"देश के दो सबसे बड़े राज्यों और मंडल राजनीति के केंद्र रहे बिहार व उत्तर प्रदेश में मंडल की राजनीति इस बार और ज्यादा आक्रामक तरीके से लौटती दिख रही है। इस बार मंडल की पार्टियां मंदिर (कमंडल) राजनीति से सीधी टक्कर ले रही हैं। वे उसके बीच अपनी जगह नहीं तलाश रही हैं, बल्कि उससे टकरा कर हमेशा के लिए अपनी स्थायी जगह बनाने की राजनीति कर रही हैं। हालांकि मंडल राजनीति के अगुवा खिलाड़ी बने सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने दो टूक कहा है कि वह किसी धर्म या भगवान राम के खिलाफ नहीं है, वे रामचरितमानस के कुछ चौपाइयों के खिलाफ है और वो झुकेंगे नहीं।"
जी हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई 2021 में मंत्रिमंडल विस्तार के बाद बड़े गर्व से बताया था कि उनकी सरकार में 47 मंत्री पिछड़े, दलित और आदिवासी समुदाय के हैं। उनकी सरकार में 27 मंत्री पिछड़े समुदाय के हैं, 12 मंत्री अनुसूचित जाति और 8 अनुसूचित जनजाति के हैं। मंत्रिमंडल में फेरबदल के बाद जब वे संसद में नए मंत्रियों का परिचय करा रहे थे तो विपक्ष के हंगामे का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं सोच रहा था कि आज सदन में उत्साह का वातावरण होगा क्योंकि बहुत बड़ी संख्या में हमारी महिला सांसद, एससी-एसटी समुदाय के भाई, किसान परिवार से आए सांसदों को मंत्री परिषद में मौका मिला है। उनका परिचय करने का आनंद होता, लेकिन शायद देश के दलित, महिला, ओबीसी, किसानों के बेटे मंत्री बनें ये बात कुछ लोगों को रास नहीं आती है। इसलिए उनका परिचय तक नहीं होने देते’। इसके बाद कहा जाने लगा था कि मंडल से निकली पार्टियों की बजाय, भाजपा अब मंडल की राजनीति कर रही है।
सवाल है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह अंदाजा था कि आने वाले दिनों में मंडल राजनीति की वापसी हो सकती है और तब कमंडल यानी मंदिर की राजनीति के बरक्स जातियों को खड़ा किया जाएगा, इसलिए उन्होंने पहले ही अपनी और भाजपा की पोजिशनिंग मंडल राजनीति वाली कर दी थी? यह सवाल इसलिए है क्योंकि देश के दो सबसे बड़े राज्यों और मंडल राजनीति के केंद्र रहे बिहार व उत्तर प्रदेश में मंडल की राजनीति लौटी है और इस बार ज्यादा आक्रामक तरीके से लौटी है। इस बार मंडल की पार्टियां मंदिर राजनीति से सीधी टक्कर ले रही हैं। वे उसके बीच अपनी जगह नहीं तलाश रही हैं, बल्कि उससे टकरा कर हमेशा के लिए अपनी स्थायी जगह बनाने की राजनीति कर रही हैं।
इस राजनीति के तहत अयोध्या में राममंदिर के निर्माण को चुनौती नहीं दी गई है, बल्कि रामकथा कहने वाले ग्रंथ रामचरित मानस को चुनौती दी है। जिस ग्रंथ से राम की कथा जन जन तक पहुंची है उस ग्रंथ को पिछड़ा व दलित विरोधी बताया जा रहा है। इस मुद्दे पर अखिलेश यादव के बाद जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बसपा सुप्रीमो मायावती मैदान में कूद पड़ी है वहीं स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा है कि "मैं किसी धर्म या भगवान राम के खिलाफ नहीं हूं, मैं रामचरितमानस के कुछ चौपाइयों के खिलाफ हूं। और मैं झुकूंगा नहीं।"
दरअसल, समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा रामचरितमानस पर दिए बयान पर बवाल रुकने का नाम नहीं ले रहा है। जहां सपा नेता पर यूपी सहित अलग-अलग राज्यों में FIR दर्ज हुई है। अब हिंदू महासभा की तरफ से मध्य प्रदेश के ग्वालियर में भी मौर्य के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई है। इस शिकायत के बाद ही मौर्य ने कहा है कि वो झुकने वाले नहीं है। मौर्य ने कहा है कि इस मामले को उठाकर उन्हें खुशी हो रही है और वो अपने बयान पर झुकेंगे नहीं।
