संघ के नेताओं का ही कहना है कि सरकार किसानों की समस्याओं को समझना ही नहीं चाहती। उसकी इस बेरुखी ने ही किसान आंदोलन को इतना उग्र कर दिया है।
मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में आंदोलन कर रहे किसानों को राहत देने के बजाय सरकार उनका मुंह चिढ़ाने की कोशिश में लगी है। किसानों को स्थायी राहत देने के उपाय घोषित करने की जगह उसने अखबारों में करोड़ों रुपये खर्च कर दो पेजों के विज्ञापनों में कृषि क्षेत्र की अपनी उपलब्धि का बखान किया है।
Image Courtesy: PTI
इस बीच मध्य प्रदेश में किसानों का आंदोलन राजधानी भोपाल के नजदीक पहुंच गया है। राजधानी से थोड़ी दूरी पर फांदा में कुछ किसान आंदोलनकारियों ने कुछ ट्रकों और मोटरसाइकिलों को जला दिया और पुलिस की पिटाई में एक 26 वर्षीय युवक की मौत हो गई। भोपाल के नजदीक आंदोलन पहुंचते देख सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अनिश्चित उपवास का ऐलान कर दिया है। उन्होंने ऐलान किया कि वह अगले कुछ दिनों तक दशहरा मैदान में किसानों से मुलाकात करेंगे। लेकिन कांग्रेस का कहना है कि वह सिर्फ संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ के लोगों से मिल रहे हैं। मगर, हकीकत यह है कि संघ और बीजेपी से जुड़े किसान नेता सरकार की कृषि नीति का विरोध कर रहे हैं।
भारतीय किसान संघ के नेशनल वाइस प्रेसिडेंट प्रभाकर केलकर चौहान सरकार की नीतियों से खासे खफा दिखे। उन्होंने कहा, किसान लंबे वक्त से गुस्से में थे। सरकार ने उसके गुस्से की वजहों को समझने की कोशिश नहीं की। मंदसौर की घटना तो कुछ मुट्ठी भर किसानों की प्रतिक्रिया थी। पिछले तीन साल में चौहान सरकार ने किसानों से कई वादे किए। उसने कुछ कदम उठाए भी लेकिन जमीन पर इसका कोई असर नहीं दिखा। आंदोलन कर रहे किसानों को नहीं रोका गया तो यह दूसरे राज्यों में फैल सकता है। किसानों ने सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी और कर्ज माफी के वादे की याद दिलाते हुई चिट्ठी लिखी लेकिन वादे पूरे नहीं हुए।
इस आंदोलन की भयावहता को देखते हुए भी सरकार चेती नहीं है। बारिश का मौसम शुरू होने वाला है और किसानों की प्याज और आलू की फसल उनके पास पड़ी है। किसानों से उनकी फसल खरीदने की कोई कोशिश नहीं हो रही। एक बार बारिश शुरू हो गई तो उनके लिए इनकी स्टोरेज मुश्किल हो जाएगी। सीएम और पीएम दोनों को मिड डे मिल स्कीम, सुरक्षा बलों और पुलिस फोर्स के लिए सीधे किसानों से फसल खरीदने की व्यवस्था करने को कहा गया है लेकिन इस पर कोई फैसला नहीं किया गया।
किसान आंदोलन के प्रति सरकार और बीजेपी में बैठे लोगों की संवेदनहीनता का अंदाजा कृषि पर संसद की स्थायी समिति के प्रमुख हुकुमदेव नारायण यादव के बयान से लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह किसान नहीं उग्रवादी आंदोलन है। संघ के नेताओं का ही कहना है कि सरकार किसानों की समस्याओं को समझना ही नहीं चाहती। सरकार की इस बेरुखी ने ही किसान आंदोलन को इतना उग्र कर दिया है।
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इस बीच मध्य प्रदेश में किसानों का आंदोलन राजधानी भोपाल के नजदीक पहुंच गया है। राजधानी से थोड़ी दूरी पर फांदा में कुछ किसान आंदोलनकारियों ने कुछ ट्रकों और मोटरसाइकिलों को जला दिया और पुलिस की पिटाई में एक 26 वर्षीय युवक की मौत हो गई। भोपाल के नजदीक आंदोलन पहुंचते देख सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अनिश्चित उपवास का ऐलान कर दिया है। उन्होंने ऐलान किया कि वह अगले कुछ दिनों तक दशहरा मैदान में किसानों से मुलाकात करेंगे। लेकिन कांग्रेस का कहना है कि वह सिर्फ संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ के लोगों से मिल रहे हैं। मगर, हकीकत यह है कि संघ और बीजेपी से जुड़े किसान नेता सरकार की कृषि नीति का विरोध कर रहे हैं।
भारतीय किसान संघ के नेशनल वाइस प्रेसिडेंट प्रभाकर केलकर चौहान सरकार की नीतियों से खासे खफा दिखे। उन्होंने कहा, किसान लंबे वक्त से गुस्से में थे। सरकार ने उसके गुस्से की वजहों को समझने की कोशिश नहीं की। मंदसौर की घटना तो कुछ मुट्ठी भर किसानों की प्रतिक्रिया थी। पिछले तीन साल में चौहान सरकार ने किसानों से कई वादे किए। उसने कुछ कदम उठाए भी लेकिन जमीन पर इसका कोई असर नहीं दिखा। आंदोलन कर रहे किसानों को नहीं रोका गया तो यह दूसरे राज्यों में फैल सकता है। किसानों ने सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी और कर्ज माफी के वादे की याद दिलाते हुई चिट्ठी लिखी लेकिन वादे पूरे नहीं हुए।
इस आंदोलन की भयावहता को देखते हुए भी सरकार चेती नहीं है। बारिश का मौसम शुरू होने वाला है और किसानों की प्याज और आलू की फसल उनके पास पड़ी है। किसानों से उनकी फसल खरीदने की कोई कोशिश नहीं हो रही। एक बार बारिश शुरू हो गई तो उनके लिए इनकी स्टोरेज मुश्किल हो जाएगी। सीएम और पीएम दोनों को मिड डे मिल स्कीम, सुरक्षा बलों और पुलिस फोर्स के लिए सीधे किसानों से फसल खरीदने की व्यवस्था करने को कहा गया है लेकिन इस पर कोई फैसला नहीं किया गया।
किसान आंदोलन के प्रति सरकार और बीजेपी में बैठे लोगों की संवेदनहीनता का अंदाजा कृषि पर संसद की स्थायी समिति के प्रमुख हुकुमदेव नारायण यादव के बयान से लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह किसान नहीं उग्रवादी आंदोलन है। संघ के नेताओं का ही कहना है कि सरकार किसानों की समस्याओं को समझना ही नहीं चाहती। सरकार की इस बेरुखी ने ही किसान आंदोलन को इतना उग्र कर दिया है।