"जैन समुदाय के व्यापक विरोध के बाद केंद्र सरकार ने झारखंड में धार्मिक स्थल ‘सम्मेद शिखरजी’ से संबंधित पवित्र पारसनाथ पहाड़ी क्षेत्र में सभी प्रकार की पर्यटन गतिविधियों पर रोक लगा दी लेकिन अब यहां एक नया विवाद छिड़ गया है। आदिवासियों ने इलाके पर अपना दावा किया है और क्षेत्र को जैनियों से 'मुक्त' करने की मांग की है। उधर, जानकारों का कहना है कि आदिवासी आस्था का सम्मान भी जरूरी है।"
संथाल जनजाति के नेतृत्व वाले राज्य के आदिवासी समुदाय ने पारसनाथ पहाड़ी को 'मरांग बुरु' (पहाड़ी देवता या शक्ति का सर्वोच्च स्रोत) करार दिया है और उनकी मांगों पर ध्यान न देने पर विद्रोह की चेतावनी दी है।
मामले में देश भर के जैन धर्मावलम्बी पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन स्थल के रूप में नामित करने वाली झारखंड सरकार की 2019 की अधिसूचना को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, उन्हें डर है कि उनके पवित्र स्थल पर मांसाहारी भोजन और शराब का सेवन करने वाले पर्यटकों का तांता लग जाएगा। दूसरी ओर, आदिवासियों ने जैनियों के दावों का विरोध किया है। कहा कि “अगर सरकार मारंग बुरु को जैनियों के चंगुल से मुक्त करने में विफल रही तो पांच राज्यों में विद्रोह होगा।
अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद के अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने दावा किया, ‘‘अगर सरकार मरांग बुरु को जैनियों के चंगुल से मुक्त करने में विफल रही तो पांच राज्यों में विद्रोह होगा।’’ उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि सरकार दस्तावेज़ीकरण के आधार पर कदम उठाए। 1956 के राजपत्र में इसे 'मरांग बुरु' के रूप में उल्लेख किया गया है... जैन समुदाय अतीत में पारसनाथ के लिए कानूनी लड़ाई हार गया था।’’ खास है कि संथाल जनजाति देश के सबसे बड़े अनुसूचित जनजाति समुदाय में से एक है, जिसकी झारखंड, बिहार, ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल में अच्छी खासी आबादी है और ये प्रकृति पूजक हैं।
नरेश कुमार मुर्मू ने बताया, 'इससे पहले पारसनाथ का मामला प्रिवी काउंसिल (ब्रिटिश साम्राज्य की सर्वोच्च अदालत) में गया था और यह माना गया था कि संथालों को पारसनाथ पहाड़ियों पर शिकार का अधिकार है... हमारे पास रिकॉर्ड है अधिकार भी।" उन्होंने यह भी दावा किया कि दस्तावेजों में पारसनाथ को मरांग बुरु' या संथालों के पहाड़ी देवता के रूप में दिखाया गया है। "हर साल हम तीन दिनों के लिए धार्मिक शिकार के लिए बैशाख में पूर्णिमा पर इकट्ठा होते हैं ..." आदिवासी नेता ने कहा।
मुर्मू ने दावा किया कि परिषद की संरक्षक स्वयं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और इसके अध्यक्ष असम के पूर्व सांसद पी मांझी हैं। एक अन्य आदिवासी संगठन ‘आदिवासी सेंगल अभियान’ (एएसए) ने भी यह आरोप लगाया कि जैनियों ने संथालों के सर्वोच्च पूजा स्थल पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है। इसके अध्यक्ष पूर्व सांसद सलखन मुर्मू ने चेतावनी दी कि अगर केंद्र और राज्य सरकार इस मुद्दे को हल करने तथा आदिवासियों के पक्ष में निर्णय देने में विफल रहे तो उनका समुदाय पूरे भारत में सड़कों पर उतरेगा।
सालखन मुर्मू ने मांग की है कि इस मसले को सुलझाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार को सामने आना होगा। उन्होंने कहा कि इस मामले में दबाव बनाने के लिए उनका संगठन 17 जनवरी को 5 राज्यों के आदिवासी इलाक़ों में धरना आयोजित करेगा।
*पारसनाथ पहाड़ी*
रांची से लगभग 140 किमी दूर गिरिडीह जिले के पारसनाथ पहाड़ियों में श्री सम्मेद शिखरजी, जैनियों के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है, जिसमें दिगंबर और श्वेतांबर दोनों संप्रदाय शामिल हैं, क्योंकि 24 जैन तीर्थंकरों में से 20 ने इन पहाड़ियों पर 'मोक्ष' प्राप्त किया था।
