वह लड़की उस तरह नहीं मारी जाती। हां, वह उस तरह नहीं मारी जाती...! कम से कम उसकी जान बच सकती थी...!
Sugandha
दिल्ली के बुराड़ी में एक लड़की को कैंची से गोद कर मार डालने की घटना में सब कुछ शर्मनाक है। ठीक है। अब अफसोस, दुख और गुस्से से ज्यादा हम सबके हिस्से में कुछ नहीं है।
लेकिन उस वीडियो को देखते हुए एक बात मेरे दिमाग में हथौड़े की तरह चोट कर रही थी। वह लड़की उस तरह नहीं मारी जाती। हां, वह उस तरह नहीं मारी जाती। महज एक कैंची के साथ एक लड़के ने उसकी जान ले ली। क्यों...! चलिए... बहुत सारे लोगों के शर्म और गुस्से के बीच मेरा भी यही मान लीजिएगा।
मेरा मानना है कि अगर उस लड़की को इस समाज की रिवायतों ने एक नाजुक शारीरिक व्यक्तित्व वाली लड़की नहीं बनाया होता... कि सिर झुका के चलो... पांव दबा के चलो... तो शायद उसकी उस तरह जान नहीं जाती, जैसे गई।
एक बार मैंने सीतामढ़ी में रहने वाली अपनी एक भांजी सुगंधा के बारे में बात की थी। खेतों में धान बोने और काटने से लेकर बोझा ढोकर खलिहान तक लाना और फिर तैयार होकर अस्सी-पचासी किलोमीटर दूर मुजफ्फरपुर में बिहार विश्वविद्यालय में क्लास करने जाकर मनोविज्ञान से स्नातकोत्तर फर्स्ट क्लास से निकालना। यह सब किया उसने।
काफी पहले एक बार दो लड़कों ने राह चलते उसके साथ छेड़खानी की और उसने दोनों लड़कों को दोनों हाथों से पकड़ा। बाकायदा हवा में उठा-उठा कर जमीन पर पटका, घूंसे-लात से खूब पिटाई की। शहरों के उलट गांव में लोग तुरंत जान देने तक की मदद करने पहुंच जाते हैं। वहां भी पहुंच गए थे। लेकिन सबने आंखें फाड़ कर एक अजूबा देखना जरूरी समझा। दोनों लड़कों की बुरी हालत बनाई सुगंधा ने।
खैर, मैं यहां कहना यह चाह रहा हूं कि लड़की को अगर अपने पलने-बढ़ने के दौरान शरीर के स्तर पर उतना ही खोला जाए, जितना लड़के को, तो वह बुराड़ी जैसी घटना का इतना आसान शिकार नहीं हो सकती कि एक लडका कैंची से उस पर हमला करे और वह समर्पण की मुद्रा में अपनी जान दे दे...! उसने दो हाथों से हमला किया, लड़की भी बराबरी की लड़ाई क्यों नहीं लड़े।
लड़कियों को नाजुक बनाने की जगह शरीर से मजबूत बनने के रास्ते की बाधा बनना छोड़िए, दिमाग भी तेज चलेगा और वह ऐसे वक्त में न केवल खुद को बचा सकेगी, बल्कि शायद हमलावर की दुर्दशा कर दे।
लड़कियों नाजुक बनने की जरूरत नहीं है। नजाकत तुमसे तुम्हारी शख्सियत छीनता जरूर है, देता कुछ नहीं है, सिवाय गुलामी के हालात के...!
Sugandha
दिल्ली के बुराड़ी में एक लड़की को कैंची से गोद कर मार डालने की घटना में सब कुछ शर्मनाक है। ठीक है। अब अफसोस, दुख और गुस्से से ज्यादा हम सबके हिस्से में कुछ नहीं है।
लेकिन उस वीडियो को देखते हुए एक बात मेरे दिमाग में हथौड़े की तरह चोट कर रही थी। वह लड़की उस तरह नहीं मारी जाती। हां, वह उस तरह नहीं मारी जाती। महज एक कैंची के साथ एक लड़के ने उसकी जान ले ली। क्यों...! चलिए... बहुत सारे लोगों के शर्म और गुस्से के बीच मेरा भी यही मान लीजिएगा।
मेरा मानना है कि अगर उस लड़की को इस समाज की रिवायतों ने एक नाजुक शारीरिक व्यक्तित्व वाली लड़की नहीं बनाया होता... कि सिर झुका के चलो... पांव दबा के चलो... तो शायद उसकी उस तरह जान नहीं जाती, जैसे गई।
एक बार मैंने सीतामढ़ी में रहने वाली अपनी एक भांजी सुगंधा के बारे में बात की थी। खेतों में धान बोने और काटने से लेकर बोझा ढोकर खलिहान तक लाना और फिर तैयार होकर अस्सी-पचासी किलोमीटर दूर मुजफ्फरपुर में बिहार विश्वविद्यालय में क्लास करने जाकर मनोविज्ञान से स्नातकोत्तर फर्स्ट क्लास से निकालना। यह सब किया उसने।
काफी पहले एक बार दो लड़कों ने राह चलते उसके साथ छेड़खानी की और उसने दोनों लड़कों को दोनों हाथों से पकड़ा। बाकायदा हवा में उठा-उठा कर जमीन पर पटका, घूंसे-लात से खूब पिटाई की। शहरों के उलट गांव में लोग तुरंत जान देने तक की मदद करने पहुंच जाते हैं। वहां भी पहुंच गए थे। लेकिन सबने आंखें फाड़ कर एक अजूबा देखना जरूरी समझा। दोनों लड़कों की बुरी हालत बनाई सुगंधा ने।
खैर, मैं यहां कहना यह चाह रहा हूं कि लड़की को अगर अपने पलने-बढ़ने के दौरान शरीर के स्तर पर उतना ही खोला जाए, जितना लड़के को, तो वह बुराड़ी जैसी घटना का इतना आसान शिकार नहीं हो सकती कि एक लडका कैंची से उस पर हमला करे और वह समर्पण की मुद्रा में अपनी जान दे दे...! उसने दो हाथों से हमला किया, लड़की भी बराबरी की लड़ाई क्यों नहीं लड़े।
लड़कियों को नाजुक बनाने की जगह शरीर से मजबूत बनने के रास्ते की बाधा बनना छोड़िए, दिमाग भी तेज चलेगा और वह ऐसे वक्त में न केवल खुद को बचा सकेगी, बल्कि शायद हमलावर की दुर्दशा कर दे।
लड़कियों नाजुक बनने की जरूरत नहीं है। नजाकत तुमसे तुम्हारी शख्सियत छीनता जरूर है, देता कुछ नहीं है, सिवाय गुलामी के हालात के...!