सोनम वांगचुक पर रासुका का विरोध तेज, लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग उठी

Written by sabrang india | Published on: September 30, 2025
सोनम वांगचुक की रासुका के तहत गिरफ़्तारी और उनको पाकिस्तान से जोड़े जाने के आरोपों का सख्त विरोध किया गया। नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में प्रेस वार्ता की गई।


साभार : द वायर

"लद्दाख के लोगों ने अपने खून से देश की सीमाओं की रक्षा की है। हाल ही में जो लोग मरे हैं, उनमें कुछ ने करगिल युद्ध में भी हिस्सा लिया था। आप यह सोच भी कैसे सकते हैं कि लद्दाख के लोग इस तरह की किसी गतिविधि में शामिल हो सकते हैं?" उन्होंने आगे कहा, "कश्मीर में पिछले 40 वर्षों तक संकट रहा है, लेकिन क्या आपने कभी लद्दाख से ऐसी किसी गतिविधि की खबर सुनी है? इसलिए यह सवाल ही नहीं उठता।"

शिक्षाविद और पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगाने और उन्हें पाकिस्तान से जोड़ने के प्रयासों का कड़ा विरोध करते हुए, करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (लद्दाख) के नेता सज्जाद करगिल ने द वायर हिंदी से बातचीत में कहा।

द वायर के अनुसार, सज्जाद करगिल ने किसी का नाम लिए बिना सोनम वांगचुक पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) लगाए जाने को लेकर सवाल उठाए। उन्होंने कहा: "सोनम वांगचुक जी पाकिस्तान गए थे, लेकिन इस देश के बहुत से लोग पाकिस्तान जाते हैं और लौटते भी हैं। अभी हाल ही में हमारी टीम ने पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेला। हमारे एक पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहिद अफरीदी के साथ-जो पाकिस्तानी आर्मी के बेहद करीब माना जाता है-बैठकर मैच देखते हैं। तो फिर एनएसए तो उन पर भी लगाया जाना चाहिए। उनको क्यों छोड़ा जा रहा है?"

सोमवार 29 सितंबर को नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित एक प्रेस वार्ता में सज्जाद करगिल के साथ-साथ जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति से अतुल सती, हिमधारा कलेक्टिव की मानसी अशर और क्लाइमेट फ्रंट जम्मू के अनमोल ओहरी भी शामिल हुए।

द वायर हिंदी से बातचीत में अतुल सती ने कहा, ‘पिछले 10-11 सालों से हम देख रहे हैं कि जो लोग भी आंदोलन कर रहे हैं, सरकार उन पर कोई न कोई ठप्पा लगा दे रही है। हम लोग जब जोशीमठ में आंदोलन कर रहे थे, तो सरकार ने हमें चीन का एजेंट और माओवादी कह दिया, क्योंकि हम चीन के बॉर्डर के नज़दीक हैं। किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया तो उन्हें खालिस्तान बोल दिया गया। अभी पाकिस्तानी एजेंट कहा जा रहा है। लेकिन इस खतरे के बावजूद धरती और पर्यावरण को बचाने के लिए हमारा संघर्ष है और रहेगा।’

‘पीपल फॉर हिमालया’ द्वारा आयोजित इस प्रेस वार्ता में सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी की कड़ी निंदा की गई और उनकी तत्काल रिहाई की मांग की गई। वक्ताओं ने इस गिरफ्तारी को लोकतांत्रिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला करार देते हुए कहा कि यह लद्दाख के लोगों की आवाज को दबाने का एक स्पष्ट प्रयास है। वक्ताओं का कहना था कि लद्दाख के लोग लंबे समय से संविधानिक अधिकारों, आजीविका और पर्यावरण संरक्षण को लेकर अपनी वैध और शांतिपूर्ण चिंताएं उठा रहे हैं।

वांगचुक के आंदोलन के साथी सज्जाद ने कहा कि ‘हमारी मांग है कि लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले और इसे छठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।’

ध्यान देने योग्य है कि इन्हीं मांगों को लेकर पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने 35 दिन की भूख हड़ताल शुरू की थी, जिसके दौरान, 25 सितंबर को उनके अनशन के 15वें दिन, लेह में हिंसा भड़क उठी, जिसमें चार लोगों की जान चली गई।

25 सितंबर को लेह में भड़की हिंसा का आरोप सोनम वांगचुक पर लगाया गया, लेकिन उनकी पत्नी गीतांजलि जे. आंगमो ने इस आरोप को सिरे से खारिज किया। द वायर से बातचीत में उन्होंने कहा कि वांगचुक गांधीवादी तरीकों से आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे और ‘25 सितंबर को भी हिंसा युवाओं ने नहीं, बल्कि केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल ने शुरू की थी. लद्दाखी युवा सबसे शांत और सज्जन होते हैं।’

प्रेस वार्ता के दौरान सज्जाद से पूछा गया कि जब केंद्र सरकार से बातचीत चल रही थी तो आंदोलन की क्या जरूरत थी?

इसके जवाब में उन्होंने कहा कि "जब आंदोलन शुरू हुआ, तब तो सरकार ने किसी तारीख का ऐलान भी नहीं किया था। आंदोलन के बीच में उन्होंने तारीख़ें घोषित कीं। अब तक सरकार के साथ जो भी बैठकें हुई हैं, वे सिर्फ तब हुईं जब लोगों ने आंदोलन किया। आंदोलन के बाद भी सरकार मीटिंग के लिए बुलाती है। जब-जब हम खामोश रहे हैं, कोई पूछने वाला नहीं आया है। इस बार भी जब सोनम वांगचुक जी भूख हड़ताल पर थे और 13 दिन बीत गए थे, तब सरकार की तरफ़ से ऐलान हुआ कि हम आपको बातचीत के लिए बुला रहे हैं।’

प्रेस वार्ता के दौरान वक्ताओं ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए, जिनके अनुसार सरकार की मंशा यह है कि लद्दाख में नियुक्त अधिकारी शासन करें, जबकि स्थानीय लोग केवल त्योहारों, खेल और सांस्कृतिक आयोजनों तक सीमित रहें, और नीति-निर्माण की प्रक्रिया से दूर रहें।

वहीं एक वक्ता ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि हमारी पहचान को सुरक्षा मिले। भारत के जिस लोकतंत्र की तारीफ प्रधानमंत्री दुनिया भर में करते है, लद्दाख को भी वह लोकतंत्र मिले।’

प्रेस वार्ता के दौरान सज्जाद करगिल ने स्पष्ट किया कि लद्दाख के लोग केवल संविधान की छठी अनुसूची के तहत संरक्षण की मांग नहीं कर रहे, बल्कि वे "पूर्ण राज्य" की मांग कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा, ‘आइडिया ऑफ यूनियन टेरिटरी बुरी तरह फेल हो गया है। यह लोगों की उम्मीदों और आकांक्षाओं पर खड़ा नहीं उतरा है।’

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