ओडिशा: अडानी की कोयला खान के लिए काट दिए गए 40 हजार पेड़

Written by sabrang india | Published on: December 12, 2019
नई दिल्ली: कोयला खदान के लिए रास्ता बनाने के लिए 9 दिसंबर, 2019 को ओडिशा के संबलपुर जिले के तालाबीरा गांव में लगभग 40,000 पेड़ काट दिए गए हैं। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इसी वर्ष 28 मार्च को एक ओपन कास्ट कोयला खनन परियोजना के लिए 1,038।187 हेक्टेयर वन भूमि देने की सहमति दी थी।



डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के मुताबिक झारसुगुड़ा और संबलपुर जिलों में नेयवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन (एनएलसी) इंडिया लिमिटेड द्वारा परियोजना का संचालन किया जा रहा है। संबलपुर के मुख्य वन संरक्षक की साइट निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार, इसके लिए 1,30,721 पेड़ों की कटाई होगी।

एनएलसी ने 2018 में अडानी ग्रुप के साथ माइन डेवलपमेंट और ऑपरेटर कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था। जिस क्षेत्र को कोयला खदान के लिए दे दिया गया है, वहां के जंगल की रक्षा और संरक्षण तालाबीरा गांव के वनवासियों द्वारा किया जाता है। गांव के निवासियों ने तालाबीरा ग्राम्य जंगल समिति नामक एक संगठन बनाया है। उन्होंने यहां तक कि एक गार्ड की नियुक्ति की है, जिसे वे जंगल की रक्षा के बदले प्रति परिवार तीन किलोग्राम चावल का भुगतान करते हैं।

खिन्दा खेड़ा के निवासी हेमंत कुमार राउत ने कहा, ‘हमने 50 से अधिक वर्षों से इस जंगल की रक्षा की है। इस जंगल पर लगभग 3,000 लोग निर्भर हैं, जो लगभग 970 हेक्टेयर क्षेत्र में है। अब इन पेड़ों को सरकार कोयले के लिए काट रही है।’ ग्रामीणों ने भले ही वर्षों से जंगल की रक्षा की हो लेकिन उन्होंने वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) 2006 के तहत इस पर अपना मालिकाना हक दर्ज नहीं कराया है।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए राउत ने कहा, हमने सोचा कि यह हमारा जंगल है और कोई भी इसे हमसे नहीं ले सकता। हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारे जंगल को छीन लिया जा सकता है। इसलिए, हमने एफआरए के तहत अधिकारों के लिए कभी आवेदन नहीं किया।’ हालांकि वन अधिकार अधिनियम नियम, 2012 में ये प्रावधान है कि स्थानीय अधिकारियों को इन एक्ट के नियमों के बारे में लोगों को जागरूक करना होता है ताकि वे अपना दावा दायर कर सकें।

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की वरिष्ठ शोधकर्ता कांची कोहली ने कहा, ‘एफआरए नियमों, 2012 के तहत संबंधित अधिकारी को अधिनियम और इसके प्रावधानों के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहिए। यह तब और महत्वपूर्ण हो जाता है जब कोई दावा दायर नहीं किया जाता है।’

 

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