छठी एयरलाइंस कंपनी पर ताला, हकीकत पर लगा सपनों का मकड़जाल!

Written by manish tiwari | Published on: April 19, 2019
करीब दो साल पहले मोदी ने सपना बेचा था कि "जो व्यक्ति हवाई चप्पल पहनकर घूमता है, वह हवाई जहाज में दिखना चाहिए" (विडियो व लिंक कमेंट बॉक्स में) ... लेकिन, हकीकत इस सपने के एकदम उलट निकली। जो एयरलाइंस कंपनियां चल रही थीं, सस्ते दामों पर यात्रा करवा रही थीं, एक-एक कर बंद होने लगी हैं।

किंगफिशर एयरलाइंस बंद हो चुकी है। देश की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी निजी एयरलाइंस कंपनी जेट भी करीब बंद ही हो गई। एयर पेगसस, एयर कोस्टा, एयर कार्निवल और जूम एयर यह चारों एयरलाइंस इससे पहले ही बंद हो चुकी हैं। भारी घाटे में चल रही सरकारी एयर इंडिया पर किसी भी दिन ताला लग सकता है, या फिर वह भी बिक जाएगी। अपने हजारों कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दे पा रही है। 55 हजार करोड़ रुपए के कर्ज में डूबी एयर इंडिया का ऐसा हाल हो गया है कि उसकी 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद एक साल से एक भी खरीददार नहीं मिल रहा है। एक और एयरलाइंस कंपनी स्पाइसजेट भी अरबों रुपए के घाटे में चल रही है और विमानों का रखरखाव तक नहीं कर पा रही है। यात्रियों को टूटी हुई सीटों पर सफर करना पड़ रहा है। सबसे सस्ती हवाई यात्रा कराने वाली इंडिगो की हालत भी ठीक नहीं है और जून की तिमाही में उसे 96.6 फीसदी घाटा उठाना पड़ा है।

पायलट और एयर होस्टेस बनना ऐसा ड्रीम जॉब हुआ करता था कि जाने कितने टीवी सीरियल और फिल्म इस करियर पर फोकस करते हुए बने। विज्ञापनों में तो एयर होस्टेस, पायलट की जॉब से ज्यादा शायद ही कोई दूसरा करियर भुनाया गया हो। इस सबसे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि किसी समय यह क्षेत्र कितना सफल और लोकप्रिय हुआ करता था। तमाम सेलेब्रिटीज का करियर ही एयर होस्टेस के तौर पर शुरू हुआ। लेकिन, आज यह सारी हकीकत पलट चुकी है। सबकुछ सपना सा हो गया है। आज जेट एयरवेज के 20 हजार कर्मचारियों की नौकरी एक झटके में चली गई। उन्हें दूसरी नौकरी मिल नहीं रही है। कुछ जो खुशकिस्मत हैं, उन्हें आधे वेतन में मजदूरी करने के ऑफर मिलने की खबरें आ रही हैं। जिस समय प्रधानमंत्री घूम-घूम कर "हवाई चप्पल वालों को हवाई यात्रा कराने" का जुमला उछाल रहे थे, उस समय जेट के कर्मचारी वेतन के लिए जूझ रहे थे। करीब एक साल से उन्हें समय पर और पूरा वेतन नहीं मिल पा रहा था। बीते तीन-चार महीनों में हालात बेकाबू हो गये। बिना वेतन के कर्मचारी अपने बच्चों का इलाज तक नहीं करा सके और उन्हें मरते हुए देखने को मजबूर हो गए।

