फहीम खान के घर को गिराने का कार्रवाई : कानून प्रवर्तन के नाम पर एक राजनीतिक संदेश

Written by Tanya Arora | Published on: March 25, 2025
महाराष्ट्र सरकार ने नागपुर हिंसा मामले में बुलडोजर चलाकर कानूनी मानदंडों और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों की अवहेलना करते हुए आरोपियों के दो घरों को गिरा दिया।



नागपुर नगर निगम (NMC) ने सोमवार 24 मार्च को भारी पुलिस सुरक्षा और ड्रोन निगरानी के बीच माइनॉरिटी डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) के नेता फहीम खान के घर को गिरा दिया। उन पर नागपुर में 17 मार्च को हुई सांप्रदायिक हिंसा के सिलसिले में देशद्रोह का आरोप लगाया गया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, संजय बाग कॉलोनी, यशोधरा नगर में खान के घर को गिराने के लिए सुबह 10:30 बजे तीन जेसीबी मशीनें तैनात की गईं, जो अब भाजपा शासित राज्यों में मुसलमानों को निशाना बनाकर न्यायेतर दंडात्मक कार्रवाई का एक परेशान करने वाला पैटर्न बन गया है।



वहीं नागपुर हिंसा मामले में आरोपी यूसुफ शेख के घर को भी उसी दिन गिराए जाने की खबर मिली।


यह ध्यान रखना जरूरी है कि नगर निगम के अधिकारियों ने दावा किया है कि महाराष्ट्र क्षेत्रीय और नगर नियोजन (एमआरटीपी) अधिनियम के तहत तोड़फोड़ की गई थी जिसका कारण "अनधिकृत निर्माण" बताया गया है। हालांकि, इस तरह के विध्वंस की चुनिंदा और मनमानी प्रकृति उचित प्रक्रिया और कानून के शासन पर गंभीर सवाल उठाती है। खान अभी भी न्यायिक हिरासत में हैं। वे हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए 100 से ज्यादा लोगों में शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर मुसलमान हैं। स्थानीय लोगों ने पुलिस पर पक्षपात और बेहिसाब गिरफ्तारी का आरोप लगाया है, जिससे राज्य प्रायोजित सांप्रदायिक निशाना बनाए जाने की आशंकाएं और भी गहरी हो गई हैं। इस हिंसा की पक्षपातपूर्ण जांच के संकेत इस तथ्य से भी मिलते हैं कि विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के 11 सदस्यों, जिन्होंने कथित तौर पर औरंगजेब का पुतला और साथ ही औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग के लिए एक स्थानीय दरगाह की चादर जलाई थी, उनको पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने के कुछ ही घंटों बाद जमानत दे दी गई थी।

फहीम खान के घर को गिराए जाने के मामले में नागपुर नगर निगम के डिप्टी इंजीनियर सुनील गजभिये ने दावा किया कि यह तोड़फोड़ एमआरटीपी अधिनियम की धारा 53(1) के तहत जारी एक जांच और 24 घंटे के नोटिस के बाद की गई थी। हालांकि, इस तरह के त्वरित कार्रवाई की मूर्खता - खासकर जब राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लोगों द्वारा किए गए अतिक्रमण पर दशकों कार्रवाई नहीं होती है- यह बताता है कि यह शहरी प्लानिंग के बारे में कम और राजनीतिक प्रतिशोध के बारे में ज्यादा था।


हालांकि भारतीय कानून दंडात्मक उपाय के रूप में संपत्ति के विध्वंस की अनुमति नहीं देता है, लेकिन भाजपा ने इस रणनीति का मुसलमानों के खिलाफ एक न्यायेतर हथियार के रूप में तेजी से इस्तेमाल किया है, खासकर सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में। इस तरह के उपायों पर सुप्रीम कोर्ट के रोक के बावजूद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 22 मार्च को घोषणा करते हुए "बुलडोजर कार्रवाई" को उचित ठहराया कि इसका इस्तेमाल "जहां भी आवश्यक होगा" किया जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि हिंसा के दौरान हुए नुकसान की भरपाई आरोपियों से की जाएगी, ऐसा न करने पर उनकी संपत्ति जब्त कर ली जाएगी और उसकी नीलामी की जाएगी। सीएम ने यह भी कहा कि सोशल मीडिया के माध्यम से हिंसा भड़काने के आरोपियों को सह-आरोपी माना जाएगा, जिससे असहमति को दबाने के लिए राज्य की शक्ति के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं।

