नई दिल्ली। जेएनयू प्रशासन प्रवेश परीक्षा में खुली धांधलेबाजी करने के लिए रिटेन एग्जाम को खत्म कर बहुजन छात्रों के खिलाफ साजिश कर रहा है। इसके खिलाफ जेएनयू के ही छात्र दिलीप यादव आमरण अनशन कर रहे हैं। दिलीप के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आ रही है। अभी तक सोशल जस्टिस की बात कहते आए वामदल के छात्र इस अनशन से दूरी बनाए हुए हैं। ऐसे में वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने कन्हैया कुमार पर सवाल खड़े किए हैं। पढ़िए.....
कन्हैया कुमार कहाँ है? नजीब का मसला हो या इफ्लू का या इंटरव्यू के वेटेज का या फ़ैकल्टी में रिज़र्वेशन का या रोहित वेमुला केस के एक साल होने पर राधिका अम्मा की गिरफ़्तारी का?
वह नहीं है। वह कहीं नहीं है। वह कभी आपके साथ था ही नहीं।
कन्हैया कुमार एक भ्रम है। एक मायाजाल। वह उस आंदोलन में भी नहीं था, जिसके लिए उस पर आरोप लगे थे। अफ़ज़ल वाले मामले में भी उस पर झूठे आरोप लगे थे। वह वहाँ भी नहीं था।
लेकिन उस आंदोलन से वह अपने काम की चीज़ ले गया। पेंग्विन से उसकी किताब आ गई। वह इन दिनों कॉरपोरेट स्पांसर्ड लिट्रेचर फ़ेस्टिवल का देश भर में स्थायी मेहमान है। दिल्ली और कसौली में बोल चुका है। कोच्चि में बोलेगा। उसका सुंदर भविष्य उसका इंतज़ार कर रहा है।
आपके आसपास दर्जनों कन्हैया कुमार हैं। कुछ बनने की कोशिश कर रहे हैं।
आप उन्हें बनने से नहीं रोक सकते।
उनके पीछे जाति की ताक़त है। कल्चरल और सोशल कैपिटल है।
मीडिया उसका। चैनल के पैनल पर वह बैठेगा। उसकी ख़बर हेडलाइन बनेगी।
ये राहुल सोनपिंपले, दिलीप यादव, मुलायम, चिन्मय, भूपाली, डोंथा प्रशांत, श्रेयत बौद्ध, संजय बौद्ध, काव्यश्री, इसाबेल...,ये सब कौन होते हैं।
इन्हें इग्नोर करके मार दिया जाएगा।
उनका कभी कुछ नहीं बिगड़ता। बिगड़ता आपका है।
इसलिए कृपया हुलेले करते हुए उनके पीछे पीछे मत चलिए। और चल दिए तो बाद में रोइए मत कि आंदोलनों में कन्हैया लापता क्यों है।
वह आंदोलनों में कभी था ही नहीं। उसका होना एक भ्रम था।
एक अन्य पोस्ट में दिलीप मंडल लिखते हैं.....
यह आदमी ज़िंदा चाहिए।
भारत के तमाम बहुजन लेखकों को जोड़कर अखिल भारतीय बहुजन साहित्य सम्मेलन करने और उससे पहले अखिल भारतीय ओबीसी साहित्य सम्मेलन करने की महत्वाकांक्षी योजना के दिलीप यादव सूत्रधार है।
इस तरह के काम करने लिए बहुजन टैलेंट अभी सीमित संख्या में है।
इन्हें सिर्फ इसलिए मरने नहीं दिया जा सकता कि RSS पोषित वाइस चांसलर और सेकुलर ब्राह्मणवादी प्रोफ़ेसर्स ऐसा चाहते हैं।
इसलिए भी नहीं कि SC, ST, OBC को इनके आंदोलन के महत्व का अंदाज़ा नहीं है।
दिलीप यादव का अनशन ख़त्म होना ज़रूरी है।
Courtesy: National Dastak
कन्हैया कुमार कहाँ है? नजीब का मसला हो या इफ्लू का या इंटरव्यू के वेटेज का या फ़ैकल्टी में रिज़र्वेशन का या रोहित वेमुला केस के एक साल होने पर राधिका अम्मा की गिरफ़्तारी का?
वह नहीं है। वह कहीं नहीं है। वह कभी आपके साथ था ही नहीं।
कन्हैया कुमार एक भ्रम है। एक मायाजाल। वह उस आंदोलन में भी नहीं था, जिसके लिए उस पर आरोप लगे थे। अफ़ज़ल वाले मामले में भी उस पर झूठे आरोप लगे थे। वह वहाँ भी नहीं था।
लेकिन उस आंदोलन से वह अपने काम की चीज़ ले गया। पेंग्विन से उसकी किताब आ गई। वह इन दिनों कॉरपोरेट स्पांसर्ड लिट्रेचर फ़ेस्टिवल का देश भर में स्थायी मेहमान है। दिल्ली और कसौली में बोल चुका है। कोच्चि में बोलेगा। उसका सुंदर भविष्य उसका इंतज़ार कर रहा है।
आपके आसपास दर्जनों कन्हैया कुमार हैं। कुछ बनने की कोशिश कर रहे हैं।
आप उन्हें बनने से नहीं रोक सकते।
उनके पीछे जाति की ताक़त है। कल्चरल और सोशल कैपिटल है।
मीडिया उसका। चैनल के पैनल पर वह बैठेगा। उसकी ख़बर हेडलाइन बनेगी।
ये राहुल सोनपिंपले, दिलीप यादव, मुलायम, चिन्मय, भूपाली, डोंथा प्रशांत, श्रेयत बौद्ध, संजय बौद्ध, काव्यश्री, इसाबेल...,ये सब कौन होते हैं।
इन्हें इग्नोर करके मार दिया जाएगा।
उनका कभी कुछ नहीं बिगड़ता। बिगड़ता आपका है।
इसलिए कृपया हुलेले करते हुए उनके पीछे पीछे मत चलिए। और चल दिए तो बाद में रोइए मत कि आंदोलनों में कन्हैया लापता क्यों है।
वह आंदोलनों में कभी था ही नहीं। उसका होना एक भ्रम था।
एक अन्य पोस्ट में दिलीप मंडल लिखते हैं.....
यह आदमी ज़िंदा चाहिए।
भारत के तमाम बहुजन लेखकों को जोड़कर अखिल भारतीय बहुजन साहित्य सम्मेलन करने और उससे पहले अखिल भारतीय ओबीसी साहित्य सम्मेलन करने की महत्वाकांक्षी योजना के दिलीप यादव सूत्रधार है।
इस तरह के काम करने लिए बहुजन टैलेंट अभी सीमित संख्या में है।
इन्हें सिर्फ इसलिए मरने नहीं दिया जा सकता कि RSS पोषित वाइस चांसलर और सेकुलर ब्राह्मणवादी प्रोफ़ेसर्स ऐसा चाहते हैं।
इसलिए भी नहीं कि SC, ST, OBC को इनके आंदोलन के महत्व का अंदाज़ा नहीं है।
दिलीप यादव का अनशन ख़त्म होना ज़रूरी है।
Courtesy: National Dastak