क्या बलात्कार पर सजा-ए-मौत का कानून काफी है ?

Written by संजीव खुदशाह | Published on: April 27, 2018
कठुआ और उन्नाव में हुए गैंग रेप और उस पर देश भर की जनता के आक्रोश का असर यह पड़ा की केंद्र सरकार ने त्वरित कदम उठाते हुए 24 घंटे के भीतर ही रेप पर मौत की सजा के अध्यादेश को मंजूरी दे दी। सवाल यह है कि क्या कानून बन जाने से बलात्कार की घटनाओं में कमी आ जाएगी?

एनसीआरबी के मुताबिक भारत में महिलाओं के साथ बलात्कार के कुल 34651 मामले दर्ज हुए। इनमें से सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले मध्यप्रदेश (4391) में दर्ज हुए हैं। इसके बाद महाराष्ट्र (4144), राजस्थान (3644) और फिर उत्तरप्रदेश (3025) का स्थान आता है. ओडिशा में बलात्कार के 2251 मामले दर्ज हुए हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा वर्ष 2015 के लिए जारी आंकड़ों के मुताबिक, बेंगलुरु में यौन अपराध से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम (पॉक्सो) के अंतर्गत किसी अन्य शहर की तुलना में सर्वाधिक मामले दर्ज हुए। वर्ष 2015 में 273 मामले दर्ज किए गए थे। वर्ष 2015 में अपराध वर्ष 2014 की अपेक्षा 23% बढ़ गए हैं। 

प्रकृति ने महिला और पुरुष में यौन संबंध जैसा एक अलौकिक रिश्ता मुहैया कराया है। जिसके लिए प्रकृति का ऋणी होना चाहिए। लेकिन मनुष्य ने इसके उलट जानवरों को पीछे छोड़ते हुए यौन संबंध को बलात्कार के रूप में बदल दिया। यौन संबंध और बलात्कार में कुछ मूलभूत अंतर है। जैसे एक में प्यार है तो दूसरे में नफरत। एक में समर्पण है तो दूसरे में लूट। एक सम्माभन है तो दूसरे में घृणा।

आइए आगे की चर्चा से पहले जानते हैं कि बलात्कार दरअसल है क्या?
अक्सर यह माना जाता है कि सेक्स से पीड़ित व्यक्ति बलात्कार करता है। जबकि सच्चाई यह है कि बलात्कार का सेक्स से कोई संबंध है ही नहीं। यह बलात्कारी व्यक्ति के बीमार मानसिकता की पहचान है।

किसी महिला के साथ बलात्कार करने की कुछ खास मायने होते हैं जैसे-
1  उस महिला को जलील करना।
2 जिस जाति या समुदाय को नीचा दिखाना है। तो उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार करना नीचा दिखाने का सबसे अच्छा उपाय माना जाता है।
3 भारत में बलात्कार को एक जीत की तरह देखा जाता है। एक इनाम की तरह देखा जाता है। इसलिए जब कोई बीमार मानसिकता वाला व्यक्ति किसी महिला को या किसी लड़की को या किसी बुजुर्ग महिला को अकेला देखता है। तो उसे लगता है की उसके लिए एक इनाम है। और उसे उसे पाने के लिए या अपना अधिकार जताने के लिए सबसे अच्छा तरीका होता है। उसके साथ यौन संबंध बनाना। चाहे उसकी रजामंदी हो या ना हो।
4 बलात्कार कमजोर को और कमजोर किए जाने वाला प्रक्रिया है। आप देखिए जितने भी बलात्कार हुए हैं। वह वंचित वर्ग या अल्पसंख्यक वर्ग के साथ ही होते हैं।

बलात्कार एक सामाजिक समस्या है या धार्मिक समस्या
बहुत सारे लोग यह मानते हैं कि बलात्कार एक सामाजिक समस्या है। जबकि कम से कम भारत के लिए यह पूरा सच नही है। यदि आप बलात्कार को सामाजिक समस्या मान कर चलते हैं। तो आप इसका इलाज कभी भी नहीं नहीं कर पाएंगे। चाहे आप कितने कानून बना लीजिए। चाहे आप कितने भी सोशल अवेयरनेस की मुहिम चला लीजिए। इस समस्या से आप निजात नहीं पा सकते। मैं इसे समझाने के लिए आपको छोटा सा उदाहरण देता हूं।

