सोशल मीडिया का खतरनाक चेहरा: ऑनलाइन फैली नफरत के कारण लीसेस्टर यूके में हिंसा भड़की?

Written by Sabrangindia Staff | Published on: September 28, 2022
बीबीसी द्वारा की गई एक गहन जांच से पता चलता है कि ब्रिटेन के लीसेस्टर में जारी हिंसा को बढ़ाने में सोशल मीडिया ने आग में घी का काम किया। 



बीबीसी की जांच, कि क्या लीसेस्टर में गलत (भ्रामक) सूचना ने आग की लपटों को हवा दी?, से पता चलता है कि लीसेस्टर, यूनाइटेड किंगडम में हाल ही में हुई हिंसा की उत्पत्ति का कितना बड़ा हिस्सा जानबूझकर गलत सूचनाओं से प्रेरित था, जिसे ऑनलाइन पोस्ट किया गया था। जमीनी स्तर पर तनाव यहां तक ​​कि हिंसा को बढ़ाने में सोशल मीडिया की भूमिका का पता लगाते हुए, बीबीसी टीम (रेहा कंसारा और अब्दिर्रहीम सईद को यास्मीनारा खान, अहमद नूर, खुश समीजा, श्रुति मेनन, नेड डेविस, जोशुआ चीथम और डेनियल पालुम्बो द्वारा जमीनी स्तर पर रिपोर्टिंग द्वारा सहायता प्रदान की गई) ने बताया कि कैसे 17-18 सितंबर 2022 के बीच चरम हिंसा के चक्र को पहले 28 अगस्त के आसपास और उससे कुछ माह पहले मई 2022 में सोशल मीडिया गतिविधियों द्वारा पोषित किया गया था।

बीबीसी ने 'बीबीसी टू' के शो न्यूज़नाइट से बात करते हुए अस्थायी मुख्य कांस्टेबल रॉब निक्सन के हवाले से बताया कि लोगों द्वारा जानबूझकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल माहौल को और खराब करने के लिए किया गया था। मेयर सर पीटर सोलस्बी ने भी ऑनलाइन भ्रामक दुष्प्रचार को दोषी ठहराते हुए कहा कि अन्यथा "इसके लिए कोई स्पष्ट स्थानीय कारण नहीं था"। उपद्रव के लिए सजा पाने वालों में से एक ने सोशल मीडिया से प्रभावित होने की बात स्वीकार की है। एक युवा लड़की के अपहरण के बारे में एक झूठी कहानी, जो कभी नहीं हुई (12-14 सितंबर), से भारत-पाक क्रिकेट मैच (29 अगस्त) को लेकर गाली-गलौज करने तक, लीसेस्टर ध्रुवीकृत हुआ, यहां तक ​​​​कि 19 सितंबर को हिंसा के चरम के दौरान बीबीसी द्वारा की गई निगरानी में भी जहरीले ट्वीट्स सामने आए। बीबीसी जांच में 150,000 ट्वीट दर्ज किए गए थे। 5 अगस्त को 1,00,000 और सितंबर 17-19 को 150,000 ट्वीट किए गए, जब अपहरण की चौंका देने वाली स्टोरी वायरल हुई थी। बीबीसी ने इन सार्वजनिक पोस्ट की निगरानी और विश्लेषण के लिए क्राउडटैंगल टूल का इस्तेमाल किया।

लीसेस्टर में धार्मिक आधार पर दोनों पक्षों के समुदाय के नेताओं की बातचीत में पता चलता है कि कैसे, गलत सूचना के विशिष्ट अंश (भ्रामक समाचार) ने सितंबर 17-18 के सप्ताह के अंत में हिंसा के प्रकोप में योगदान दिया था। बीबीसी मॉनिटरिंग द्वारा ट्विटर विश्लेषण उपकरण ब्रैंडवॉच का उपयोग करके की गई वाणिज्यिक जांच में खुलासा किया कि अंग्रेजी में लगभग आधा मिलियन ट्वीट्स की पहचान की गई जो हाल के तनावों के संदर्भ में लीसेस्टर का उल्लेख करते हैं।

