उच्च न्यायालयों में 2018 से अब तक 23% से भी कम जज एससी, एसटी, ओबीसी व अल्पसंख्यक वर्ग से नियुक्त किए गए

Written by sabrang india | Published on: March 24, 2025
आरजेडी सांसद मनोज झा के एक सवाल के लिखित जवाब में विधि एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा को जानकारी दी कि साल 2018 से विभिन्न हाईकोर्ट में नियुक्त 715 जजों में से 22 अनुसूचित जाति, 16 अनुसूचित जनजाति, 89 अन्य पिछड़ा वर्ग और 37 अल्पसंख्यक समुदाय के हैं।


फोटो साभार : हिंदुस्तान टाइम्स (फाइल फोटो)

केंद्र सरकार ने गुरुवार, 20 मार्च को संसद में यह जानकारी दी कि 2018 से लेकर अब तक देशभर के उच्च न्यायालयों में नियुक्त किए गए न्यायाधीशों में से 23% से भी कम संख्या अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अल्पसंख्यक समुदायों से हैं।

साथ ही केंद्र सरकार ने यह भी बताया कि सभी हाई कोर्ट के न्यायाधीशों में एससी, एसटी और ओबीसी के प्रतिनिधित्व से संबंधित श्रेणीवार आंकड़े 'केंद्रीय रूप से उपलब्ध नहीं हैं।'

राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज कुमार झा के एक सवाल के लिखित जवाब में विधि एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में बताया कि सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 224 के तहत की जाती है, जिसमें किसी भी जाति या वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है।

मेघवाल ने कहा, "हालांकि, सरकार सामाजिक विविधता को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है और 2018 से उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के पद के लिए अनुशंसित व्यक्तियों को निर्धारित प्रारूप (सुप्रीम कोर्ट के परामर्श से तैयार) में अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि के बारे में विवरण प्रदान करना अनिवार्य है।"

उन्होंने कहा, "अनुशंसित व्यक्तियों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर, 2018 से उच्च न्यायालयों में नियुक्त 715 न्यायाधीशों में से 22 अनुसूचित जाति के, 16 अनुसूचित जनजाति के, 89 अन्य पिछड़ा वर्ग के और 37 अल्पसंख्यक समुदाय से हैं।"

अपने प्रश्न में, मनोज झा ने यह जानना चाहा था कि क्या उच्च न्यायपालिका में अनुसूचित जातियों, जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व अपेक्षित स्तर से बहुत कम है और क्या हाल के वर्षों में हाशिए पर पड़े समुदायों से न्यायाधीशों की नियुक्ति में गिरावट आई है।

मेघवाल ने कहा कि प्रक्रिया ज्ञापन (MOP) के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव शुरू करने की जिम्मेदारी भारत के मुख्य न्यायाधीश की है, जबकि उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव शुरू करने की जिम्मेदारी संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की है।

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