नर्मदा व किसानी बचाओ जंगः जन अदालत और जस्टिस गौड़ा का फैसला

Written by राहुल यादव, सौरव राजपूत | Published on: July 12, 2018
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात एवं राजस्थान के चार राज्यों में व्यापक, नर्मदा एवं किसानी बचाओ जंग के नतीजे पर पहुँचने के मकसद से हम यहाँ जन अदालत में, आम जनता, जो की नर्मदा प्रोजेक्ट के चलते सरकार द्वारा किये गए भूअर्जन से व्यथित है, उनकी व्यथाओं को सुनने एकत्रित हुए हैं। मैं और मेरे सहकार, श्री अभय थिप्से, अपने- अपने कार्यकाल की समाप्ति के पश्चात, इस जन अदालत की अध्यक्षता करके काफी प्रसन्न हैं।हमारा यह विचार है की यह, हमारे देश के कृषि समुदाय के लिए, एक बेहतर योगदान है।



मैंने, साढ़े उन्नीस वर्ष से अधिक, उच्च न्यायालय में न्यायाधीश से लेकर सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के पद पर, कार्य किया है।मेरे सहकारी, श्री अभय थिप्से जी ने, संवैधानिक तंत्र की निचली अदालत से लेकर उच्च अदालत तक, मेरे कार्यकाल से भी अधिक, करीब 30 वर्ष कार्य किया होगा परन्तु हम आपके समक्ष यह स्वीकार कर रहे हैं, कि जो भी निर्णय हमने, एक संवैधानिक अदालत के न्यायाधीश की हैसियत से लिए, उनसे हमें संतोष नहीं मिला, जबकि हमने जनता की सेवा में, अपने तरीके से कई ऐतिहासिक निर्णय भी लिए परन्तु आज आपकी समस्याओं और आपके दर्द का वर्णन सुनकर ,इस कड़ी 40 डिग्री की धूप और लू के बावजूद, हम संतुष्ट हैं।

ऐसा इसलिए संभव हो पाया क्योंकि आप दशकों से प्रताड़ना का पात्र बनते आये हैं।चूँकि आप समस्त ब्रह्माण्ड की इंसानियत के अन्नदाता हैं, आपका,योगदान हमारे योगदान से कई बढ़कर है और इसीलिए, 3 घंटे यहाँ बैठकर आपका दुख दर्द, पीड़ायें एवं समस्याएं सुनकर हम बेहद संतुष्ट हुए।अंग्रेजों के 200  वर्ष के उपनिवेशवादी शासन के पश्चात्,जो व्यापारियों की हैसियत से आये थे, जिसमें उन्होंने हमारे संसाधनों-भौतिक एवं प्राकृतिक दोनों का ही बेहद अनुचित लाभ उठाया, हमारे कृषि, युवा, शिक्षक, बौद्धिक एवं छात्र समुदाय,जो की गांधीजी एवं और भी अन्य नेताओं की छत्रछाया में थे, की बलि चढ़ाई। हम 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुए, 26 जनवरी 1950 को हमारा गणतंत्र स्थापित हुआ।

भागवत गीता या कुरान, या जो भी हम कहना चाहें, की ही भाँति, भारतीय संविधान में हमें एक महान पुराण प्राप्त है।हमारा संसदीय जनतंत्र आज सिर्फ नेताओं एवं राजनेताओं के लिए जीवंत है जिन्होंने निरंतर रूप से, जनता को निराश किया है किन्तु आज, 40 वर्षों से उत्पीड़न सहते आये नर्मदा बचाओ के भूमिहीन, मजदूर एवं पर्यावरण प्रभावितों की पीड़ा सुनने के पश्चात् यह हमारे जनतंत्र पर कटाक्ष है कि यह जनतंत्र नहीं, भीड़तंत्र है।यह न सिर्फ कष्टप्रद है अपितु हास्यास्पद भी है।

जनतंत्र में जनता का शासन होना चाहिये पर क्या इस देश में  ऐसा होता दिख रहा है? भारत की 74% आबादी-किसान समुदाय एवं कृषि मजदूर- ग्रामीण क्षेत्र में है।यदि देश की 74% आबादी किसानों की है, जिसमें 50 प्रतिशत आबादी महिलाओं की है, निश्चित ही इस सभा में बहुमत महिलाओं का है।यह शर्मिन्दगी पूर्ण बात है कि लोकतंत्र के नाम पर हम पर व्यवसायियों और कंपनियों का राज चल रहा है।आप देश के अन्नदाता हैं।

