व वर्तमान में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के ओएसडी रजनीकांत, तहसीलदार अखिलेश सिंह व विनय भदौरिया के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। इसके अलावा प्राथमिकी में 4-5 अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया है।
कोर्ट आदेश में कहा गया है: “…आवेदक का नाम जातिगत द्वेष और उसे निचली जाति का व्यक्ति मानने के चलते मतदाता सूची से हटा दिया गया और उसके वोट देने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया। इतना ही नहीं, चुनाव आयोग को एक जाली प्रमाण पत्र पेश किया गया कि मतदाता सूची में कोई त्रुटि नहीं है और कोई पात्र नाम गायब नहीं है। दूसरी ओर, मतदाता सूची में बहुत सारी अनियमितताएं थीं और यह जानबूझकर किया गया था।”
आदेश में कहा गया है “आवेदन के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार, प्रथम दृष्टया, यह स्पष्ट है कि विपरीत पक्ष ने एक संज्ञेय अपराध किया है, जिसकी पुलिस द्वारा जांच की जानी चाहिए। इसलिए, न्याय के हित में, आवेदन स्वीकार किया जाता है।”
यही नहीं, अदालत ने कहा था कि एक सप्ताह के भीतर मामला दर्ज किया जाना चाहिए, लेकिन इसका भी अनुपालन नहीं किया गया। हेमलता को एक बार फिर, आदेश को लागू कराने के लिए, जिले के संबंधित एसएचओ और एसीपी के खिलाफ अदालत का रुख करना पड़ा।
उसके वकील, राजकुमार ने कहा कि.. "पुलिस ने 12 जनवरी को आदेश का पालन नहीं करने के लिए 'कुछ कारणों' का हवाला देते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। जबकि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम 1989 स्वयं में कहता है कि यदि कोई अनुसूचित जाति के सदस्य को मतदान न करने या किसी विशेष उम्मीदवार को वोट देने या कानून द्वारा प्रदान किए गए तरीके से अलग तरीके से मतदान करने के लिए मजबूर करता है या धमकाता है तो यह एक अपराध है। दूसरा, प्रत्येक जिले को चुनाव आयोग को एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होता है कि मतदाता सूची में कोई त्रुटि नहीं है और कोई भी योग्य नाम नहीं हटाया गया है…”
एडवोकेट- राजकुमार
उन्होंने कहा कि नाम तभी हटाया जा सकता है जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गई हो, उसने अपना निवास स्थान बदल लिया हो या कोई डुप्लीकेट नाम हो। यही नहीं, सूची से किसी का नाम हटाने से पहले 15 दिन का नोटिस देना भी जरूरी है।
उधर, पुलिस के अनुसार मामले की जांच सहायक पुलिस आयुक्त-3 (ग्रेटर नोएडा) कर रहे हैं। प्राथमिकी आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467 (जाली रिकार्ड बनाना), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को वास्तविक के रूप में उपयोग करना), 120 बी (आपराधिक षड़यंत्र), 166 (सरकारी सेवक द्वारा कानून की अवहेलना), और 167 (लोक सेवक द्वारा चोट पहुँचाने के इरादे से गलत दस्तावेज़ तैयार करना)। एफआईआर में एससी/एसटी एक्ट, 1989 की धारा 3 भी जोड़ी गई है।
आसान नहीं था अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा
हेमलता के अनुसार अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा आसान नहीं था। कहा कि अब केस दर्ज होने के बाद उसके घर अफसरों का जमावड़ा लगा है जो अब केस वापस लेने और वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने की बात कर रहे हैं। केस वापस लेने से इनकार करने के साथ ही हेमलता कहती हैं कि जब पोलिंग बूथ से वहां मौजूद अधिकारी, उसे वोटर लिस्ट में नाम काट दिए जाने की बात कह रहे थे, तब उसने अधिकारियों से काफी गुहार लगाई लेकिन निराश होकर लौटना पड़ा था।
हेमलता कहती हैं कि वह गांव से 3-4 किलोमीटर पैदल जाती और फिर टेंपो पकड़कर कोर्ट पहुंचती है। उसके दो बच्चे हैं। पति मजदूरी करता है लेकिन उसे कोर्ट पर भरोसा है। न्याय मिलेगा।
एससी एसटी एक्ट में 1995 से है प्रावधान
संविधान बचाओ ट्रस्ट के संयोजक एडवोकेट राजकुमार कहते है कि अनुसूचित जाति जनजाति के व्यक्ति को मताधिकार से वंचित करना एससी-एसटी एक्ट 1989 में दंडनीय अपराध है। एक्ट में यह प्रावधान 1995 में आ गया था, परंतु अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों की अज्ञानता और चुनाव आयोग की अकर्मण्यता के चलते देश भर में कभी इस अपराध में मुकदमे दर्ज नहीं हुए। प्रत्येक चुनाव में एससी-एसटी के लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित किया जाता रहा है, जब विधानसभा चुनाव 2022 में प्रत्येक बूथ पर कमजोर वर्गों के लाखों वोट कटवा दिए गये तो मुजफ्फरनगर, चंदौसी आदि करीब दर्जनभर जिलों में अनुसूचित जाति के लोगों द्वारा मुख्य चुनाव आयुक्त, मुख्य निर्वाचन अधिकारी उत्तर प्रदेश, संबंधित जिला अधिकारी, एसडीएम तहसीलदार के विरुद्ध मुकदमे डाले गए। थाना, कप्तान, एससी एसटी एक्ट कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक का दरवाजा लोगों ने खटखटाया गया। खास है कि जनपद बिजनौर के पवन कुमार ने भी पिछले दिनों अफजलगढ थाने में एसडीएम व तहसीलदार के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट और धोखाधड़ी में मुकदमा दर्ज कराया था।
संविधान में है व्यवस्था
राजकुमार बताते है कि संविधान के आर्टिकल 324 के अनुसार, मतदाता सूची बनाना और स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराना भारत निर्वाचन आयोग की संवैधानिक ड्यूटी है। यही नहीं, अंतिम मतदाता सूची के प्रकाशन से पहले जिलाधिकारी से भारत निर्वाचन आयोग यह प्रमाण पत्र लेता है कि मतदाता सूची का परीक्षण कर लिया गया है और मतदाता सूची त्रुटि रहित है और इसमें किसी मतदाता का नाम छूटा नहीं है। इस प्रकार हेमलता के मामले में भारत निर्वाचन आयोग और जिलाधिकारी गौतमबुद्धनगर की भी मुश्किलें बढ सकती हैं। राजकुमार के अनुसार, जिन धाराओं में हेमलता का मुकदमा दर्ज हो रहा है उसमें महामहिम राष्ट्रपति द्वारा जारी राजाज्ञा, 14 अप्रैल 2016 के अनुसार पीड़ित को चार लाख रुपए की सहायता देने का भी प्रावधान है एफआईआर पर एक लाख, आरोपपत्र न्यायालय में दाखिल होने पर दो लाख और अवर न्यायालय से सजा होने पर एक लाख रुपए की पीड़ित सहायता तत्काल दिये जाने की व्यवस्था एससी-एसटी एक्ट में की गई है।
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