सरकार की बयानबाजी बेहद हिंसक रही है, महाराष्ट्र के मंत्री प्रताप सरनाइक ने खुलेआम न्यायेतर हिंसा की वकालत करते हुए कहा, "अगर कोई इस तरह की हिंसक गतिविधियों में शामिल है, तो उसके घर पर नहीं, बल्कि उस पर बुलडोजर चलाया जाना चाहिए।" डेक्कन हेराल्ड द्वारा रिपोर्ट की गई उनकी टिप्पणी राज्य द्वारा क्रूरता के बढ़ते सामान्यीकरण और कानूनी सुरक्षा के कमजोर होने को दर्शाती है।

हाल ही में संभल और अन्य भाजपा शासित क्षेत्रों में देखी गई बुलडोजर राजनीति का पैटर्न न केवल कानूनी मानदंडों का उल्लंघन है, बल्कि मुसलमानों को डराने और सामूहिक रूप से दंडित करने की एक जानबूझकर की गई रणनीति है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद ऐसी हरकतें जारी रहना राज्य के उन लोगों की बढ़ती दंडहीनता को रेखांकित करता है जो अपने बहुसंख्यकवादी एजेंडे को लागू करने के बहाने सांप्रदायिक हिंसा का इस्तेमाल करते हैं।

करीब 105 लोगों की गिरफ्तारी और कई एफआईआर दर्ज होने के साथ नागपुर की स्थिति एक बहुत ही परेशान करने वाली सच्चाई को उजागर करती है: न्याय और जवाबदेही के सिद्धांतों को बनाए रखने के बजाय, राज्य बुलडोज़र और मनमाने दंड का सहारा ले रहा है जो इस बारे में एक डरावना संदेश दे रहा है कि आज के भारत में किसके अधिकार मायने रखते हैं।

कर्फ्यू हटाना, लोगों की गिरफ्तारी और एक व्यक्ति की मौत

यहां यह बताना भी जरूरी है कि 17 मार्च को नागपुर में भड़की सांप्रदायिक हिंसा में अब 38 वर्षीय इरफान अंसारी की मौत हो गई है। इरफान ने 23 मार्च को इंदिरा गांधी सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में दम तोड़ दिया। पेशे से वेल्डर अंसारी मध्य प्रदेश के इटारसी के लिए ट्रेन पकड़ने के लिए घर से निकला था, लेकिन सेंट्रल एवेन्यू के पास फंस गया। भीड़ ने उस पर बेरहमी से हमला किया, जिससे उसके सिर पर गंभीर चोटें आईं। उसके परिवार को तब सूचित किया गया जब पुलिस उसे अस्पताल ले गई, जहां उसे कुछ समय के लिए होश आया और फिर उसने दम तोड़ दिया।

नागपुर पुलिस ने हिंसा के सिलसिले में कुल 105 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें 10 नाबालिग भी शामिल हैं जिन्हें गत सप्ताह की शुरुआत में हिरासत में लिया गया था। पुलिस उपायुक्त लोहित मतानी के अनुसार, 13 मामले दर्ज किए गए हैं और कुछ एफआईआर दर्ज की गई हैं। सहायक लोक अभियोजक मेघा बुरंगे ने पुष्टि की कि 19 आरोपी लोगों को 24 मार्च तक हिरासत में रखा गया है।

हिंसा हिंदुत्ववादी समूहों द्वारा छत्रपति संभाजी नगर में मुगल सम्राट औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग को लेकर प्रदर्शन करने के कुछ ही घंटों बाद हुई। जवाब में, अधिकारियों ने 11 पुलिस थानों में कर्फ्यू लागू कर दी। 21 मार्च तक कुछ क्षेत्रों में प्रतिबंधों में धीरे-धीरे ढील दी गई, जबकि 24 मार्च को कर्फ्यू पूरी तरह से हटा लिया गया, और पुलिस संवेदनशील इलाकों में गश्त करती रही।

सांप्रदायिक नैरेटिव और ‘बांग्लादेशी’ रिश्तों के अपुष्ट दावे

रविवार 23 मार्च को शिवसेना नेता संजय निरुपम ने नागपुर में हाल ही में हुई हिंसा में बांग्लादेश से जुड़े लोगों की संलिप्तता के बारे में अपुष्ट दावे किए थे। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में निरुपम ने आरोप लगाया कि अशांति “पूर्व-नियोजित” थी और एक बड़ी साजिश का हिस्सा थी। उन्होंने गिरफ्तार किए गए लोगों में से एक पर बिना कोई ठोस सबूत दिए “मुजाहिदीन गतिविधियों” के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने का भी आरोप लगाया।