भोपाल, दिल्ली, चेन्नई, मद्रास, बंगलौर, कलकत्ता आदि भारत के महानगरों में निवासरत लोगों को यदि आप दूध उपलब्ध न कराएँ, सब्जियां उपलब्ध न कराएँ, फल उपलब्ध न कराएँ, रेशम उपलब्ध न कराएँ, कपास आदि उपलब्ध न कराएँ तो घंटे भर भी, क्या गुज़ारा हो सकता है? निरक्षरता एवं अज्ञानता का, जो बहुसंख्य हैं, जैसे की महिलाएं, कृषि मजदूर, किसान तथा सामान्य मजदूर, के शोषण के लिए उपयोग किया जा रहा है।हमारा संसदीय लोकतंत्र, महान श्री अम्बेडकर जी की अध्यक्षता में लिखे गए, महान राजनैतिक दस्तावेज़, भारतीय संविधान, के शासन में है।महात्मा गाँधी जी के नेतृत्व में हमने आज़ादी हासिल की।बी.आर. अम्बेडकर जी की अध्यक्षता में हमें एक लिखित संविधान प्राप्त हुआ। हमारे संविधान में समानता प्रतिष्ठापित है।

भारतीय संविधान में अधिकारों का उल्लेख किया गया है , जिसमें समानताका अधिकार तथा अनुच्छेद 21 में जीवन तथा आजीविका का अधिकार स्थापित है|निवास का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(E) में, व्यवसाय का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(G) मेंआश्वासित किया गया है। जीवन में आजीविका एवं स्वतंत्रता, बिना आय के स्त्रोत, शामिल हैं|

प्रश्न है कि क्या इस देश का कृषक वर्ग बिना आय के स्त्रोत के रह सकता है? तथा 24प्रतिशत, शहरों मेंरहने वाले महाराजाओं, कॉरपोरेट वर्ग और कॉर्पोरेशन जगत को अनाज की आपूर्ति कर सकेगा?एक प्रकार का बड़ा दुखदनाट्य चल रहा है|हमारे देश का संघीय प्रशासन आखिर क्या है? देश के मंत्री, मुख्य मंत्रीगण, कैबिनेट मंत्री, प्रधान मंत्री से सवाल है कि क्या वे देश के इस भाग, यानी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश एवं गुजरात के लोगों की कठिनाइयों और समस्याओं से अनभिज्ञ हैं ? पिछले 40 वर्षों से, नर्मदा नदी पर बनने वाले बाँध जैसे विषयों पर  नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने देश के किसानों के हित में प्रशंसनीय कार्य किया है|

नर्मदा नदी पर बाँध निर्माण के नाम पर आज क्या हो रहा है?मछुआरे अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं, मजदूर अपनी आजीविका खो बैठे हैं, कृषि क्षेत्र के लोगों ने अपनी फसल गंवाई है, चल क्या रहा है? क्या है यह नर्मदा बाँध विकास प्राधिकरण?शिकायत निवारण प्राधिकरण आखिर क्या भूमिका निभा रहा है?हम 30 गवाहों और 30 मतों को सुन चुके हैं।देश के इन 4 राज्यों के कृषि क्षेत्र की जनता के हक में,कुछ नियमों और शर्तों के साथ, न्यायाधिकरण को यह अवार्ड पास करने में 39 वर्ष लगे।लोग गवाह के गवाह बता रहे हैं कैसे उनकी ज़मीनें डूब चुकी हैं और फिर भी उन्हें मुआवजा नहीं मिला।कैसे उन्हें पुनर्वसित नहीं किया गया है|पुनर्वास और विस्थापित व्यक्तियों, उनके परिवार के साथ क्या होना चाहिए? एक मजदूर, सेंचुरी मिल का मजदूर कह रहा था कि वह लड़ रहा है क्योंकि प्रति माह, 1 लाख 25 हजार लीटर, वह अपनी सेंचुरीमिल चलाने के उद्देश्य से निकाल रहा है।

