प्रधानमन्त्री की जगदलपुर में आमसभा: मुद्दों पर नहीं की बात, अर्बन नक्सल का ढोल पीटते रहे
ऐसा क्यों होता है कि देश के प्रधानमन्त्री, हमेशा किसी पार्टी प्रमुख की तरह बात करते हैं. छत्तीसगढ़ चुनाव के पहले चरण में अपनी पार्टी के लिए प्रचार करने आए हमारे देश के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी शुक्रवार को जगदलपुर में आम सभा में शामिल हुए.
अपने पूरे भाषण में उन्होंने छत्तीसगढ़ की असल समस्याओं पर कुछ ठोस बात की ही नहीं. वो पूरे समय कांग्रेस को गरियाते रहे. मोदी हर उस संगठन के ख़िलाफ़ ज़हर उगलते रहे जो उनकी सरकार पर ज़रा भी सवाल उठाता है. अर्बन नक्सल का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि शहरों के बड़े-बड़े, साफ़ सुथरे, एयरकंडीशन घरों में रहने वाले बुद्धिजीवी लोगों के हाथों में माओवादियों को चलाने का रिमोट है. उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वो माओवादियों का समर्थन करती है इसलिए उन्हें यहां से निकाल देना चाहिए. अपने पूरे भाषण में प्रधानमंत्री जी ने एक लाईन भी इस बारे में नहीं कही कि छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की बुनियादी ज़रूरते पूरी करने में भाजपा सरकार 15 साल के शासनकाल में भी नाकाम क्यों है. चलिए मान लेते हैं कि अपनी ख़ामियों पर चर्चा करने जितना कलेजा नहीं है, तो कम से कम इतना ही बता देते कि जिन गांवों में अब तक विकास कार्य नहीं हुए हैं वहां तक विकास को पहुचाने का क्या वर्क प्लान तैयार है. पर ऐसी कोई बात नहीं की उन्होंने, बड़ी-बड़ी डींगें हांकने में ही पूरा समय गुज़ार दिया.
क्या इतनी सी बात प्रधानमन्त्री जी को मालूम नहीं है?
पिछले कुछ समय से भाजपा और आरएसएस के लगभग सभी बड़े नेताओं के भाषणों में बेहिसाब एरोगेन्स झलकता है. नियम-कानून, संविधान, अदालत को तो जैसे ये मानते ही न हों. पिछले दिनों आरएसएस के एक पदाधिकारी ने प्रेस वार्ता करते हुए सुप्रीम कोर्ट को नसीहत दी थी. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी अपने एक भाषण में अदालत की सीमा तय करते नज़र आए थे. सारी घटनाएं लिखेंगे तो फ़ेहरिस्त लम्बी हो जाएगी. जगदलपुर आमसभा में बोलते हुए प्रधानमन्त्री जी ने भी कुछ इसी लहज़े में बात की.
सरकार की गोद में बैठे करने वाले एक टीवी चैनल ने, इस शब्द अर्बन नक्सल का प्रयोग करते हुए छत्तीसगढ़ की वरिष्ठ वकील सुधा भारद्वाज के ख़िलाफ़ एक कार्यक्रम चलाया था. जिसके बाद महाराष्ट्र पुलिस ने देशभर से 10 लोगों (जो सामाजिक क्षेत्र में ग़रीबों, वंचितों, शोषितों, दलितों, आदिवासियों आदि के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे थे) को गिरफ़्तार किया, और इन सभी को अर्बन नक्सल और माओवादी कहना शुरू कर दिया. सरकार की हां में हां मिलाने वाली मीडिया भी अर्बन नक्सल का राग आलापने लगा. मामला फ़िलहाल कोर्ट में विचाराधीन है. यानि कि इन सभी पर पुलिस ने जो आरोप लगाए हैं वो अब तक सिद्ध नहीं हुए हैं. और जब तक किसी पर कोई आरोप सिद्ध नहीं हो जाता तब ता वो व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में दोषी नहीं कहा जा सकता. क्या इतनी सी बात हमारे देश के प्रधानमन्त्री को मालूम नहीं है? या जानबूझकर अर्बन नक्सल का शिगूफ़ा छोड़ा जा रहा है?
अर्बन नक्सल का हल्ला मचाकर क्या छुपान चाहती है सरकार ?
