हेमंत सोरेन के सदन में बहुमत प्राप्त करने के बाद छिड़ी सियासी नोक-झोंक में एक चर्चा वायरल हुई कि जिस राजभवन के परिसर के बाहर से गिरफ़्तार हुए थे, 156 दिनों बाद वहीं शपथ ली।
झारखंड विधान सभा के विशेष सत्र में हेमंत सोरेन ने फिर से बहुमत साबित कर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जो कि राज्य में जारी सियासी चर्चाओं के अनुरूप ही कहा जायेगा। क्योंकि जिन बेहद आपात स्थितियों में पार्टी (झारखंड मुक्ति मोर्चा) और गठबंधन के सभी घटक दलों ने एकमत होकर चम्पई सोरेन को मुख्यमंत्री का दायित्व संभालने की जवाबदेही दी थी, वह प्रकरण सबको मालूम है।
चम्पई सोरेन ने सौंपी गयी जिम्मेवारी को बखूबी निभाते हुए महागठबंधन की सरकार को बेहतर चलाया। हाई कोर्ट से जमानत के बाद हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के पश्चात पुनः सर्वसम्मति से उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभालने का निर्णय दिया गया तो चम्पई ने इस फैसले का भी अनुपालन करते हुए मुख्यमंत्री पद को छोड़ दिया। अब वे नयी सरकार में कैबिनेट मंत्री की हैसियत से शामिल किये गए हैं।
हालांकि “प्रायोजित मीडिया कयासों” के जरिये- “खतरे में है चम्पई सोरेन की कुर्सी” व ‘क्या चम्पई पद छोड़ेंगे” जैसे मीडिया-नैरेटिव भी जम कर प्रचारित-प्रसारित किया गया। जबकि भाजपा ने चम्पई सोरेन के साथ सहानुभूति दर्शाते हुए हेमंत सोरेन को आड़े हाथों लेने में कोई कोताही नहीं बरती।
यह भी चौंकाने जैसा ही रहा कि विधान सभा में विश्वास मत हासिल करने के दूसरे दिन की मीडिया ख़बरों में ईडी द्वारा झारखंड हाई कोर्ट के फैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिका को प्रमुखता देते हुए हेमन्त सोरेन के फिर से सत्ता से बाहर होने की अटकलें- “आज ही बने सीएम, क्या फिर से छिन जाएगी कुर्सी”, “ब्रेकिंग न्यूज़” में छाई रहीं।
8 जुलाई को सम्पन्न हुए विधान सभा के विशेष सत्र शुरू होने से पहले ही विपक्षी दल भाजपा के कई विधायक विधान सभा के प्रवेश द्वार पर “कुर्सी का लालची हेमन्त सोरेन” जैसे नारे लिखी तख्तियों को लहराते हुए विरोध प्रदर्शित किये।
इतना ही नहीं हेमंत सोरेन द्वारा विश्वास-मत के दौरान अपनी बात रखे जाने के क्रम में भाजपा के “विधायकों” ने हेमंत सोरेन के आगे घूम घूमकर जिस तरह से उनके विरोध में नारे लगाकर संसदीय मर्यादा का उल्लंघन किया है, वैसा यदि किसी भाजपा शासित राज्य की विधान सभा में विपक्ष करता तो तय था कि उन्हें जबरन बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता या सभी को निलंबित कर दिया जाता।
लेकिन यह भी सबने देखा-सुना कि सदन में बोलते हुए हेमंत सोरेन ने पूरी बेबाकी से भाजपा पर जो आरोप लगाये, उसका तर्कपूर्ण उत्तर नहीं दिया गया बल्कि मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए “भारी शोर-शराबे” का माहौल बनाए रखा गया।
