यूपी: मंदिर के पास हैंडपंप से पानी पीने पर दलित युवक की पिटाई

Written by sabrang india | Published on: October 21, 2024
अपनी शिकायत में गौतम ने कहा कि लोगों ने उस पर हमला करते हुए जातिवादी गालियां दी, उसकी गर्दन पर अपने पैरों से तब तक दबाया जब तक कि उसकी जीभ बाहर नहीं निकल आई।


प्रतीकात्मक तस्वीर

उत्तर प्रदेश के भदोही में एक मंदिर के पास हैंडपंप से पानी पीने पर 24 वर्षीय अभिषेक गौतम नाम के दलित युवक पर सात लोगों ने हमला कर दिया जिससे वह घायल हो गया। घटना 26 जुलाई को हुई और गौतम ने मारपीट के बारे में बताते हुए शिकायत दर्ज कराई है।

अपनी शिकायत में गौतम ने कहा कि लोगों ने उस पर हमला करते हुए जातिवादी गालियां दी, उसकी गर्दन पर अपने पैरों से तब तक दबाया जब तक कि उसकी जीभ बाहर नहीं निकल आई।

आरोपियों ने उसे और उसके परिवार को धमकी भी दी और उसे घटना की जानकारी अधिकारियों को न देने की चेतावनी दी। पुलिस अधीक्षक मीनाक्षी कात्यायन ने इन मामले की पुष्टि करते हुए कहा कि बीए का छात्र और कबड्डी खिलाड़ी गौतम को पहले भी मंदिर के पास सार्वजनिक स्थान का इस्तेमाल करने के लिए लोगों ने धमकी दी थी।

मामले को पुलिस के संज्ञान में लाने के बावजूद, गौतम ने आरोप लगाया कि कोई कार्रवाई नहीं की गई। निराश होकर उन्होंने विशेष अदालत से न्याय की गुहार लगाई, जिसने गुरुवार को निर्देश दिया कि सातों आरोपियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जाए।

अभी तक आरोपी फरार हैं। पुलिस अधीक्षक ने कहा, "अदालत के निर्देश के बाद 17 अक्टूबर को एफआईआर दर्ज की गई। जांच का जिम्मा सर्किल ऑफिसर प्रभात राय को सौंपा गया है।" आरोपियों के गिरफ्तारी की जानकारी अभी नहीं मिल पाई है।

ज्ञात हो कि दलितों से भेदभाव का यह कोई पहला मामला नहीं है। राजस्थान के उदयपुर के महाकालेश्वर मंदिर में जबरन प्रवेश करने के कथित प्रयास के लिए एक दलित महिला के खिलाफ दर्ज एफआईआर दर्ज की गई थी जिसे हाल ही में राजस्थान उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। एफआईआर नंबर 217/2024, 14 मई, 2024 को उदयपुर के अंबामाता पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 448 (घर में जबरन घुसना), 427 (शरारत) और 143 (अवैध रूप से एकत्र होना) के तहत दर्ज की गई थी।

राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में जाति-आधारित भेदभाव के बारे में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की, जिसमें कहा गया, "याचिकाकर्ता की अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की पृष्ठभूमि को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, खासकर इस तथ्य के मद्देनजर कि धार्मिक स्थलों तक पहुंच ऐतिहासिक रूप से हाशिए के समुदायों के लिए प्रतिबंधित रही है। याचिकाकर्ता को प्रवेश से वंचित करना और उसके बाद आपराधिक शिकायत, जाति-आधारित भेदभाव का एक उदाहरण हो सकता है। ट्रस्टियों द्वारा इस तरह का भेदभावपूर्ण आचरण न केवल समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, बल्कि सामाजिक बहिष्कार को भी बढ़ावा देता है, जो सभी नागरिकों, विशेष रूप से उत्पीड़ित समुदायों के लोगों के लिए सम्मान सुनिश्चित करने के संवैधानिक जिम्मेदारी के विपरीत है।"

इसी महीने बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक दलित व्यक्ति को बाप-बेटे ने इसलिए पीटा क्योंकि उसने पोल्ट्री फार्म में काम के लिए बकाया मजदूरी की मांग की थी। आरोप है कि दलित व्यक्ति को न सिर्फ पीटा गया, बल्कि उसके चेहरे पर थूका गया और उस पर पेशाब भी किया गया।

पीड़ित रिंकू मांझी की शिकायत के अनुसार, यह घटना 4 अक्टूबर को हुई जब उसने दो दिनों के काम के लिए मजदूरी मांगने के लिए आरोपी रमेश पटेल के पोल्ट्री फार्म गया था।

शिकायत में कहा गया है कि मजदूरी की मांग करने से नाराज होकर रमेश पटेल, उसके भाई अरुण पटेल और बेटे गौरव कुमार ने रिंकू की पिटाई की। साथ ही, रमेश पटेल और गौरव कुमार ने पीड़ित पर पेशाब भी किया और उसके चेहरे पर थूका।

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