“बीबीसी ने 2 लाख ट्विटर अकाउंट को मॉनिटर किया और पाया कि आधे से अधिक की जियो लोकेशन भारत में हैं। पिछले सप्ताह कई भारतीय अकाउंट्स द्वारा उपयोग किए जाने वाले टॉप हैशटैग में #Leicester, #HindusUnderAttack और #HindusUnderattackinUK शामिल थे। बीबीसी को इन हैशटैग का इस्तेमाल करते हुए अकाउंट्स में हेराफेरी के कई संकेत मिले”

“इनमें से कुछ हैशटैग का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता, उदाहरण के लिए, भारत में स्थित था और उसकी कोई प्रोफ़ाइल तस्वीर नहीं थी और खाता केवल इस महीने की शुरुआत में शुरू किया गया था। ये क्लासिक संकेत हैं कि इस अकाउंट पर होने वाली गतिविधि 'अप्रामाणिक' है और इस बात की ओर भी इशारे करती है एक ही आदमी कई अकाउंट के ज़रिए एक नैरेटिव फैलाने का काम कर रहा है।

बीबीसी ने इन हैशटैग्स के साथ शेयर किए गए टॉप-30 लिंक की भी पड़ताल की। इनमें से 11 आर्टिकल के लिंक न्यूज़ वेबसाइट ऑपइंडिया डॉट कॉम के हैं। ये वेबसाइट ख़ुद के बारे में लिखती है- 'ब्रिंगिंग द राइट साइ़ड ऑफ़ इंडिया टू यू।' साथ ही संभावित रूप से अप्रामाणिक अकाउंट्स के साथ-साथ ऑपइंडिया की ख़बरों के लिंक ऐसे अकाउंट्स ने भी साझा किए हैं जिनके फ़ॉलोवर हज़ारों में हैं।

ऑपइंडिया का एक लेख ऐसा है जिसमें ब्रितानी थिंक टैंक 'हेनरी जैक्सन सोसाइटी' की शोधकर्ता शॉरलेट लिटिलवुड के जीबी न्यूज़ को दिए गए इंटरव्यू का हवाला देते हुए लिखा है कि कई हिंदू परिवार मुसलमानों की हिंसा के डर के कारण लिसेस्टर छोड़ कर जा रहे हैं। इस ऑर्टिकल को 2500 बार रीट्वीट किया गया है। लिसेस्टर पुलिस का कहना है कि उन्हें इस तरह हिंदू परिवारों के लिसेस्टर छोड़ कर जाने की कोई जानकारी नहीं है।

यहां ग़ौर करने वाली बात ये है कि 17-18 सितंबर से पहले बड़ी संख्या में ट्वीट सामने नहीं आ रहे थे। ब्रिटेन में वायरल हो रहे सोशल मीडिया पोस्ट में ये भी दावा किया गया कि बसों में भरकर हिंदू कार्यकर्ता लिसेस्टर पहुंच रहे हैं ताकि माहौल में और तनाव पैदा हो।

भ्रामक सूचना- बस में लंदन से लिसेस्टर गए हिंदू

18 सितंबर को एक वीडियो व्हॉट्सऐप और ट्विटर पर सामने आया जिसमें लंदन की एक मंदिर के सामने बस खड़ी नज़र आ रही है। इस वीडियो में एक आवाज़ भी सुनाई दे रही है जिसनें दावा किया जा रहा है कि ये बस लिसेस्टर से लौट रही है।

इसके अगले दिन बस के मालिक ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर कर कहा, "कई लोग मुझे फ़ोन कर रहे हैं, मुझे धमका रहे हैं और बिना किसी वजह के गालियां दे रहे हैं।" उन्होंने बताया कि बीते दो महीने से उनकी कोई भी बस लिसेस्टर गई ही नहीं है। उन्होंने प्रमाण के तौर पर जीपीएस ट्रैकर का रिकॉर्ड पेश किया जिसमें पिछले वीडियो में दिखने वाली बस की लोकेशन 17-18 सितंबर वाले सप्ताहांत में दक्षिण-पूर्वी इंग्लैंड है।

