मोदी ने 2024 के चुनाव प्रचार के दौरान क़रीब 110 इस्लामोफोबिक टिप्पणियां कीं : ह्यूमन राइट्स वॉच 

Written by sabrang india | Published on: August 17, 2024
एचआरडब्ल्यू ने यह भी पाया कि एक दशक लंबे भाजपा सरकार के दौरान भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के ख़िलाफ़ हिंसा में वृद्धि हुई है।



मोदी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान अल्पसंख्यकों खास तौर पर मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषण दिए और अधिकांश हिंदुओं में डर की झूठी भावना पैदा की। ये बात ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) की रिपोर्ट में कही गई है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि मोदी ने "अपने तीसरे कार्यकाल के चुनाव प्रचार के दौरान हाशिए पर पड़े समूहों के खिलाफ भेदभाव, दुश्मनी और हिंसा भड़काने वाले बयान दिए।" एचआरडब्ल्यू ने कहा कि उसने मोदी द्वारा दिए गए 173 चुनावी भाषणों का विश्लेषण किया और पाया कि कम से कम 110 भाषणों में इस्लामोफोबिक टिप्पणियां की गई थीं। मानवाधिकार संस्था ने पाया कि प्रधानमंत्री ने "बार-बार मुसलमानों को "घुसपैठिए" बताया और दावा किया कि मुसलमानों के अन्य समुदायों की तुलना में "अधिक बच्चे" हैं, जिससे यह आशंका बढ़ गई है कि हिंदू जो आबादी का लगभग 80 प्रतिशत है अपने ही देश भारत में अल्पसंख्यक बन जाएगा।" इसमें उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ, असम के सीएम हिमंत सरमा और पूर्व मंत्री अनुराग ठाकुर सहित नफरती एजेंडे को आगे बढ़ाने में अन्य भाजपा नेताओं के बयानों का भी उल्लेख किया गया है। 

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि “मोदी ने झूठे दावों के जरिए हिंदुओं के बीच निरंतर डर पैदा किया कि अगर विपक्षी दल सत्ता में आई तो उनकी आस्था, उनके पूजा स्थल, उनकी संपत्ति, उनकी भूमि और उनके समाज की लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा को मुसलमानों से खतरा होगा।”

एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट में झारखंड के कोडरमा में 14 मई को दिए गए मोदी के भाषण का हवाला दिया गया जिसमें उन्होंने कहा था, “हमारे देवताओं की मूर्तियों को नष्ट किया जा रहा है” और “इन घुसपैठियों [मुसलमानों] ने हमारी बहनों और बेटियों की सुरक्षा को खतरा पहुंचाया है।” मध्य प्रदेश के धार में दिए गए अपने एक अन्य भाषण में उन्होंने कहा, “अगर कांग्रेस की चली तो वह कहेगी कि भारत में रहने का पहला अधिकार उसके वोट बैंक [मुसलमानों] का है। … कांग्रेस धर्म के आधार पर सरकारी ठेकों में भी आरक्षण देगी।”

मानवाधिकार संगठन ने कहा कि भारत का चुनाव आयोग नेता पर लगाम लगाने में विफल रहा जबकि उनके चुनावी भाषणों के खिलाफ कई शिकायतें भेजी गई थीं जो साफ तौर पर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करते थे। एचआरडब्ल्यू ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि "मोदी और अन्य लोगों द्वारा दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किए जाने के बावजूद आयोग ने प्रधानमंत्री का नाम लिए बिना केवल भाजपा अध्यक्ष के कार्यालय को पत्र लिखा और कहा कि भाजपा और उसके "स्टार प्रचारक" धार्मिक या सांप्रदायिक आधार पर भाषण देने से बचें। इन निर्देशों ने मोदी को नहीं रोका जिन्होंने पूरे प्रचार के दौरान नफरत फैलाने वाले भाषण देना जारी रखा।" रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 2014 में मोदी सरकार के पहली बार सत्ता में आने के बाद से भारत में मुस्लिम विरोधी नफरत भरे भाषणों में वृद्धि देखी गई है।

इसमें आगे कहा गया है कि भाजपा नीत सरकार में मुसलमानों, ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ दुर्व्यवहार और हिंसा एक सामान्य हो गई है। साथ ही अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभावपूर्ण नीतियों को बढ़ावा दिया गया है। अधिकारियों द्वारा अक्सर कानून की उचित प्रक्रिया के बिना किए गए तोड़-फोड़ के मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए एचआरडब्ल्यू ने कहा कि ये तोड़-फोड़ अक्सर सांप्रदायिक झड़पों या असंतोष के बाद मुस्लिम समुदायों के खिलाफ "सामूहिक दंड" के रूप में किए जाते हैं और सरकार का समर्थन करने वालों द्वारा इसे "बुलडोजर न्याय" का नाम दिया गया है।