सदन में अपनी बात रखते हुए हेमन्त सोरेन ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि “भाजापा को लगता है कि वे एजेंसियों का दुरुपयोग कर, अपने धन बल और शातिराना चालों से इस राज्य के जनमत को भी दूसरे राज्यों की तरह खरीद लेंगे/लूट लेंगे। पर वे भूल जाते हैं कि हम झारखंडी हैं। हमने कभी अंग्रेजों के आगे घुटने नहीं टेके तो आज के अंग्रेज़ तानाशाह के सामने भी हम कभी नहीं झुकेंगे।
मुझे विधान सभा से दूर रखने के लिए हर षड्यंत्र रचा गया। उन्हें लगा कि मुझ पर झूठा मुकदमा लगाकर और जेल भेजकर मेरी आवाज़ दबा देंगे। पर वे भूल गए कि लोकतंत्र की आत्मा है जनता की आवाज़। जिसे दबाने की कोशिश में हारेगा हर एक तानाशाह।
भाजपा पर आरोप लगाते हुए यह भी कहा कि पिछले ढाई सालों में भाजपा ने जितनी शक्ति एक चुनी हुई सरकार को गिराने में लगायी है, अगर उतनी ही शक्ति झारखंड की भलाई में लगाई होती तो लोकसभा चुनाव में इनकी संख्या में गिरावट नहीं आती।
पिछले ढाई सालों में भाजपा का एकसूत्री कार्यक्रम रहा है, एजेंसियों का दुरुपयोग कर भाजपा विरोधी सरकारों को किसी तरह हटाया जा सके। किसी तरह से प्रलोभन-भय दिखाकर हमारे विधायकों/ सांसदों को अपने पाले में किया जा सके। पर मुझे गर्व है अपने झारखंडवासियों पर कि उन्होंने इन तानाशाहों के मंसूबों को क़ामयाब नहीं होने दिया।
‘विश्वास-मत’ के दौरान जहां विपक्षी दल भाजपा के लोग हेमंत विरोधी नारे लगा रहे थे तो दूसरी ओर, गठबंधन दलों के विधायक नारे लगा रहे थे, झारखण्ड में भाजपा का “ऑपरेशन लोटस” विफल रहा।
81 सदस्यीय विधान सभा में बहुमत हासिल करने के लिए 39 का आंकड़ा चाहिए, लेकिन ‘विश्वास-मत’ के दौरान हेमंत सोरेन सरकार के पक्ष में 45 विधायकों ने एक स्वर से हाथ उठाकर अपना समर्थन किया। जिसमें झामुमो के 27, कांग्रेस के 17 तथा राजद व भाकपा माले का एक-एक वोट मिला। वहीं विपक्ष में भाजपा के 24, आजसू के 03 और NCP के 1 विधायकों ने मतदान में अघोषित रूप से भाग नहीं लिया।
हेमंत सोरेन के सदन में बहुमत प्राप्त करने के बाद छिड़ी सियासी नोक-झोंक में एक चर्चा वायरल हुई कि जिस राजभवन के परिसर के बाहर से गिरफ्तार हुए थे, 156 दिनों बाद ही वहीं शपथ ली।
फिलहाल हेमंत सोरेन सरकार के सभी मंत्रियों का भी शपथ ग्रहण सम्पन्न हो चुका है। वहीं अपने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद ही हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री कार्यालय जाकर विधिवत अपना काम शुरू कर दिया।
गौरतलब है कि झारखंड विधान सभा का चुनाव भी इसी वर्ष होने की काफी चर्चा है। जिसकी रणनीतिक तैयारी के लिए भाजपा ने विशेष प्रभारी नियुक्त भी किये हैं। ज़ल्द ही अमित शाह यहां के दौरे पर आने वाले हैं। उधर आरएसएस प्रमुख 10 दिनों के दौरे पर झारखंड पहुंच चुके हैं।
भाकपा माले ने भाजपा पर त्वरित टिपण्णी देते हुए कहा है कि, मध्यप्रदेश के मंदसौर में किसानों और झारखंड के तपकरा में विस्थापितों के जनसंहार के मुख्य सूत्रधारों, शिवराज चौहान और बाबूलाल मरांडी को बीजेपी ने राज्य की कमान सौंपी है। साम्प्रदायिकता का ज़हर फैलानेवाले असम के भ्रष्ट मुख्यमंत्री हेमंत विश्वशर्मा को भी इस टीम में शामिल कर लिया गया है। झारखंड के लिए यह सर्वनाशी टीम है।