उनके बयानों ने राजनीतिक मोड़ ले लिया क्योंकि उन्होंने प्रतिद्वंद्वी शिवसेना (यूबीटी) पर हमला किया, जिसमें कहा गया कि उसके नेता चरमपंथी तत्वों के साथ मिल रहे हैं। उन्होंने सांप्रदायिक और राजनीतिक विभाजन को बढ़ावा देने का प्रयास करते हुए पूछा, “क्या सेना (यूबीटी) खुद को मुजाहिदीन के साथ जोड़ रही है? क्या ठाकरे और (संजय) राउत उनका समर्थन कर रहे हैं?” अपने बयान में उन्होंने दावा किया कि उद्धव ठाकरे के आवास मातोश्री पर जल्द ही शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे और छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ औरंगजेब की तस्वीर लगाई जाएगी। विपक्ष को बदनाम करने के उद्देश्य से की गई यह भड़काऊ टिप्पणी थी।

हिंसा का राजनीतिक इस्तेमाल संजय निरुपम जैसे भाजपा सहयोगियों के बयानों में साफ दिखता है, जिन्होंने सांप्रदायिक तनाव के मूल कारणों को निपटाने के बजाय हिंसा में "विदेशी हाथ" के अपुष्ट दावों को आगे बढ़ाने का विकल्प चुना है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा दंडात्मक बुलडोजर कार्रवाई के समर्थन के साथ उनकी टिप्पणी, कानून लागू करने के बहाने अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की एक खतरनाक प्रवृत्ति का संकेत देती है।

इस तरह की बयानबाजी का इस्तेमाल न केवल उचित प्रक्रिया को कमजोर करता है, बल्कि हिंसा को रोकने में पुलिस की विफलता से भी ध्यान हटाता है। नागपुर की घटनाएं राज्य प्रायोजित दंडात्मकता के व्यापक पैटर्न को दर्शाती हैं, जहां जवाबदेही चुनिंदा तरीके से लागू की जाती है और बहुसंख्यक राजनीति न्याय का निर्धारण करती है।

पुलिस कार्रवाई, कथित मास्टरमाइंड और एफआईआर

महाराष्ट्र पुलिस ने माइनॉरिटीज डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता फहीम खान समेत छह लोगों पर देशद्रोह और सोशल मीडिया पर गलत सूचना फैलाने के आरोप में मामला दर्ज किया है। आरोपी चार एफआईआर में दर्ज 50 अन्य लोगों में शामिल हैं।

अधिकारियों ने मुख्य संदिग्ध फहीम खान पर देशद्रोह समेत अन्य अपराधों का आरोप लगाया है। पुलिस रिकॉर्ड से पता चलता है कि खान ने कथित तौर पर 17 मार्च को नागपुर पुलिस स्टेशन के बाहर एक प्रदर्शन को कोऑर्डिनेट किया था। उसके आपराधिक इतिहास में बिजली चोरी और 2023-2024 के दौरान विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने के आरोप शामिल हैं।

एफआईआर के अनुसार, खान ने 50 से 60 लोगों के एक समूह का नेतृत्व किया जो सोमवार को गणेशपेठ पुलिस स्टेशन के बाहर अवैध तरीके से इकट्ठा हुए थे और विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के पहले के विरोध प्रदर्शन का विरोध करते हुए ज्ञापन सौंप रहे थे। अधिकारियों ने बताया कि खान और आठ अन्य लोग बाद में भालदारपुरा इलाके में गए, जहां उन्होंने शिवाजी महाराज चौक के पास 500 से 600 लोगों को इकट्ठा पाया, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

देशद्रोह के मामले के अलावा, औरंगजेब के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के वीडियो को संपादित करने, कथित तौर पर “हिंसा का महिमामंडन” करने और उन्हें ऑनलाइन प्रसारित करने के आरोपी लोगों के खिलाफ एक अलग प्राथमिकी दर्ज की गई है। एक अन्य मामला सांप्रदायिक झड़पों को भड़काने के लिए कथित तौर पर बनाए गए वीडियो क्लिप से संबंधित है, जबकि तीसरा मामला सोशल मीडिया पोस्ट से संबंधित है जिसने तनाव को और बढ़ा दिया।

पुलिस उपायुक्त (साइबर सेल) लोहित मतानी ने कहा कि शुरू में सोशल मीडिया पर गलत सूचना फैलाई गई जिससे हिंसा भड़की, इसके बाद और भी वीडियो आए जिसमें हिंसा का महिमामंडन किया गया। एएनआई ने मतानी के हवाले से कहा, “उन्होंने [फहीम खान] औरंगजेब के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के वीडियो को संपादित और प्रसारित किया, जिसके कारण दंगे फैल गए।” आगे कहा कि “उन्होंने हिंसक वीडियो का भी महिमामंडन किया।”

