नई दिल्ली। भारत में नोटबंदी के फैसले को प्रतिष्ठित अमेरिकी बिज़नेस पत्रिका फोर्ब्स ने नुकसानदेय बताया है। फोर्ब्स पत्रिका के 24 जनवरी 2017 के संस्करण में छपे लेख में कहा गया है कि मोदी सरकार के इस फैसले से भारत के पहले से ही गरीब लाखों लोगों की हालत और खराब हो सकती है। जनसत्ता के अनुसार, फोर्ब्स पत्रिका के चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ स्टीव फोर्ब्स ने लिखा है, “देश की ज्यादातर नकदी को बंद कर दिया गया। स्तब्ध नागरिकों को नोट बदलने के लिए कुछ ही हफ्तों का समय दिया गया।”
फोर्ब्स के अनुसार, “आर्थिक उथलपुथल को इस बात से भी बढ़ावा मिला कि सरकार पर्याप्त मात्रा में नए नोट नहीं छाप पाई…नए नोटों का आकार भी पुराने नोटों से अलग है जिसकी वजह से एटीएमों के लिए बड़ी दिक्कत खड़ी हो गई।” लेख में कहा गया है, “भारत हाई-टेक पावरहाउस है लेकिन देश के लाखों लोग अभी भी भीषण गरीबी में जी रहे हैं। ” लेख में कहा गया है कि नोटबंदी के फैसले के कारण भारतीय शहरों में काम करने वाले कामगार अपने गांवों को लौट गए हैं क्योंकि बहुत से कारोबार बंद हो रहे हैं।
फोर्ब्स ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नकद पर अत्यधिक निर्भर होने का मुद्दा उठाते हुए कहा है कि यहां ज्यादातर लोग नियमों और टैक्स के अतिरेक की वजह से अनौपचारिक तरीके अपनाते हैं। फोर्ब्स ने नोटबंदी की तुलना 1970 सत्तर के दशक में लागू की गई नसबंदी से की है। फोर्ब्स ने लिखा है कि 1970 के दशक में लागू की गई नसबंदी के बाद सरकार ने ऐसा अनैतिक फैसला नहीं लिया था।
फोर्ब्स ने नोटबंदी के फैसले को जनता की संपत्ति की लूट बताया है। फोर्ब्स ने लिखा है, “भारत सरकार ने उचित प्रक्रिया के पालन का दिखावा भी नहीं किया- किसी लोकतांत्रिक सरकार का ऐसा कदम स्तब्ध कर देने वाला है।” फोर्ब्स के अनुसार भारत सरकार इस तथ्य को दबा रही है कि नोटबंदी के फैसले से भारत को दसियों अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने आठ नवंबर को 500 और 1000 के बैंक नोटों को उसी रात 12 बजे से बंद कि जाने की घोषणा की जिसके बाद से ही इसे लेकर आम लोगों के साथ ही विशेषज्ञों के बीच बहस जारी है। सरकार ने बंद किए जा चुके नोटों को बैंकों और डाकघरों में जमा करने के लिए 30 दिसंबर तक का समय दिया है। वहीं 30 दिसंबर तक बैंकों से हर हफ्ते 24 हजार रुपये और एटीएम से एक दिन में प्रति कार्ड 2500 रुपये निकालने की सीमा तय की गई है।
Courtesy:National Dastak