ईद के ख़ुशी के मौके पर सभी दोस्तों को बहुत मुबारकबाद. देश के मौजदा हालातो से अफ़सोस तो होता है के जिम्मेदार लोगो की जुबान पर नफ़रत फैलाने वालो के लिए कुछ अल्फाज़ भी नहीं है. अभी अभी दिल्ली पहुंचा हूँ . रास्ते में देख रहा था बच्चे ख़ुशी ख़ुशी, चहकते हुए, महकते हुए ईदगाह की और जा रहे हैं . मन में सोच रहा था के इन बच्चो को पता है के उनके समय की दुनिया कैसी होगी , नफ़रत की आग में लोगो को झोंककर आप कौन सा विकास करोगे. क्या कोई मुल्क नफ़रत की सियासत पर तरक्की कर पायेगा. हम अपने मतभेदों को जानते हैं लेकिन मनभेद नहीं था पर आज जिस तरीके से इतिहास को तोड़कर, डंडे के बलपर, गली गली मुहल्लों में अफवाह फैलाकर जो नफ़रत फैलाई जा रही है उसका मुकाबला करना होगा . सदियों से साथ रह रहे लोगो को अलग करने की साजिश का पर्दाफास करना होगा.
अगर इस देश में रह रही हज़ारो जातियों और कौमो में बहुत मतभेद थे और हैं तो उनके साथ रहने के भी लाखो किस्से मिलेंगे . केवल साथ रहने के नहीं, अपितु साथ चलने और साथ लड़ने के भी हजारो किस्से मौजूद हैं और उनको दोबारा से ढूंढ कर न केवल निकालना होगा अपितु उसको मौजूदा दौर में अपने राजनैतिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक जीवन का हिस्सा भी बनाना होगा.
अराजक लोगो के पास इतिहास में खंगाल करके भी सिवाय तिकडमो के और कुछ नहीं है . समाज को हजारो जातियों में धकेल कर उसके खिलाफ लड़ने या उसके खात्मे के लिए उनके पास कोई इतिहास नहीं है. अब शातिरपने में मुसलमानों और अंग्रेजो को जातिव्यस्था का जनक बताकर ये लोग अपने किये पर पर्दा नहीं डाल सकते. सवाल ये नहीं के जातियां किसने बनाइ और कैसे आयी अपितु सवाल ये है के आप ने अपने इतने लम्बे इतिहास में जातियों और जातिवाद के खात्मे के लिए कौन कौन से आन्दोलन किये , क्या प्रयास किये . आज़ाद भारत में दलितों, पिछडो को थोडा सा भी हिस्सा देने पर उनके खिलाफ मेरिट की झूठी दलील देने वाले क्या वाकई में उनको न्याय देंगे.
बहुत वर्षो पूर्व इंडोनेशिया के एक गाँव में गया . वो ऐतिहासिक बांडुंग से दूर जंगलो में था , जहाँ गया वो कबीलाई संस्कृति. एक सरदार और बाकी साथ में बैठे लोग . पर्दा था लेकिन सऊदी ब्रांड नहीं, मतलब औरते बात कर सकती थी. भाषा के तौर पर हम पूरी तरह अजनबी थे . हमारे इण्डोनेशियाई दोस्त ने परिचय कराया के मैं भारत से आया हूँ .बस उसका इतना कहना था के वहा के समुदाय के सर्वोच्च नेता की ख़ुशी का ठिकाना न रहा . वह बहुत बाते बोल गए. कहा के हमारी संस्कृति, हमारा मज़हब पहले भारत आया और फिर इंडोनेशिया. इस्लामिक देश होते हुए भी वहां पर भारत का प्रभाव दिखाई देता है और उसको बदलने की किसी ने कोशिश न ही की . अभी भी इमामो के नाम विष्णु और राम के नाम पर मिल जायेंगे और सभी महिलाओं के नाम के आगे देवी कॉमन शब्द है चाहे वह मुस्लिम हो या गैर मुस्लिम . गरुडा, बाली, राम आदि शब्द वह अत्यंत कॉमन हैं . हालांकि सऊदी पैसे का खेल अभी वहा भी दीखता है .