गौरतलब है कि सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने हिंदू महाकाव्य रामचरितमानस की चौपाइयों को “पिछड़े-विरोधी और महिला-विरोधी” बताया था। इस बीच हिंदुस्तान टाइम्स को दिए साक्षात्कार में 69 वर्षीय मौर्य ने इस विवाद पर बात करते हुए कहा कि वह अपने रुख से नहीं हटेंगे। ‘मैं भगवान राम नहीं बल्कि रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों के खिलाफ हूं’। उन्होंने कहा, “मैं किसी धर्म या भगवान राम के खिलाफ नहीं हूं।” उन्होंने कहा कि उस काल में बाबा तुलसीदास को इस प्रकार लिखने के लिए किसने प्रेरित किया, यह महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि महत्वपूर्ण महिलाओं और 600 से अधिक दलित उपजातियों के लिए सम्मान सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। इसके लिए यदि हमें कुछ चौपाइयों को हटाना पड़े तो हमें करना होगा।
‘दलित, पिछड़े सिर्फ वोट के लिए हिंदू हैं?’
मौर्य से पूछा गया कि ओबीसी भी तो हिन्दू हैं और उसी रामचरितमानस को मानते हैं जिसकी चौपाइयों का आप विरोध कर रहे हैं? इस पर सपा नेता ने कहा, “ठीक बात है लेकिन क्या पिछड़े, दलित और आदिवासी सिर्फ वोट के लिए हिंदू हैं? मुझे उनके हिंदू होने में कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन वोट देने के बाद क्या वे सम्मान के हकदार नहीं हैं?”
‘पीछे नहीं हटूंगा’:
स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि मुझे खुशी है कि मैंने जो मुद्दा उठाया है उसको लेकर अब पूरे देश में बहस चल रही है। टीवी स्टूडियो और अखबारों से लेकर बोर्डरूम और शैक्षणिक संस्थानों तक इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है। मैं चाहता हूं कि लोग सोचें और अगर यह बहस चलती रही तो निश्चित रूप से मंथन होगा और कुछ सकारात्मक परिणाम निकलेंगे। जहां तक मेरी बात है तो मैं अपनी ओर से सकारात्मक बदलाव के लिए प्रयास करता रहूंगा। इस पर पीछे नहीं हटूंगा।
यही नहीं, सपा राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने गुरुवार को कहा था कि धर्म की आड़ में की जाने वाली अपमानजनक टिप्पणियों का दर्द केवल महिलाएं और शूद्र ही समझ सकते हैं। मौर्य ने ट्वीट किया कि ‘‘इंडियंस आर डाग्स’’ कहकर अंग्रेजों ने जो अपमान व बदसलूकी ट्रेन में (महात्मा) गांधी जी के साथ की थी, वह दर्द उन्होंने ही समझा था। उसी प्रकार धर्म की आड़ में जो अपमानजनक टिप्पणियां महिलाओं व शुद्र समाज के लिये की जाती हैं उसका दर्द भी वही लोग समझते हैं।
गौरतलब है कि सपा के विधान परिषद सदस्य स्वामी प्रसाद मौर्य ने 22 जनवरी को कहा था कि श्रीरामचरितमानस की कुछ पंक्तियों में जाति, वर्ण और वर्ग के आधार पर यदि समाज के किसी वर्ग का अपमान हुआ है तो वह निश्चित रूप से वह धर्म नहीं है, यह ‘अधर्म’ है। मौर्य के खिलाफ कार्रवाई के लिए भाजपा और अन्य हिंदुत्व संगठनों के शोर के बीच, सपा ने शुरू में आधिकारिक लाइन ली कि पूर्व भाजपा नेता के विचार पूरी तरह से उनके अपने थे और पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने एक अध्ययनपूर्ण चुप्पी बनाए रखी। मौर्य ने कहा था, ‘‘श्रीरामचरित मानस की कुछ पंक्तियों में तेली और ‘कुम्हार’ जैसी जातियों के नामों का उल्लेख है, जो इन जातियों के लाखों लोगों की भावनाओं को आहत करती हैं।’’
