जिला अस्पताल की पीडियाट्रिक ओपीडी में मौजूद शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप द्विवेदी ने जांच के बाद बताया कि शिशु 'अति गंभीर कुपोषण' (Severe Acute Malnutrition) की श्रेणी में है और उसकी हालत बेहद चिंताजनक बनी हुई है।

मध्य प्रदेश के सतना जिले से कुपोषण से जुड़ा एक चिंताजनक मामला सामने आया है, जिसने स्वास्थ्य सेवाओं और पोषण व्यवस्थाओं की वास्तविक स्थिति पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं।
शनिवार को जैतवारा क्षेत्र के मरवा गांव की रहने वाली आसमा बानो अपने चार महीने के बेटे हुसैन रजा को लेकर जिला अस्पताल पहुंचीं। जांच में डॉक्टरों ने पाया कि बच्चा अत्यधिक कुपोषण का शिकार है। उसका वजन केवल ढाई किलोग्राम है, जबकि इस उम्र में एक स्वस्थ शिशु का वजन लगभग पांच किलोग्राम या उससे अधिक होना चाहिए।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, बच्चे की हालत इतनी गंभीर है कि उसकी त्वचा हड्डियों से चिपकी हुई है और वह इतनी कमजोरी से जूझ रहा है कि रोने की आवाज तक नहीं निकाल पा रहा है। नाजुक हालत को देखते हुए डॉक्टरों ने समय गंवाए बिना उसे पीडियाट्रिक आईसीयू (पीआईसीयू) में भर्ती कर तत्काल इलाज शुरू कर दिया।
जिला अस्पताल की पीडियाट्रिक ओपीडी में मौजूद शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप द्विवेदी ने जांच के बाद बताया कि शिशु 'अति गंभीर कुपोषण' (Severe Acute Malnutrition) की श्रेणी में है और उसकी हालत बेहद चिंताजनक बनी हुई है। डॉक्टरों ने सबसे पहले बच्चे को पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) भेजकर स्क्रीनिंग कराई, जिसके बाद उसे पीआईसीयू में भर्ती किया गया। डॉ. द्विवेदी के अनुसार, इस स्तर पर शरीर के अंगों के काम करना बंद करने का खतरा काफी बढ़ जाता है, इसलिए बच्चे को लगातार चिकित्सकीय निगरानी में रखना बेहद जरूरी है।
एक भी टीका नहीं लगा अब तक
सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक बच्चे को एक भी टीका नहीं लगाया गया है। परिजनों के अनुसार, हुसैन के जन्म के कुछ समय बाद ही परिवार आजीविका की तलाश में महाराष्ट्र के पुणे शहर चला गया था। आर्थिक तंगी के चलते मां को भी दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ी। इसी दौरान बच्चे की तबीयत धीरे-धीरे बिगड़ती चली गई, लेकिन समय पर न जांच हो सकी और न ही इलाज मिल पाया।
परिजनों का कहना है कि उन्होंने बच्चे का इलाज पुणे में कई डॉक्टरों से कराया, लेकिन उसकी हालत में लगातार उतार-चढ़ाव आता रहा और कोई सुधार नहीं हो पाया। जब हालात बेहद गंभीर हो गए, तो परिवार वापस सतना लौट आया और बच्चे को जिला अस्पताल में भर्ती कराया। अस्पताल सूत्रों के मुताबिक, महिला एवं बाल विकास विभाग और स्वास्थ्य विभाग के रिकॉर्ड में हुसैन रजा का नाम दर्ज ही नहीं है। न तो उसका कोई टीकाकरण रिकॉर्ड उपलब्ध है, न ही आंगनवाड़ी केंद्र से जुड़ी कोई जानकारी — जो इस बात की ओर इशारा करता है कि बच्चा सरकारी पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं से पूरी तरह वंचित रहा।
महिला बाल विकास विभाग करेगा जांच
मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए महिला एवं बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) राजीव सिंह ने कहा कि पूरे प्रकरण की जांच कराई जाएगी। यदि जांच में किसी भी कर्मचारी की लापरवाही पाई जाती है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि कुपोषित बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में भर्ती कर समय पर इलाज उपलब्ध कराना विभाग की सर्वोच्च प्राथमिकता है और इस मामले में किसी भी तरह की लापरवाही कतई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
