माननीय श्री सभापति/ श्री उपसभापति
राज्य सभा
आदरणीय उपराष्ट्रपति जी और उपसभापति जी, आप राज्य सभा, जिसे उच्च सदन कहते हैं, के सभापति हैं। आपके सदन के सदस्य मुबशिर जावेद अकबर पर सोलह महिला पत्रकारों ने यौन उत्पीड़न और प्रताड़ना के आरोप लगाए हैं। उनके साथ दि एशियन एज की बीस महिला पत्रकारों ने अदालत में गवाही देने की बात कही है। अकबर के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप बेहद गंभीर हैं। ऐसा कब हुआ है कि सोलह महिला पत्रकारों ने एक पूर्व संपादक पर क़रीब क़रीब एक ही क़िस्म के आरोप लगाए हैं। वो संपादक अब आपके सदन का सदस्य है। उन्हें मध्य प्रदेश की जनता के अप्रत्यक्ष वोट से सदन में भेजा गया है।
हम समझते हैं कि देश में क़ानून की अपनी प्रक्रिया है। मगर मी टू अभियान बिल्कुल नई बात है। अगर यह अभियान न होता तो अलग अलग शहरों और आर्थिक परिवेश से आईं सोलह महिलाएँ कभी अकबर के ख़िलाफ़ नहीं बोल पातीं। भारत सरकार की मंत्री मेनका गांधी ने भी पूर्व जजों की कमेटी बनाकर जनसुनवाई की बात कही थी। आप हम उससे असहमत हो सकते हैं लेकिन आप मानेंगे कि मी टू के तहत लगाए गए पुराने आरोपों पर नई प्रक्रिया और प्रतिक्रिया की ज़रूरत है।
आप अपने सदन के सदस्य के ऊपर लगाए गए आरोपों पर क्या क़दम उठाने वाले हैं? क्या आप कमेटी बनाएँगे? क्या आप सदन के सदस्यों के लिए कार्यशाला का आयोजन करेंगे जिसमें बताया जाए कि एक औरत के साथ सांसदों को कैसे बर्ताव करना चाहिए। किसी महिला की ‘ना’ का मतलब क्या होता है? यौन उत्पीड़न क्या होता है? क्या राज्य सभा में सुप्रीम कोर्ट की विशाखा गाइडलाइन के अनुसार कोई कमेटी है? नहीं है तो क्यों नहीं है?
मैं यह सार्वजनिक पत्र इसलिए लिख रहा हूँ ताकि आप जवाब सार्वजनिक रूप से दें। जिससे जनता में भरोसा हो कि भारत की संसदीय प्रणाली के उच्च सदन में कोई ऐसा सदस्य न आ जाए जिस पर सोलह महिला पत्रकार अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के आरोप लगाएँ। हम आरोप को आरोप समझते हैं मगर सदन के हेडमास्टर होने के नाते इस प्रकरण में आपकी क्या भूमिका है? क्या आप पार्टियों को लिखेंगे कि किसी को राज्य सभा की सदस्यता देते समय ठीक से पड़ताल करें। क्या आप सभी सदस्यों को पत्र लिखेंगे कि महिला सदस्यों और महिलाओं के साथ क्या आचरण होना चाहिए?
आप दोनों से जनता को बहुत उम्मीदें हैं। आपके जवाब का इंतज़ार है। हो सकता है कि संसदीय परंपरा के तहत मेरे सवालों के जवाब न हों। मगर मैं आग्रह करता हूँ कि आप जवाब दें। जवाब देने की कोशिश करें। यक़ीन जानें एक नई परंपरा बनेगी। वो शानदार परंपरा होगी।
आपका
रवीश कुमार
पत्रकार
17.10.2018
राज्य सभा
आदरणीय उपराष्ट्रपति जी और उपसभापति जी, आप राज्य सभा, जिसे उच्च सदन कहते हैं, के सभापति हैं। आपके सदन के सदस्य मुबशिर जावेद अकबर पर सोलह महिला पत्रकारों ने यौन उत्पीड़न और प्रताड़ना के आरोप लगाए हैं। उनके साथ दि एशियन एज की बीस महिला पत्रकारों ने अदालत में गवाही देने की बात कही है। अकबर के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप बेहद गंभीर हैं। ऐसा कब हुआ है कि सोलह महिला पत्रकारों ने एक पूर्व संपादक पर क़रीब क़रीब एक ही क़िस्म के आरोप लगाए हैं। वो संपादक अब आपके सदन का सदस्य है। उन्हें मध्य प्रदेश की जनता के अप्रत्यक्ष वोट से सदन में भेजा गया है।
हम समझते हैं कि देश में क़ानून की अपनी प्रक्रिया है। मगर मी टू अभियान बिल्कुल नई बात है। अगर यह अभियान न होता तो अलग अलग शहरों और आर्थिक परिवेश से आईं सोलह महिलाएँ कभी अकबर के ख़िलाफ़ नहीं बोल पातीं। भारत सरकार की मंत्री मेनका गांधी ने भी पूर्व जजों की कमेटी बनाकर जनसुनवाई की बात कही थी। आप हम उससे असहमत हो सकते हैं लेकिन आप मानेंगे कि मी टू के तहत लगाए गए पुराने आरोपों पर नई प्रक्रिया और प्रतिक्रिया की ज़रूरत है।
आप अपने सदन के सदस्य के ऊपर लगाए गए आरोपों पर क्या क़दम उठाने वाले हैं? क्या आप कमेटी बनाएँगे? क्या आप सदन के सदस्यों के लिए कार्यशाला का आयोजन करेंगे जिसमें बताया जाए कि एक औरत के साथ सांसदों को कैसे बर्ताव करना चाहिए। किसी महिला की ‘ना’ का मतलब क्या होता है? यौन उत्पीड़न क्या होता है? क्या राज्य सभा में सुप्रीम कोर्ट की विशाखा गाइडलाइन के अनुसार कोई कमेटी है? नहीं है तो क्यों नहीं है?
मैं यह सार्वजनिक पत्र इसलिए लिख रहा हूँ ताकि आप जवाब सार्वजनिक रूप से दें। जिससे जनता में भरोसा हो कि भारत की संसदीय प्रणाली के उच्च सदन में कोई ऐसा सदस्य न आ जाए जिस पर सोलह महिला पत्रकार अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के आरोप लगाएँ। हम आरोप को आरोप समझते हैं मगर सदन के हेडमास्टर होने के नाते इस प्रकरण में आपकी क्या भूमिका है? क्या आप पार्टियों को लिखेंगे कि किसी को राज्य सभा की सदस्यता देते समय ठीक से पड़ताल करें। क्या आप सभी सदस्यों को पत्र लिखेंगे कि महिला सदस्यों और महिलाओं के साथ क्या आचरण होना चाहिए?
आप दोनों से जनता को बहुत उम्मीदें हैं। आपके जवाब का इंतज़ार है। हो सकता है कि संसदीय परंपरा के तहत मेरे सवालों के जवाब न हों। मगर मैं आग्रह करता हूँ कि आप जवाब दें। जवाब देने की कोशिश करें। यक़ीन जानें एक नई परंपरा बनेगी। वो शानदार परंपरा होगी।
आपका
रवीश कुमार
पत्रकार
17.10.2018