झारखंड सरकार की वेबसाइट पर पारसनाथ हिल्स का उल्लेख "झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित पहाड़ियों की एक श्रृंखला .... जैनियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थों में से एक है .... इस पहाड़ी का नाम 23वें तीर्थंकर पारसनाथ के नाम पर रखा गया है। बीस जैन तीर्थंकरों ने इस पहाड़ी पर मोक्ष प्राप्त किया ... हालाँकि, यह स्थान प्राचीन काल से बसा हुआ है, मंदिर अधिक हाल के मूल के हो सकते हैं। संथाल इसे देवता की पहाड़ी 'मारंग बुरु' कहते हैं। वे बैसाख (मध्य अप्रैल) में पूर्णिमा के दिन शिकार उत्सव मनाते हैं।
*पारसनाथ में पर्यटन*
अगस्त 2019 में, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पारसनाथ अभयारण्य के आसपास एक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र अधिसूचित किया था और राज्य सरकार के प्रस्ताव पर पर्यावरण पर्यटन गतिविधियों को मंजूरी दी थी। लेकिन शक्तिशाली जैन समुदाय के विरोध ने स्पष्ट रूप से काम किया है। मंत्रालय ने तब झारखंड के अतिरिक्त मुख्य सचिव, जो वन विभाग के प्रभारी भी हैं, को एक कार्यालय ज्ञाप जारी किया, जिसमें कहा गया है कि "उक्त पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र अधिसूचना के खंड 3 के प्रावधानों के कार्यान्वयन पर तत्काल रोक लगाई जाती है, जिसमें अन्य सभी पर्यटन और पर्यावरण-पर्यटन गतिविधिया” शामिल हैं।
यही नहीं, “इस संबंध में, राज्य सरकार को निर्देशित किया जाता है कि वह पारसनाथ वन्यजीव अभयारण्य की प्रबंधन योजना के खंड 7.6.1 के प्रावधानों को सख्ती से लागू करने के लिए आवश्यक सभी आवश्यक कदम उठाए, जो पूरे पारसनाथ पहाड़ी की रक्षा करता है। कहा राज्य सरकार को भी पारसनाथ पहाड़ी पर शराब और मांसाहारी खाद्य पदार्थों की बिक्री और सेवन पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू करना चाहिए।
पारसनाथ पहाड़ी पर पर्यटन गतिविधियों को रोकने का फ़ैसला केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव और जैन समुदाय के प्रतिनिधियों के बीच बैठक के बाद लिया गया है। केंद्रीय पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी ने भी कहा कि जैन समुदाय की 'भावनाओं को ठेस' पहुंचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाएगा, जो झारखंड में अपने एक पवित्र स्थल की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। इससे पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र से इसकी अधिसूचना पर "उचित निर्णय" लेने का आग्रह किया था।
*आदिवासी आस्था का सम्मान भी जरूरी, एकतरफा फैसले से बढ़ सकता है टकराव!*
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती हैं कि पारसनाथ जैन समुदाय के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है। लेकिन आदिवासी धार्मिक आस्थाओं पर पाबंदी की कोशिश भी नहीं होनी चाहिए। इस मामले में सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि संदेश यह ना जाए कि हमेशा की तरह फ़ैसला संपन्न और प्रभावशाली तबके के पक्ष में हुआ है।
देखा जाए तो केंद्र सरकार ने 2019 में इस इलाक़े को ईको सेंसटिव ज़ोन घोषित किया था। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को यहां पर पर्यटन गतिविधियों की अनुमति भी दे दी थी। यही नहीं, इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती हैं कि जैन समुदाय के लोगों के लिए पारसनाथ एक पवित्र तीर्थस्थल है। लेकिन झारखंड की राजधानी रांची से क़रीब 140 किलोमीटर दूर गिरडीह का यह इलाक़ा आदिवासी बहुल है।
आदिवासी समुदायों की अपनी धार्मिक आस्थाएं और सामाजिक व्यवस्थाएं हैं। जैन समुदाय की मांग पर केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि इस इलाक़े में शराब और मांस की बिक्री को नियंत्रित किया जाए। इसके अलावा भी और कई शर्तें रखी गई हैं। लेकिन आदिवासी समुदाय की दृष्टि से देखेंगे तो इन पाबंदियों को ग़ैर ज़रूरी और उनकी परंपरा पर हमले की तरह देखी जाएंगी। क्योंकि आदिवासी परंपरा में अपने पुरखों और देवताओं को मांस और शराब चढ़ाना अनिवार्य है।
भारत में जैन समुदाय संपन्न और प्रभावशाली समुदाय है। इस पूरे मामले में जैन समुदाय का प्रभाव नज़र भी आ रहा है। लेकिन सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि जैन समुदाय की धार्मिक भावनाओं के साथ साथ आदिवासी भावनाओं का भी ध्यान रखा जाए। इस मामले में एक तरफ़ा फ़ैसला आदिवासियों को नाराज़ कर सकता है और टकराव की स्थिति बन सकती है!