सतना जिले में कुपोषण से निपटने के लिए कुल नौ संस्थानों में लगभग 70 बेड पोषण पुनर्वास केंद्रों (एनआरसी) के लिए आरक्षित हैं। जिला अस्पताल में 20 बेड और विभिन्न ब्लॉकों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 10-10 बेड की व्यवस्था की गई है। इन केंद्रों का उद्देश्य कुपोषित बच्चों को समुचित इलाज और संतुलित पोषण प्रदान करना है। लेकिन हकीकत इससे काफी अलग है — अधिकतर समय ये बेड खाली पड़े रहते हैं। आंगनवाड़ी, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और अमले की लापरवाही के चलते समय पर कुपोषण के मामलों की पहचान नहीं हो पाती। नतीजतन, कई बच्चे सरकारी सिस्टम की निगरानी और सहायता से पूरी तरह बाहर रह जाते हैं।
कुपोषण में एमपी की स्थिति
मध्य प्रदेश पहले से ही कुपोषण के मामले में देश के सबसे संवेदनशील राज्यों में शामिल रहा है। ऐसे में सतना का यह मामला एक बार फिर साबित करता है कि कागज़ों में चल रही योजनाएँ ज़मीन पर अपेक्षित परिणाम नहीं दे पा रही हैं।
क्या है कुपोषण?
कुपोषण एक ऐसी अवस्था है जब शरीर को उसकी जरूरत के अनुसार पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व — जैसे प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज और ऊर्जा — नहीं मिल पाते।
यह स्थिति दो प्रमुख रूपों में सामने आती है:
1. अल्पपोषण (Under-nutrition) – जिसमें शरीर का वजन कम होना, उम्र और लंबाई के अनुपात में विकास रुक जाना, तथा मांसपेशियों का क्षय जैसी समस्याएँ शामिल होती हैं।
2. सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी (Micronutrient Deficiency) – जिसमें आयरन, विटामिन A, आयोडीन और अन्य आवश्यक पोषक तत्वों की कमी देखी जाती है।
कुपोषण खासकर छोटे बच्चों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि यह उनके शारीरिक और मानसिक विकास को बाधित करता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करता है, और संक्रमण व अन्य बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ा देता है। यदि समय रहते इलाज और संतुलित पोषण न मिले, तो यह स्थिति जानलेवा भी हो सकती है।
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शनिवार को जैतवारा क्षेत्र के मरवा गांव की रहने वाली आसमा बानो अपने चार महीने के बेटे हुसैन रजा को लेकर जिला अस्पताल पहुंचीं। जांच में डॉक्टरों ने पाया कि बच्चा अत्यधिक कुपोषण का शिकार है। उसका वजन केवल ढाई किलोग्राम है, जबकि इस उम्र में एक स्वस्थ शिशु का वजन लगभग पांच किलोग्राम या उससे अधिक होना चाहिए।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, बच्चे की हालत इतनी गंभीर है कि उसकी त्वचा हड्डियों से चिपकी हुई है और वह इतनी कमजोरी से जूझ रहा है कि रोने की आवाज तक नहीं निकाल पा रहा है। नाजुक हालत को देखते हुए डॉक्टरों ने समय गंवाए बिना उसे पीडियाट्रिक आईसीयू (पीआईसीयू) में भर्ती कर तत्काल इलाज शुरू कर दिया।
जिला अस्पताल की पीडियाट्रिक ओपीडी में मौजूद शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप द्विवेदी ने जांच के बाद बताया कि शिशु 'अति गंभीर कुपोषण' (Severe Acute Malnutrition) की श्रेणी में है और उसकी हालत बेहद चिंताजनक बनी हुई है। डॉक्टरों ने सबसे पहले बच्चे को पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) भेजकर स्क्रीनिंग कराई, जिसके बाद उसे पीआईसीयू में भर्ती किया गया। डॉ. द्विवेदी के अनुसार, इस स्तर पर शरीर के अंगों के काम करना बंद करने का खतरा काफी बढ़ जाता है, इसलिए बच्चे को लगातार चिकित्सकीय निगरानी में रखना बेहद जरूरी है।
एक भी टीका नहीं लगा अब तक
सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक बच्चे को एक भी टीका नहीं लगाया गया है। परिजनों के अनुसार, हुसैन के जन्म के कुछ समय बाद ही परिवार आजीविका की तलाश में महाराष्ट्र के पुणे शहर चला गया था। आर्थिक तंगी के चलते मां को भी दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ी। इसी दौरान बच्चे की तबीयत धीरे-धीरे बिगड़ती चली गई, लेकिन समय पर न जांच हो सकी और न ही इलाज मिल पाया।
परिजनों का कहना है कि उन्होंने बच्चे का इलाज पुणे में कई डॉक्टरों से कराया, लेकिन उसकी हालत में लगातार उतार-चढ़ाव आता रहा और कोई सुधार नहीं हो पाया। जब हालात बेहद गंभीर हो गए, तो परिवार वापस सतना लौट आया और बच्चे को जिला अस्पताल में भर्ती कराया। अस्पताल सूत्रों के मुताबिक, महिला एवं बाल विकास विभाग और स्वास्थ्य विभाग के रिकॉर्ड में हुसैन रजा का नाम दर्ज ही नहीं है। न तो उसका कोई टीकाकरण रिकॉर्ड उपलब्ध है, न ही आंगनवाड़ी केंद्र से जुड़ी कोई जानकारी — जो इस बात की ओर इशारा करता है कि बच्चा सरकारी पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं से पूरी तरह वंचित रहा।
महिला बाल विकास विभाग करेगा जांच
मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए महिला एवं बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) राजीव सिंह ने कहा कि पूरे प्रकरण की जांच कराई जाएगी। यदि जांच में किसी भी कर्मचारी की लापरवाही पाई जाती है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि कुपोषित बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में भर्ती कर समय पर इलाज उपलब्ध कराना विभाग की सर्वोच्च प्राथमिकता है और इस मामले में किसी भी तरह की लापरवाही कतई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
सतना जिले में कुपोषण से निपटने के लिए कुल नौ संस्थानों में लगभग 70 बेड पोषण पुनर्वास केंद्रों (एनआरसी) के लिए आरक्षित हैं। जिला अस्पताल में 20 बेड और विभिन्न ब्लॉकों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 10-10 बेड की व्यवस्था की गई है। इन केंद्रों का उद्देश्य कुपोषित बच्चों को समुचित इलाज और संतुलित पोषण प्रदान करना है। लेकिन हकीकत इससे काफी अलग है — अधिकतर समय ये बेड खाली पड़े रहते हैं। आंगनवाड़ी, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और अमले की लापरवाही के चलते समय पर कुपोषण के मामलों की पहचान नहीं हो पाती। नतीजतन, कई बच्चे सरकारी सिस्टम की निगरानी और सहायता से पूरी तरह बाहर रह जाते हैं।
कुपोषण में एमपी की स्थिति
मध्य प्रदेश पहले से ही कुपोषण के मामले में देश के सबसे संवेदनशील राज्यों में शामिल रहा है। ऐसे में सतना का यह मामला एक बार फिर साबित करता है कि कागज़ों में चल रही योजनाएँ ज़मीन पर अपेक्षित परिणाम नहीं दे पा रही हैं।
क्या है कुपोषण?
कुपोषण एक ऐसी अवस्था है जब शरीर को उसकी जरूरत के अनुसार पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व — जैसे प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज और ऊर्जा — नहीं मिल पाते।
यह स्थिति दो प्रमुख रूपों में सामने आती है:
1. अल्पपोषण (Under-nutrition) – जिसमें शरीर का वजन कम होना, उम्र और लंबाई के अनुपात में विकास रुक जाना, तथा मांसपेशियों का क्षय जैसी समस्याएँ शामिल होती हैं।
2. सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी (Micronutrient Deficiency) – जिसमें आयरन, विटामिन A, आयोडीन और अन्य आवश्यक पोषक तत्वों की कमी देखी जाती है।
कुपोषण खासकर छोटे बच्चों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि यह उनके शारीरिक और मानसिक विकास को बाधित करता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करता है, और संक्रमण व अन्य बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ा देता है। यदि समय रहते इलाज और संतुलित पोषण न मिले, तो यह स्थिति जानलेवा भी हो सकती है।
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