Courtesy: Newsclick
झारखंड विधान सभा के विशेष सत्र में हेमंत सोरेन ने फिर से बहुमत साबित कर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जो कि राज्य में जारी सियासी चर्चाओं के अनुरूप ही कहा जायेगा। क्योंकि जिन बेहद आपात स्थितियों में पार्टी (झारखंड मुक्ति मोर्चा) और गठबंधन के सभी घटक दलों ने एकमत होकर चम्पई सोरेन को मुख्यमंत्री का दायित्व संभालने की जवाबदेही दी थी, वह प्रकरण सबको मालूम है।
चम्पई सोरेन ने सौंपी गयी जिम्मेवारी को बखूबी निभाते हुए महागठबंधन की सरकार को बेहतर चलाया। हाई कोर्ट से जमानत के बाद हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के पश्चात पुनः सर्वसम्मति से उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभालने का निर्णय दिया गया तो चम्पई ने इस फैसले का भी अनुपालन करते हुए मुख्यमंत्री पद को छोड़ दिया। अब वे नयी सरकार में कैबिनेट मंत्री की हैसियत से शामिल किये गए हैं।
हालांकि “प्रायोजित मीडिया कयासों” के जरिये- “खतरे में है चम्पई सोरेन की कुर्सी” व ‘क्या चम्पई पद छोड़ेंगे” जैसे मीडिया-नैरेटिव भी जम कर प्रचारित-प्रसारित किया गया। जबकि भाजपा ने चम्पई सोरेन के साथ सहानुभूति दर्शाते हुए हेमंत सोरेन को आड़े हाथों लेने में कोई कोताही नहीं बरती।
यह भी चौंकाने जैसा ही रहा कि विधान सभा में विश्वास मत हासिल करने के दूसरे दिन की मीडिया ख़बरों में ईडी द्वारा झारखंड हाई कोर्ट के फैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिका को प्रमुखता देते हुए हेमन्त सोरेन के फिर से सत्ता से बाहर होने की अटकलें- “आज ही बने सीएम, क्या फिर से छिन जाएगी कुर्सी”, “ब्रेकिंग न्यूज़” में छाई रहीं।
8 जुलाई को सम्पन्न हुए विधान सभा के विशेष सत्र शुरू होने से पहले ही विपक्षी दल भाजपा के कई विधायक विधान सभा के प्रवेश द्वार पर “कुर्सी का लालची हेमन्त सोरेन” जैसे नारे लिखी तख्तियों को लहराते हुए विरोध प्रदर्शित किये।
इतना ही नहीं हेमंत सोरेन द्वारा विश्वास-मत के दौरान अपनी बात रखे जाने के क्रम में भाजपा के “विधायकों” ने हेमंत सोरेन के आगे घूम घूमकर जिस तरह से उनके विरोध में नारे लगाकर संसदीय मर्यादा का उल्लंघन किया है, वैसा यदि किसी भाजपा शासित राज्य की विधान सभा में विपक्ष करता तो तय था कि उन्हें जबरन बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता या सभी को निलंबित कर दिया जाता।
लेकिन यह भी सबने देखा-सुना कि सदन में बोलते हुए हेमंत सोरेन ने पूरी बेबाकी से भाजपा पर जो आरोप लगाये, उसका तर्कपूर्ण उत्तर नहीं दिया गया बल्कि मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए “भारी शोर-शराबे” का माहौल बनाए रखा गया।
सदन में अपनी बात रखते हुए हेमन्त सोरेन ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि “भाजापा को लगता है कि वे एजेंसियों का दुरुपयोग कर, अपने धन बल और शातिराना चालों से इस राज्य के जनमत को भी दूसरे राज्यों की तरह खरीद लेंगे/लूट लेंगे। पर वे भूल जाते हैं कि हम झारखंडी हैं। हमने कभी अंग्रेजों के आगे घुटने नहीं टेके तो आज के अंग्रेज़ तानाशाह के सामने भी हम कभी नहीं झुकेंगे।