क्या उसके पास पूर्ण शुल्क का भुगतान करने के लिए पैसा है? ऐसी स्थिति है। यह बात आज अकेले पुनर्वास की नहीं है। यह अकेले पुनर्वास या स्थानान्तर्गमन की भी नहीं है। बात है आपके लाखों लाख रुपयों के मुआवज़े की, उन कष्टों के लिए जो आपके द्वारा उठाये गए हैं। मेरी समझ से परे है। यह सब बातें जैसे की मेधा पाटकर जी का नेतृत्व, नर्मदा बचाओ आन्दोलन मै अपने छात्र जीवन से सुनता आया हूँ। 2018 में भी सुप्रीम कोर्ट ने कई अवार्ड एवं आदेश पारित किये हैं। साल 2000, 2005 तथा 2017 में भी इस दिशा में, सम्बंधित राज्यों को आदेश पारित किये गए हैं। जिन्होंने अपनी ज़मीन खोई है उनकी पीड़ाएं सुनना , मुआवजा दिलाना और उसके इए धनराशी की गणना करना ,उन्हें ज़मीन दिलाना, पुनर्वसित करना, मूल सुविधाएं मुहैय्या कराना , इंफ्रास्ट्रक्चर आदि दिलाना , यह कार्य की दिशा होनी चाहिए।

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहाँ संविधान का शासन है, क्या हो रहा है?  क्या मध्य प्रदेश सरकार के लिए कोई विधि शासन नहीं है ?क्या महाराष्ट्र राज्य के लिए कोई विधि शासन नहीं है? क्या गुजरात राज्य के लिए कोई विधि शासन नहीं है? इन सभी राज्यों द्वारा विधि शासन का उल्लंघन हो रहा है।  इन सभी को, मै कहूँगा ,यदि एक बस में कोई जेब कतरा किसी अन्य व्यक्ति का धन लेता है, तो उसके विरुद्ध चोरी का आपराधिक मामला दर्ज होता है। यह हज़ारों हज़ार लोगों के मुआवज़े का पैसा है जिसका भुगतान अति आवश्यक है।

 40 वर्षों से ये लोग वंचित हैं , इनके बच्चों की शिक्षा वंचित है , इनकी आजीविका वंचित है। क्या किया जाना चाहिए इन मुख्य मंत्रियों और मंत्रिमंडल के साथ जो देश पर शासन करते आये हैं ? किन्तु आखिर क्या है वो जवाब जो इन्हें जनता को देना चाहिए? इसलिये मेधा पाटकर जी व उनके सहकारी, इस जन अदालत का हिस्सा हैं।हाँ, हम सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं, हम पर एक सामाजिक दायित्व है।हम सिस्टम का हिस्सा हैं|

 मै स्वयं एक किसान का बेटा हूँ।मुझे पता है, एक किसान की पीड़ा और दर्द जो धान की खेती करने के लिए, कपास की खेती करने के लिए, मक्का, दाल पैदा करने के लिए1 रुपये कमाता है।ये सत्ताधारी क्या जाने कितना कठोर परिश्रम करना पड़ता है इस कार्य में ? 


 ये परिश्रमी जीव मेहनत से काम करके अपनी आजीविका कमाते हैं, यदि वे आपकी रक्षा करने से कतरा रहे हैं और हम सब को यह ज़िम्मा उठाना पड़ रहा है तो क्या यह लोकतंत्र है? क्या यही सुशासन है? हमारा यह मानना है कि समय की पाबंदी है और मुझे इंदौर के लिए निकलना है जहाँ से मुझे कल होने वाले एक कार्यक्रम के लिए साधन लेना है।क्षमा चाहूँगा कि मैं न तो भाषण न ही प्रथम दृष्टि विचारों को व्यक्त करने की स्थिति में हूँ। हमें विदा लेनी होगी।

सभी गवाहों को सुनने के पश्चात,देश के विभिन्न हिस्सों के नेताओं को सुनने के बाद, मेधा पाटकर जी ने विभिन्न राज्यों, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेशसे लोगों की सभी समस्याओं, पीड़ाओं एवं शिकायतों का सारांश दिया है। राजस्थान के लोग यहाँ उपस्थित नहीं हैं।हमने बड़े ध्यान से प्रत्येक व्यक्ति की बात सुनी है।हमने सभी शिकायतों और समस्याओं को समझा है|इसमें हमें कुछ समय लग सकता है|

