मोदी सरकार के बिजली और स्वास्थ्य-परिवार कल्याण मंत्रालयों के 26000 करोड़ रुपये के अनुदानों के लाभार्थियों का कोई ब्योरा उपलब्ध नहीं – सीएजी
मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के लिए आफत बना सीएजी (भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) ने एक और धमाका किया है। इस बार निशाने पर मोदी सरकार है। लेकिन क्या इस मोदी सरकार के इन मंत्रालयों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा और उनसे जवाब मांगा जाएगा।
सीएजी की जांच में दो केंद्रीय मंत्रालय- बिजली और स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय दोषी पाए गए हैं। इन दोनों मंत्रालयों ने पिछले तीन साल में 26000 करोड़ रुपये के अनुदान जारी किए लेकिन जांच से पता चला कि इस अनुदान के लाभार्थियों का कोई रिकार्ड नहीं है।
पीयूष गोयल बिजली मंत्री हैं और डॉ. हर्षवर्धन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री। लिहाजा इस कथित गड़बड़ी के लिए दोनों ही जिम्मेदार ठहराए जाने चाहिए। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संसद का शीतकालीन सत्र शुरू भी हुआ और खत्म भी हो गया। लेकिन इस पर कोई चर्चा नहीं हो सकी।
दो अहम सवाल
इस पूरे मामले से दो सवाल पैदा होते हैं।
क्या मंत्रालयों के फंड को किसी दूसरे उद्देश्य के लिए डायवर्ट किया जा रहा है।
अगर ऐसा है तो सीएजी की ओर से दूसरे मंत्रालयों की समीक्षा करने पर कितनी बड़ी अनियमितताएं सामने आ सकती हैं।
क्या पीएम के साथ यात्रा करने वाले दिग्गजों की ओर से चलाए जा रहे देश के कॉमर्शियल चैनलों में हिम्मत है कि वे इस खबर को प्राइम टाइम के न्यूज आवर शो में चलाएं। कॉमनवेल्थ स्कैम से लेकर 2जी स्कैम जैसे घोटालों को उजागर कर यूपीए-2 सरकार को गिराने में बढ़-चढ़ कर भूमिका निभाने वाला मीडिया इस स्कैम पर चुप है। सिर्फ न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने मोदी सरकार के मंत्रालय के इस ‘घोटाले की स्टोरी’ छापी है।
मंत्रालयों की ओर से जारी किए गए अनुदानों के मामलों में किसी समझौते पत्र पर हस्ताक्षर नहीं हुए। मंत्रालयों की ओर से जिन कायदे-कानूनों का पालन किया जाना था उनका उल्लंघन हुआ। कुछ अनुदान पूंजीगत परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए दिए गए हैं। केंद्र सरकार के वित्तीय और अकाउंट मामलों पर सीएजी ने अपनी ताजा रिपोर्ट में सवाल किया है कि क्या इन अनुदानों को मकसद पूरा हुआ भी है? सीएजी ने धांधली और फंड के दुरुपयोग की आशंका से इनकार नहीं किया है।
अपनी वार्षिक कवायद के तहत सीएजी ने अनुदान जारी करने और इसकी मॉनिटरिंग मैकेनिज्म की समीक्षा की। इसके अलावा दोनों मंत्रालय, यानी बिजली और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में हुए खर्च के प्रभाव और गुणवत्ता की भी समीक्षा की गई।
सीएजी की समीक्षा में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2014 और वित्त वर्ष 2016 में अलग-अलग करोड़ों के अनुदान जारी किए लेकिन इनका कोई केंद्रीकृत रिकार्ड नहीं है। न तो अनुदान पाने वाले का कोई नाम दर्ज है और न ही उनका विवरण। न ही तैयार परिसंपत्ति का कोई ब्योरा दिया गया है। जिस अनुदान का इस्तेमाल हुआ है उसकी राशि का विवरण नहीं है। परिसंपत्ति के मालिकाना हक का ब्योरा नहीं है और इसका कोई रिकार्ड दर्ज नहीं है।
अनुदान और सहायता के मद में भुगतान सरकार की ओर से विभिन्न एजेंसियों, निकायों संस्थानों या किसी व्यक्ति को परिचालन खर्चों, पूंजीगत परिसंपत्ति के निर्माण और सेवाओं की डिलीवरी के लिए किया जाता है। सामान्य वित्तीय नियम 2005 के मुताबिक पांच करोड़ से ऊपर के अनुदान के मामले में समझौते पर दस्तख्त होने चाहिए। इसमें परिणाम लक्ष्य, कार्यक्रम के विवरण और संबंधित इनपुट का ब्योरा होना चाहिए।
लेकिन न सिर्फ स्वास्थ्य मंत्रालय ने इन नियमों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया बल्कि बिजली मंत्रालय ने तो सीएजी के जांच के लिए कोई केंद्रीकृत रिकार्ड ही मुहैया नहीं कराया।
नियमों को इस खुल्लमखुल्ला उल्लंघन के लिए कौन जिम्मेदार है?