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सपा इस विवाद को 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले निचली जाति के वोटों को मजबूत करने के एक अवसर के रूप में देख रही है, अब यह रुख बदलता दिख रहा है। मौर्य ने मांग की थी कि पुस्तक के ऐसे हिस्से पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए जो किसी की जाति या ऐसे किसी चिह्न के आधार पर किसी का अपमान करते हैं। मामले में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के 'शूद्र' वाला बयान दिया तो सियासी घमासान मच गया। अखिलेश यादव ने 'शूद्र' पर विधानसभा में सीएम योगी आदित्यनाथ से सवाल पूछने की बात कही थी। जिसके बाद मुख्यमंत्री योगी का बयान आया। कि जवाब उन्हें देना चाहिए जो जवाब को समझ सकें। अराजकता पैदा करने वालों को क्या जवाब दिया जाए।" रामचरितमानस विवाद पर योगी ने कहा, "रामचरितमानस का मुद्दा इसलिए उठाया जा रहा है ताकि सरकार ने जो विकास किया है उस मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाया जा सके। जिन लोगों का यूपी के विकास में कोई योगदान नहीं है वह जानबूझकर इस मुद्दे को उठा रहे हैं। उनकी पहचान का संकट बना हुआ है। इसीलिए अब रामचरितमानस का मुद्दा उठा रहे हैं।" अब बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी प्रतिक्रिया दी है।
मायावती ने शुक्रवार को कहा, "देश में कमजोर व उपेक्षित वर्गों का रामचरितमानस व मनुस्मृति आदि ग्रंथ नहीं बल्कि भारतीय संविधान है। जिसमें बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर ने इनको शूद्रों की नहीं बल्कि एससी, एसटी व ओबीसी की संज्ञा दी है। अतः इन्हें शूद्र कहकर सपा इनका अपमान न करे तथा न ही संविधान की अवहेलना करे।" बसपा चीफ ने कहा, "इतना ही नहीं, देश के अन्य राज्यों की तरह यूपी में भी दलितों, आदिवासियों व ओबीसी समाज के शोषण, अन्याय, नाइन्साफी तथा इन वर्गों में जन्मे महान संतों, गुरुओं व महापुरुषों आदि की उपेक्षा एवं तिरस्कार के मामले में कांग्रेस, भाजपा व समाजवादी पार्टी भी कोई किसी से कम नहीं।"
क्या है पूरा मामला?
मामला रामचरितमानस की चौपाई ''प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥ ढोल गंवार सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥'' का है जिस पर यूपी से बिहार तक राजनीतिक घमासान मचा है।
बिहार के शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर ने पिछले दिनों नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के 15वें दीक्षांत समारोह के दौरान रामचरितमानस पर विवादित टिप्पणी की थी। उन्होंने इसे नफरत को बोने वाला और देश को बांटने वाला ग्रंथ बताया था। इन सबके बीच उत्तर प्रदेश में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को बकवास बताते हुए सरकार से उसे बैन करने की मांग की है। उन्होंने कहा, रामचरितमानस में दलितों और महिलाओं का अपमान किया गया है। उन्होंने कहा कि इसमें कुछ अंश ऐसे हैं, जिनपर हमें आपत्ति है। क्योंकि किसी भी धर्म में किसी को गाली देने का कोई अधिकार नहीं है।
स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में यूपी में कई जगहों पर रामचरितमानस की प्रतियां जलाने की घटनाएं सामने आई थीं। इसके बाद कई जगह पर स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ केस भी दर्ज हुआ है। इसे लेकर बीजेपी लगातार सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और स्वामी प्रसाद मौर्य पर निशाना साध रही है।
अखिलेश ने खुद को बताया शूद्र
रामचरितमानस को लेकर जारी विवाद के बीच अखिलेश यादव ने खुद को शूद्र बताया था। उन्होंने कहा था कि बीजेपी के लोग हम सबको शूद्र मानते हैं। हम उनकी नजर में शूद्र से ज्यादा कुछ भी नहीं है। अखिलेश ने कहा कि बीजेपी को यह तकलीफ है कि हम संत-महात्माओं से आशीर्वाद लेने क्यों जा रहे हैं।