छत्तीसगढ़ की रमन सरकार पिछले 15 वर्षों के अपने कार्यकाल में जनता की भलाई या जनता का विकास करने में नाकाम साबित हुई है. भाजपा सरकार के बीते 15 वर्षों में छत्तीसगढ़ में कार्पोरेट लूट, आदिवासियों को फ़ेक एनकाउन्टर में मारने की घटनाएं, आदिवासि महिलाओं के साथ सुरक्षाबलों द्वारा बलात्कार करने की घटनाएं, सरकार की नीतियों पर प्रश्न करने पत्रकारों को फ़र्ज़ी मामलों में जेल भेजने की घटनाएँ, सामाजिक कार्यकर्ताओं को डराने धमकाने और उनके साथ पुलिस अधिकारियों द्वारा बदसुलूकी करने की घटनाएँ बेतहाशा बढ़ी है.
प्रधानमत्री के दौरे से एक दिन पहले ही सबरंग ने अपनी ख़बर में ये बताया था कि कैसे छत्तीसगढ़ के कई गांव अब भी विकास से अछूते हैं, उस इलाके का भी ज़िक्र किया था जहां के लोग न प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी को जानते हैं, न मुख्यमंत्री रमन सिंह को जानते हैं और न अपने स्थानीय नेता को ही जानते हैं. ये छत्तीसगढ़ के वो इलाके हैं जहां आज तक न सड़क बनी हैं, न पानी गया है और न गाँव वालों ने कभी बिजली का उपयोग किया है. क्या अर्बन के बहाने अपनी इस नाकामयाबी पर पर्दा डालना चाहती है सरकार?
वोट मांगने से पहले प्रधानमंत्री जी को ये बताना चाहिए था
एक ज़िम्मेदार नेता और देश का प्रधानमन्त्री होने के नाते, नरेन्द्र मोदी जी को अपने चुनावी भाषण में इन सारे गंभीर मुद्दों पर बात करनी चाहिए थी. वोट मांगने से पहले प्रधानमंत्री जी को बताना चाहिए था कि स्वर्ग की तरह सुन्दर छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों का रहवासी, मौत के डर से कब आज़ाद होगा.
बस्तर क्षेत्र से ग़ायब हुईं 30000 लड़कियों का अब तक कोई पता क्यों नहीं चल पाया है? इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है? सरकार दोशियों को कैसे पकड़ेगी? बस्तर क्षेत्र में भाषण देते हुए प्रधानमन्त्री जी को क्या इस गंभीर मुद्दे पर बात नहीं करनी चाहिए थी? क्या विपक्ष को नीचा दिखाने भर से वो ग़ायब लड़कियां वापस आ जाएंगी? जिस बस्तर क्षेत्र में तकरीबन डेढ़ लाख सुरक्षाबल तैनात हैं, जहां किसी गांव में पहुचने से पहले 10-10 चेकपोस्ट पार करने होते हैं वहां 15 वर्षों में 30000 लड़कियां मानव तस्करी का शिकार हो जाती हैं और पुलिस को ख़बर ही नहीं हो पाती? क्या ये जानकर देश के प्रधानमन्त्री को चिंतित नहीं होना चाहिए था? क्या अर्बन नक्सल का गुब्बारा छोड़ देने से सरकार की ये नाकामियाबी छुप जाएगी?
प्रधानमन्त्री जी ने कहा कि छत्तीसगढ़ की जनता अब जागरूक हो गई अब वो षड्यंत्रों को पहचान जाती है. शायद प्रधानमन्त्री जी ये नहीं सोच पाए कि जनता जब समझदार हो जाती है तो वो सिर्फ़ षड्यंत्रों को ही नहीं लफ्फाजी को भी पहचान जाती है.
हालांकि मीडिया द्वारा भी किसी पर बेबुनियाद आरोप लगा कर उसे नक्सली या अर्बन नक्सली कहना ठीक नहीं हैं, परन्तु देश के प्रधानमन्त्री को तो शब्दों की मर्यादा रखनी ही चाहिए. प्रधानमंत्री पद पर बैठने के बाद आपकी ज़िम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है. आप यदि अब भी पार्टी प्रमुख की ही तरह भाषण देंगे तो ये लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह साबित होगा.
