बिजली के निजीकरण के विरोध में बनारस के बिजली कर्मचारियों ने कहा है कि निजीकरण वापस होने तक अभियान जारी रहेगा। "पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण होने से लगभग 50 हजार संविदा कर्मियों और 26 हजार नियमित कर्मचारियों की छंटनी होगी।"
उत्तर प्रदेश के विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के आह्वान पर 10 जनवरी को प्रदेश भर में बिजली कर्मचारियों ने विरोध सभा का आयोजन किया और अपनी नाराजगी जाहिर की। इस कड़ी में बनारस के बिजली कर्मियो ने भी भिखारीपुर स्थित हनुमानजी मंदिर पर ड्यूटी के बाद शाम 5 बजे से विरोध सभा का आयोजन किया और बिजली के निजीकरण का विरोध किया। साथ ही राज्य के मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप कर बिजली के निजीकरण का प्रस्ताव व्यापक जनहित में निरस्त कराने की मांग की।
विधुत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति की वाराणसी इकाई ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा, निजीकरण के विरोध में बनारस के सभी बिजली कर्मी 13 जनवरी को पूरे दिन काली पट्टी बांधेंगे और विरोध सभा करेंगे। वहीं अवकाश के दिनों में बिजली कर्मी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के माध्यम से आम उपभोक्ताओं के बीच जनजागरण अभियान चलाएंगे।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने बनारस में भिखारीपुर स्थित हनुमानजी मंदिर पर हुई विरोध सभा को संबोधित करते हुए कहा कि निजीकरण के विरोध में चल रहा आंदोलन निजीकरण वापस होने तक लगातार जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि बिजली कर्मचारी किसी धोखे में नहीं है। उन्होंने कहा कि एक बार पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को निजी घरानों को सौंप दिया गया तो पूरे प्रदेश की बिजली व्यवस्था का निजीकरण करने में समय नहीं लगेगा। सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन और शासन का निर्णय संपूर्ण ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण का है। शुरुआत पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण से की जा रही है। 13 जनवरी को सभी ऊर्जा निगमों के तमाम बिजली कर्मचारी, संविदा कर्मी और अभियंता पूरे दिन काली पट्टी बंधेंगे और विरोध सभा करेंगे। आंदोलन के लिए अगला निर्णय 13 जनवरी को घोषित किया जाएगा।
वक्ताओं ने कहा कि बिजली का निजीकरण होने से सबसे ज्यादा असर गरीबी रेखा से नीचे रह रहे आम बिजली उपभोक्ताओं और किसानों का होता है। इस पर नजर रखते हुए संघर्ष समिति ने यह निर्णय लिया है कि छुट्टी के दिनों में ग्राम पंचायतों और शहरों में रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के माध्यम से आम बिजली उपभोक्ताओं के बीच जाकर उन्हें निजीकरण से होने वाले भारी नुकसान की जानकारी दी जाएगी।
उन्होंने कहा, मुम्बई में निजी क्षेत्र में बिजली है और वहां घरेलू उपभोक्ताओं को 17-18 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलती है। संघर्ष समिति ने कहा कि जहां जहां भी निजीकरण है वहां के बिजली टैरिफ का चार्ट बनाकर घर घर वितरित करने की वृहत योजना बनाई है।
उन्होंने बताया कि उपभोक्ताओं के साथ निजीकरण का सबसे ज्यादा खामियाजा बिजली कर्मचारियों को उठाना पड़ेगा। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण होने से लगभग 50 हजार संविदा कर्मियों और 26 हजार नियमित कर्मचारियों की छंटनी होगी। कॉमन कैडर के अभियंताओं और जूनियर इंजीनियरों की बड़े पैमाने पर पदावनति और छंटनी होने वाली है। जहां भी निजीकरण हुआ है वहां बड़े पैमाने पर छंटनी हुई है।