आइए अब 12-14 सितंबर पर वापस जाएं तो बीबीसी की जमीनी स्तर की रिपोर्टिंग और निगरानी जांच से पता चलता है कि कैसे, एक झूठी कहानी जो हुई ही नहीं, को कई बार शेयर (संदर्भित) किया गया और लोकप्रिय शब्दों में कहें तो 'वायरल' किया गया।

ऐसी ही एक ग़लत ख़बर को कई लोगों ने शेयर किया, जो इस तरह थी- "आज मेरी 15 साल की बेटी किडनैप होते-होते बची... तीन भारतीय लड़कों ने उससे पूछा कि क्या वह मुस्लिम है? जब उसने 'हां' कहा तो उनमें से एक ने उसे पकड़ने की कोशिश की।" फे़सबुक पर ये पोस्ट लिखी गई थी और लिखने वाले ने ख़ुद को लड़की का पिता बताया। इस पोस्ट को 13 सितंबर को जब एक कम्युनिटी वर्कर माजिद फ़्रीमैन ने ट्विटर पर शेयर किया तो इसे सैकड़ों लाइक्स मिले। लेकिन इस मामले में किडनैपिंग की कोई कोशिश नहीं की गई थी जैसा कि दावा किया जा रहा था। इसके एक दिन बाद लिसेस्टर पुलिस ने मामले की पड़ताल के बाद बयान जारी करते हुए कहा कि 'तरह की कोई घटना नहीं हुई।' जिसके बाद माजिद ने अपना पुराना ट्वीट डिलीट कर दिया और कहा कि उनका ट्वीट परिवार के साथ बातचीत पर आधारित था। माजिद ने इसके बाद पुलिस के बयान को ट्वीट किया। लेकिन तब तक उस ट्वीट के कारण नुक़सान हो चुका था और किडनैपिंग की ये झूठी ख़बर कई प्लेटफ़ॉर्म पर फैल गई थी।

ये मैसेज व्हॉट्सऐप पर 'फ़ॉर्वर्डेड मेनी टाइम्स' के टैग से साथ फैल रहा था जिसे कई लोगों ने सच मान लिया। हज़ारों-सैकड़ों फ़ॉलोवर्स वाले इंस्टाग्राम अकाउंट ने इस पोस्ट के स्क्रीनशॉट शेयर किए और इसके साथ दावा किया कि हिंदू लड़के ने इस किडनैपिंग की कोशिश की। हालांकि प्राइवेट मैसेजिंग ऐप पर इस मैसेज के वायरल होने का स्केल क्या रहा, ये ठीक-ठीक पता लगाना संभव नहीं है। हालांकि पब्लिक पोस्ट के लिए हमने क्राउडटैंगल टूल का इस्तेमाल किया और हमें 'किडनैपिंग की कोशिश' की कोई पोस्ट तो नहीं मिली, लेकिन संभव है कि ये दावा प्राइवेट मैसेज ग्रुप में अभी भी फैलाया जा रहा हो।

लिसेस्टर में कई लोग ये कहते हैं कि इस तनाव की जड़ें काफ़ी पीछे तक जाती हैं। कई मीडिया रिपोर्टों में लिसेस्टर में हुई एक घटना का ख़ास तौर पर ज़िक्र मिलता है जो 28 अगस्त को दुबई में हुए एशिया कप में पाकिस्तान पर भारत की नाटकीय जीत के बाद हुई थी। लेकिन इसके बाद कई तरह की भ्रामक सूचनाएं फैलने लगीं और ये पूरी तरह से झूठी ख़बरें नहीं थी बल्कि तथ्यों को अलग अलग संदर्भों में और तोड़-मरोड़कर फैलाईं गई थीं।

मैच से पहले 22 मई को पड़ा तनाव का बीज

कुछ तो ज़रूर हुआ था। हिंसा फैलने और पुलिस के आने से पहले उस रात का वीडियो सामने आया जिसमें भारत की जर्सी पहने लोगों का एक समूह 'पाकिस्तान मुर्दाबाद' के नारे लगाता हुए मेल्टन रोड पर मार्च करता दिखा। लेकिन सोशल मीडिया पर एक दूसरा वीडियो वायरल होने लगा जिसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो इस समूह ने एक मुलसमान पर हमला किया। लेकिन बाद में ये पता लगा कि वो व्यक्ति सिख था।