 विचार विमर्श करके ,मेरा और अभय जी का यह प्रथम दृष्टि विचार है कि गवाहों के बयान तथ्य हैं और यह सिर्फ तथ्य नहीं हैं, ये निर्विवाद तथ्य हैं।डूब क्षेत्र प्रभावितों का पुनर्वास और स्थानान्तर्गमन पूर्ण रूप से नहीं हुआ है, मछुआरों को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है, नदी के पानी को मोड़ा जा रहा है ,नागरिक सुविधाएं भी प्रदान नहीं की जा रही हैं। 

हमारा यह भी प्रथम दृष्टि विचार है की आपकी सभी शिकायतों का निवारण होना चाहिए, और यदि हो चूका हो ,शिकायत निवारण प्राधिकरण द्वारा, जहाँ तक मध्य प्रदेश सरकार की बात की जाए, तो इसे तुरंत ही ,हम आशा और विश्वास करते हैं कि प्रदेश के मुख्य मंत्री द्वारा, प्रभाव दिया जाना चाहिए।  और यह भी उम्मीद करते हैं कि  कृषि अनुभाग, मजदूरों और विस्थापित व्यक्तियों, कृषि मजदूरों, पर्यावरण से प्रभावित व्यक्तियों की समस्याओं पर ध्यान देंगे क्योंकि औद्योगिक प्रदूषण नर्मदा में लीक हो रहा है, नर्मदा बाँध में लीक हो रहा है जिससे होनी वाली रासायनिक प्रतिक्रियाओं के चलते कृषि फसलें, पेयजल, कृषि क्षेत्र के लिए सिंचाई प्रभावित है, विशेष रूप से कावेरी और विशेष रूप से गंगा बेसिन में, एक रिपोर्ट जो हमें मिली है, उसके अनुसार।

मैंने पिछले साल पर्यावरणविद के साथ दौरा किया, पांच साल का हवाई सर्वेक्षण, मुख्यमंत्री खुद 2 दिवसीय सम्मेलन में थे, उन्होंने कहा कि गंगा पानी में प्रदूषण के कारण बिहार राज्य के लाखों लोग,कैंसर से मृत्यु को प्राप्त हो गए। इसलिए, नर्मदा बांध और नर्मदा नदी में भी , औद्योगिक प्रदूषणों का प्रभाव, देश के इस हिस्से के लोगों के जीवन और आजीविका को प्रभावित करेगा। अवार्ड के योग्य,  लोगों के बारे में विस्तृत विवरण लिखने के लिए कुछ समय की आवश्यकता है।

हम अपने प्रथम दृष्टि विचार (prima facie view) को व्यक्त कर रहे हैं कि नर्मदा नदी विकास प्राधिकरण, शिकायत निवारण प्राधिकरण, और सुप्रीम कोर्ट के आदेश और उच्च न्यायालय के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन हुआ है। मैं संबंधित अधिकारियों, राज्य सरकार और राज्य मंत्रियों पर भरोसा  करता हूं और आशा करता हूँ कि वे इसकी नोंध लेंगे। मैं आशा करता हूँ और भरोसा करता हूँ,जो लोग सरकार के प्रतिनिधि हैं वे यहाँ नहीं हो सकते किन्तु सरकार के ख़ुफ़िया सेल से कुछ लोग यहाँ पर हो सकते हैं। मैं उनसे अनुरोध करता हूं, कृपया एक नोट दें, मुख्यमंत्री को एक संक्षिप्त नोट दें, कृपया सिंचाई मंत्री को एक संक्षिप्त नोट दें, और कृपया पर्यावरण मंत्री को एक संक्षिप्त नोट दें कि वे कृपया इस देश को बचाएं, लोगों को बचाएं। अगर हम खेती अनुभाग को नहीं बचाते हैं, इस देश की 74% आबादी, तो इतिहास गवाह है , साम्राज्य गिर गए हैं, और सम्राट चले गए हैं।


एक संसदीय लोकतंत्र में, आपके द्वारा सोच विचार से किया गया मतदान का अभ्यास ,निर्वाचित सरकारों को हटा सकता है।कृपया सावधान रहें, खेती अनुभाग के हितों की रक्षा का ध्यान रखें। हमारा यह विचार है कि विधि शासन का खुले तौर पर उल्लंघन हो रहा है। एक लोकतांत्रिक देश में, लोकतांत्रिक शासन औरसंवैधानिक शासन में विधि  शासन का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। इस एक पहलू के साथ मैं निष्कर्ष पर आना चाहूँगा, मेरे विद्वान भाई को आगे की बात समझाने दें। मैं 2 और महत्वपूर्ण बातों को बताना चाहता हूँ जिनमें से एक महत्वपूर्ण बात है  एमएसपी (MSP) अर्थात न्यूनतम बिक्री मूल्य की।