अल्पसंख्यकों के खिलाफ तथाकथित रक्षक समूहों और दक्षिणपंथी भीड़ द्वारा हिंसा में वृद्धि की ओर इशारा करते हुए इस संगठन ने नफरती भाषण और हाशिए के समूहों के सदस्यों पर हमलों के बीच अंतर्संबंध पर प्रकाश डाला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश भर में चुनाव प्रचार के बाद से अल्पसंख्यकों को हमलों का सामना करना पड़ रहा है। इसमें कहा गया है कि 2014 के चुनाव अभियान के दौरान मोदी ने बार-बार गायों की सुरक्षा का आह्वान किया और तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा प्रचारित गुलाबी क्रांति (मांस उत्पादन लक्ष्य) पर पुरजोर हमला किया। एचआरडब्ल्यू ने दावा किया कि जैसे ही भाजपा ने सत्ता संभाली, उसने गौरक्षा को बढ़ावा देने वाले बयानों पर और जोर दिया जिसके कारण कई स्वघोषित गौरक्षा निगरानी समूहों का गठन हुआ और इन संगठनों ने गोमांस की खपत और गोहत्या के खिलाफ अपने उग्र अभियान के साथ अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले किए। अध्ययन में पाया गया कि “मई 2015 और दिसंबर 2018 के बीच, 12 राज्यों में कम से कम 44 लोग मारे गए जिनमें से 36 मुस्लिम थे। उसी अवधि में 20 राज्यों में 100 से अधिक घटनाओं में लगभग 280 लोग घायल हुए। हमले जारी हैं और तब से कई और लोग मारे गए हैं।” 

ईसाइयों के खिलाफ हिंसा में वृद्धि पर इस संगठन ने टिप्पणी की कि “बीजेपी और संबद्ध हिंदू राष्ट्रवादी समूहों के नेताओं ने ऐसे बयान दिए हैं जिनके कारण पिछले दशक में चर्चों पर भीड़ के कई हमले हुए हैं। कई मामलों में, पादरियों को पीटा गया, धार्मिक सभाएं करने से रोका गया और धर्मांतरण विरोधी कानूनों के तहत उन पर आरोप लगाए गए और चर्चों में तोड़फोड़ की गई।” इसके अलावा कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के बाद “बीजेपी नेताओं के सिख विरोधी बयानों के कारण 10 जून को हरियाणा के कैथल जिले में एक सिख व्यक्ति पर दो लोगों ने हमला किया। उसे उन्होंने खालिस्तानी कहा। कृषि कानूनों को अब वापस ले लिया गया है।”

मानवाधिकार संस्था ने कहा कि हिंदू राष्ट्रवादी समूहों के सदस्यों ने देश के जम्मू और दिल्ली क्षेत्रों में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों को भी निशाना बनाया है। इसने कहा कि रोहिंग्या को "आतंकवादी" बताने के बाद दक्षिणपंथी समूहों ने आगजनी करके उनके घरों को निशाना बनाया और दिल्ली में रोहिंग्या बस्ती में आग लगने के बाद जिसमें साल 2018 में लगभग 50 घर जल गए थे, एक भाजपा नेता ने ट्विटर पर पोस्ट करते हुए कहा था, "हमारे नायकों ने अच्छा किया... हां हमने रोहिंग्या आतंकवादियों के घर जला दिए।" 

एचआरडब्ल्यू के एशिया निदेशक के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि "भारत सरकार के बहुलता और 'लोकतंत्र की जननी' होने के दावे उसके अपमानजनक अल्पसंख्यक विरोधी कार्यों के सामने खोखले हैं," और "नई मोदी सरकार को अपनी भेदभावपूर्ण नीतियों को पलटने, अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा पर कार्रवाई करने और प्रभावित लोगों के लिए न्याय सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।"

Related :
संसद में छलका मणिपुर का दर्द, कांग्रेस सांसद ने पीएम मोदी की ‘चुप्पी’ पर निशाना साधा

मोदी 2.0 की अनोखी शुरुआत; प्रधानमंत्री जी टीवी पर दिलाते हैं भरोसा और देश में सरेआम अल्पसंख्यकों पर हो रहे हैं हमले

बाकी ख़बरें