क्या पारसमल लोढ़ा काले धन के खिलाफ जंग में मोदी सरकार की हिम्मत और नीयत की परीक्षा भी है?

Published on: December 26, 2016

सुनी-सुनाई है कि पारसमल लोढ़ा के पास ऐसे राज हैं जिससे कई बड़े नेता, वकील, अफसर, बिल्डर बेपर्दा हो सकते हैं

क्या पारसमल लोढ़ा काले धन के खिलाफ जंग में मोदी सरकार की हिम्मत और नीयत की परीक्षा भी है?

दिल्ली से कोलकाता और चेन्नई से चंडीगढ़ तक एक कहावत है - पारसमल लोढ़ा ऐसा पारस पत्थर है, जिसके छूने भर से काला धन सफेद हो जाता है. पारसमल लोढ़ा का एक और नाम है - एक्स्ट्रा फ्लोर लोढ़ा. कहा जाता है कि कोलकाता में किसी भी इमारत की अगर ऊंचाई बढ़ानी है, उसमें एक्स्ट्रा फ्लोर जोड़ने हैं तो पारसमल यह काम चुटकियों में करवा सकता है. अब वही पारस पत्थर हवालात में है.

सुनी-सुनाई है कि पारसमल लोढ़ा के पास ऐसे राज़ हैं जिससे कई बड़े लोग बेपर्दा हो सकते हैं. मोदी सरकार की जांच एजेंसी के पास अब वह आदमी है जिसके पास बहुत सारे बड़े लोगों के भ्रष्टाचार की कुंजी है. ऐसे बड़े लोग जिनके बारे में मीडिया ज्यादा लिख नहीं सकता, पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने से डरती है, नेता बोलने से बचते हैं. अब मोदी सरकार की परीक्षा है कि वह इन फाइलों को बंद करेगी या फिर देश को इनमें छिपा सच बताएगी. जिस डिजिटल डायरी की बात मीडिया कर रही है वह बस एक अंश भर है, असली डायरी तो सरकार के पास है.

दिल्ली के एक वकील रोहित टंडन के साथ मिलकर कोलकाता का यह कारोबारी देश भर के ताकतवर लोगों का काला धन सफेद करता था. ये दोनों भी अकेले नहीं थे. सुनी-सुनाई है कि नेता से लेकर वकील, अफसर, बिल्डर सबका एक गिरोह काम करता था. दिल्ली वाले वकील साहब करोड़ों रुपया लोढ़ा के पास पहुंचाते थे और फिर देश भर में बेनामी जायदाद खरीदी जाती थीं. इस खेल में ये लोग बेहद एक्सपर्ट माने जाते थे.

मोदी सरकार की जांच एजेंसी इस गिरोह की सबसे पहली कड़ी को सुलझाने में कामयाब हुई है लेकिन, इस कड़ी के आखिरी सिरे तक पहुंचना बेहद मुश्किल काम है.

निजी तौर पर यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिम्मत और नीयत की परीक्षा होगी कि वे सच में इस एक केस के जरिए पूरे देश के बड़े लोगों का भ्रष्टाचार हमारे सामने लाते हैं या फिर इस मामले का भी वही हश्र होगा जो अब तक ऐसे मामलों का होता रहा है. रविवार को अपने रेडियो कार्यक्रम मन की बात में प्रधानमंत्री ने कहा कि यह तो शुरुआत है और इस जंग में पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता. देखना दिलचस्प होगा कि वे इस राह पर कितना आगे जाते हैं.

इस एक केस के बारे में जो खबरें और जो नाम मीडिया में अब तक आए हैं बताया जाता है कि वे असलियत का सौंवा हिस्सा भी नहीं है. और अगर सच में इस केस के ज्यादातर किरदार जेल चले जाएं तो नोटबंदी का पूरा अभियान सफल हो सकता है. देश की सियासत से लेकर, देश की अफसरशाही और इंसाफ के मंदिर तक शुद्ध हो सकते हैं. लेकिन क्या सच में प्रधानमंत्री ऐसा कर सकेंगे?

चुनाव से पहले प्रधानमंत्री के पास एक मौका है. वे साबित कर सकते हैं कि वे न खाते हैं, न खाने देते हैं. लेकिन चुनाव से पहले ही एक जोखिम भी है. अगर इस फाइल से सरकार और भाजपा के लोग भी पकड़े गए तो प्रधानमंत्री क्या जवाब देंगे. प्रधानमंत्री ने वाराणसी में कहा था - जब सफाई होगी तो दुर्गंध तो फैलेगी ही. क्या वे और उऩकी पार्टी भी उस दुर्गंध को झेलने के लिए तैयार हैं!

Courtesy: Satyagraha.in

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