लोकप्रीय शैली के भाषण से मुद्दे रहे ग़ायब
शुक्रवार को जगदलपुर में हुई आमसभा में मोदी जी ने अर्बन नक्सल का चुनावी पासा फेंका है. अपनी चिर-परिचित शैली में बात करते हुए प्रधानमन्त्री जीने विकास के मुद्दों पर चुप्पी बनाए रखी. विकास पर बोलने के लिए शायद कुछ मिला नहीं होगा. नोटबन्दी को ऐतिहासिक कदम बताने वाले प्रधानमन्त्री जी ने, नोत्बंदी की दूसरी सालगिरह के अगले ही दिन हुई इस आमसभा में नोत्बंदी पर एक शब्द भी नहीं कहा. फिर मोदी जी ने अच्छे लगने वाले बड़े-बड़े वायदे करने शुरू किए (कुछ समय पहले भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने बयान दिया था कि पार्टी को 2014 में जीत की उम्मीद नहीं थी इसलिए उनसे बड़े बड़े वायदे करने कहा गया था) क्या छत्तीसगढ़ में भी उसी तरह के वायदे कर रहे हैं प्रधानमन्त्री जी? कि यदि जीत गए तब की तब देखेंगे अभी तो बड़ी-बड़ी उछालते जाओ.
प्रधानमन्त्री जी ने कहा कि मध्यप्रदेश के समय बस्तर की हालत बहुत ख़राब थी. जबकि ये जगज़ाहिर है कि पिछले 15 वर्षों से बस्तर क्षेत्र में माओवाद सबसे ज़्यादा बढ़ा है.
उन्होंने कहा कि केंद्र की कांग्रेस सरकार के 10 साल के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ के विकास के लिए केंद्र सरकार ने ज़रा भी मदद नहीं की थी. 10 साल तक केंद्र सरकार किसी प्रदेश को ज़रा भी फण्ड न दे ये बात तो ज़रा भी विश्वसनीय नहीं लगती.
उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ का कोना-कोना विकास का पर्याय है. यदि वे कुछ दिन पहले के अखबार ही पढ़ लेते तो भी उनको ये मालूम चल जाता कि छत्तीसगढ़ के कई ऐसे कोने हैं जिन्होंने विकास की शक्ल तक नहीं देखी है.
उहोने कहा कि, किसने सोचा था कि जगदलपुर में हवाई अड्डा बनेगा. ये बात सच कही उन्होंने, किसी ने नहीं सोचा था. सबने तो ये सोचा था कि स्कूल बनेगा, अस्पताल बनेगा, खेल मैदान बनेगा, विश्वविद्यालय बनेगा, पर बन गया हवाई अड्डा. भई जगदलपुर के आदिवाई के लिए हवाई अड्डा और हवाई जहाज़ किस काम के हैं. उसके सर पर जीवन यापन की समस्या है वो हवाई जहाज़ में घूमने का ख़र्च कहां से जुटाएगा? कोई जबरन बैठा भी दे अगर तो भई वो जाएगा कहां?
उन्होंने कहा कि वो दबे-कुचले शोषित आदिवासी वर्ग को सबके बराबर लाएंगे, पर ये नहीं बताया कि कैसे लाएंगे. विश्व आदिवासी दिवस के ठीक पहले फ़ोर्स ने 15 आदिवादियों को मारडाला और कहा कि ये नक्सली थे. सरकार ने उन पुलिस वालों को सम्मानित किया. बाद में ये तथ्य सामने आया कि वो मुटभेड फ़र्ज़ी थी और मारे गए लोग नक्सली नहीं, दबे कुचले शोषित आदिवासी थे. क्या इसी तरह बराबरी आ जएगी?
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र ही इस समस्या का समाधान है. बैठकर बात करने से ही हालात बदल सकते हैं. बम बन्दूक समाधान नहीं है. हमें शांति के रास्ते पर चलना है. अगर प्रधानमन्त्री जी ये बात समझते हैं, तो कल्लूरी और गर्ग जैसे पुलिस अधिकारियों (जो खुलेतौर पर कत्लेआम करवाते रहे हैं) पर कोई दंडात्मक कार्रवाई क्यों नहीं करते? कल्लूरी समाचार चैनलों पर ये कहते रहे हैं कि बन्दूक ही एकमात्र समाधान है. कल्लोरी ये भी कह चुके हैं कि उन्हें सरकार की तरफ़ से जो आदेश मिलता है वो उसका पालन करते हैं.
इसका तो सीधा मतलब यही निकलता है कि प्रधानमन्त्री जी जिस लोकतान्त्रिक तरीके से माओवाद की समस्या हल करने की बात कह रहे हैं उसे प्रदेश की भाजपा सरकार पहले ही नकार चुकी है.
हम उम्मीद करते हैं की आने वाले समय में हमें नरेन्द्र मोदी जी के मुख से एक ज़िम्मेदार प्रधानमन्त्री का वक्तव्य सुनने को मिलेगा, एक ऐसा वक्तव्य जिसमे पूरे देश की बात होगी, अपनी पार्टी की बड़ाई और बाकियों की बुराई भर नहीं.