'जब बहुजनों ने हुंकार भरी तो ट्विटर के जातिवाद को उघाड़ दिया'

Written by कुश अंबेडकरवादी | Published on: November 17, 2019
भारत में ट्विटर 2006 से है. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में ट्विटर पर भारतीय यूजर्स की संख्या 70 लाख है। ट्विपर पर सक्रिय रहने वाले भारतीय यूजर्स की संख्या 10 लाख है। ट्विटर को हमेशा से बुद्धीजीवी वर्ग का प्लेटफार्म समझा गया है। लेकिन बीते कुछ दिनों से ऐसा क्या हो गया कि फुले अम्बेडकर पेरियार को मानने वालों ने इस विशेष लोगों के स्वर्ग ट्विटर पर जातिगत भेदभाव का आरोप लगाकर धावा बोल दिया? और एक दिन में 3-3 हैशटेग ट्रेंड कराकर ट्विटर तक को बैकफुट पर ला दिया। यहां यह बताना जरूरी है कि ट्विटर पर ट्रेंड कराने के लिए राजनीति पार्टियों करोड़ो खर्च करती हैं। और बड़े बड़े आईटी सेल बनाकर अपनी मर्जी का ट्रेंड चलाती हैं। लेकिन इसी काम को काम वंचित समाज के असंगठित लोगों ने कर दिखाया। 

इसका यह मतलब बिल्कुल नही है कि दलित आदिवासी के लोगों के लोग ट्विटर पर अचानक आए हों, वे तो पहले से ही ट्विटर पर थे लेकिन यह वर्ग ट्विटर के इस्तेमाल से अनजान था। जिसे नही पता था कि उनके कितने लोग ट्विटर पर है वो सिर्फ दूसरी पार्टियों के या दूसरी विचारधारा के पाठक अथवा ट्विटर फालीवर्स मात्र थे। उन्हें नही पता था कि ट्विटर का इस्तेमाल कैसे किया जाता है? कैसे अपने के मुद्दों पर बात की जाए जब अपने समाज के मुद्दे नही मिलते थे तो दूसरों के ट्वीट को रिट्वीट करके ही काम चला लेते थे। इनमें से कुछ लोग भाजपा कुछ कांग्रेस कुछ वामदलों के हिस्सों में बंटे हुए थे। और उनके ट्वीट की रीच बढ़ाने तक सीमित थे। इसलिए उनके ट्वीट में ही अपने महापुरुषों के नाम आने की प्रतीक्षा करते थे क्योंकि इनके लिए यह सोशल मीडिया बिल्कुल एक अनजान था। 

यहां बहुजन विचारधारा का कोई लाखों फ़ॉलोअर वाला 'सेलिब्रिटी' नही मिलता था लेकिन वक्त बदला। और जैसे रोहित वेमुला की घटना ने सभी विश्वविद्यालयों में बहुजन छात्रों को झकझोर दिया और उन्हें संघठित होने पर मजबूर कर दिया, जिसकी वजह से आज हर विश्विद्यालय में बहुजन छात्र संघठन का उदय हुआ है। वही काम बीते कुछ दिन पहले ट्विटर पर कुछ अकाउंट को ट्विटर द्वारा ससपेंड करने की प्रतिक्रिया स्वरूप हुआ, जैसे ही कुछ प्रमुख अम्बेडकरवादी विचारधारा के लोगों का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड हुआ सभी असंगठित लोग एक सूत्र में बंधते चले गए और एक के बाद एक हैशटेग ट्रेंड होने लगे जो लोग अब तक रिट्वीट और लाइक करना ही जानते थे वो बहुजन महापुरुषों के वाक्यों को ट्वीट करके अपना विरोध जताने लगे और पहले बार उन्हें अपनी ट्विटर नाम के समुद्र में अपनी संख्या का अहसास हुआ जो कि बाकी सभी विचारधारा के लोगों से ज्यादा है लेकिन सिर्फ भारतीय राजनीति की तरह वोटर या दर्शक तक सीमित है खुद का खुद प्रतिनिधित्व की भावना नही थी ट्वीट भी करना है तो दूसरों के हैश टैग पर करना है पहली बार सबने ख़ुद तय करके खुद के हैशटेग पर ट्वीट किया। 

बाबा साहेब अम्बेडकर ने कहा था कि शिक्षित बनो संगर्ष करो संघठित रहो अब जब वंचित समाज शिक्षित बनकर संघर्ष कर रहा तो अब बारी संघठित होने की थी इसी संगठन की एक बारीक कड़ी जिसे हम एक दूसरे का हाथ पकड़ना कहते है वंचितों ने ट्विटर पर भी एक दूसरे को फ़ॉलो करके अपने लोगों में से ही एक दूसरे के फॉलोवर बढ़ाना शुरू किया यह एक सन्देश था जो समाज ने दिया कि हम सिर्फ फॉलोवर नही है। जैसे भारतीय राजनीति में जनता वोट देकर नेता चुनती है यदि जनता वोट न दे तो वो नेता को कभी भी उसकी औकात दिख सकती है। उसी तरह ट्विटर पर भी बहुजन लोग फ़ॉलो करते हैं, तभी कोई सेलेब्रेटी बनता है। बहुजन लोग फ़ॉलो करना बंद कर दे तो उन सेलेब्रेटी स्टेटस धड़ाम से नीचे गिर जाएगा, इसलिए एक नई तरह का प्रयोग करते हुए अपने लोगों के फॉलोवर बनाकर सेलिब्रिटी बनाना शुरू हुआ। जब लोगों ने बहुजन विचारधारा के लोगों को सेलिब्रिटी बनाना शुरू किया तो एक बहुत बड़ा भेदभाव उजागर हुआ कि ट्विटर पर सबसे ज्यादा हमारी संख्या है लेकिन आज तक ट्विटर ने विशेष लोगों की दी जाने ब्लू टिक हमारे लोगों की दी ही नही है दलित समाज के गिने चुने लोगों को ओर आदिवासी समाज जिनकी संख्या 14 करोड़ है उनके एक भी सामाजिक कार्य करने वाले व्यक्ति को इस ट्विटर ने विशेष व्यक्ति नही माना और विशेष व्यक्तियों दिया जाने वाला ब्लू टिक नही दिया।