मुझे विधान सभा से दूर रखने के लिए हर षड्यंत्र रचा गया। उन्हें लगा कि मुझ पर झूठा मुकदमा लगाकर और जेल भेजकर मेरी आवाज़ दबा देंगे। पर वे भूल गए कि लोकतंत्र की आत्मा है जनता की आवाज़। जिसे दबाने की कोशिश में हारेगा हर एक तानाशाह।
भाजपा पर आरोप लगाते हुए यह भी कहा कि पिछले ढाई सालों में भाजपा ने जितनी शक्ति एक चुनी हुई सरकार को गिराने में लगायी है, अगर उतनी ही शक्ति झारखंड की भलाई में लगाई होती तो लोकसभा चुनाव में इनकी संख्या में गिरावट नहीं आती।
पिछले ढाई सालों में भाजपा का एकसूत्री कार्यक्रम रहा है, एजेंसियों का दुरुपयोग कर भाजपा विरोधी सरकारों को किसी तरह हटाया जा सके। किसी तरह से प्रलोभन-भय दिखाकर हमारे विधायकों/ सांसदों को अपने पाले में किया जा सके। पर मुझे गर्व है अपने झारखंडवासियों पर कि उन्होंने इन तानाशाहों के मंसूबों को क़ामयाब नहीं होने दिया।
‘विश्वास-मत’ के दौरान जहां विपक्षी दल भाजपा के लोग हेमंत विरोधी नारे लगा रहे थे तो दूसरी ओर, गठबंधन दलों के विधायक नारे लगा रहे थे, झारखण्ड में भाजपा का “ऑपरेशन लोटस” विफल रहा।
81 सदस्यीय विधान सभा में बहुमत हासिल करने के लिए 39 का आंकड़ा चाहिए, लेकिन ‘विश्वास-मत’ के दौरान हेमंत सोरेन सरकार के पक्ष में 45 विधायकों ने एक स्वर से हाथ उठाकर अपना समर्थन किया। जिसमें झामुमो के 27, कांग्रेस के 17 तथा राजद व भाकपा माले का एक-एक वोट मिला। वहीं विपक्ष में भाजपा के 24, आजसू के 03 और NCP के 1 विधायकों ने मतदान में अघोषित रूप से भाग नहीं लिया।
हेमंत सोरेन के सदन में बहुमत प्राप्त करने के बाद छिड़ी सियासी नोक-झोंक में एक चर्चा वायरल हुई कि जिस राजभवन के परिसर के बाहर से गिरफ्तार हुए थे, 156 दिनों बाद ही वहीं शपथ ली।
फिलहाल हेमंत सोरेन सरकार के सभी मंत्रियों का भी शपथ ग्रहण सम्पन्न हो चुका है। वहीं अपने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद ही हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री कार्यालय जाकर विधिवत अपना काम शुरू कर दिया।
गौरतलब है कि झारखंड विधान सभा का चुनाव भी इसी वर्ष होने की काफी चर्चा है। जिसकी रणनीतिक तैयारी के लिए भाजपा ने विशेष प्रभारी नियुक्त भी किये हैं। ज़ल्द ही अमित शाह यहां के दौरे पर आने वाले हैं। उधर आरएसएस प्रमुख 10 दिनों के दौरे पर झारखंड पहुंच चुके हैं।
भाकपा माले ने भाजपा पर त्वरित टिपण्णी देते हुए कहा है कि, मध्यप्रदेश के मंदसौर में किसानों और झारखंड के तपकरा में विस्थापितों के जनसंहार के मुख्य सूत्रधारों, शिवराज चौहान और बाबूलाल मरांडी को बीजेपी ने राज्य की कमान सौंपी है। साम्प्रदायिकता का ज़हर फैलानेवाले असम के भ्रष्ट मुख्यमंत्री हेमंत विश्वशर्मा को भी इस टीम में शामिल कर लिया गया है। झारखंड के लिए यह सर्वनाशी टीम है।
Courtesy: Newsclick