संथाल जनजाति के नेतृत्व वाले राज्य के आदिवासी समुदाय ने पारसनाथ पहाड़ी को 'मरांग बुरु' (पहाड़ी देवता या शक्ति का सर्वोच्च स्रोत) करार दिया है और उनकी मांगों पर ध्यान न देने पर विद्रोह की चेतावनी दी है।
मामले में देश भर के जैन धर्मावलम्बी पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन स्थल के रूप में नामित करने वाली झारखंड सरकार की 2019 की अधिसूचना को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, उन्हें डर है कि उनके पवित्र स्थल पर मांसाहारी भोजन और शराब का सेवन करने वाले पर्यटकों का तांता लग जाएगा। दूसरी ओर, आदिवासियों ने जैनियों के दावों का विरोध किया है। कहा कि “अगर सरकार मारंग बुरु को जैनियों के चंगुल से मुक्त करने में विफल रही तो पांच राज्यों में विद्रोह होगा।
अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद के अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने दावा किया, ‘‘अगर सरकार मरांग बुरु को जैनियों के चंगुल से मुक्त करने में विफल रही तो पांच राज्यों में विद्रोह होगा।’’ उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि सरकार दस्तावेज़ीकरण के आधार पर कदम उठाए। 1956 के राजपत्र में इसे 'मरांग बुरु' के रूप में उल्लेख किया गया है... जैन समुदाय अतीत में पारसनाथ के लिए कानूनी लड़ाई हार गया था।’’ खास है कि संथाल जनजाति देश के सबसे बड़े अनुसूचित जनजाति समुदाय में से एक है, जिसकी झारखंड, बिहार, ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल में अच्छी खासी आबादी है और ये प्रकृति पूजक हैं।
नरेश कुमार मुर्मू ने बताया, 'इससे पहले पारसनाथ का मामला प्रिवी काउंसिल (ब्रिटिश साम्राज्य की सर्वोच्च अदालत) में गया था और यह माना गया था कि संथालों को पारसनाथ पहाड़ियों पर शिकार का अधिकार है... हमारे पास रिकॉर्ड है अधिकार भी।" उन्होंने यह भी दावा किया कि दस्तावेजों में पारसनाथ को मरांग बुरु' या संथालों के पहाड़ी देवता के रूप में दिखाया गया है। "हर साल हम तीन दिनों के लिए धार्मिक शिकार के लिए बैशाख में पूर्णिमा पर इकट्ठा होते हैं ..." आदिवासी नेता ने कहा।
मुर्मू ने दावा किया कि परिषद की संरक्षक स्वयं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और इसके अध्यक्ष असम के पूर्व सांसद पी मांझी हैं। एक अन्य आदिवासी संगठन ‘आदिवासी सेंगल अभियान’ (एएसए) ने भी यह आरोप लगाया कि जैनियों ने संथालों के सर्वोच्च पूजा स्थल पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है। इसके अध्यक्ष पूर्व सांसद सलखन मुर्मू ने चेतावनी दी कि अगर केंद्र और राज्य सरकार इस मुद्दे को हल करने तथा आदिवासियों के पक्ष में निर्णय देने में विफल रहे तो उनका समुदाय पूरे भारत में सड़कों पर उतरेगा।
सालखन मुर्मू ने मांग की है कि इस मसले को सुलझाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार को सामने आना होगा। उन्होंने कहा कि इस मामले में दबाव बनाने के लिए उनका संगठन 17 जनवरी को 5 राज्यों के आदिवासी इलाक़ों में धरना आयोजित करेगा।
*पारसनाथ पहाड़ी*
रांची से लगभग 140 किमी दूर गिरिडीह जिले के पारसनाथ पहाड़ियों में श्री सम्मेद शिखरजी, जैनियों के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है, जिसमें दिगंबर और श्वेतांबर दोनों संप्रदाय शामिल हैं, क्योंकि 24 जैन तीर्थंकरों में से 20 ने इन पहाड़ियों पर 'मोक्ष' प्राप्त किया था।
झारखंड सरकार की वेबसाइट पर पारसनाथ हिल्स का उल्लेख "झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित पहाड़ियों की एक श्रृंखला .... जैनियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थों में से एक है .... इस पहाड़ी का नाम 23वें तीर्थंकर पारसनाथ के नाम पर रखा गया है। बीस जैन तीर्थंकरों ने इस पहाड़ी पर मोक्ष प्राप्त किया ... हालाँकि, यह स्थान प्राचीन काल से बसा हुआ है, मंदिर अधिक हाल के मूल के हो सकते हैं। संथाल इसे देवता की पहाड़ी 'मारंग बुरु' कहते हैं। वे बैसाख (मध्य अप्रैल) में पूर्णिमा के दिन शिकार उत्सव मनाते हैं।
