बनारस जिसकी पहचान एक साझी विरासत/ ताना बाना/ साझी संस्कृति है और इसी से ये जाना पहचाना जाता है. आज कुछ लोग इस पहचान को मिटाने में लगे हैं. बनारस में पांच रेलवे स्टेशन हैं और सभी स्टेशन पर हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में स्टेशन के नाम का बोर्ड शुरुआत से ही लगा हुआ है. इधर कुछ सालों से उर्दू के नाम का बोर्ड हटा देने की कोशिश की जा रही है. पहले ये कोशिश वाराणसी कैंट स्टेशन पर की गयी लेकिन जागरूक नागरिकों द्वारा विरोध करने पर पुनः उर्दू का बोर्ड दो साल बाद लगाया गया.
इसके बाद फिर से वाराणसी सिटी रेलवे स्टेशन पर उर्दू वाला बोर्ड हटाने की पुनरावृति हुई. वाराणसी सिटी रेलवे स्टेशन वाराणसी के रेलवे स्टेशनों में से एक है. यह वाराणसी जंक्शन कैंट रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर पूर्व में स्थित है. स्टेशन के नवीनीकरण के नाम पर पहले तो सभी बोर्ड हटा दिए गए. बाद में हिंदी और इंग्लिश के बोर्ड तो लगा दिए गए, लेकिन उर्दू भाषा का बोर्ड नही लगाया गया. कई महीनों तक जब बोर्ड नही दिखाई दिया तो जागरूक नागरिकों ने इसका विरोध किया. गत 16 जुलाई को इस सवाल पर नागरिक समाज के हिन्दू और मुस्लिम लोगो के एक प्रतिनिधिमंडल ने सिटी रेलवे स्टेशन अधीक्षक से मिलकर ज्ञापन दिया. ज्ञापन में तत्काल उर्दू में बोर्ड लगाने की मांग की गयी थी. स्टेशन अधिशक ने आशवासन दिया था की एक हफ्ते में लग जाएगा. 27 जुलाई को खबर मिली कि हम लोगों की मांग के मुताबिक उर्दू में लिखा ‘सिटी रेलवे स्टेशन'’ के नाम का बोर्ड लग गया है.
27 जुलाई को उन लोगों की कोशिश नाकाम हो गयी जो हमारी साझी पहचान को मिटाना चाहते थे. सवाल सिर्फ एक उर्दू के बोर्ड का नहीं है बल्कि ये उर्दू भाषा एक बड़ी तादाद में लोगों की पहचान से जुडी है. बोर्ड हटा दिए जाने पर जहाँ मुस्लिम समुदाय खामोश और बेबस था वहीं बोर्ड दोबारा लग जाने पर ख़ुशी ज़ाहिर कर रहा है.
इस पूरी मुहिम में मुख्य रूप से डॉ. मुनीज़ा, मनीष शर्मा, सागर गुप्ता, शाहिद खान, ज़ुबैर अहमद, आदि शामिल थे।
उर्दू में बोर्ड लगाए जाने को लेकर ज्ञापन देने पहुंचे लोग
उर्दू में बोर्ड लगाए जाने को लेकर नागरिक समाज की तरफ से ज्ञापन में निम्नलिखित अपील की गई थी:
प्रति,
स्टेशन अधीक्षक
सिटी स्टेशन वाराणसी
विषय: उर्दू बोर्ड हटा दिए जाने के संबंध में....
महोदय, वाराणसी सिटी स्टेशन पर उर्दू भाषा वाला बोर्ड नहीं दिख रहा है,जबकि हिंदी और अंग्रेजी भाषा वाला बोर्ड लगा हुआ है, हम सब चिंतित हैं कि क्यों केवल उर्दू बोर्ड को हटाया गया है, क्या कोई ऐसा नया आदेश आया है, जिसके चलते ऐसा किया गया है, या कोई अन्य जरूरी वजह है. हम इस मसले पर आप से स्पष्ट जानकारी चाहते हैं. उत्तर प्रदेश और देश में आज जिस तरह का सांप्रदायिक राजनीतिक माहौल है, उसके चलते भी हम सब लोगों को ये चिंता है कि कहीं यह पहल राजनीतिक वजहों से तो नही लिया गया है. इस पूरे मामले में, कृपया आप स्पष्ट करें कि ऐसा क्यों हुआ है, और तत्काल उर्दू भाषा वाला बोर्ड लगवाने की गारंटी करें..
प्रेषक
नागरिक समाज, वाराणसी
कम्युनिस्ट फ्रंट, वाराणसी