कमिश्नर सिंघल के अनुसार, 11 नाबालिगों सहित 120 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया है। इसके अलावा, 19 मार्च को कमिश्नर सिंघल ने पुष्टि की थी कि अन्य हमलावरों की पहचान करने और हिंसा को अंजाम देने में खान की संदिग्ध भूमिका के बारे में एफआईआर में उल्लिखित व्यक्तियों की संलिप्तता निर्धारित करने के लिए जांच जारी है।

यह भी बताया जा रहा है कि पुलिस ने नागपुर में अशांति के लिए जिम्मेदार लोगों का पीछा करने और उन्हें पकड़ने के लिए 18 टीमों का गठन किया है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, पुलिस ने 200 संदिग्धों की पहचान की है और हिंसा के दौरान सीसीटीवी में रिकॉर्ड 1,000 से ज्यादा लोगों की पहचान करने के लिए काम कर रही है। अधिकारियों ने गणेशपेठ और कोतवाली पुलिस स्टेशनों में 200 आरोपियों के नाम से पांच प्राथमिकी दर्ज की हैं। अधिकारियों ने पुष्टि की कि वे अन्य लोगों की पहचान करने के लिए सीसीटीवी रिकॉर्डिंग की पड़ताल कर रहे हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, नागपुर के पुलिस आयुक्त डॉ. रविंदर कुमार सिंघल ने पत्रकारों को विशेष टीमों के बारे में जानकारी दी, जिसमें क्राइम ब्रांच के साथ गणेशपेठ, कोतवाली और तहसील पुलिस स्टेशनों के कर्मी शामिल हैं। ये टीमें संदिग्धों की पहचान करने के लिए साइबर सेल के साथ मिलकर काम कर रही हैं।

औरंगजेब की कब्र को टिन की चदरों से ढका गया

इसी तरह के एक घटनाक्रम में छत्रपति संभाजी नगर जिला प्रशासन के आदेश के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने 19 मार्च की रात को औरंगजेब की कब्र के चारों ओर टिन की चदरें लगा दी थीं।

एएसआई के एक अधिकारी ने पीटीआई को बताया, "मकबरे के दो तरफ से ढकी हरी जाली खराब हालत में थी और पास में स्थित ख्वाजा सैयद जैनुद्दीन चिश्ती की कब्र पर जाने वालों को यह संरचना दिखाई दे रही थी।" आगे कहा कि, "इसलिए हमने टिन की चदरें लगा दी हैं।"

हाल के दिनों में औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग तेज हो गई है, जिसमें विहिप और बजरंग दल सहित हिंदुत्व समूह दावा कर रहे हैं कि यह संरचना “दर्द और गुलामी का प्रतीक” है।

हिंसा और राज्य के पक्षपात की रिपोर्टों पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया

20 मार्च को महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख हर्षवर्धन सपकल ने मीडिया को नागपुर के दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा करने के लिए पार्टी नेताओं की एक टीम बनाने की जानकारी दी थी। प्रतिनिधिमंडल में माणिकराव ठाकरे, शोमती ठाकुर, हुसैन दलवई और साजिद पठान जैसे वरिष्ठ नेता शामिल हैं। नागपुर जिला कांग्रेस प्रमुख ठाकरे संयोजक के रूप में काम करेंगे, जबकि AICC सचिव प्रफुल गुडाडे पाटिल को समन्वयक नियुक्त किया गया है।

इस बीच, बरेलवी संप्रदाय के मौलवी मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर फिल्म छावा पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। उनका आरोप था कि इस फिल्म ने सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया है और यह नागपुर हिंसा के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है।

घटनाओं का क्रम और परिणाम

नागपुर में हिंसा उस समय भड़की जब हिंदुत्ववादी समूहों ने औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग को लेकर शहर में विरोध प्रदर्शन किया। शाम 7:30 बजे मध्य नागपुर के चिटनिस पार्क में झड़पें हुईं, जहां पुलिस पर पत्थर फेंके गए। अफवाह थी कि हिंदुत्व के नेतृत्व वाले आंदोलन के दौरान कलमा (इस्लामिक वाक्य) वाले कपड़े को जला दिया गया है।

