अब्बा, हमें हौसला और हिम्मत देना- 3

Written by नशरीन जाफरी | Published on: June 10, 2016
 
Courtesy of Zuber JafriAhsan Jafri, center, addressing a gathering in Ahmedabad, Gujarat, 1977.

अब्बा, एक वक्त मैं अपना बहुत कुछ गंवाने के बाद पूरी तरह परेशान हो गई थी जब मैं लगातार खुद से पूछ रही थी कि मेरे ही पिता क्यों...! उन्हें ही क्यों...! लेकिन यह आपके बताए रास्ते का हासिल है कि वाकयों को उसके बड़े दायरे में देखो और अपनी जिंदगी को भी बड़े फलक पर देखो। मैंने महसूस किया कि मेरी तरह तो हजारों हैं, मर्द, औरतें और बच्चे, जिन्होंने अपने सबसे करीबी और अजीज लोगों को खो दिया और वे भी यही पूछ रहे हैं कि क्यों उन्हें ही..!

बड़ी तादाद में बच्चे अनाथ हो गए और बड़ी तादाद में मां-बाप अपने बच्चों से महरूम हो गए। मैंने यह भी महसूस किया कि मेरी तरह के कुछ लोग गोधरा और कश्मीर में भी हैं। उनकी तकलीफ हमसे जरा भी कम नहीं है। उनका नुकसान हमसे कम नहीं हैं। उनकी मासूमियत भी हमसे कम नहीं है। इसलिए मैं उनसे पूछती हूं जो सत्ता में हैं। उन्होंने उस कत्लेआम को होने दिया था। और फिर समय-समय पर इंसानियत के खिलाफ अपराध होते रहे। और तमाम विनम्रता और संजीदगी के साथ मैं खुदा से पूछती हूं कि क्यों वे नहीं जो नफरत का पाठ पढ़ाते हैं? क्यों वे नहीं, जो सांप्रदायिक असहनशीलता फैलाते हैं? क्यों वे नहीं, जो उसकी बनाई दुनिया के खिलाफ हिंसा का प्रचार करते हैं?

मेरे प्यारे अब्बा, मुझे आपकी बात याद है कि दुनिया में बहुत दुश्मनी है, लेकिन बहुत सुकून, मेलजोल और प्यार भी है। दुनिया में दुख है, तकलीफ है, लेकिन सुख समृद्धि और आगे बढ़ने के रास्ते भी हैं। दुनिया में जंग और बर्बरता है, लेकिन भाईचारा, सुकून और शांति भी है। यह इस बात से तय होता है कि आप कहां से और कैसे इस दुनिया को देखते हैं।

यह आपकी उम्मीदों और सकारात्मक सोच के साथ तैयार मेरी शख्सियत है कि मैंने देश में प्यार, भाईचारा, सुकून और सांप्रदायिक सौहार्द के हालात को देखना पसंद किया है, चुना है। मैंने यह भरोसा चुना कि गुजरात में हमने जो हिंसा और सांप्रदायिक असहनशीलता देखी, वह महज एक तात्कालिक विचलन थी और उसके गम जल्दी ही गुजर जाएंगे। आपस में बांटने के एजेंडे के साथ नफरत का कारोबार करने वाले हारेंगे और भारत में लोग अपने मजहब और नस्ल, रंग और जाति, सियासी बुनियाद या आदर्श की परवाह किए बिना एक दूसरे के साथ आएंगे, आपके और आपकी तरह के लाखों लोगों के उन सपनों के लिए जो एक, प्रगतिशील, समृद्ध, धर्मनिरपेक्ष और गर्व करने लायक भारत में बसता है।

मेरे प्यारे अब्बा, आपकी दी हुई सबक मुझे यह ताकत देती है कि मैं गुजरात कत्लेआम के दौरान हजारों बेघर हो चुके लोगों, औरतों और बच्चों की मदद के लिए आगे बढ़ूं, जो जिंदगी के बेहद असह्य और तकलीफदेह हालात में जी रहे हैं। मेरे दिल में किसी खास व्यक्ति या समुदाय के लिए कोई कड़वाहट नहीं है। मैं आपके दामाद नाज़िद हुसेन के साथ हूं और अपनी काबिलियत के मुताबिक बेसहारा लोगों की मदद के लिए बहुत बेहतर काम कर रही हूं। हमारे साथ कई लोगों, संस्थाओं और संगठनों की भी मदद है। हम लोगों के पुनर्वास, उनकी सुरक्षा की गारंटी और गुजरात में इंसान सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं।

हमें हिम्मत दीजिए अब्बा! और इस देश को भी हौसला दीजिए, जिसके सम्मान के लिए आपने बिना किसी भेदभाव और बिना किसी स्वार्थ के जिंदगी भर काम किया। हमें आशीर्वाद दीजिए और राह दिखाइए, ताकि हम हम आपके दिखाए रास्ते को साफ-साफ देख सकें, उस पर चल सकें। दया और संवेदना का रास्ता, एकता और अखंडता का रास्ता, शांति और सौहार्द का रास्ता, ताकि हम गुजरात की उस त्रासदी को दोहराए जाते नहीं देखें।

शुक्रिया... हम आपसे प्यार करते हैं... हम हमेशा आपसे प्यार करेंगे... हम हमेशा आपको याद करेंगे...!

(समाप्त)

अनुवाद- अरविंद शेष

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