मोदी सरकार का नया निशाना आरटीआई एक्ट है। मोदी सरकार नागरिकों के सूचना के अधिकार को लगभग खत्म सा कर देना चाहती है दरअसल मोदी सरकार ने सदन में सूचना के अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 को पेश करने का निर्णय ले लिया है यदि यह विधेयक पारित हो जाता है तो केंद्रीय सूचना आयुक्त (सीआईसी), सूचना आयुक्तों और राज्य के मुख्य सूचना आयुक्तों के वेतन और कार्यकाल में बदलाव करने की अनुमति केंद्र को मिल जाएगी। अभी तक मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का वेतन मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के वेतन के बराबर मिलता है। वहीं राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त का वेतन चुनाव आयुक्त और राज्य सरकार के मुख्य सचिव के वेतन के बराबर मिलता है।
इसी संदर्भ पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने दोनों सदनों के सदस्यों को एक चिट्ठी लिखकर चेताया है कि मोदी सरकार इस संशोधन के जरिए आरटीआई कानून को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार इसके जरिए आरटीआई के पूरे तंत्र को कार्यपालिका की कठपुतली बनाना चाह रही है। आचार्युलु ने अपने पत्र के जरिए आगाह किया है कि मोदी सरकार सूचना आयोगों को मिले वैधानिक सुरक्षा को खत्म कर देगी और इसकी वजह से आयोग की स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता सरकारी वभागों की कठपुतली बनकर रह जाएगी।
आरटीआई संशोधन के जरिए सूचना आयोग का दर्जा कम करने पर आचार्युलु ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने आरटीआई को अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत संवैधानिक अधिकार करार दिया है, जो कि बोलने एवं अभिव्यक्ति की आजादी देता है। चुनाव आयोग मतदान के अधिकार को लागू करता है, जो कि अनुच्छेद 19(1) (ए) के तहत अभिव्यक्ति का हिस्सा है।
‘एक तरह से, केंद्रीय चुनाव आयोग अभिव्यक्ति के केवल एक छोटे से हिस्से को लागू करता है जबकि केंद्रीय सूचना आयोग अभिव्यक्ति के व्यापक पहलू, सूचना के अधिकार को लागू करता है। सूचना प्राप्त किए बिना कोई भी नागरिक अपना विचार व्यक्त नहीं कर सकता है या सरकार की गलत नीतियों की आलोचना नहीं कर सकता है।’
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने लिखा है मैं संसद के प्रत्येक सदस्य से अनुरोध करता हूं कि वह आरटीआई को बचाएं और सरकार को सूचना आयोगों और इस मूल्यवान अधिकार को मारने की अनुमति न दें।’
इस बिल का उद्देश्य केंद्रीय सूचना आयोग को बिल्कुल पंगु देना है पिछले सालों में सीआईसी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को सूचना का अधिकार कानून का उल्लंघन करने के कारण कड़ी फटकार लगाई है। सीआईसी ने कहा कि ये गैरकानूनी है कि पीएमओ आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन द्वारा भेजी गई बड़े घोटालेबाजों की सूची पर जानकारी नहीं दे रहा है। ऐसे ही ओर भी दूसरी बहुत सी सूचनाएं है जिसके पब्लिक डोमेन में आ जाने की वजह से सरकार को बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है।
साफ नजर आ रहा है कि आरटीआई में प्रस्तावित बदलाव का उद्देश्य सूचना आयुक्त पर सीधे नियंत्रण करना है CIC समेत सभी सूचना आयुक्त एक सुप्रीम कोर्ट जज के बराबर का दर्जा रखते हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर की जाती है। इस समिति में लोकसभा में नेता विपक्ष और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री भी होते हैं।।लेकिन इस प्रस्तावित बिल में सूचना आयुक्तों के वेतन और कार्यकाल में बदलाव करने की अनुमति सीधे केंद्रीय सरकार को दे देना आरटीआई एक्ट 2005 के उद्देश्य को ही खत्म कर देगा।
ओर यह सरकार यह कर के ही मानेगी क्योकि अंधभक्तो ने उसे लोकसभा में 303 सीटे जो दी है, भारतीय लोकतंत्र को तो अभी और जलील होना है।
इसी संदर्भ पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने दोनों सदनों के सदस्यों को एक चिट्ठी लिखकर चेताया है कि मोदी सरकार इस संशोधन के जरिए आरटीआई कानून को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार इसके जरिए आरटीआई के पूरे तंत्र को कार्यपालिका की कठपुतली बनाना चाह रही है। आचार्युलु ने अपने पत्र के जरिए आगाह किया है कि मोदी सरकार सूचना आयोगों को मिले वैधानिक सुरक्षा को खत्म कर देगी और इसकी वजह से आयोग की स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता सरकारी वभागों की कठपुतली बनकर रह जाएगी।
आरटीआई संशोधन के जरिए सूचना आयोग का दर्जा कम करने पर आचार्युलु ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने आरटीआई को अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत संवैधानिक अधिकार करार दिया है, जो कि बोलने एवं अभिव्यक्ति की आजादी देता है। चुनाव आयोग मतदान के अधिकार को लागू करता है, जो कि अनुच्छेद 19(1) (ए) के तहत अभिव्यक्ति का हिस्सा है।
‘एक तरह से, केंद्रीय चुनाव आयोग अभिव्यक्ति के केवल एक छोटे से हिस्से को लागू करता है जबकि केंद्रीय सूचना आयोग अभिव्यक्ति के व्यापक पहलू, सूचना के अधिकार को लागू करता है। सूचना प्राप्त किए बिना कोई भी नागरिक अपना विचार व्यक्त नहीं कर सकता है या सरकार की गलत नीतियों की आलोचना नहीं कर सकता है।’
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने लिखा है मैं संसद के प्रत्येक सदस्य से अनुरोध करता हूं कि वह आरटीआई को बचाएं और सरकार को सूचना आयोगों और इस मूल्यवान अधिकार को मारने की अनुमति न दें।’
इस बिल का उद्देश्य केंद्रीय सूचना आयोग को बिल्कुल पंगु देना है पिछले सालों में सीआईसी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को सूचना का अधिकार कानून का उल्लंघन करने के कारण कड़ी फटकार लगाई है। सीआईसी ने कहा कि ये गैरकानूनी है कि पीएमओ आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन द्वारा भेजी गई बड़े घोटालेबाजों की सूची पर जानकारी नहीं दे रहा है। ऐसे ही ओर भी दूसरी बहुत सी सूचनाएं है जिसके पब्लिक डोमेन में आ जाने की वजह से सरकार को बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है।
साफ नजर आ रहा है कि आरटीआई में प्रस्तावित बदलाव का उद्देश्य सूचना आयुक्त पर सीधे नियंत्रण करना है CIC समेत सभी सूचना आयुक्त एक सुप्रीम कोर्ट जज के बराबर का दर्जा रखते हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर की जाती है। इस समिति में लोकसभा में नेता विपक्ष और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री भी होते हैं।।लेकिन इस प्रस्तावित बिल में सूचना आयुक्तों के वेतन और कार्यकाल में बदलाव करने की अनुमति सीधे केंद्रीय सरकार को दे देना आरटीआई एक्ट 2005 के उद्देश्य को ही खत्म कर देगा।
ओर यह सरकार यह कर के ही मानेगी क्योकि अंधभक्तो ने उसे लोकसभा में 303 सीटे जो दी है, भारतीय लोकतंत्र को तो अभी और जलील होना है।