पिछले दिनों आपने देखा है की आसाराम के ऊपर बलात्कार का आरोप है वह भी छोटी-छोटी बच्चियों से। उनके जेल में बंद रहने के दौरान इस केस के 9 गवाहो पर जान लेवा हमला तथा 3 गवाहों को मार दिया गया। बावजूद इसके आप देख सकते हैं, कि बड़ी संख्या में महिलाएं और पुरुष आसाराम के पक्ष में खड़े हुए हैं। उन्हेक अपना तन मन धन देने के लिए तैयार हैं। इसी प्रकार आप राम रहीम के बारे में भी देख सकते हैं कि बलात्कार जैसा संगीन आरोप होने के बावजूद बड़ी संख्या में महिलाएं उनके पक्ष में खड़ी है। उन्हें इन बाबाओं के ऊपर लगे रेप के आरोप , आरोप की तरह नहीं बल्कि किसी उपाधि की तरह लगते हैं।

अब प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों होता है? दरअसल भारत का धार्मिक ताना-बाना इस प्रकार बना हुआ है भारत के बहुत सारे जो धार्मिक नायक हैं। उनके ऊपर बलात्कार का आरोप है। पौराणिक नायीकाओं में रानी वृंदा हो या अहिल्या इन बलात्कार पीड़ित महिलाओं को धार्मिक ग्रंथों ने निरीह प्राणी बना दिया और बलात्कारियों को देवता। इसीलिए तो बलात्कामरियों को बचाने वाली महिलाएं कहती हैं कि भगवान ने भी तो वृंदा के साथ बलात्कार किया था तो वह तो हमारे देवता है। फिर बाबा हमारे अपराधिक कैसे हुए? कोर्ट से बलात्कारी साबित होने  के बावजूद भारत में कोई भी व्यक्ति को सामाजिक रुप से अपराधी होने का बोध नहीं हो पाता है। क्योंकि समाज में उसे एक विजेता के रूप में समझा जाता है। वहीं दूसरी ओर उस महिला को या उसके समुदाय को नीचे या बेइज्जत समझा जाता है। चाहे कानून कितना भी बन जाए लेकिन इस मानसिकता को बदले बिना समाज में सुधार की संभावना नहीं है।

इस विधेयक के पास होने के पहले भी IPC की धारा 376 में बलात्कार पर 7 साल की सजा का प्रावधान है। इस प्रावधान के बावजूद बलात्कार के प्रकरणों में कोई कमी नहीं आई है। मौत की सजा इस नए कानून में तय की गई है इससे भी लोगों में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि हमने अब तक इस समस्या के जड़ को नहीं पकड़ा है।

दूसरा एक सबसे बड़ा कारण इन घटनाओं के पीछे, भारत में बढ़ती सांप्रदायिक नफरत है। कुछ राजनीतिक साजिशों के कारण अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए चंद लोग युवाओं में सांप्रदायिक नफरत का बीज बो रहे हैं। उसका असर यह हो रहा है कि ऐसे जातिगत एवं सांप्रदायिक हत्याएं और बलात्कारों को बढ़ावा मिल रहा है। चाहे राज स्थान में एक दलित युवक शंभू रैगर के द्वारा दूसरे दलित मुसलमान की हत्या का मामला हो और उसके बाद एक खास विचारधारा और जातियों के द्वारा इस हत्या को बढ़ावा देना का मामला हो। ठीक उसी प्रकार कठुआ में आसिफा का साथ बलात्कार और बलात्कारियों को बचाने के लिए जय श्री राम तथा भारत माता की जय लगाने वाले खास तबके का मामला हो। इन दोनों मामले को यदि आप गौर से देखें। तो यह मामला सामाजिक कम धार्मिक समस्या से ज्यािदा ग्रसित दिखाई पड़ता है। 

याने जिस महिला का नायक कोई बलात्कारी होगा वह भला कैसे अपने बलात्कारी भाई का बहिष्कार कर पाएगी? बलात्कारी धार्मिक गुरु का तिरस्कार कर पाएगी? जब धर्म की किताबों में बलात्कारियों को महान बताया जायेगा तो उस धर्म के मानने वाले आखिर कैसे एक बलात्कारी को अपराधी मान सकते हैं? या उनका अनुकरण करने से बच सकते हैं। यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है इसका जवाब हमें ढूंढना होगा इसका इलाज संभव हो सकेगा।

भारत में बलात्कार की घटनाएं सिर्फ सेक्स के लिए नहीं होती है इन घटनाओं के पीछे मैंने चार मकसद आपको गिनाए हैं। आंकड़े बताते है कि दामिनी से लेकर आसिफा तक ज्यादातर बलात्कार पिछड़े वर्ग दलित आदिवासी और अल्पसंख्यकों की महिलाओं के साथ हो रहे हैं।

इसका इलाज तभी संभव है जब हम गलत को गलत और सही को सही कह सके चाहे वह धार्मिक नायक हो या धर्म गुरू।। धर्म उसे नायक और कानून उसे अपराधी माने इस पहेली को सुलझाना होगा।

(संजीव खुदशाह प्रगतिशील विचारक, कवि, कथाकार, समीक्षक, आलोचक एवं पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं। संपर्क sanjeevkhudshah@gmail.com)

बाकी ख़बरें