पिछले महीने 26 अक्टूबर को कनाडा की संसद ने इस्लामफोबिया विरोधी प्रस्ताव पारित किया। कनाडा और दुनिया के दूसरे हिस्सों में मस्जिदों और मुस्लिम समुदाय पर हुए हाल के हमलों को देखते हुए कनाडा की संसद में यह प्रस्ताव पारित किया गया है। हालांकि यह प्रस्ताव अभी कानून नहीं बना है लेकिन इसमें हर तरह के इस्लाम फोबिया की निंदा की गई है।
कनाडा के 70000 लोगों ने ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर कर इस्लाम के प्रति पैदा किए जाने वाले डर के खिलाफ विरोध जताया था। इसके बाद ही कनाडा की संसद में इस संबंध में प्रस्ताव पारित हुआ। ऑनलाइन याचिका में पूरी दुनिया में इस्लाम के प्रति भय पैदा करने की कोशिशों की निंदा की गई थी।
‘डेली सबा’ के मुताबिक इस ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर की शुरुआत 8 जून, 2016 को शुरू हुई थी और 6 अक्टूबर, 2016 तो यह अभियान पूरा हो गया था।
याचिका में लिखा गया था-
इस पर हस्ताक्षर करने वाले हम नागरिक और कनाडा के निवासी हाउस ऑफ कॉमन्स से अपील करते हैं कि हमारे साथ ये वे भी इस तथ्य को मानें कि व्यक्तिगत इस्लामी अतिवाद को इस्लाम की पहचान से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। किसी एक शख्स के अतिवादी हो जाने का मतलब यह नहीं है कि पूरा इस्लाम ही अतिवाद का समर्थक है। हम इस्लाम से डर पैदा करने वाले किसी भी माहौल का विरोध करते हैं।
अफसोस इस बात का है कि मीडिया में प्रस्ताव को कवरेज नहीं मिला। इससे साबित होता है कि मीडिया में कनाडा के मुस्लिम समुदाय के प्रति सहानुभूति और एकता की भावना नहीं है। ऐसे कदमों से प्रस्ताव का मकसद नाकाम हो जाता है।
दरअसल कनाडा की मुख्यधारा के मीडिया ने इस्लाम फोबिया के खिलाफ संसद में पारित इस प्रस्ताव का बिल्कुल कवरेज नहीं दिया। इसकी एक वजह तो यह है कि कनाडा अपनी संसद में इस्लाम के डर के खिलाफ पारित प्रस्ताव का प्रचार नहीं कर रहा है। इस्लाम फोबिया की वजह से कनाडा में मुस्लिम समुदाय के अधिकारों को मान्यता नहीं दी जा रही है और उन्हें लगातार हाशिये पर धकेला जा रहा है। मुख्यधारा के मीडिया में संसद में पारित प्रस्ताव का कवरेज न होना दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे इस्लाम के डर के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के नाकाम होने का खतरा पैदा हो गया है।
अगर मीडिया लोगों के पास इस्लाम फोबिया के खिलाफ उठाए गए कदम के बारे में सूचना ही न पहुंचाए या उसे इस बारे में जागरुक न करे तो फिर संसद में इसके खिलाफ लाए गए प्रस्ताव को स्वीकार करने का मकसद ही क्या रह जाता है।
दीना इगुस्ती इंडोनेशियाई मूल की अमेरिकी मुस्लिम हैं। वह क्वींस, न्यूयॉर्क में रहती हैं। पहली पीढ़ी की अमेरिकी संतान होने के नाते अक्सर उन्हें अपनी मुस्लिम पहचान को लेकर जूझना पड़ता है। वह कविताएं लिखती हैं। उनकी कविताओं में पहचान का स्वर मुखर है।
कनाडा के 70000 लोगों ने ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर कर इस्लाम के प्रति पैदा किए जाने वाले डर के खिलाफ विरोध जताया था। इसके बाद ही कनाडा की संसद में इस संबंध में प्रस्ताव पारित हुआ। ऑनलाइन याचिका में पूरी दुनिया में इस्लाम के प्रति भय पैदा करने की कोशिशों की निंदा की गई थी।
‘डेली सबा’ के मुताबिक इस ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर की शुरुआत 8 जून, 2016 को शुरू हुई थी और 6 अक्टूबर, 2016 तो यह अभियान पूरा हो गया था।
याचिका में लिखा गया था-
इस पर हस्ताक्षर करने वाले हम नागरिक और कनाडा के निवासी हाउस ऑफ कॉमन्स से अपील करते हैं कि हमारे साथ ये वे भी इस तथ्य को मानें कि व्यक्तिगत इस्लामी अतिवाद को इस्लाम की पहचान से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। किसी एक शख्स के अतिवादी हो जाने का मतलब यह नहीं है कि पूरा इस्लाम ही अतिवाद का समर्थक है। हम इस्लाम से डर पैदा करने वाले किसी भी माहौल का विरोध करते हैं।
अफसोस इस बात का है कि मीडिया में प्रस्ताव को कवरेज नहीं मिला। इससे साबित होता है कि मीडिया में कनाडा के मुस्लिम समुदाय के प्रति सहानुभूति और एकता की भावना नहीं है। ऐसे कदमों से प्रस्ताव का मकसद नाकाम हो जाता है।
दरअसल कनाडा की मुख्यधारा के मीडिया ने इस्लाम फोबिया के खिलाफ संसद में पारित इस प्रस्ताव का बिल्कुल कवरेज नहीं दिया। इसकी एक वजह तो यह है कि कनाडा अपनी संसद में इस्लाम के डर के खिलाफ पारित प्रस्ताव का प्रचार नहीं कर रहा है। इस्लाम फोबिया की वजह से कनाडा में मुस्लिम समुदाय के अधिकारों को मान्यता नहीं दी जा रही है और उन्हें लगातार हाशिये पर धकेला जा रहा है। मुख्यधारा के मीडिया में संसद में पारित प्रस्ताव का कवरेज न होना दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे इस्लाम के डर के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के नाकाम होने का खतरा पैदा हो गया है।
अगर मीडिया लोगों के पास इस्लाम फोबिया के खिलाफ उठाए गए कदम के बारे में सूचना ही न पहुंचाए या उसे इस बारे में जागरुक न करे तो फिर संसद में इसके खिलाफ लाए गए प्रस्ताव को स्वीकार करने का मकसद ही क्या रह जाता है।
कनाडा दुनिया के सबसे सहिष्णु देशों में से एक है। कनाडा की संसद में इस्लाम फोबिया के खिलाफ प्रस्ताव पारित करना बेहद अहम है। जरूरत इस बात है कि एक आम नागरिक के तौर पर हम सहिष्णुता और स्वीकार्यता के आदर्श का प्रसार करें।
दीना इगुस्ती इंडोनेशियाई मूल की अमेरिकी मुस्लिम हैं। वह क्वींस, न्यूयॉर्क में रहती हैं। पहली पीढ़ी की अमेरिकी संतान होने के नाते अक्सर उन्हें अपनी मुस्लिम पहचान को लेकर जूझना पड़ता है। वह कविताएं लिखती हैं। उनकी कविताओं में पहचान का स्वर मुखर है।