दरअसल, अखिलेश यादव लखनऊ में गोमती नदी के किनारे मां पीतांबरा मंदिर में चल रहे मां पीतांबरा 108 महायज्ञ में शामिल होने पहुंचे थे। इस दौरान अखिलेश यादव का हिंदू महासभा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ ही हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने विरोध किया और जमकर नारेबाजी की। साथ ही अखिलेश को काले झंडे भी दिखाए। इतना ही नहीं अखिलेश के इस बयान के बाद सपा दफ्तर में होर्डिंग लगाए गए थे, इनमें लिखा था, ''गर्व से कहो, हम शूद्र हैं।''
हालांकि रामचरित मानस की यह इकलौती चौपाई नहीं है, जिस पर विवाद है। मंडल की राजनीति करने वालों कुछ लोगों का कहना है कि कुल 135 लाइनें रामचरित मानस में ऐसी हैं, जिनमें जातियों का जिक्र है। इनमें हर जगह ब्राह्मण की तारीफ की गई है और पिछड़ी जातियों को नीचा दिखाया गया है। वरिष्ठ पत्रकार अजीत दिवेद्वी के अनुसार, राम कथा के इस आधार ग्रंथ को पिछड़ा व दलित विरोधी ठहरा कर इसके सहारे हिंदुत्व की राजनीति की धार कमजोर की जा रही है। साथ ही ये पिछड़ों की गोलबंदी कराने का प्रयास है। हालांकि यह बहुत जोखिम भरा काम है क्योंकि रामचरित मानस को हिंदू मन मस्तिष्क से निकालना आसान नहीं है। यह भी संभव है कि दांव उलटा पड़ जाए। उत्तर प्रदेश विधानसभा में सोशलिस्ट पार्टी के विधायक रामपाल सिंह यादव ने 1974 में विधानसभा के अंदर रामचरित मानस के पन्ने फाड़ डाले थे। इसके बाद उनको रामायण फाड़ यादव कहा जाने लगा था। लेकिन वे 1977 की जनता लहर में भी चुनाव हार गए और फिर कभी नहीं जीते। हालांकि तब से अब तक गंगा-जमुना और सरयू में काफी पानी बह चुका है। उसके बाद मंडल रिपोर्ट लागू हुई थी और उसकी काट में कमंडल यानी मंदिर की राजनीति लालकृष्ण आडवाणी ने तेज की थी। अब मंदिर और हिंदुत्व की राजनीति की काट में मंडल राजनीति की वापसी हो रही है।
रामचरित मानस के विरोध के साथ साथ इस राजनीति का दूसरा पहलू जाति जनगणना का भी है। बिहार में जातियों की गिनती शुरू हो गई है। इसके आंकड़े इस साल के मध्य तक या उसके बाद कभी भी आ सकते हैं। उससे राजनीति में नए किस्म का ध्रुवीकरण होगा। हिंदुत्व के नाम पर होने वाले ध्रुवीकरण के बरक्स जातियों की गोलबंदी होगी। एक अनुमान के मुताबिक 52 से 54 फीसदी आबादी पिछड़ी जातियों की है। अगर इसका बड़ा हिस्सा मंडल की राजनीति करने वाली पार्टियों के साथ एकजुट होता है और उसके साथ मुस्लिम जुड़ते हैं तो उससे चमत्कारिक समीकरण बनेगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा उसकी काट में हिंदुत्व का ही कार्ड ज्यादा आक्रामक तरीके से चलती है या नरेंद्र मोदी ने पिछड़ा, दलित राजनीति की बिसात पर जो मोहरे सजाए हैं उनको आगे बढ़ाती है? लोकसभा चुनाव में अभी 13-14 महीने बचे हैं। इस अवधि में मंडल राजनीति का और नया स्वरूप बिहार व उत्तर प्रदेश में देखने को मिलेगा। उसका जवाब देने के लिए भाजपा जो पहल करेगी वह भी काफी दिलचस्प होगी। आखिर इन दो राज्यों की 120 लोकसभा सीटों में से भाजपा के पास 79 और उसकी सहयोगियों के पास आठ सीटें हैं। वह इसे आसानी से नहीं छोड़ेगी।