इसलिए ईद की ख़ुशी में बहुत से बाते सोचने की हैं . मैं अमूमन धार्मिक त्योहारों पर ज्यादा नहीं बोलता लेकिन अगर कोई मुझे बधाई मिलती है तो दे देता हूँ लेकिन मैं मानता हूँ धार्मिक कर्म कांडो से दूर भी बहुत से लोग इन त्यौहारों को एक दुसरे से संपर्क बनाने के साधन मानते हैं. बहुत से लोगो के लिए ये मौके हैं गिले सिक्वे भुलाने के और नए सिरे से दोस्ती करने के . ईद के मौके पर मैं ये कहना चाहता हूँ के आज़ाद भारत के नागरिक होने के नाते के ये देश हमेशा सबका रहेगा . ये न हिन्दू राष्ट्र होगा न इस्लामिक न ईसाईं और न कोई और . हाँ इस देश में जिनको सदियों से सत्ता, शिक्षा,संस्कृति, व्यापार, आदि से दूर रखा गया वो अब हिसाब मांग रहे हैं और इसलिए इतनी सारी दिक्कते आ रही हैं . मुसलमान इस देश में न तो बाहर से आये और यदि आये भी तो ७०० वर्ष का लम्बा इतिहास है जब उन्होंने और लोगो के साथ मिलकर ये देश बनाया . अगर मुसलमानों को ७०० वर्षो का इतिहास का हिसाब देना है तो कुछ हज़ार वर्ष पूर्व आये आर्यों को भी अपना हिसाब देना पड़ेगा . शायद ये हिसाब किताब के कारण ही आजकल इतनी परेशानिया बढ़ी हैं .
ईद के पर्व पर बहुत से लोग विरोध स्वरूप काली पट्टी पहनने की बात कर रहे हैं . विरोध करना बिलकुल वाजिब है और उसके लिए कुछ संकेतो की जरुरत होती हैं लेकिन मैं काले को विरोध के तौर नकारात्मकता के प्रतीक मानने के बिलकुल खिलाफ हूँ . न ही मैं काले धन, काला कानून इत्यादि जैसे नस्लवादी शब्दकोष का इस्तेमाल करता हूँ न करूँगा क्योंकि अन्याय के विरूद्ध हमारी लड़ाई में दलितों, पिछडो, हिस्पनिको, अफ्रीकी मूल के लोगो के साथ जाति, धर्म, नस्ल के आधार पर जो भेदभाव होता आया है उसके विरूद्ध सबको एक होना पड़ेगा . इसलिए देश में जो घट रहा है और उस पर जिम्मेवार लोगो के शंकित चुप्पी पर हमारा विरोध है और हम सभी साथियो के साथ खड़े हैं .
एक बात सभी को याद रखनी चाहिए के दुनिया भर में इन्सानियातो को शर्मसार करने वाली घटनाएं धर्म को राजनीती के जरिये सत्ता में पहुँचने वाले लोगो ने बनाई है और इसमें गैर मजहबी जो अल्पसंख्यक होते हैं उनको खलनायक बनाकर रोटिया सकने का धंधा पुराना है , जरुरत है उसको पहचानने की . कोई देश अपने एक समुदाय या नागरिक को मारकर आगे नहीं बढ़ सकता . जो लोग ये सोचते हैं के गृह युद्ध से उनकी 'चाहत' पूरी हो जायेगी वो गलतफहमी में हैं. युद्ध, बम, मार काट ने आज तक तो किसी समस्या का समाधान नहीं किया है और आगे भी नहीं करेंगी . समस्याओं और गलतफहमियो का समाधान बातचीत में हैं और मत भिन्नता और डाइवर्सिटी को स्वीकारने में हैं .
आज ईद के मौके पर एक बार फिर सभी को बहुत बहुत शुभकामनाये ,इन हालातो में भी हौसला बनाकर लड़ना है ताकि अपनी आगे की पीढ़ीयो को हम एक बेहतरीन समाज दे पाए . बुद्ध के मध्य मार्ग से उत्तम कुछ नहीं. हम सभी में १०० फ़ीसदी तो सभी एक नहीं सोचेंगे लेकिन कम से कम ५० फ़ीसदी भी समान सोच बनती है जो नफ़रत पैदा करने वालो की चालो को समझती है तो ३०% के दम पर देश पर राज चलाने वालो को २०१९ से पहले अच्छा विकल्प मिल सकता है . हम कही भी रहे लेकिन साथियो के संघर्षो में भागीदार बने, अगर पास में हैं तो शामिल हों, नहीं हैं तो सोशल मीडिया का इस्तेमाल करें और कम से कम विचार के लेवल पर तो प्रबुद्ध बने . लड़ाई बहुत बड़ी है लेकिन असंभव नहीं है . एक सुनहरे भविष्य के लिए हमें इतना तो करना पड़ेगा ही
Image Courtesy: Jansatta