राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव केवल किसी एक विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव नहीं होते, बल्कि पूरी राज्य के राजनीतिक माहौल की झलक होते हैं। ऐसा पिछले कई सालों से होता आया है कि जिस संगठन का प्रत्याशी अध्यक्ष पद का चुनाव जीतता है, उसी संगठन की पार्टी की राज्य में सरकार बनती रही है।
इस बार छात्रसंघ चुनावों में कहने को तो एबीवीपी और एनएसयूआई, दोनों को ही झटका लगा है, लेकिन गहराई से देखें तो केवल एबीवीपी को ही भारी झटका लगा है।
विनोद जाखड़ ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में छात्रसंघ के अध्यक्ष पद पर 1860 वोटों से जीत हासिल की है। एबीवीपी दूसरे नंबर पर रही और एनएसयूआई तीसरे नंबर पर। हालांकि, इसे कांग्रेस की रणनीतिक भूल ही कहा जा सकता है क्योंकि विनोद जाखड़ एनएसयूआई का टिकट न मिलने के बाद बागी होकर निर्दलीय उम्मीदवार बने थे।
12 साल में पहली बार अनुसूचित जाति के विजयी उम्मीदवार विनोद जाखड़ को कांग्रेस और एनएसयूआई के कई नेताओं को खुलकर समर्थन रहा। ये बात कांग्रेस के लिए आंतरिक अनुशासन के लिहाज से चिंता की भी हो सकती है, लेकिन उसके लिए यह राहत की बात भी हो सकती है कि आखिर, उसका ही बागी जीता, और उसके ही नेताओं के समर्थन से जीता है।
एबीवीपी की दुर्दशा केवल अध्यक्ष पद ही नहीं, बल्कि बाकी पदों पर भी हुई है। छात्रसंघ चुनाव में उपाध्यक्ष पद पर भी निर्दलीय रेणु चौधरी जीती हैं। निर्दलीय उम्मीदवार आदित्य प्रताप सिंह ही महासचिव चुने गए हैं। एबीवीपी के लिए एकमात्र राहत की खबर संयुक्त सचिव पद पर मीनल शर्मा की जीत से मिली है।
कांग्रेस विनोद जाखड़ की जीत पर खुश तो हो सकती है, लेकिन उसे यह भी समझना होगा कि कहीं आत्मविश्वास के चक्कर में वह विधानसभा चुनावों में मात न खा जाए। अन्य दलों से तालमेल की कमी, टिकटों का सही वितरण न होना जैसी कमियां उसकी राह में मुश्किल खड़ी कर सकती हैं, ये संकेत भी राजस्थान विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनावों के नतीजों ने दिए हैं।
इस बार छात्रसंघ चुनावों में कहने को तो एबीवीपी और एनएसयूआई, दोनों को ही झटका लगा है, लेकिन गहराई से देखें तो केवल एबीवीपी को ही भारी झटका लगा है।
विनोद जाखड़ ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में छात्रसंघ के अध्यक्ष पद पर 1860 वोटों से जीत हासिल की है। एबीवीपी दूसरे नंबर पर रही और एनएसयूआई तीसरे नंबर पर। हालांकि, इसे कांग्रेस की रणनीतिक भूल ही कहा जा सकता है क्योंकि विनोद जाखड़ एनएसयूआई का टिकट न मिलने के बाद बागी होकर निर्दलीय उम्मीदवार बने थे।
12 साल में पहली बार अनुसूचित जाति के विजयी उम्मीदवार विनोद जाखड़ को कांग्रेस और एनएसयूआई के कई नेताओं को खुलकर समर्थन रहा। ये बात कांग्रेस के लिए आंतरिक अनुशासन के लिहाज से चिंता की भी हो सकती है, लेकिन उसके लिए यह राहत की बात भी हो सकती है कि आखिर, उसका ही बागी जीता, और उसके ही नेताओं के समर्थन से जीता है।
एबीवीपी की दुर्दशा केवल अध्यक्ष पद ही नहीं, बल्कि बाकी पदों पर भी हुई है। छात्रसंघ चुनाव में उपाध्यक्ष पद पर भी निर्दलीय रेणु चौधरी जीती हैं। निर्दलीय उम्मीदवार आदित्य प्रताप सिंह ही महासचिव चुने गए हैं। एबीवीपी के लिए एकमात्र राहत की खबर संयुक्त सचिव पद पर मीनल शर्मा की जीत से मिली है।
कांग्रेस विनोद जाखड़ की जीत पर खुश तो हो सकती है, लेकिन उसे यह भी समझना होगा कि कहीं आत्मविश्वास के चक्कर में वह विधानसभा चुनावों में मात न खा जाए। अन्य दलों से तालमेल की कमी, टिकटों का सही वितरण न होना जैसी कमियां उसकी राह में मुश्किल खड़ी कर सकती हैं, ये संकेत भी राजस्थान विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनावों के नतीजों ने दिए हैं।