जी हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई 2021 में मंत्रिमंडल विस्तार के बाद बड़े गर्व से बताया था कि उनकी सरकार में 47 मंत्री पिछड़े, दलित और आदिवासी समुदाय के हैं। उनकी सरकार में 27 मंत्री पिछड़े समुदाय के हैं, 12 मंत्री अनुसूचित जाति और 8 अनुसूचित जनजाति के हैं। मंत्रिमंडल में फेरबदल के बाद जब वे संसद में नए मंत्रियों का परिचय करा रहे थे तो विपक्ष के हंगामे का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं सोच रहा था कि आज सदन में उत्साह का वातावरण होगा क्योंकि बहुत बड़ी संख्या में हमारी महिला सांसद, एससी-एसटी समुदाय के भाई, किसान परिवार से आए सांसदों को मंत्री परिषद में मौका मिला है। उनका परिचय करने का आनंद होता, लेकिन शायद देश के दलित, महिला, ओबीसी, किसानों के बेटे मंत्री बनें ये बात कुछ लोगों को रास नहीं आती है। इसलिए उनका परिचय तक नहीं होने देते’। इसके बाद कहा जाने लगा था कि मंडल से निकली पार्टियों की बजाय, भाजपा अब मंडल की राजनीति कर रही है।
सवाल है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह अंदाजा था कि आने वाले दिनों में मंडल राजनीति की वापसी हो सकती है और तब कमंडल यानी मंदिर की राजनीति के बरक्स जातियों को खड़ा किया जाएगा, इसलिए उन्होंने पहले ही अपनी और भाजपा की पोजिशनिंग मंडल राजनीति वाली कर दी थी? यह सवाल इसलिए है क्योंकि देश के दो सबसे बड़े राज्यों और मंडल राजनीति के केंद्र रहे बिहार व उत्तर प्रदेश में मंडल की राजनीति लौटी है और इस बार ज्यादा आक्रामक तरीके से लौटी है। इस बार मंडल की पार्टियां मंदिर राजनीति से सीधी टक्कर ले रही हैं। वे उसके बीच अपनी जगह नहीं तलाश रही हैं, बल्कि उससे टकरा कर हमेशा के लिए अपनी स्थायी जगह बनाने की राजनीति कर रही हैं।
इस राजनीति के तहत अयोध्या में राममंदिर के निर्माण को चुनौती नहीं दी गई है, बल्कि रामकथा कहने वाले ग्रंथ रामचरित मानस को चुनौती दी है। जिस ग्रंथ से राम की कथा जन जन तक पहुंची है उस ग्रंथ को पिछड़ा व दलित विरोधी बताया जा रहा है। इस मुद्दे पर अखिलेश यादव के बाद जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बसपा सुप्रीमो मायावती मैदान में कूद पड़ी है वहीं स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा है कि "मैं किसी धर्म या भगवान राम के खिलाफ नहीं हूं, मैं रामचरितमानस के कुछ चौपाइयों के खिलाफ हूं। और मैं झुकूंगा नहीं।"
दरअसल, समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा रामचरितमानस पर दिए बयान पर बवाल रुकने का नाम नहीं ले रहा है। जहां सपा नेता पर यूपी सहित अलग-अलग राज्यों में FIR दर्ज हुई है। अब हिंदू महासभा की तरफ से मध्य प्रदेश के ग्वालियर में भी मौर्य के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई है। इस शिकायत के बाद ही मौर्य ने कहा है कि वो झुकने वाले नहीं है। मौर्य ने कहा है कि इस मामले को उठाकर उन्हें खुशी हो रही है और वो अपने बयान पर झुकेंगे नहीं।
गौरतलब है कि सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने हिंदू महाकाव्य रामचरितमानस की चौपाइयों को “पिछड़े-विरोधी और महिला-विरोधी” बताया था। इस बीच हिंदुस्तान टाइम्स को दिए साक्षात्कार में 69 वर्षीय मौर्य ने इस विवाद पर बात करते हुए कहा कि वह अपने रुख से नहीं हटेंगे। ‘मैं भगवान राम नहीं बल्कि रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों के खिलाफ हूं’। उन्होंने कहा, “मैं किसी धर्म या भगवान राम के खिलाफ नहीं हूं।” उन्होंने कहा कि उस काल में बाबा तुलसीदास को इस प्रकार लिखने के लिए किसने प्रेरित किया, यह महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि महत्वपूर्ण महिलाओं और 600 से अधिक दलित उपजातियों के लिए सम्मान सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। इसके लिए यदि हमें कुछ चौपाइयों को हटाना पड़े तो हमें करना होगा।
‘दलित, पिछड़े सिर्फ वोट के लिए हिंदू हैं?’
