BHU नियुक्ति में धांधलीः 'हाई मेरिट' को छोड़ 'लोअर मेरिट' वालों का कई पदों पर चयन !

Written by Media Vigil | Published on: October 23, 2017
सारी जनता और मीडिया सोच कर परेशान है कि आखिर कुलपति प्रो. जी. सी. त्रिपाठी ऐसे कौन से काम में मगशूल थे जो वो अपनी ही यूनिवर्सिटी के मेन गेट पर, अपनी ही छात्राओं के धरना-प्रदर्शन को रोकने और उनको समझाने नहीं पहुंच पाए। वो भी तब जबकि यूनिवर्सिटी के मेन गेट से कुलपति निवास मात्र आधा किमी की दूरी पर है। दरअसल इसके पीछे का कारण केवल कुलपति जी. सी. त्रिपाठी का अहंकार या तानशाही रवैया नहीं है।

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इस पूरे प्रक्रम में कुलपति का प्रारम्भ में उदासीन होने की जड़ में मूल कारण ये है कि कुलपति का पूरा ध्यान नियुक्तियों में हेरफेर करने में लगा हुआ था। कई विभागों में कुलपति ने अपने मनमाने ढंग से नियुक्तियां की और हाई मेरिट वाले उम्मीदवारों को छोड़कर, मेरिट के निचले पायदान के उम्मीदवारो को एक से ज्यादा पदों पर चुन लिया। इनमें से चुने गए अधिकांश उम्मीदवारों ने पहले मेरिट में जगह बनाने के लिए फ़र्ज़ी सर्टिफिकेट लगाए। बाद में इंटरव्यू में ऐसे उम्मीदवारों का अकादमिक रिकॉर्ड बहुत ही निम्न स्तर होने के बाद भी उनको चुना गया, जबकि हाई मेरिट के उम्मीदवारों की तुलना चुने गए उम्मीदवारों से करने की भी नहीं सोची जा सकती है।

बीएचयू में पिछले दो महीनों में हुई नियुक्तियों में यू.जी.सी. के नियमो की जिस तरह से धज्जियां उड़ाई गई हैं, उससे बीएचयू की प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुंची है।

. बीएचयू प्रशासन से पूछा जाए कि उसने यूजीसी के नए रेगुलेशन २०१६ (चतुर्थ संशोधन) दिनांक ११ जुलाई २०१६, के पेज नंबर २७-२८ (देखें APPENDIX – III TABLE – II(B) पर दिए गए नियमों के अनुसार अपने पुराने आर्डिनेंस [11-A(1)/२१३६३] दिनांक २०/२१ अगस्त २०१५ में परिवर्तन किये बिना [जोकि बीएचयू की वेबसाइट पर उब्लब्ध है] बीएचयू के विभिन्न्न विभागों में प्रोफेसर्स की नियुक्तियाँ किस आधार पर की हैं?

. फाइनल मेरिट बनाते समय मार्क्स (एपीआई इंडेक्स) का लोअर कट-ऑफ रखना तो समझ में आता है पर किस आधार पर बीएचयू प्रशासन ने एपीआई मार्क्स का अपर कट-ऑफ रखा? क्या ये हाई मेरिट वाले उम्मीदवारों के साथ नाइंसाफी नहीं है?

यूजीसीके नए रेगुलेशन २०१६ (चतुर्थ संशोधन) दिनांक ११ जुलाई २०१६, के पेज नंबर २७-२८ में दिए गए नियमों के अनुसार, जब फाइनल मेरिट बनने के लिए इंटरव्यू के केवल २०% मार्क्स जोड़े गए तो ऐसा कैसे संभव हुआ कि मेरिट की सबसे निचले पायदान वाले उम्मीदवार, मेरिट में सबसे ऊपर के उम्मीदवारों को पछाड़ कर सेलेक्ट हो गए। इस बात पर यकीन करना मुश्किल है कि जिन उम्मीदवारों का एपीआई इंडेक्स ५०-६० % था वे एकाएक इतनी तीक्ष्ण बुद्धि के हो गए कि ८०-९०% एपीआई इंडेक्स वाले उम्मीदवारों को छोड़कर उनको सेलेक्ट किया गया।

उपरोक्त सभी बिंदुओं से यह पूरी तरह साफ है कि लगभग सभी नियुक्तियों में हेरफेर हुई है और इस पर पूरा ध्यान केंद्रित होने की वजह से ही कुलपति जी. सी. त्रिपाठी ने यूनिवर्सिटी में होने वाली सभी घटनाओ की उपेक्षा की। बाद में कुलपति का यही रवैया बवाल का कारण बना।

अतः हमारा निवेदन है कि उपरोक्त सभी पॉइंट्स की जांच कराई जाये और तब तक के लिए सभी नियुक्तियों पर रोक लगाई जाये क्योकि यह देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविधालयों में गिने जाने वाले एक विश्वविधालय की मानमर्यादा का प्रश्न है। साथ ही यह भी बहुत गंभीर प्रश्न है कि जब सर्व विद्या की राजधानी कहे जाने वाले विश्वविधालय में ही नियुक्तियों में हेरफेर होगी और हम अपने देश के भविष्य को इस तरह के शिक्षकों के हाथ में सौंपेंगे जो जुगाड़ को ही विधा मानते हैं, तो फिर देश का भविष्य क्या अंधकारमय नहीं होगा?

साभार- मीडिया विजिल
 

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