लिपस्टिक, टूथपेस्ट का निश्चित मूल्य है। यदि आप सब्जियां उगाते हैं तो कोई निश्चित मूल्य नहीं है, यदि आप गेहूं उगाते हैं, तो कोई निश्चित कीमत नहीं है, अगर आप धान उगाते हैं तो कोई निश्चित कीमत नहीं हैं,  यदि आप सब्जियां उगाते हैं तो कोई निश्चित कीमत नहीं है। यदि आप कपास उगाते हैं, तो कोई निश्चित कीमत नहीं है। अस्तित्व के लिए क्या अधिक महत्त्वपूर्ण है ? यह लिपस्टिक या टूथपेस्ट ?टूथपेस्ट भी आवश्यक है लेकिनटूथपेस्ट के बिना भी हम अपने दांत साफ कर सकते हैं, कोई समस्या नहीं है लेकिन अनाज के बिना कोई भी जीवित नहीं रहेगा, कृपया याद रखें।

इसलिए, जो बिल प्रस्तुत किया गया है, जिसे 21 राजनैतिक दलों का समर्थन मिला है और जिसे सिंह जी द्वारा सटीक तरीके से प्रस्तुत किया गया है। उन्हें मैंने देखा है ,वे एक योद्धा हैं, वाकई एक योद्धा हैं। मैं उनसे बंगलौर में मिला था। मैं उन्हें येरवाड़ा में मिला था। किसान भाईयों, हमने आपका बिल पढ़ा है, उसमें कुछ संशोधन किये जा सकते हैं ,ऐसी मैं आशा और उम्मीद करता हूँ, घोषणापत्र के आधार पर। मेरे भाई जोकि एक आपराधिक मामलों के विशेषज्ञ हैं।वोट सुनिश्चित करने के लिए राजैतिक दल, न्यूनतम बिक्री मूल्य सुनिश्चित करने की बात करते हैं और वोट मिल जाने के पश्चात भूल जाते हैं। उन्होंने मेरे कान में फुसफुसाते हुए बताया कि यह एक किस्म की धोखाधड़ी है, आप उनके खिलाफ मामला क्यों नहीं दर्ज कराते हैं? ऐसी जो स्थिति है।

मैं समझ नही पा रहा हूँ कि कुछ  लोगों जैसे उद्योगपतियों ने,केंद्र सरकार ने, राष्ट्रीयकृत बैंकों ने,सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने, पूर्व घोषित 200053 करोड़ रूपये, गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) अर्थात जनता का धन अर्जित कर रखा है। इसी कारण इन उद्योगपतियों ने अन्य समकालीन व्यवसायों के साथ अन्याय किया है। व्यापार को भी अनदेखा कर दिया गया है।

क्या है वो रिपोर्ट? जो एक विशेषज्ञ, क्या नाम है उनका , 2010 के वैज्ञानिक, कृषि वैज्ञानिक, द्वारा दी गयी थी, स्वामीनाथन रिपोर्ट। इसे18 वर्षो तक लंबित रखा गया, उन्हें दोबारा से नहीं नियुक्त किया गया क्योंकि यह रिपोर्ट कृषक वर्ग के समर्थन में थी। उन्हें, जैसा कि आपने सही कहा, हमारे वेतन का भुगतान, महंगाई भत्ता बढ़ाना, अल्पसंख्यक लोगों के लिए, नगण्य लोगों के लिए संशोधन करने का समय मिल जाता है।कड़ी मेहनत करने वालों का, किसान वर्ग का, अन्नदाताओं का, देश के मसीहाओं का कर्जा तो वे नहीं माफ कर रहे। वे क्यूँ नहीं कर रहे? 