यह हाल सिर्फ जेट एयरवेज के कर्मचारियों का नहीं है। इस क्षेत्र में कामकाज की स्थितियां बदतर हो गई हैं। अधिकतर कंपनियां घाटे में चल रही हैं। समय पर वेतन नहीं दे पा रही हैं। काम के घंटे लगातार बढ़ते जा रहे हैं। उन्हें बिना छुट्टी के 24 घंटे काम करना पड़ रहा है। बिना वजह नोटिस देने और वेतन काटने की शिकायतें आम हो गई हैं। इस सबका असर उनकी सेहत पर पड़ रहा है। वह तनाव के शिकार हो रहे हैं। काम के बोझ तले दबे कर्मचारियों पर भारी दबाव है। जिसकी वजह से यात्रियों की सुरक्षा भी दांव पर लगी हुई है। इंडियन कामर्शियल पायलट एसोसिएशन (आइसीपीए), उड्डयन महानिदेशक (डीजीसीए) को लगातार इस बारे में चेताती रही है। यहां तक कि खुद डीजीसीए ने भी इसे यात्रियों की सुरक्षा के लिए खतरा माना है। इसके बावजूद कोई कदम नहीं उठाए गए। दुनिया भर में ऐसे हालात की वजह से विमान हादसों की रिपोर्ट आती रही है। यहां तक कि एयर इंडिया सहित अन्य एयरलाइंस के पायलट शिकायत करते रहे हैं कि ऐसी परिस्थितियों के चलते वह भारी निराशा व तनाव से गुजर रहे हैं और इससे उड़ान की सुरक्षा पर संकट मंडरा रहा है।

2016 में एयर सेफ्टी नियमों के उल्लंघन के 422 मामले सामने आए थे। नियमों के उल्लंघन के मामलों में 42 पायलट हटाए गए और 272 क्रू मेंबर सस्पेंड किए गए। जबकि 108 क्रू मेंबर को चेतावनी देकर छोड़ा गया। डीजीसीए की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में जेट एयरवेज ने 116 बार, स्पाइसजेट ने 101 बार, एयर इंडिया ने 61 बार जबकि इंडिगो ने 55 बार नियमों का उल्लंघन किया था। हाल के समय में इन आंकड़ों के और बढ़ने की संभावना है।

सरकार भले ही लगातार "उड़ान" जैसी लोकलुभावन योजनाओं के जरिए सस्ती यात्रा कराने का प्रयास कर रही है, लेकिन हकीकत यह है कि किराए में लगातार बढ़ोतरी जारी है। पिछले चार साल से मैं फ्रीक्वेंट सफर करता रहा हूं, लेकिन इधर एक साल के दौरान सभी एयरलाइंस कंपनियों के टिकट के रेट लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसकी सबसे प्रमुख वजहें हैं :- तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में गिरावट। एविएशन इंडस्ट्री इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। विमान में इस्तेमाल होने वाले एविएशन टरबाइन फ्यूल एविएशन इंडस्ट्री का सबसे बड़ा खर्च है। बीते साल कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और रुपए में गिरावट ने एयरलाइंस को दोहरा झटका दिया। ऐसे में सरकार हवाई किले बनाने में जुटी रही, लेकिन संकट में घिरी एविएशन इंडस्ट्री को सहारा देने के लिए कोई ठोस नीति, कोई योजना नहीं बनाई गई, जो उसे राहत पहुंचा सकती। रुपए के लगातार कमजोर होने से कंपनियों को विमानों के रखरखाव, कलपुर्जों पर ज्यादा खर्च करना पड़ा, जो विदेशों से आते हैं। ऐसे में कंपनियों की हालत पतली होनी ही थी।

अब "उड़ान" की बात की है, तो उसका हश्र भी किसी से छिपा नहीं है। हवाई अड्डों के निर्माण पर सरकार ने तो झूठे आंकड़े व दावे किए ही, जो हवाई अड्डे बन भी रहे हैं, वहां सुरक्षा मानकों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। यहां पर इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम, मार्किंग, एयर टावर कंट्रोल या रनवे लाइट जैसी सुविधाओं का संकट बना हुआ है। कुछ जगहों पर रनवे तक मानकों के अनुरूप नहीं हैं और पेड़, खंभे जैसी खतरनाक साबित होने वाली बाधाओं पर भी लापरवाही बरती जा रही है।

तमाम दूसरे सेक्टर्स की तरह एविएशन इंडस्ट्री भी बर्बाद हो चुकी है। वहीं, सरकार की चीजों को गोपनीय बनाए रखने की तमाम कोशिशों के बावजूद उसके विकास के दावों की कलई खुलने लगी है। साढ़े चार साल बीतते-बीतते घोटाले से लेकर विकास के नाम पर झूठ के पुलिंदे जनता के सामने आने लगे हैं। हालात यह हो गए हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री से लेकर पार्टी के प्रवक्ता तक पांच साल के कामकाज के नाम पर वोट मांगने की जगह फिर से जाति, धर्म और पाकिस्तान का रोना लेकर बैठे दिखाई दे रहे हैं।

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