मुसलमानों के ख़िलाफ़ हेट स्पीच और योग दिवस का इवेंट मैनेजमेंट !

Written by एस एन साहू | Published on: June 22, 2024
हाल ही में मोदी द्वारा दिए गए नफ़रत भरे भाषण योग के सिद्धांतों तथा सत्य और अहिंसा के उसके आधारभूत आदर्शों के विपरीत हैं।


फ़ाइल फ़ोटो (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स/पीएमओ)

21 जून, 2024 को एक और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। इस वर्ष का थीम था, “खुद के और समाज के कल्याण के लिए योग” जिसमें व्यक्तिगत तौर स्वस्थ रहने और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका पर विशेष ध्यान दिया गया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर का दौरा किया और योग दिवस मनाने के लिए वहां एक सभा की, जो एक इवेंट मैनेजमेंट अभ्यास था। यह बिना किसी धूमधाम और प्रचार के शांत वातावरण में किए जाने वाले योग के लोकाचार के विपरीत है।

मोदी के नफ़रत भरे भाषण योग को नकारते हैं 

इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर सामाजिक सद्भाव की बात की जा रही है, जिसे मोदी द्वारा हाल ही में संपन्न 18वें आम चुनावों के प्रचार के दौरान दो सप्ताह पहले मुसलमानों के खिलाफ दिए गए अनेक घृणास्पद भाषणों द्वारा नकार दिया गया है।

प्रधानमंत्री द्वारा इस्लामी आस्था रखने वाले लोगों के खिलाफ़ तीखी टिप्पणी और उनका बार-बार यह कहना कि वे “घुसपैठिए” हैं और अगर उनके राजनीतिक विरोधी सत्ता में आए तो वे हिंदुओं की संपत्ति हड़प लेंगे, सामाजिक सद्भाव के आदर्शों के विपरीत है। यहां तक कि उनके द्वारा बार-बार इस झूठा दावा करना कि सत्ता में आने पर कुछ राजनीतिक दल दलितों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों को दिए गए आरक्षण को छीनकर मुसलमानों को उसका हकदार बना देंगे, इस तरह का दावा भी चुनावी लाभ के लिए सामाजिक वैमनस्य पैदा करने के उद्देश्य से किया गया था।

उनके भाषणों में प्रदर्शित इस्लामोफोबिया ने राष्ट्र को झकझोर दिया था तथा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को नाराज कर दिया था।

विवेकानंद ने योग को अत्याचारियों से लड़ने की क्षमता से जोड़ा था

यदि स्वामी विवेकानंद जीवित होते, तो वे इसे घृणित मानते कि प्रधानमंत्री के पद पर आसीन कोई व्यक्ति, जो संयुक्त राष्ट्र को प्रतिवर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने के लिए प्रेरित करने का श्रेय ले रहा है, अपने कार्यों और भाषणों में आस्था के नाम पर लोगों के खिलाफ ज़हर उगल रहा है।

स्वामी विवेकानंद योग पर अपनी उस टिप्पणी को भी याद करते जो उन्होंने अमेरिका में “साधना या उच्च जीवन जीने की तैयारी” विषय पर बोलते हुए कही थी। उन्होंने कहा था, “कोई भी सांस लेना, योग का कोई भी शारीरिक प्रशिक्षण, कुछ भी तब तक किसी काम का नहीं है जब तक आप इस विचार तक नहीं पहुंच जाते कि, “मैं साक्षी हूं।” जब अत्याचारी हाथ आपकी गर्दन पर हो, तो कहे, “मैं साक्षी हूं! मैं साक्षी हूं!” कहे, “मैं आत्मा हूं! कोई भी बाहरी चीज़ मुझे छू नहीं सकती।” जब बुरे विचार उठें, तो इसे दोहराएं, उनके सिर पर हथौड़े से वार करें, “मैं आत्मा हूं!