स्वामीनाथन रिपोर्ट के आधार पर लोगों का भुगतान करना चाहिए सरकार को, केंद्र सरकार खुद ही कृषि अनुभाग को देय है। हम देय नहीं हैं। हमारे इस निष्कर्ष के साथ हमारा यह प्रथम दृष्टि विचार है कि विधि शासन का उल्लंघन हो रहा है|हम अपना अवार्ड उचित समय के भीतर देंगे।सभी गवाहों, नेताओं के बयान,वास्तविक पहलुओं, अवार्ड के नियमों और शर्तों के तथा उच्चतम न्यायालय के सन् 2000, 2007 एवं 2017 के अवार्ड के सन्दर्भ में, हम प्रत्येक पहलू से निपटेंगे, और अधिकारियों को इसे आगे बढ़ाने के लिए आपको पेश करेंगे।

और आगे मैं यही कहना चाहता हूँ कि लड़ना कभी न छोड़ें, माँकीआवाजहैलड़तेरहो। 40 वर्ष बीतने के बाद भी आप आज लड़ रहे हैं और आगे भी अपने अधिकार के लिए लड़ते रहिए, यह अंतहीन लड़ाई लड़ने के लिए आपको कुछ उपलब्धियां भी मिली हैं।आपका भुगतान दिया जाना चाहिए।ये राजनेता यदि आपको नज़रंदाज़ करते हैं तो वे निश्चित ही हार जायेंगे और सत्ता में नहीं आ पाएंगे, इस बात का एहसास, दबाव बनाकर आपको उन्हें दिलाना होगा और इसके लिए आपकी एकता अति आवश्यक है और यह भी कि आप अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करें जो आपके विषय में सोचें और आपकी रक्षा करें।

अब यदि उच्चतम न्यायालय के किसी आदेश का उल्लंघन होता है , उच्च न्यायालय के किसी आदेश का उल्लंघन होता है, या अवार्ड के नियमों और शर्तों का उल्लंघन होता है,व्यक्तिगत या सामूहिक तौर पर ,नर्मदा बचाओ आन्दोलन में,तो मेधा पाटकर जी आपका नेतृत्व करेंगी और हम जैसे लोग आपका मार्गदर्शन करेंगे|ये वो लोग(आपके चुने हुए नेता) हैं जो आपके लिए उच्चतम न्यायालय तक में हाज़िर होंगे।हम कुछ सुप्रीम कोर्ट के वकीलों से निवेदन करेंगे, या फिर इंदौर क्षेत्र के या जबलपुर अथवा कहीं और के, कि वे आपका मार्गदर्शन करें और आपको कुछ राहत मिले।थकिये नहीं, अपनी दुविधाओं के निवारण के लिए आगे बढ़ कर लड़िये।

येसुनहराअवसरदेनेकेलिएतथासभीसेमिलानेकेलिएसहृदयआपकाधन्यवादकरताहूँ|मै जानता हूँ कि 29 तारीख के चले, आप सभी काफी थक गए होंगे।ऐसी प्रचंड धूप और ताप में चलना आसान नहीं, बेहद कठिन है। आप सभी अपना घर परिवार दूर रख कर आये हैं। पर आप सभी में लड़ने का जज़्बा है। यदि हमारे लोग और हमारे महान पूर्वज आज़ादी के लिए इस प्रकार न लड़ते, तो हम इस प्रकार से न तो एकत्रित हो पाते , न ही अपनी बात रख पाते।

आपका बहुत बहुत आभार। यह हमारा अनिश्चित विचार है कि प्रत्यक्ष रूप से अवार्ड का और उच्चतम न्यायालय का सरासर उल्लंघन हुआ है और स्थानान्तरण नहीं किया गया है, पुनर्वास नहीं किया गया है,नागरिक सुविधायें नहीं प्राप्त करायी गयी हैं, नागरिकता प्रभावित है, पर्यावरण प्रभावित है।उद्योगपतियों के अनाधिकृत व्यवहार को भी आप सब चुनौती दे सकते हैं। उद्योगपतियों के बिजली उत्पादन स्टेशन जहां अतिरिक्त ऊर्जा है, इस तरह के बिजली उत्पादन स्टेशन अकेले लोगों की कीमत पर पैसे कमाने के लिए क्यों है,इसको लेकर भीआपको जनहित याचिका दायर करनी होगी। आपको देखना होगा कि इन उद्योगपतियों को इन 4 राज्यों के सिंचाई और पेयजल के उद्देश्य के लिए जल रिज़र्व का फायदा उठाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

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