लिसेस्टर में कुछ लोगों का कहना है कि इस घटना के बीज काफ़ी पहले पड़ गए थे। वे 22 मई की एक घटना का ज़िक्र करते हैं। सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया जिसमें 19 साल के एक मुस्लिम लड़के का पीछा एक समूह कर रहा था। सोशल मीडिया पर कहा गया कि ये 'हिंदू चरमपंथियों' का समूह था। कुछ सोशल मीडिया पोस्ट में इसे हिंदुत्व से जोड़ा गया जो भारत में दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादियों की विचारधारा है। हालांकि इस वीडियो में बहुत कुछ नहीं दिखता। ये एक धुंधला और ब्लैक एंड व्हाइट वीडियो है जिसमें सड़क पर भागते कुछ आदमी नज़र आते हैं। वीडियो से ये पता लगाना मुश्किल है कि इसमें दिख रहे लोग कौन हैं और उनकी पृष्ठभूमि क्या है।

इस मामले पर पुलिस ने कहा है कि वो पब्लिक ऑर्डर के उल्लंघन की रिपोर्ट की जांच कर रही है और इस मामले में एक 28 वर्षीय व्यक्ति से पूछताछ की गई है और जांच जारी है। लेकिन वीडियो में पीड़ित कौन था उस व्यक्ति की धार्मिक पहचान की जानकारी नहीं दी गई है। इस मामले की जांच अब भी जारी है, लेकिन सोशल मीडिया पर इसको लेकर धार्मिक रूप से प्रेरित पोस्ट शेयर किए गए।

हालांकि सोशल मीडिया पर फैलाई कई ग़लत सूचनाओं और तोड़-मरोड़ कर पेश किए गए तथ्यों ने वास्तव में माहौल को किस हद तक प्रभावित किया है, इसका सटीक तरीके से अंदाज़ा लगाना बेहद मुश्किल है।

भ्रामक सूचना- बस में लंदन से लिसेस्टर गए हिंदू

18 सितंबर को एक वीडियो व्हॉट्सऐप और ट्विटर पर सामने आया जिसमें लंदन की एक मंदिर के सामने बस खड़ी नज़र आ रही है। इस वीडियो में एक आवाज़ भी सुनाई दे रही है जिसनें दावा किया जा रहा है कि ये बस लेस्टर से वापस आ रही है। इसके अगले दिन बस के मालिक ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर कर कहा, "कई लोग मुझे फ़ोन कर रहे हैं, मुझे धमका रहे हैं और बिना किसी वजह के गालियां दे रहे हैं।" उन्होंने बताया कि बीते दो महीने से उनकी कोई भी बस लिसेस्टर गई ही नहीं है। उन्होंने प्रमाण के तौर पर जीपीएस ट्रैकर का रिकॉर्ड पेश किया जिसमें पिछले वीडियो में दिखने वाली बस की लोकेशन 17-18 सितंबर वाले सप्ताहांत में दक्षिण-पूर्वी इंग्लैंड है।

बर्मिंघम में सोमवार 19 सितंबर को आग लगने के कारणों के बारे में झूठे दावे प्रसारित किए गए। ट्विटर पर हज़ारों बार देखे गए पोस्ट बिना सबूत के आग लगाने के लिए "इस्लामी चरमपंथियों" को दोषी ठहराते रहे। लेकिन जब वेस्ट मिडलैंड्स फ़ायर सर्विस ने आग लगने के कारण की जांच की तो पाया कि ये दुर्घटना इमारत के बाहर जल रहे कचरे की आग फैलने कारण हुई। यक़ीनन ये नहीं कहा जा सकता कि लिसेस्टर की घटना के बाद सभी सोशल मीडिया पोस्ट झूठी और भ्रामक ही थीं।

मुस्लिम इलाके में 'जय श्रीराम' के नारे वाला वीडियो

लिसेस्टर तनाव में जो वीडियो सबसे ज़्यादा वायरल हुए उनमें से एक था जिसमें चेहरा ढके हुए हिंदू लोग 'जय श्रीराम' के नारे लगाते हुए ग्रीन लेन रोड पर मार्च कर रहे थे। ये वो इलाका है जहां बड़ी आबादी मुसलमानों की है। एक और वीडियो फैलाया गया जिसमें कहा गया कि एक मुसलमान आदमी मंदिर से भगवा झंडा उतार रहा है। शहर के बेलग्रेव रोड स्थित एक मंदिर से शनिवार 17 सितंबर की रात को एक झंडा उतारा गया था और पुलिस इसकी जांच कर रही है। हालांकि झंडा उतारने वाला कौन था, उसकी पहचान अब तक ज़ाहिर नहीं की गई है।