मौर्य से पूछा गया कि ओबीसी भी तो हिन्दू हैं और उसी रामचरितमानस को मानते हैं जिसकी चौपाइयों का आप विरोध कर रहे हैं? इस पर सपा नेता ने कहा, “ठीक बात है लेकिन क्या पिछड़े, दलित और आदिवासी सिर्फ वोट के लिए हिंदू हैं? मुझे उनके हिंदू होने में कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन वोट देने के बाद क्या वे सम्मान के हकदार नहीं हैं?”
‘पीछे नहीं हटूंगा’:
स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि मुझे खुशी है कि मैंने जो मुद्दा उठाया है उसको लेकर अब पूरे देश में बहस चल रही है। टीवी स्टूडियो और अखबारों से लेकर बोर्डरूम और शैक्षणिक संस्थानों तक इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है। मैं चाहता हूं कि लोग सोचें और अगर यह बहस चलती रही तो निश्चित रूप से मंथन होगा और कुछ सकारात्मक परिणाम निकलेंगे। जहां तक मेरी बात है तो मैं अपनी ओर से सकारात्मक बदलाव के लिए प्रयास करता रहूंगा। इस पर पीछे नहीं हटूंगा।
यही नहीं, सपा राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने गुरुवार को कहा था कि धर्म की आड़ में की जाने वाली अपमानजनक टिप्पणियों का दर्द केवल महिलाएं और शूद्र ही समझ सकते हैं। मौर्य ने ट्वीट किया कि ‘‘इंडियंस आर डाग्स’’ कहकर अंग्रेजों ने जो अपमान व बदसलूकी ट्रेन में (महात्मा) गांधी जी के साथ की थी, वह दर्द उन्होंने ही समझा था। उसी प्रकार धर्म की आड़ में जो अपमानजनक टिप्पणियां महिलाओं व शुद्र समाज के लिये की जाती हैं उसका दर्द भी वही लोग समझते हैं।
गौरतलब है कि सपा के विधान परिषद सदस्य स्वामी प्रसाद मौर्य ने 22 जनवरी को कहा था कि श्रीरामचरितमानस की कुछ पंक्तियों में जाति, वर्ण और वर्ग के आधार पर यदि समाज के किसी वर्ग का अपमान हुआ है तो वह निश्चित रूप से वह धर्म नहीं है, यह ‘अधर्म’ है। मौर्य के खिलाफ कार्रवाई के लिए भाजपा और अन्य हिंदुत्व संगठनों के शोर के बीच, सपा ने शुरू में आधिकारिक लाइन ली कि पूर्व भाजपा नेता के विचार पूरी तरह से उनके अपने थे और पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने एक अध्ययनपूर्ण चुप्पी बनाए रखी। मौर्य ने कहा था, ‘‘श्रीरामचरित मानस की कुछ पंक्तियों में तेली और ‘कुम्हार’ जैसी जातियों के नामों का उल्लेख है, जो इन जातियों के लाखों लोगों की भावनाओं को आहत करती हैं।’’
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सपा इस विवाद को 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले निचली जाति के वोटों को मजबूत करने के एक अवसर के रूप में देख रही है, अब यह रुख बदलता दिख रहा है। मौर्य ने मांग की थी कि पुस्तक के ऐसे हिस्से पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए जो किसी की जाति या ऐसे किसी चिह्न के आधार पर किसी का अपमान करते हैं। मामले में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के 'शूद्र' वाला बयान दिया तो सियासी घमासान मच गया। अखिलेश यादव ने 'शूद्र' पर विधानसभा में सीएम योगी आदित्यनाथ से सवाल पूछने की बात कही थी। जिसके बाद मुख्यमंत्री योगी का बयान आया। कि जवाब