फैक्ट्री में तो बनीं लेकिन चुनाव आयोग तक नहीं पहुंचीं 20 लाख EVM: फ्रंटलाइन की रिपोर्ट

Written by sabrang india | Published on: May 30, 2019
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) को लेकर एक चौंकाने वाली खबर आई। ‘द हिंदू’ ग्रुप की इंग्लिश न्यूज मैग्जीन ‘फ्रंटलाइन’ में छपी वेंकटेश रामकृष्णन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फैक्ट्री से बनने के बाद 20 लाख ईवीएम गायब हो गईं। ये ईवीएम चुनाव आयोग तक पहुंची ही नहीं। ऐसे में चुनाव के नतीजों में माना जा रहा था कि गायब हुई ईवीएम मशीनों को चुनाव में प्रयुक्त मशीनों से बदला जा सकता है। फैक्ट्रियों से बनने के बाद ये वोटिंग मशीन कहां भेजी गई हैं, इस बारे में फिलहाल कुछ पता नहीं चल रहा है। हालांकि अब मामला कोर्ट पहुंच चुका है। 

ऐसे हुआ खुलासा
मुंबई के एक आरटीआई एक्टिविस्ट मनोरंजन रॉय ने करीब 13 महीने पहले 27 मार्च, 2018 को बॉम्बे हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने चुनाव आयोग से ये जानना चाहा था कि उसने कितनी EVM और VVPAT मशीनें खरीदी हैं। और इनको कहां रखा गया है। याचिका में केंद्रीय गृह मंत्रालय, ईवीएम बनाने वाली दो कंपनियों, इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) हैदराबाद और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) बेंगलुरु को भी नोटिस जारी करने की मांग की गई।

असल में, मनोरंजन रॉय ने आरटीआई के जरिए पहले ही कुछ आंकड़े जुटाए हैं। इनमें निर्माता कंपनियों ने चुनाव आयोग को भेजी गई ईवीएम का आंकड़ा अलग बताया है। दूसरी ओर, चुनाव आयोग ने निर्माता कंपनियों की ओर से मिलने वाली ईवीएम का आंकड़ा दूसरा बताया है। इस भ्रम की वजह से ही मनोरंजन रॉय ने बॉम्बे हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल की है।

फ्रंटलाइन के मुताबिक आरटीआई के जवाब में मनोरंजन रॉय को चुनाव आयोग और कंपनियों ने अलग-अलग जानकारी दी है। चुनाव आयोग ने 21 जून, 2017 को बताया कि उसने 1989-90 और 2014-15 के बीच BEL से 10,05,662 EVM प्राप्त की हैं। इसी तरह साल 1989-90 और 2016-17 के बीच ECIL से चुनाव आयोग को 10,14,644 EVM मिलीं।

एक दूसरी, आरटीआई के जवाब में BEL ने बताया कि उसने 1989-90 और 2014-15 के बीच चुनाव आयोग को कुल 19,69,932 की सप्लाई की है। और ECIL ने बताया कि उसने चुनाव आयोग को 19,44,593 ईवीएम की आपूर्ति की है।

फ्रंटलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक इन करीब 15 सालों के दौरान चुनाव आयोग को BEL से 9,64,270 EVM और ECIL से 9,29,949 EVM प्राप्त ही नहीं हुई हैं। मतलब ये है कि इन कंपनियों ने वोटिंग मशीन बनाई तो मगर उनको सप्लाई कहां किया, इसकी जानकारी नहीं है। ये पता नहीं चल रहा है कि ये ईवीएम कहां जा रही हैं।

फ्रंटलाइन के मुताबिक चुनाव आयोग की ओर से इस कंपनियों को किए गए भुगतान में भी गड़बड़ी नजर आ रही है। चुनाव आयोग ने 2006-07 से 2016-17 के बीच BEL 536,01,75,485 रुपए का भुगतान किया। वहीं, BEL ने बताया कि इस अवधि के दौरान उसे चुनाव आयोग से 652,56,44,000 रुपए मिले हैं। इस तरह देखा जाए तो चुनाव आयोग ने BEL को 116।55 करोड़ रुपए का ज्यादा भुगतान किया है।

अब ये सवाल अहम हो गया है कि लातपा वोटिंग मशीनें कहां हैं? BEL और ECIL ने जो एक्स्ट्रा EVM सप्लाई की हैं, वो कहां चली गईं? और जो BEL को ज्यादा भुगतान किया गया है, इसकी क्या सच्चाई है? मनोरंजन रॉय ने फ्रंटलाइन को बताया कि इन सब सवालों का जवाब पता लगाने के लिए ही PIL दाखिल की गई है। वैसे एक तथ्य ये भी है कि चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोगों के पास EVM को सुरक्षित रखने का कोई इंतजाम नहीं किया है। चुनाव निपट जाने के बाद ये ईवीएम कहां रखी जाती हैं, इसका कोई स्थाई व्यवस्था इनके पास नहीं है। यही नहीं कुछ खराब EVM को नष्ट भी कर दिया जाता है। जाहिर है इन सबका खुलासा अदालत के जरिए ही किया जा सकता है।

21 विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनाव नतीजों के वक्त 50 फीसदी EVM के आंकड़ों को VVPAT मशीनों से मिलाने की मांग की थी। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी की थी। मगर इसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। हालांकि यह मामला मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बैंच में चल रहा है।

ग्वालियर में इस संबध एक जनहित याचिका दायर कर दी गई थी। जिस पर 27 मई को कोर्ट में सुनवाई हुई। साथ ही हाईकोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला रिजर्व कर लिया है। दरअसल जनहित में कहा गया है कि ईवीएम मशीनें गायब होने के मामले में मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ फौजदारी यानि की आपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाएं। साथ ही ईवीएम की राशि वसूली जाएं।और पूरे घटनाक्रम की जांच सीबीआई से कराई जाएं।

इस संबधं में 22 मई को हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में एक जनहित याचिका सीनियर एडवोकेट उमेश बोहरे ने कई आहम दस्तावेजों के साथ जनहित पेश की थी।उमेश बोहरे ने इस याचिका में मुख्य चुनाव आयुक्त सहित 14 लोगों को बनाया पार्टी है। जिसमें निर्वाचन आधिकारी, कलेक्टर ग्वालियर, कलेक्टर मुरैना, कलेक्टर भिंड, कलेक्टर गुना को भी बनाया पार्टी है। याचिका में कहा गया है कि गायब हुई ईवीएम का उपयोग देश के अलग-अलग हिस्सों के साथ- साथ ग्वालियर चंबल संभाग में लोकसभा चुनाव में किया गया है। 

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