*पारसनाथ में पर्यटन*
अगस्त 2019 में, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पारसनाथ अभयारण्य के आसपास एक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र अधिसूचित किया था और राज्य सरकार के प्रस्ताव पर पर्यावरण पर्यटन गतिविधियों को मंजूरी दी थी। लेकिन शक्तिशाली जैन समुदाय के विरोध ने स्पष्ट रूप से काम किया है। मंत्रालय ने तब झारखंड के अतिरिक्त मुख्य सचिव, जो वन विभाग के प्रभारी भी हैं, को एक कार्यालय ज्ञाप जारी किया, जिसमें कहा गया है कि "उक्त पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र अधिसूचना के खंड 3 के प्रावधानों के कार्यान्वयन पर तत्काल रोक लगाई जाती है, जिसमें अन्य सभी पर्यटन और पर्यावरण-पर्यटन गतिविधिया” शामिल हैं।
यही नहीं, “इस संबंध में, राज्य सरकार को निर्देशित किया जाता है कि वह पारसनाथ वन्यजीव अभयारण्य की प्रबंधन योजना के खंड 7.6.1 के प्रावधानों को सख्ती से लागू करने के लिए आवश्यक सभी आवश्यक कदम उठाए, जो पूरे पारसनाथ पहाड़ी की रक्षा करता है। कहा राज्य सरकार को भी पारसनाथ पहाड़ी पर शराब और मांसाहारी खाद्य पदार्थों की बिक्री और सेवन पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू करना चाहिए।
पारसनाथ पहाड़ी पर पर्यटन गतिविधियों को रोकने का फ़ैसला केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव और जैन समुदाय के प्रतिनिधियों के बीच बैठक के बाद लिया गया है। केंद्रीय पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी ने भी कहा कि जैन समुदाय की 'भावनाओं को ठेस' पहुंचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाएगा, जो झारखंड में अपने एक पवित्र स्थल की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। इससे पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र से इसकी अधिसूचना पर "उचित निर्णय" लेने का आग्रह किया था।
*आदिवासी आस्था का सम्मान भी जरूरी, एकतरफा फैसले से बढ़ सकता है टकराव!*
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती हैं कि पारसनाथ जैन समुदाय के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है। लेकिन आदिवासी धार्मिक आस्थाओं पर पाबंदी की कोशिश भी नहीं होनी चाहिए। इस मामले में सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि संदेश यह ना जाए कि हमेशा की तरह फ़ैसला संपन्न और प्रभावशाली तबके के पक्ष में हुआ है।
देखा जाए तो केंद्र सरकार ने 2019 में इस इलाक़े को ईको सेंसटिव ज़ोन घोषित किया था। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को यहां पर पर्यटन गतिविधियों की अनुमति भी दे दी थी। यही नहीं, इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती हैं कि जैन समुदाय के लोगों के लिए पारसनाथ एक पवित्र तीर्थस्थल है। लेकिन झारखंड की राजधानी रांची से क़रीब 140 किलोमीटर दूर गिरडीह का यह इलाक़ा आदिवासी बहुल है।
आदिवासी समुदायों की अपनी धार्मिक आस्थाएं और सामाजिक व्यवस्थाएं हैं। जैन समुदाय की मांग पर केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि इस इलाक़े में शराब और मांस की बिक्री को नियंत्रित किया जाए। इसके अलावा भी और कई शर्तें रखी गई हैं। लेकिन आदिवासी समुदाय की दृष्टि से देखेंगे तो इन पाबंदियों को ग़ैर ज़रूरी और उनकी परंपरा पर हमले की तरह देखी जाएंगी। क्योंकि आदिवासी परंपरा में अपने पुरखों और देवताओं को मांस और शराब चढ़ाना अनिवार्य है।
भारत में जैन समुदाय संपन्न और प्रभावशाली समुदाय है। इस पूरे मामले में जैन समुदाय का प्रभाव नज़र भी आ रहा है। लेकिन सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि जैन समुदाय की धार्मिक भावनाओं के साथ साथ आदिवासी भावनाओं का भी ध्यान रखा जाए। इस मामले में एक तरफ़ा फ़ैसला आदिवासियों को नाराज़ कर सकता है और टकराव की स्थिति बन सकती है!