उन्हें देना चाहिए जो जवाब को समझ सकें। अराजकता पैदा करने वालों को क्या जवाब दिया जाए।" रामचरितमानस विवाद पर योगी ने कहा, "रामचरितमानस का मुद्दा इसलिए उठाया जा रहा है ताकि सरकार ने जो विकास किया है उस मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाया जा सके। जिन लोगों का यूपी के विकास में कोई योगदान नहीं है वह जानबूझकर इस मुद्दे को उठा रहे हैं। उनकी पहचान का संकट बना हुआ है। इसीलिए अब रामचरितमानस का मुद्दा उठा रहे हैं।" अब बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी प्रतिक्रिया दी है।
मायावती ने शुक्रवार को कहा, "देश में कमजोर व उपेक्षित वर्गों का रामचरितमानस व मनुस्मृति आदि ग्रंथ नहीं बल्कि भारतीय संविधान है। जिसमें बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर ने इनको शूद्रों की नहीं बल्कि एससी, एसटी व ओबीसी की संज्ञा दी है। अतः इन्हें शूद्र कहकर सपा इनका अपमान न करे तथा न ही संविधान की अवहेलना करे।" बसपा चीफ ने कहा, "इतना ही नहीं, देश के अन्य राज्यों की तरह यूपी में भी दलितों, आदिवासियों व ओबीसी समाज के शोषण, अन्याय, नाइन्साफी तथा इन वर्गों में जन्मे महान संतों, गुरुओं व महापुरुषों आदि की उपेक्षा एवं तिरस्कार के मामले में कांग्रेस, भाजपा व समाजवादी पार्टी भी कोई किसी से कम नहीं।"
क्या है पूरा मामला?
मामला रामचरितमानस की चौपाई ''प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥ ढोल गंवार सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥'' का है जिस पर यूपी से बिहार तक राजनीतिक घमासान मचा है।
बिहार के शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर ने पिछले दिनों नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के 15वें दीक्षांत समारोह के दौरान रामचरितमानस पर विवादित टिप्पणी की थी। उन्होंने इसे नफरत को बोने वाला और देश को बांटने वाला ग्रंथ बताया था। इन सबके बीच उत्तर प्रदेश में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को बकवास बताते हुए सरकार से उसे बैन करने की मांग की है। उन्होंने कहा, रामचरितमानस में दलितों और महिलाओं का अपमान किया गया है। उन्होंने कहा कि इसमें कुछ अंश ऐसे हैं, जिनपर हमें आपत्ति है। क्योंकि किसी भी धर्म में किसी को गाली देने का कोई अधिकार नहीं है।
स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में यूपी में कई जगहों पर रामचरितमानस की प्रतियां जलाने की घटनाएं सामने आई थीं। इसके बाद कई जगह पर स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ केस भी दर्ज हुआ है। इसे लेकर बीजेपी लगातार सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और स्वामी प्रसाद मौर्य पर निशाना साध रही है।
अखिलेश ने खुद को बताया शूद्र
रामचरितमानस को लेकर जारी विवाद के बीच अखिलेश यादव ने खुद को शूद्र बताया था। उन्होंने कहा था कि बीजेपी के लोग हम सबको शूद्र मानते हैं। हम उनकी नजर में शूद्र से ज्यादा कुछ भी नहीं है। अखिलेश ने कहा कि बीजेपी को यह तकलीफ है कि हम संत-महात्माओं से आशीर्वाद लेने क्यों जा रहे हैं।
