मुंबई. भीमा कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ के दौरान भड़की हिंसा पर आईजी विश्वास नांगरे पाटील द्वारा तथ्यों की जांच के लिए गठित की गई को-ऑर्डिनेशन कमिटी की रिपोर्ट आ गई है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भीमा कोरेगांव मामला दंगा नहीं बल्कि हमला था. यह हमले हिंदू संगठनों ने कराए थे. वारदात के वक्त मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों को निलंबित करने की सिफारिश भी इस कमेटी ने की है. इस मामले के आरोपी मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिडे के खिलाफ कुछ सबूत भी पुलिस को सौंपे जाएंगे. रिपोर्ट पुणे ग्रामीण एसपी को सौंप दी गई है.
भीमा कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ के दौरान दलितों पर हमले के बाद महाराष्ट्र में हिंसा भड़क उठी थी. सूबे में जातीय हिंसा के चलते काफी नुकसान हुआ था. मामले की गंभीरता को देखते हुए आईजी विश्वास नांगरे पाटील द्वारा इस मामले के तथ्यों की जांच के लिए को-ऑर्डिनेशन कमिटी का गठन किया था. एक जनवरी को भीमा कोरेगांव में दलित समाज के शौर्य दिवस पर भड़की हिंसा के विरोध में कुछ दलित संगठनों ने तीन जनवरी को महाराष्ट्र बंद का ऐलान किया था. इस दौरान हुई हिंसा में एक छात्र सहित दो लोगों की मौत हो गई थी. मुंबई के कई इलाकों में विरोध प्रदर्शन हुआ. मुंबई के उपनगरों थाणे, चेंबूर, मुलुंद में लोग सड़क पर उतर आए थे.
इस कार्यक्रम में दलित नेता एवं गुजरात से नवनिर्वाचित विधायक जिग्नेश मेवाणी, जेएनयू छात्र नेता उमर खालिद, रोहित वेमुला की मां राधिका, भीम आर्मी अध्यक्ष विनय रतन सिंह और पूर्व सांसद एवं डा. भीमराव अंबेडकर के पौत्र प्रकाश अंबेडकर भी उपस्थित थे. भारिप बहुजन महासंघ नेता और डॉ बाबासाहेब अंबेडकर के पोते प्रकाश अम्बेडकर ने महाराष्ट्र बंद का आह्वान किया था.
बता दें कि भीमा-कोरेगांव की लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की सेना को हराया था. दलित इस ब्रिटिश जीत का जश्न मनाते हैं क्योंकि वे इसे ब्रिटिश सेना की जीत नहीं बल्कि दलितों की ब्राह्मणवाद पर जीत मानते हैं. इस युद्ध अछूत समझे जाने वाले महार समुदाय के 500 सैनिक ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की ओर से बाजीराव पेशवा द्वितीय की तरफ से लड़े थे. पुणे में दक्षिणपंथी समूहों ने इस 'ब्रिटिश जीत' का जश्न मनाए जाने का विरोध किया था.
भीमा कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ के दौरान दलितों पर हमले के बाद महाराष्ट्र में हिंसा भड़क उठी थी. सूबे में जातीय हिंसा के चलते काफी नुकसान हुआ था. मामले की गंभीरता को देखते हुए आईजी विश्वास नांगरे पाटील द्वारा इस मामले के तथ्यों की जांच के लिए को-ऑर्डिनेशन कमिटी का गठन किया था. एक जनवरी को भीमा कोरेगांव में दलित समाज के शौर्य दिवस पर भड़की हिंसा के विरोध में कुछ दलित संगठनों ने तीन जनवरी को महाराष्ट्र बंद का ऐलान किया था. इस दौरान हुई हिंसा में एक छात्र सहित दो लोगों की मौत हो गई थी. मुंबई के कई इलाकों में विरोध प्रदर्शन हुआ. मुंबई के उपनगरों थाणे, चेंबूर, मुलुंद में लोग सड़क पर उतर आए थे.
इस कार्यक्रम में दलित नेता एवं गुजरात से नवनिर्वाचित विधायक जिग्नेश मेवाणी, जेएनयू छात्र नेता उमर खालिद, रोहित वेमुला की मां राधिका, भीम आर्मी अध्यक्ष विनय रतन सिंह और पूर्व सांसद एवं डा. भीमराव अंबेडकर के पौत्र प्रकाश अंबेडकर भी उपस्थित थे. भारिप बहुजन महासंघ नेता और डॉ बाबासाहेब अंबेडकर के पोते प्रकाश अम्बेडकर ने महाराष्ट्र बंद का आह्वान किया था.
बता दें कि भीमा-कोरेगांव की लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की सेना को हराया था. दलित इस ब्रिटिश जीत का जश्न मनाते हैं क्योंकि वे इसे ब्रिटिश सेना की जीत नहीं बल्कि दलितों की ब्राह्मणवाद पर जीत मानते हैं. इस युद्ध अछूत समझे जाने वाले महार समुदाय के 500 सैनिक ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की ओर से बाजीराव पेशवा द्वितीय की तरफ से लड़े थे. पुणे में दक्षिणपंथी समूहों ने इस 'ब्रिटिश जीत' का जश्न मनाए जाने का विरोध किया था.