बजरंग दल के अज्ञात पदाधिकारियों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उनके सदस्यों ने विरोध प्रदर्शन के दौरान केवल औरंगजेब का पुतला जलाया था। हालांकि, चिटनिस पार्क के पास हंसपुरी में रात 10:30 से 11:30 बजे के बीच एक और झड़प हुई। हिंसा जल्द ही कोतवाली और गणेशपेठ इलाकों में फैल गई, जिसके बाद पुलिस को भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागने पड़े और लाठीचार्ज करना पड़ा। 11 पुलिस थानों की सीमा में सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

एक प्रारंभिक सर्वेक्षण में पाया गया कि हिंसा में 60 से ज्यादा गाड़ियां क्षतिग्रस्त हुईं, जिनमें 20 दोपहिया और 40 चार पहिया वाहन शामिल हैं। दो क्रेन भी आग के हवाले कर दी गईं, एक निर्माण कंपनी ने 70 लाख रुपये के नुकसान की जानकारी दी। अधिकारियों ने घोषणा की कि जिन लोगों के वाहन पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं, उन्हें 50,000 रुपये मिलेंगे, जबकि जिनके वाहन आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हैं, उन्हें 10,000 रुपये का मुआवजा दिया जाएगा। कहा जाता है कि यह मुआवजा पीड़ितों को 25 मार्च को दिया जाएगा।

(डिटेल रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है)

परेशान करने वाली मिसाल

नागपुर हिंसा और राज्य की प्रतिक्रिया बुलडोजर न्याय, मनमानी गिरफ्तारी और सांप्रदायिक शासन की एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति को उजागर करती है। फहीम खान के घर को दंडात्मक तरीके से ध्वस्त करना जबकि राज्य सरकार हिंसा भड़काने वाले हिंदुत्व संगठनों की ओर से आंखें मूंद लेती है ऐसे पुलिस की एक स्पष्ट पक्षपात को दर्शाता है। मंत्रियों और सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं द्वारा न्यायेतर कार्रवाई का खुलेआम समर्थन करने वाले बयान इस विचार को और सामान्य बनाते हैं कि अल्पसंख्यकों से निपटने के दौरान कानून को दरकिनार किया जा सकता है।

अल्पसंख्यकों से संबंधित एक आरोपी के घर को ध्वस्त करने की यह विशेष घटना महाराष्ट्र में भाजपा द्वारा राज्य सरकार बनाने के बाद हुई पहली घटना नहीं है। 23 फरवरी (रविवार) को भारत-पाकिस्तान चैंपियंस ट्रॉफी मैच 2025 के दौरान विश्व हिंदू परिषद (VHP) के समर्थक एक स्थानीय राहगीर ने एक मुस्लिम स्क्रैप मेटल व्यापारी परिवार के 15 वर्षीय लड़के पर भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच के दौरान “भारत विरोधी” नारे लगाने का आरोप लगाया। यह घटना कथित तौर पर 23 फरवरी को रात 9:30 बजे के आसपास हुई। वराडकर अपने दोस्त के घर बाइक से जा रहा था और उसने दावा किया कि उसने लड़के और अन्य लोगों के समूह को "भारत विरोधी" नारे लगाते हुए सुना। बाद में उस शाम जब वह फिर से उस इलाके से गुजर रहा था तो सचिन वराडकर ने कथित तौर पर लड़के को साइकिल चलाते हुए देखा और उससे भिड़ने को सोचा। शुरू में जो मामूली असहमति लग रही थी, वह जल्दी ही बढ़ गई और कथित तौर पर वराडकर मामले को अधिकारियों के पास ले गया।

तीन दिन बाद ये स्थिति और भी नाजुक हो गई जब लड़के को पकड़ लिया गया और उसके माता-पिता को गिरफ्तार कर लिया गया तथा स्थानीय लोगों की शिकायतों के बाद उनकी कबाड़ की दुकान को ध्वस्त कर दिया गया। नागपुर की तरह ही, राज्य प्रायोजित अवैध कार्रवाई, पदावनत करने के नाम पर मुस्लिम आरोपियों के विरुद्ध कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना की गई थी। (मालवन विध्वंस पर डिटेल स्टोरी यहां पढ़ी जा सकती है।)

नागपुर हिंसा का व्यापक संदर्भ एक खतरनाक राज्य रणनीति को दर्शाता है: सांप्रदायिक तनाव का इस्तेमाल एक समुदाय के खिलाफ सख्त कानून लागू करने के बहाने के रूप में करना जबकि उकसाने वालों को जवाबदेही से बचाना। यह पैटर्न न केवल न्याय प्रणाली में विश्वास को खत्म करता है, बल्कि महाराष्ट्र और उसके बाहर सामाजिक विभाजन को भी गहरा करने में योगदान देता है।

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