दुर्भाग्यवश, सत्तारूढ़ नेतृत्व ने हमारे देश को चुनावी निरंकुशता के स्तर तक को इतना नीचे तक खींच लिया है, जहां विस्मृति का सर्वव्यापी सिद्धांत उनके शासन को कायम रखता है।

स्वामी विवेकानंद के शब्द "अत्याचारी हाथ आपकी गर्दन पर है" पिछले 10 वर्षों में भारत में एक वास्तविकता बन गए हैं। हमें अपनी स्वतंत्रता और लोकतंत्र को वापस पाने के लिए योग द्वारा "मैं साक्षी हूं" कहने की शक्ति हासिल करने की जरूरत है। योग का यह क्रांतिकारी अर्थ है, जो देश की संवैधानिक दृष्टि के पूर्ण उल्लंघन में भारत में चल रहे तानाशाही शासन के तरीकों से मुक्ति के लिए है। केवल आसन, योगिक मुद्राएं, पर्याप्त नहीं हैं; हमें अपने जीवन और स्वतंत्रता को कुचलने वाले नेताओं को चुनौती देने के लिए योग की भावना को आत्मसात करने की आवश्यकता है।

योग धार्मिक बहुलवाद की सराहना करता है

अमेरिका में "एहसास करने का लक्ष्य और विधि" विषय पर दिए गए एक अन्य भाषण में, विवेकानंद ने योग के विभिन्न प्रकारों - कर्म, भक्ति, रज, ज्ञान - का उल्लेख किया और कहा, "ये सभी एक ही केंद्र - ईश्वर - की ओर ले जाने वाले विभिन्न मार्ग हैं।"

उन्होंने आगे कहा कि सभी धर्मों के सह-अस्तित्व को बरकरार रखते हुए उन्होंने कहा, "वास्तव में, धार्मिक विश्वास की विविधता एक लाभ है, क्योंकि सभी धर्म अच्छे हैं, जहां तक वे मनुष्य को धार्मिक जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। जितने अधिक संप्रदाय होंगे, सभी मनुष्यों में दैवीय प्रवृत्ति को सफलतापूर्वक अपील करने के उतने ही अधिक अवसर होंगे।"

योग के अर्थ को समझाने के संदर्भ में विवेकानंद द्वारा कहे गए शब्द, “…धार्मिक विश्वास की विविधता एक लाभ है, क्योंकि सभी धर्म अच्छे हैं”, तब और अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं जब मोदी, प्रधानमंत्री के रूप में, मुसलमानों के खिलाफ जहरीले भाषण देकर योग के सार को रौंदते हैं, धार्मिक वैमनस्य, कलह और घृणा को बढ़ावा देते हैं। इसलिए, मोदी की घोषणाएं इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के विषयों में से एक “…व्यक्तिगत कल्याण और सामाजिक सद्भाव दोनों” को कैसे बढ़ावा देती हैं?

गांधी और योग

योग धर्म के ध्यान संबंधी पहलुओं में निहित है जो नैतिकता और अहिंसा के मूल्यों का अभिन्न अंग हैं। पतंजलि के आठ योगों के अंग में, पहले अंग में सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और चोरी न करने का प्रावधान है। ये आदर्श योग के पहले अक्षर का निर्माण करते हैं। महात्मा गांधी ने किसी भी योगिक अभ्यास का पालन नहीं किया, लेकिन सत्य और अहिंसा को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता हासिल करने के लिए भारत के संघर्ष का आधार बनाया।

दूसरी ओर, मोदी नफरत भरे भाषण दे रहे हैं जो योग और सत्य और अहिंसा के इसके मूलभूत आदर्शों का मखौल उड़ाते हैं। योग और सामाजिक सद्भाव पर वाक्पटुता दिखाने से पहले उन्हें इन आदर्शों के उल्लंघन से खुद को मुक्त करना चाहिए।

लेखक, भारत के राष्ट्रपति के.आर. नारायणन के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटि थे। यह उनके निजी विचार हैं।

अनुवाद- महेश कुमार
साभार- न्यूजक्लिक

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