झूठे दावों और भड़काऊ सोशल मीडिया पोस्ट ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव को बढ़ाया दिया, ये समुदाय जो सालों से एक दूसरे के साथ रह रहे हैं। दशकों से लिसेस्टर शहर दक्षिण एशियाई लोगों का घर रहा है जो भारत और पूर्वी अफ़्रीका से ब्रिटेन आए थे और वे साथ-साथ रहते रहे हैं और समान अधिकारों के लिए एक साथ संघर्ष किया है।

कुछ लोग तनाव और उसकी प्रतिक्रिया को हिंदुत्व की विचारधारा से जोड़ते हैं। उनका मानना है कि भारतीय राजनीति को लेस्टर में लाया जा रहा है, लेकिन अब तक बीबीसी को इस तरह के किसी समूह से मामले का कोई सीधा संबंध नहीं मिला है।

यह निश्चित तौर पर बता पाना मुश्किल है कि इस हिंसक तनाव का कारण क्या रहा, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि सोशल मीडिया पर लोगों को बांटने की कोशिश की गई।
 
बहरहाल, 23 सितंबर तक पुलिस ने 47 लोगों को इस मामले में गिरफ़्तार किया गया है जिनमें से आठ लोगों को अभियुक्त बनाया गया है, 47 लोगों में से 36 लोग ही लिसेस्टर के रहने वाले हैं। आठ बर्मिंघम से हैं और दो लोग लंदन के रहने वाले हैं। लेकिन जिन आठ लोगों को अभियुक्त बनाया गया है वे सभी लिसेस्टर के ही रहने वाले हैं।

भारत पाक विदेश नीति भी दिखीं हमलावर!

भारत और पाकिस्तान लीसेस्टर की घटनाओं में कूदने के लिए तत्पर थे। 19 सितंबर को, यूनाइटेड किंगडम में भारतीय उच्चायोग ने आधिकारिक बयान जारी किया, "हम लीसेस्टर में भारतीय समुदाय के खिलाफ हुई हिंसा, धार्मिक परिसर और हिंदू धर्म के प्रतीकों की तोड़फोड़ की कड़ी निंदा करते हैं। हमने ब्रिटेन के अधिकारियों के साथ इस मामले को मजबूती से उठाया है और इन हमलों में शामिल लोगों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की है। हम अधिकारियों से प्रभावित लोगों को सुरक्षा प्रदान करने का आह्वान करते हैं।” यह कनाडा में भारतीय उच्चायोग द्वारा टोरंटो में एक हिंदू मंदिर के विरूपण की सार्वजनिक रूप से आलोचना करने के कुछ दिनों बाद आया है। शुक्रवार को, भारत सरकार ने कनाडा में "घृणा अपराधों और भारत विरोधी गतिविधियों में तेज वृद्धि" का आरोप लगाते हुए एक एडवाइजरी भी जारी की। भारतीय प्रतिक्रिया स्पष्ट रूप से भारतीय जनता पार्टी के तहत भारत सरकार के सख्त स्टेंड को दर्शाती है। पाकिस्तान ने भी लीसेस्टर की घटनाओं को धार्मिक रंग में ही देखा। पाकिस्तानी बयान का पहला पैराग्राफ है: "यह बड़ी चिंता का विषय है कि ब्रिटेन में पाकिस्तानी उच्चायोग लीसेस्टर में हाल के घटनाक्रमों को नोट करता है। हम इलाके के मुसलमानों के खिलाफ शुरू की गई हिंसा और डराने-धमकाने के व्यवस्थित अभियान की कड़ी निंदा करते हैं। यह पहली बार नहीं है जब लीसेस्टर में इस तरह की इस्लामोफोबिक घटनाएं सामने आई हैं।"

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