बिहार : SIR प्रक्रिया के दौरान एक परिवार मतदाता सूची में नहीं, रिटायर्ड शिक्षिका को भी मृत घोषित किया गया

Written by sabrang india | Published on: August 28, 2025
बिहार में मतदाता सूची के एसआईआर प्रोसेस में असंगतियों के दावों के बीच यह सामने आया है कि ड्राफ्ट सूची में 74 वर्षीय रिटायर्ड शिक्षिका को मृत घोषित कर नाम हटा दिया गया है। वहीं वरिष्ठ साहित्यकार का नाम भी सूची से गायब पाया गया है।


साभार : एचटी (फाइल फोटो)

बिहार विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले, निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर की अधिसूचना जारी होने के बाद से विवाद खड़ा हो गया है। इस प्रक्रिया के दौरान भी अनियमितताओं के आरोप लगते रहे हैं और ड्राफ्ट मतदाता सूची आने के बाद से लगातार मतदाताओं के नाम हटाए जाने और असंगतियों के मामले सामने आ रहे हैं।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, इस ड्राफ्ट सूची में भोजपुर जिला मुख्यालय आरा के वार्ड संख्या 10 में रहने वाले एक परिवार के कई सदस्यों का नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है। इतना ही नहीं, आरा स्थित एक मोंटेसरी स्कूल की शिक्षिका रही 74 वर्षीय मेरी टोप्पो को डिलिशन लिस्ट में मृत घोषित कर दिया गया है, जबकि उनके तीन बेटों - 40 वर्षीय चंदन टोप्पो, 38 वर्षीय क्लेरेंस टोप्पो और 36 वर्षीय अल्बर्ट टोप्पो- के नाम स्थानांतरित सूची में डाल दिए गए हैं।

इन असंगतियों की सूची यहीं समाप्त नहीं होती है। मेरी टोप्पो का लिंग परिवर्तित कर उन्हें पुरुष घोषित कर दिया गया है। उनके स्वर्गीय पति सिल्वेस्टर टोप्पो का नाम उनके पिता के तौर पर दर्ज कर लिया गया है और मेरी की उम्र को दस बरस कम कर 64 कर दिया गया है।

रिटार्ड शिक्षिका का नाम सूची से गायब

एसआईआर अभियान के दौरान मृत घोषित की गई मेरी टोप्पो द वायर हिंदी से बातचीत में कहती हैं, ‘मैं जिंदा हूं, लेकिन सरकार ने मुझे मृत घोषित कर दिया. अगर लिस्ट प्रकाशित नहीं होती तो हमें पता भी नहीं चलता। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में मैंने वोट दिया था और मेरा पूरा परिवार मतदान में शामिल हुआ था।’

मेरी टोप्पो के बेटे क्लेरेंस टोप्पो कहते हैं, “जब मैंने बीएलओ से पूछा कि मेरी मां को मृत कैसे घोषित किया गया, तो उसने जवाब दिया कि उम्र के आकलन के आधार पर उन्हें मृत घोषित किया गया है।”

क्लेरेंस टोप्पो बताते हैं, “एसआईआर प्रक्रिया के दौरान बीएलओ न तो हमारे घर आया और न ही किसी से संपर्क किया। सूची के काम के पूरा होने के बाद नाम प्रकाशित हुए, लेकिन उस समय हमने ध्यान नहीं दिया। बाद में जब नई सूची बूथ पर चिपकाई गई, तब मेरे मित्र अभिषेक द्विवेदी ने बताया कि मेरा नाम ‘स्थानांतरित’ और मां का नाम ‘मृत’ दिखा रहा है। तब हमें इस बात की जानकारी हुई। इसके बाद बीएलओ हमारे घर आया और हमारे कागज लेकर गया। उसने आश्वासन दिया कि हमारे नाम फिर जोड़े जाएंगे।”

क्लेरेंस आगे बताते हैं, “जब मैंने बीएलओ से पूछा कि आपने पहले संपर्क क्यों नहीं किया, तो बीएलओ ने कहा कि पूर्व वार्ड पार्षद ने मुझे पहचानने से इनकार कर दिया था और वर्तमान पार्षद ने भी मेरी पहचान की पुष्टि नहीं की। इसलिए मेरा और मेरे परिवार का नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया।”

मेरी टोप्पो आगे कहती हैं, “सिल्वेस्टर टोप्पो से शादी के बाद मैं करीब 50 साल से आरा में रह रही हूं। मोंटेसरी स्कूल के छात्र मुझे अच्छी तरह जानते हैं और लोग मुझे पहचानते हैं। मैं स्वस्थ हूं, आपसे बात कर रही हूं, लेकिन मतदाता सूची में मुझे मृत दिखाया गया है।”

