सदफ़ जाफ़र ने सबरंग इंडिया से साझा किया जेल का भयावह अनुभव

Written by Sabrangindia Staff | Published on: January 9, 2020
लखनऊ। नागरिकता संशोधन काननू के विरोध में बीते 19 दिसंबर को लखनऊ में हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार रिटायर्ड आईपीएस, सामाजिक कार्यकर्ता एसआर दारापुरी और कांग्रेस नेत्री, एक्ट्रेस सदफ़ जाफ़र को मंगलवार को जेल से रिहा कर दिया गया। रिहाई होते ही दारापुरी और सदफ ने योगी सरकार और पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। दारापुरी ने कहा- जब हिंसा हुई थी, तब मैं घर में नजरबंद था। इसके बाद मुझे गिरफ्तार किया गया। खाना नहीं दिया गया। मुझे ठंड लगने पर कंबल भी नहीं दिया गया।




सदफ़ जाफ़र ने जेल से वापस आने के बाद कहा कि एक जूनियर पुलिस ऑफिसर हजरतगंज थाने में मेरे साथ बदसलूकी कर रहा था। उसने कहा, “307 लगाके तुझे जेल में सड़ाउंगा।” 

सबरंग इंडिया से बात करते हुए सदफ़ जाफ़र ने हिरासत में गुजरे हुए वक्त को दु:स्वप्न की तरह याद किया। 

उन्होंने कहा, “हम परिवर्तन चौक पर शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे, तभी वहां पथराव होने लगा। प्रथम दृष्टया यह राज्य प्रायोजित नजर आया। यहां दो बातों ने सोचने को मजबूर कर दिया कि पहली बात तो यह कि धारा 144 लागू होने के बावजूद पुलिस ने बगैर जांच परख के इतने पत्थर आदि कैसे ले जाने दिए। इसके अलावा वे लोग एक ही जैसे कपड़े, टोपी और टिपीकल कैफी पहने हुए थे। वे आगे आए और आगजनी के बीच में नमाज़ पढ़ने बैठ गए। इसे देखकर हम चौंक गए! यह इस तरह से नहीं होता है- यह बहुत नाटकीय था। मैं एक मुस्लिम हूं और मुझे पता है कि ऐसा नहीं होता है। यह बहुत अजीब था। जैसे-जैसे आगजनी होती रही, हम वैसे ही रहे। मैं अपनी कार की ओर नहीं बढ़ पा रही थी। हमने कहीं आश्रय लिया और मैंने फेसबुक लाइव करने का फैसला किया। मैं देख पा रही थी कि पुलिस उस क्षण पूरी तरह से निष्क्रिय हो गई है। यह बहुत आश्चर्य की बात थी। पुलिस बात कर रही थी औऱ इधर-उधर जा रही थी। 
सदफ ने बताया कि मैंने पथराव के वक्त पुलिस वालों को निष्क्रिय देखते हुए उनसे कहा कि आप कुछ करते क्यों नहीं हो, उनको पकड़ क्यों नहीं रहे? इस बीच जब पुलिस की कार ने आग पकड़ ली तो उन्होंने आंसू गैस के गोले छोड़े। हम अपने वाहनों की तरफ बढ़ रहे थे कि तभी उन्होंने हमें उठाना शुरू कर दिया। मैं फेसबुक पर लाइव थी और सुनिश्चित थी कि मैंने कुछ गलत नहीं किया।  

बगैर बैज वाले पुलिस अधिकारियों ने उन्हें कैसे पीटा? इसका जवाब देते हुए सदफ ने बताया कि महिला पुलिसकर्मी उन्हें घसीटते हुए गली के कोने में ले गईं। वहां उन्होंने मेरी टांगों में डंडे मारे और घसीटा। 

यह पूछे जाने पर कि वे पुलिस के साथ सहयोग कर रही थीं तब भी उन्हें क्यों पीटा गया? सदफ ने बताया कि उन्हें सिर्फ पीटा ही नहीं गया बल्कि उन्हें गालियां दी गईं। एक दूसरे कोने पर पुलिस एक दलित एक्टिविस्ट को बुरी तरह बाल पकड़कर खींचा गया और उसे पीटा गया। यह नजारा उन्होंने खुद अपनी आंखों से देखा था।  

