छत्तीसगढ़ में हर रोज तीव्र हो रहा NRC के खिलाफ प्रदर्शन

Written by Anuj Shrivastava | Published on: January 6, 2020
छत्तीसगढ़ के लगभग सभी ज़िलों में NRC, CAA और NPR का विरोध प्रदर्शन तेज़ होता जा रहा है। अब से पहले तक दिसंबर का आखिरी सप्ताह नए साल के जश्न की तैयारी में ही बीतता था लेकिन इस बार CAA के विरोध ने ये तस्वीर बिलकुल बदल दी है। छत्तीसगढ़ में साल के आखिरी सप्ताह के सातों दिन विरोध की रैलीयां निकाली गईं, हालांकि छत्तीसगढ़ के अखबारों और मेडिया ने इन प्रदर्शनों को जगह नहीं दी। साल की शुरुआत भी इसी विरोध के साथ हुई। नागरिक संघर्ष समिति ने पहली जनवरी को सफदर हाशमी को याद करते हुए NRC के विरोध की इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की योजनाएँ बनाईं और तय किया कि अब नुक्कड़ नाटकों की टीम बनाकर इस आंदोलन को जनता के बीच ले जाया जाएगा।  



छत्तीसगढ़ के सभी सामाजिक संगठन इस कानून के खिलाफ मे लोगों के साथ आ रहे हैं। 28  दिसंबर की सुबह 10 बजे बिलासपुर शहर की सड़कों पर NRC के विरोध में जितनी बड़ी संख्या मे लोग सड़कों पर उतरे, उतने लोग अन्न आंदोलन के बाद पहली बार एकसाथ आए हैं। NRC के विरोध में आ रहा ये जनसमूह धार्मिक विभाजन के षडयंत्रों को भी तोड़ रहा है।

हालांकि भाजपा और RSS NRC के विरोध मे हो रहे इन प्रदर्शनों को धार्मिक रंग देने की पूरी कोशिश कर रही है। एनआरसी के समर्थन मे भी एक रैली का आह्वान बिलासपुर में किया गया था लेकिन वो रैली कम झांकी ज़्यादा थी। 2 जनवरी को आपत्तीजनक और भड़काऊ नारों के साथ एनआरसी की इस समर्थन रैली के बाद छत्तीसगढ़ की जनता ने संविधान विरोधी कानून के खिलाफ़ अपनी एकजुटता दिखाई। 3 जनवरी की दोपहर राजधानी रायपुर की सड़कों में प्रदेश के इतिहास का अब तक का शायद सबसे बड़ा जन सैलाब उमड़ आया। लगभग 15-20 हज़ार लोग एनआरसी का विरोध करते, देश की विभाजनकारी शक्तियों को लानत देते हुए गांधी और भगतसिंह के सपनों का भारत बनाने की बात कहते हुए रायपुर के अंबेडकर चौक के पास इकट्ठा होने लगे। खास बात ये भी थी कि इस रैली मे बड़ी संख्या मे महिलाएं भी मौजूद थीं, यूं कहें कि महिलाएं ही आंदोलन की अगुआ रहीं। इस प्रदर्शन में वकील, ट्रेड यूनियन, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता, घरेलू महिलाएं, छोटे दुकानदार, बड़ी संख्या मे युवा आदि सभी वर्ग के लोग शामिल हुए।

इसके ठीक अगले दिन 4 जनवरी को फिर से हजारों लोगों ने रायपुर नगर निगम से अंबेडकर चौक तक एनआरसी और एनपीआर के विरोध मे जनगीतों के साथ रैली निकाली। 4 जनवरी के इस प्रदर्शन मे दिल्ली से आए प्रोफेसर चमनलाल भी शामिल हुए। प्रोफेसर चमनलाल ने भगतसिंह के जीवन और उनके संघर्षों पर लंबा शोधकार्य किया है, इस विषय पर उनकी कई किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।

प्रोफेसर चमनलाल ने एनआरसी एनपीआर और छात्रों के साथ जानभूझकर षड्यंत्रपूर्वक की जा रही हिंसा के लिए केंद्र सरकार को दोशी बताया। उन्होने कहा कि आज जो लोग सत्ता मे बैठे हैं और संविधान की रक्षा के लिए आवाज़ उठाने वालों को देशद्रोही बता रहे हैं, दरअसल ये सभी अंग्रेजों के चाटुकार रहे हैं। उन्होने कहा कि भाजपा आरएसएस से निकली है और आरएसएस ने आज़ादी के आंदोलन मे कभी भी हिस्सा नहीं लिया बल्कि ये तो आज़ादी के आंदोलन को कमज़ोर करने का काम कर रहे थे।

उन्होंने कड़े शब्दों मे कहा कि ये हिंदुस्तान हमारा मुल्क है। बात-बात पर हमे पाकिस्तान भेजने की बात कहने वाले लोग हिटलर के अनुयाई हैं। उन्होंने सांप्रदायिकता के संबंध में भगतसिंह के विचारों को आंदोलनकारियों तक पहुंचाया।

प्रोफेसर चमनलाल ने लोगों से इस आंदोलन को लगातार आगे बढ़ाते रहने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि धर्म के आधार पर देश को बांटने की साज़िश करने वाली केंद्र की भाजपा सरकार अब तानाशाह हो गई है और जनता पर इसकी ज़्यादतियाँ अभी और बढ़ेंगी। NRC का ये आंदोलन देश से तानाशाही को खत्म करने की शुरुआत है। उन्होंने कहा कि तानाशाही का ऐसा विरोध अलग-अलग रूपों में लगातार चलते रहना चाहिए। 

5 जनवरी की शाम जब jnu परिसर मे छात्रों और अध्यापकों के साथ गंभीर मारपीट की गई तो रात लगभग 12 बजे एक बार फिर रायपुर के लोग सड़क पर प्रदर्शन करने निकले।

आज भी सुबह से ही भिलाई समेत कई शहरों मे जेएनयू के छत्रों पर हुए हमले के विरोध मे प्रदर्शन हो रहे हैं।

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