जैसे ही इस ब्लू टिक के भेदभाव की खिलाफत शुरू हुई तो यह आग ट्विटर के ऑफिस तक पहुंच गई और भीम आर्मी संगठन के लोगों ने उनके ऑफिस पर ताला लगा दिया जो कि ट्विटर के इतिहास में पहली बार हुआ वंचित समाज ने इस ब्लू टिक को ब्लू जनेऊ की संज्ञा दी जो कि मनुवादी वर्णव्यवस्था में दलित समाज के लिए वर्जित था आँकड़े भी खुलकर ट्विटर के इस भेदभाव को उजागर कर रहे थे उसे बढ़ते दबाव के बीच ट्विटर को आखिर सफ़ाई देने आना पड़ा और कुछ लोगों को ब्लू टिक देकर इस गुस्से को शांत करने की कोशिशें की भविष्य में दलितों के साथ सामंजस्य बनकर चलने के लिए बैठके रखने का प्रस्ताव रखा गया। लेकिन ऐसा नही है कि जब यह क्रांति हो रही थी राजनीति पार्टियां इन चीजों पर नजर नही रख रही थी क्योंकि एक इतना बड़ा प्लेटफार्म जिसपर उनका कब्जा था आज वंचित समाज उसमे अपनी हिस्सेदारी मांग रहा था जो हमेशा की तरह इनके लिए देना आसान नही था इसलिए वो पैनी नजर बनाए इसपर नजर रख रहे थे और इस उभार की ताकत का अंदाजा लगाने के लिए उन्होंने जय भीम जय गोबर जैसा ट्रेंड करवाया वंचित समाज जानता था कि अधिकार इतनी आसानी से नही मिलेगा सामन्तवादी ताकतें इतनी आसानी से अपना प्रभुत्व नही छोड़ेंगी लेकिन ये अंदाजा नही था कि विपरीत विचारधारा से इतनी जल्दी मुकाबला हो जाएगा क्योंकि सामन्तवादी ताकतों के पास सभी संसाधन है और बड़ा आई टी सेल है ट्विटर का अघोषित समर्थन है और सबसे बड़ी बात सभी पार्टियों के आई टी सेल को आपस मे जोड़ने वाला जनेऊ है जिसकी वजह से उन्होंने एक संविधान निर्माता का अपमान करने वाले हैशटेग को ट्रेंड करवाकर अपना प्रभुत्व दिखाने की कोशिश की लेकिन उनके इस अपमान ने बहुजनों को आगे होने वाले मुकाबले के लिए तैयार कर दिया। 

इसलिये जब दूसरी बार मुकाबला हुआ और आरक्षण हटाओ देश बचाओ लाया गया तो बहुजनों ने करारा जवाब देते हुए आरक्षण बचाओ देश बचाओ ट्रेंड करवाकर उनके ट्रेंड को ही बाहर कर दिया और दो लाख से भी ज्यादा ट्वीट करके उनको बहुजनों की संख्या का भी अहसास करवा दिया, जिसे उन्हें पहली बार ट्विटर के क्षेत्र में अपनी हार स्वीकार करनी पडी बहुजनों ने चेता दिया कि हम अब आपको आपकी भाषा मे ही जवाब देंगे यह एक बड़ी जीत थी कि सोशल मीडिया पर वंचित समाज ने दिख दिया कि वो अपनी आवाज स्वयं उठा सकते है अब वो मोहताज नही रहे मुख्यधारा के मीडिया उनकी समस्याओं को नही दिखायेगा तो वो अपना मीडिया स्वयं बनेंगे। 

महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडे की जयंती के रोज़ पहली बार बहुजनों ने अपनी ताकत का एहसास कराते हुए सुबह से ही उनको नम्बर वन पर ट्रेंड करा दिया। यह ट्विटर के इतिहास में पहली बार हुआ है कि बिरसा मुंडे नम्बर वन ट्रेंड हुआ। जिन ताकतों ने बिरसा मुंडा को इतिहास के पन्नो से मिटाने की कोशिश की थी आज उनके बच्चे ट्विटर पर नम्बर 1 ट्रेंड पर बिरसा मुंडे को देखकर गूगल पर सर्च कर रहे हैं। यह वंचित समाज की बड़ी जीत है। बिरसा मुंडे आदिवासी समाज से आते थे हमेशा से उनको वह सम्मान नही दिया गया था जो मिलना चाहिए था। इन दिनो वीर सावरकर को भारत रत्न की मांग उठ रही है जिनकी 'वीरता' पर आज भी समाज शक बरकरार है। वहीं 25 साल की उम्र में शहादत देने वाले बिरसा मुंडा को आज तक भारत रत्न नही दिया गया है, जिसकी मांग को लेकर बिरसा मुंडा की जयंती के रोज़ शाम होते होते #भारतरत्नबिरसामुंडा नम्बर एक पर ट्रेंड करता रहा। यानी की एक दिन में दो दो बार ट्रेंड कराकर वंचित समाज की एक ताजा संघठित हुई सेना ने यह अहसास जरूर करवा दिया कि अब वे अपने महापुरुष को याद करना हो या अपने मुद्दे पर बात करनी हो उसके लिए अब वो दूसरों पर मोहताज नही रहे है।

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