विरोध सभा को सर्वश्री ई.नरेंद्र वर्मा, राजेंद्र सिंह, आरके वाही, संतोष वर्मा, ई. एस के सिंह, मदन श्रीवास्तव, रामकुमार झा, जितेंद्र कुमार आदि ने संबोधित किया।
उत्तर प्रदेश के विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के आह्वान पर 10 जनवरी को प्रदेश भर में बिजली कर्मचारियों ने विरोध सभा का आयोजन किया और अपनी नाराजगी जाहिर की। इस कड़ी में बनारस के बिजली कर्मियो ने भी भिखारीपुर स्थित हनुमानजी मंदिर पर ड्यूटी के बाद शाम 5 बजे से विरोध सभा का आयोजन किया और बिजली के निजीकरण का विरोध किया। साथ ही राज्य के मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप कर बिजली के निजीकरण का प्रस्ताव व्यापक जनहित में निरस्त कराने की मांग की।
विधुत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति की वाराणसी इकाई ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा, निजीकरण के विरोध में बनारस के सभी बिजली कर्मी 13 जनवरी को पूरे दिन काली पट्टी बांधेंगे और विरोध सभा करेंगे। वहीं अवकाश के दिनों में बिजली कर्मी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के माध्यम से आम उपभोक्ताओं के बीच जनजागरण अभियान चलाएंगे।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने बनारस में भिखारीपुर स्थित हनुमानजी मंदिर पर हुई विरोध सभा को संबोधित करते हुए कहा कि निजीकरण के विरोध में चल रहा आंदोलन निजीकरण वापस होने तक लगातार जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि बिजली कर्मचारी किसी धोखे में नहीं है। उन्होंने कहा कि एक बार पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को निजी घरानों को सौंप दिया गया तो पूरे प्रदेश की बिजली व्यवस्था का निजीकरण करने में समय नहीं लगेगा। सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन और शासन का निर्णय संपूर्ण ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण का है। शुरुआत पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण से की जा रही है। 13 जनवरी को सभी ऊर्जा निगमों के तमाम बिजली कर्मचारी, संविदा कर्मी और अभियंता पूरे दिन काली पट्टी बंधेंगे और विरोध सभा करेंगे। आंदोलन के लिए अगला निर्णय 13 जनवरी को घोषित किया जाएगा।
वक्ताओं ने कहा कि बिजली का निजीकरण होने से सबसे ज्यादा असर गरीबी रेखा से नीचे रह रहे आम बिजली उपभोक्ताओं और किसानों का होता है। इस पर नजर रखते हुए संघर्ष समिति ने यह निर्णय लिया है कि छुट्टी के दिनों में ग्राम पंचायतों और शहरों में रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के माध्यम से आम बिजली उपभोक्ताओं के बीच जाकर उन्हें निजीकरण से होने वाले भारी नुकसान की जानकारी दी जाएगी।
उन्होंने कहा, मुम्बई में निजी क्षेत्र में बिजली है और वहां घरेलू उपभोक्ताओं को 17-18 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलती है। संघर्ष समिति ने कहा कि जहां जहां भी निजीकरण है वहां के बिजली टैरिफ का चार्ट बनाकर घर घर वितरित करने की वृहत योजना बनाई है।
उन्होंने बताया कि उपभोक्ताओं के साथ निजीकरण का सबसे ज्यादा खामियाजा बिजली कर्मचारियों को उठाना पड़ेगा। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण होने से लगभग 50 हजार संविदा कर्मियों और 26 हजार नियमित कर्मचारियों की छंटनी होगी। कॉमन कैडर के अभियंताओं और जूनियर इंजीनियरों की बड़े पैमाने पर पदावनति और छंटनी होने वाली है। जहां भी निजीकरण हुआ है वहां बड़े पैमाने पर छंटनी हुई है।
विरोध सभा को सर्वश्री ई.नरेंद्र वर्मा, राजेंद्र सिंह, आरके वाही, संतोष वर्मा, ई. एस के सिंह, मदन श्रीवास्तव, रामकुमार झा, जितेंद्र कुमार आदि ने संबोधित किया।