दरअसल, अखिलेश यादव लखनऊ में गोमती नदी के किनारे मां पीतांबरा मंदिर में चल रहे मां पीतांबरा 108 महायज्ञ में शामिल होने पहुंचे थे। इस दौरान अखिलेश यादव का हिंदू महासभा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ ही हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने विरोध किया और जमकर नारेबाजी की। साथ ही अखिलेश को काले झंडे भी दिखाए। इतना ही नहीं अखिलेश के इस बयान के बाद सपा दफ्तर में होर्डिंग लगाए गए थे, इनमें लिखा था, ''गर्व से कहो, हम शूद्र हैं।''
हालांकि रामचरित मानस की यह इकलौती चौपाई नहीं है, जिस पर विवाद है। मंडल की राजनीति करने वालों कुछ लोगों का कहना है कि कुल 135 लाइनें रामचरित मानस में ऐसी हैं, जिनमें जातियों का जिक्र है। इनमें हर जगह ब्राह्मण की तारीफ की गई है और पिछड़ी जातियों को नीचा दिखाया गया है। वरिष्ठ पत्रकार अजीत दिवेद्वी के अनुसार, राम कथा के इस आधार ग्रंथ को पिछड़ा व दलित विरोधी ठहरा कर इसके सहारे हिंदुत्व की राजनीति की धार कमजोर की जा रही है। साथ ही ये पिछड़ों की गोलबंदी कराने का प्रयास है। हालांकि यह बहुत जोखिम भरा काम है क्योंकि रामचरित मानस को हिंदू मन मस्तिष्क से निकालना आसान नहीं है। यह भी संभव है कि दांव उलटा पड़ जाए। उत्तर प्रदेश विधानसभा में सोशलिस्ट पार्टी के विधायक रामपाल सिंह यादव ने 1974 में विधानसभा के अंदर रामचरित मानस के पन्ने फाड़ डाले थे। इसके बाद उनको रामायण फाड़ यादव कहा जाने लगा था। लेकिन वे 1977 की जनता लहर में भी चुनाव हार गए और फिर कभी नहीं जीते। हालांकि तब से अब तक गंगा-जमुना और सरयू में काफी पानी बह चुका है। उसके बाद मंडल रिपोर्ट लागू हुई थी और उसकी काट में कमंडल यानी मंदिर की राजनीति लालकृष्ण आडवाणी ने तेज की थी। अब मंदिर और हिंदुत्व की राजनीति की काट में मंडल राजनीति की वापसी हो रही है।
रामचरित मानस के विरोध के साथ साथ इस राजनीति का दूसरा पहलू जाति जनगणना का भी है। बिहार में जातियों की गिनती शुरू हो गई है। इसके आंकड़े इस साल के मध्य तक या उसके बाद कभी भी आ सकते हैं। उससे राजनीति में नए किस्म का ध्रुवीकरण होगा। हिंदुत्व के नाम पर होने वाले ध्रुवीकरण के बरक्स जातियों की गोलबंदी होगी। एक अनुमान के मुताबिक 52 से 54 फीसदी आबादी पिछड़ी जातियों की है। अगर इसका बड़ा हिस्सा मंडल की राजनीति करने वाली पार्टियों के साथ एकजुट होता है और उसके साथ मुस्लिम जुड़ते हैं तो उससे चमत्कारिक समीकरण बनेगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा उसकी काट में हिंदुत्व का ही कार्ड ज्यादा आक्रामक तरीके से चलती है या नरेंद्र मोदी ने पिछड़ा, दलित राजनीति की बिसात पर जो मोहरे सजाए हैं उनको आगे बढ़ाती है? लोकसभा चुनाव में अभी 13-14 महीने बचे हैं। इस अवधि में मंडल राजनीति का और नया स्वरूप बिहार व उत्तर प्रदेश में देखने को मिलेगा। उसका जवाब देने के लिए भाजपा जो पहल करेगी वह भी काफी दिलचस्प होगी। आखिर इन दो राज्यों की 120 लोकसभा सीटों में से भाजपा के पास 79 और उसकी सहयोगियों के पास आठ सीटें हैं। वह इसे आसानी से नहीं छोड़ेगी।