सदफ ने बताया कि एक पुलिस अफसर ने उसने घुटने के बल जमीन पर बैठने के लिए कहा। उन्होंने घुटने खराब होने का हवाला दे बैठने से मना किया तो उसने मुझे थप्पड़ मार दिया। मेरा चश्मा और फोन नीचे गिर गया। उन्हें लेने के लिए मैं नीचे झुकी तो पुलिस ने मेरी पीठ पर लाठी बरसाना शुरू कर दिया। मैंने अपने हाथों से सिर बचाने की कोशिश की तो एक बोला कि हाथ पीछे किए तो तोड़ दिये जाएंगे। ऐसे में मैंने अपने हाथों को पेट से बांध लिया और वे पीठ पर वार करते रहे। 

सदफ ने बताया, एक पुलिस अधिकारी सीलम ने प्रदर्शनकारियों को पीटने के लिए खुली छूट दे दी थी

मुझे बगैर महिला पुलिस अफसर के महिला थाने लाया गया। मैं गिरफ्तार किए गए बाकी लोगों की चीखें सुन रही थी। वे प्रदर्शनकारियों को पकड़कर ला रहे थे औऱ उन्हें बुरी तरह पीट रहे थे। महिला पुलिस कर्मियों ने मुझे भी पीटा। 19 दिसंबर की सारी रात यही चलता रहा। 

सदफ ने आगे बताया, “उन्होंने मुझे पाकिस्तानी कहा। वे कहते रहे "अरे यह मुस्लिम है।" यह पहली बार था जब मैंने उन्हें अपने सांप्रदायिक रंग में देखा। वे कहते रहे कि आप यहाँ बच्चे पैदा कर रहे हैं और बहुत मज़े कर रहे हैं। सरकार ने आपके साथ ऐसा क्या किया है कि आप एक 'एहसान फरामोश' की तरह व्यवहार कर रहे हैं? 

सीलम वापस आ गई थी। उसने मुझसे मेरठ की भाषा के पुट में कहा- तेरा मैं खून काडुंगी (मैं तेरा खून निकाल दूंगी)। यह कहकर उसने मेरे चेहरे को नोचने के लिए हथेली बढ़ाई। मेरे बाल खींचे और थप्पड़ मारना जारी रखा। 

सदफ ने बताया कि हिरासत में लिए जाने के बाद उन्हें फिक्र हो रही थी कि उनके परिजन चिंतित होंगे। उन्हें परिवार के किसी नंबर याद नहीं था जो कि उन्हें बचाने के लिए आ जाता। जब पुलिस के पास किसी ने फोन कर शायद उनके बारे में पूछा तो पुलिस वालों ने कहा कि यहां कोई महिला बंद नहीं है। 

पुलिस ने उन्हें उनके परिवार से संपर्क क्यों नहीं करने दिया इसका जवाब देते हुए सदफ ने कहा कि पुलिस खुद डर गई थी। वे मुझे गंभीर आरोपों के तहत बंद नहीं कर सकती थी। 

जिस जूनियर पुलिस अधिकारी ने सदफ को मर्डर के चार्ज में फंसाने की धमकी दी थी उसने एक महिला पुलिस अधिकारी को उन्हें थप्पड़ मारने का आदेश दिया जो उसने पूरा किया। इससे उसे संतुष्टि नहीं मिली तो उसने सदफ के बाल खींचकर पेट में लात मारी। जब सदफ के खून निकलने लगा तो गाड़ी की सीट को उसमें सनने से बचाने के लिए एक अखबार बिछा दिया गया। इस दौरान किसी ने भी सदफ की मदद में एक शब्द नहीं कहा।

शाम के करीब दो बजे उन्होंने ब्लड प्रेशर संबंधी शिकायत की तो उन्हें सिविल अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें दो इंजेक्शन लगा दिए गए। लेकिन उन्हें वहां आराम करने की अनुमति नहीं दी क्योंकि पुलिस का कहना था कि बीमारी का बहाना लगाकर लोगों को सुविधाएं और आरामदायक बिस्तर चाहिए। उन्हें पुलिस अपने साथ ही थाने ले गई। 

सदफ ने बताया कि वहां लगातार गालियां चालू थीं, उन्हें एक पुरुष पुलिस ऑफिसर की उपस्थिति में खड़ा रहना पड़ा क्योंकि कुर्सी पर बैठने का आदेश नहीं था। करीब 12 घंटे तक उन्हें पुलिस स्टेशन में पानी और भोजन से वंचित रखा गया। जेल पहुंचने के बाद उनके स्वास्थ्य पर ध्यान दिया गया।

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