नई दिल्ली। गाय के बारे में तमाम तरह की चर्चाएं आए दिन होती रहती हैं। केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद गाय के नाम पर कई हत्याएं भीड़ द्वारा कर दी गईं। भाजपा व हिंदुत्ववादी संगठनों से जुड़े लोग गाय के गोबर, यूरिन आदि को परमाणु अटैक से भी बचाने में कारगर बताते आए हैं। इसी कड़ी में राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (आरकेए) ने भी लगातार कई दावे कर दिए। लेकिन इन विवादास्पद दावों पर केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया है कि गाय की हिंदुस्तानी और विदेशी नस्लों के दूध की गुणवत्ता के बीच अंतर के बारे में कोई निर्णायक जानकारी उपलब्ध नहीं है। कामधेनु आयोग 'कामधेनु गौ-विज्ञान प्रचार-प्रसार परीक्षा' (राष्ट्रीय गाय विज्ञान परीक्षा) के पाठ्यक्रम का प्रभारी है।
पाठ्यक्रम में किए गए कई दावों के बीच एक ने कहा था कि भारतीय गाय के दूध की गुणवत्ता सबसे अच्छी है और यह "कई बीमारियों से लड़ने में शक्तिशाली" है। इसने आगे कहा कि जर्सी गायों का दूध "बिल्कुल अच्छा नहीं" था और इसमें "कैसोमोर्फिन नामक एक जहरीला रसायन होता है"।
9 मार्च को लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए मत्स्य, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री संजीव बाल्यान ने एक लिखित जवाब में कहा कि “आईसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) से प्राप्त जानकारी के अनुसार, विदेशी नस्ल की गायों और देसी गायों के दूध की गुणवत्ता में अंतर के बारे में कोई निर्णायक जानकारी उपलब्ध नहीं है। बाल्यान वाईएसआर कांग्रेस के सांसद मगुन श्रीनिवासुलु रेड्डी के एक सवाल का जवाब दे रहे थे।
कामधेनु आयोग के अन्य दावों में कई बातें और भी शामिल थीं, जिनमें भारतीय गायों का दूध "थोड़ा पीला इसलिए होता है क्योंकि इसमें सोने के कण होते होते हैं" जो "जर्सी गाय" में नहीं होते हैं। एक और दावे में यह भी बताया गया था कि देसी गायों का दूध "मोटापा, जोड़ों का दर्द, दमा, मानसिक बीमारी" को ठीक कर सकता है, जबकि गायों की विदेशी नस्लों का दूध "मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग और अस्थमा" का कारण बन सकता है।
कामधेनु आयोग का विभाग केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत भी कार्य करता है। इसे फरवरी 2019 में केंद्र द्वारा स्थापित किया गया था और इसका उद्देश्य "गायों और उनके वंश की सुरक्षा, संरक्षण और विकास" है।
गौरतलब है कि बीते 25 फरवरी को आयोजित होने वाली परीक्षा को स्थगित कर दिया गया था और इसकी कोई वैकल्पिक तिथि घोषित नहीं की गई थी। जनवरी 2021 में घोषित कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा एक घंटे की ऑनलाइन परीक्षा होनी थी, जिसमें 100 बहुविकल्पीय प्रश्न पूछे जाने थे। यह एक वार्षिक परीक्षा है, जिसमें लिए कोई शुल्क नहीं था।
पाठ्यक्रम में किए गए कई दावों के बीच एक ने कहा था कि भारतीय गाय के दूध की गुणवत्ता सबसे अच्छी है और यह "कई बीमारियों से लड़ने में शक्तिशाली" है। इसने आगे कहा कि जर्सी गायों का दूध "बिल्कुल अच्छा नहीं" था और इसमें "कैसोमोर्फिन नामक एक जहरीला रसायन होता है"।
9 मार्च को लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए मत्स्य, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री संजीव बाल्यान ने एक लिखित जवाब में कहा कि “आईसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) से प्राप्त जानकारी के अनुसार, विदेशी नस्ल की गायों और देसी गायों के दूध की गुणवत्ता में अंतर के बारे में कोई निर्णायक जानकारी उपलब्ध नहीं है। बाल्यान वाईएसआर कांग्रेस के सांसद मगुन श्रीनिवासुलु रेड्डी के एक सवाल का जवाब दे रहे थे।
कामधेनु आयोग के अन्य दावों में कई बातें और भी शामिल थीं, जिनमें भारतीय गायों का दूध "थोड़ा पीला इसलिए होता है क्योंकि इसमें सोने के कण होते होते हैं" जो "जर्सी गाय" में नहीं होते हैं। एक और दावे में यह भी बताया गया था कि देसी गायों का दूध "मोटापा, जोड़ों का दर्द, दमा, मानसिक बीमारी" को ठीक कर सकता है, जबकि गायों की विदेशी नस्लों का दूध "मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग और अस्थमा" का कारण बन सकता है।
कामधेनु आयोग का विभाग केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत भी कार्य करता है। इसे फरवरी 2019 में केंद्र द्वारा स्थापित किया गया था और इसका उद्देश्य "गायों और उनके वंश की सुरक्षा, संरक्षण और विकास" है।
गौरतलब है कि बीते 25 फरवरी को आयोजित होने वाली परीक्षा को स्थगित कर दिया गया था और इसकी कोई वैकल्पिक तिथि घोषित नहीं की गई थी। जनवरी 2021 में घोषित कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा एक घंटे की ऑनलाइन परीक्षा होनी थी, जिसमें 100 बहुविकल्पीय प्रश्न पूछे जाने थे। यह एक वार्षिक परीक्षा है, जिसमें लिए कोई शुल्क नहीं था।