क्लेरेंस के मित्र अभिषेक द्विवेदी कहते हैं, “डिलिशन सूची प्रकाशित होने के बाद मैं यादव विद्यापीठ प्लस टू हाई स्कूल स्थित बूथ नंबर 223 पर गया। वहां मैंने देखा कि क्लेरेंस का नाम ‘स्थानांतरित’ और उनकी मां का नाम ‘मृत’ दिखाया गया है। तब मैंने यह बात क्लेरेंस को बताई।”

जब इस विषय में वार्ड संख्या 12 के पार्षद प्रतिनिधि अभय श्रीवास्तव उर्फ बबलू से बात की गई, तो उन्होंने फोन पर कहा, “बीएलओ मेरे पास सूची लेकर आया था। मैंने उसे कहा कि आप अपने स्तर पर जांच करें। शायद किसी ने कह दिया होगा कि क्लेरेंस की मां अब नहीं हैं, इसलिए बीएलओ ने उन्हें मृतकों की सूची में शामिल कर दिया।”

वहीं, बीएलओ विनोद कुमार यादव का कहना है, “मेरी टोप्पो के नाम में पति की जगह पिता का नाम लिखा था और उनकी उम्र 74 साल दर्ज थी। स्थानीय स्तर पर उनकी पहचान की पुष्टि न होने के कारण उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।”

साफ है कि बीएलओ ने बिना किसी ठोस जांच या सत्यापन के एक बुजुर्ग महिला को मृत घोषित कर दिया, और साथ ही उनके बेटों के नाम भी मतदाता सूची से हटा दिए गए।

सूची में नहीं साहित्यकार केडी सिंह का नाम

ड्राफ्ट मतदाता सूची में कई और खामियां सामने आई हैं। हिंदी और भोजपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार, आरा के चंदवा निवासी 87 वर्षीय डॉ. केडी सिंह का नाम न तो मतदाता सूची में है और न ही हटाए गए मतदाताओं की डिलिशन लिस्ट में।

डॉ. केडी सिंह ने हिंदी और भोजपुरी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने दोनों भाषाओं में दर्जनभर पुस्तकें लिखी हैं और ऋग्वेद का भोजपुरी में अनुवाद भी किया है, जो अपने आप में एक दुर्लभ और विशिष्ट कार्य माना जाता है।

डॉ. सिंह बताते हैं, “जब एसआईआऱ चल रहा था, उस समय बीएलओ आया था और मेरा आधार कार्ड लेकर गया था। लेकिन अब ड्राफ्ट सूची में मेरा नाम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जो डिलिशन लिस्ट निकाली गई, उसमें भी मेरा नाम नहीं है। जबकि मेरी पत्नी, 85 वर्षीय यशोदा देवी, का नाम सूची में मौजूद है।”

अपनी लिखी हुई किताबें दिखाते हुए डॉ. सिंह कहते हैं, “1961 में मैंने भारतीय डाक सेवा में नौकरी शुरू की थी और जनवरी 1998 में रिटायर हुआ। उसके बाद से लगातार किताबें प्रकाशित कर रहा हूं। सरकार आम जनता को लगातार परेशान कर रही है-पहचान साबित करने के लिए बार-बार दस्तावेज दिखाने पड़ते हैं। कभी नोटबंदी, कभी वोटबंदी-आम आदमी हमेशा ही परेशान रहता है।”

सिंह कहते हैं, “मैं और मेरी पत्नी यहीं रहते हैं, हमारे बच्चे बाहर हैं। सूची में नाम जांचने के लिए किसी को बुलाना पड़ता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में हमने इसी सूची से मतदान किया था, फिर इतनी जल्दी यह गड़बड़ी कैसे हो गई? अगर मतदाता सूची में सुधार करना है तो उसे सही तरीके से किया जाए, जल्दबाजी में सब कुछ ख़राब हो जाएगा।”

वे कहते हैं, “मतदाता सूची सुधारने की मौजूदा प्रक्रिया हड़बड़ी में की जा रही है। बीएलओ दोबारा आया था, लेकिन अब वह क्या करेगा, यह पता नहीं। मेरे पास तो नौकरी और पेंशन से जुड़े दस्तावेज हैं, लेकिन जिन बुजुर्गों ने कभी नौकरी नहीं की, उनके पास तो कोई कागज भी नहीं होगा। ऐसे लोगों के लिए तो यह प्रक्रिया और भी ज्यादा मुश्किल हो जाती है।”

सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस प्रक्रिया में आधार कार्ड शामिल करने के आदेश की उन्होंने सराहना की।

बीएलओ भी परेशान

अब जबकि ड्राफ्ट सूची में सुधार का अंतिम चरण चल रहा है, लोगों के बीच भारी अफरा-तफरी का माहौल है। एक बीएलओ ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “इतने कम समय में हर घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन करना बेहद कठिन है। स्वास्थ्य भी बिगड़ रहा है, रात-भर काम करना पड़ता है। चुनाव आयोग को यह प्रक्रिया पूरी करने के लिए और समय देना चाहिए था।”

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