नई दिल्ली। मोदी सरकार ‘स्मार्ट सिटी’ का सपना लोगों को कई सालों से बेच रही है और इस योजना पर देश भर में हजारों करोड़ रुपये भी खर्च चुकी है. सितम्बर 2020 में भारत सरकार द्वारा जारी की गयी रैंकिंग में वाराणसी को पहला स्थान मिला, दावे किए जा रहे हैं कि यहाँ ‘वर्ल्ड क्लास’ सुविधाएँ दी जाएंगी. लेकिन इन्हीं दावों के बीच यह भी पूछा जाना चाहिए कि आखिर ये मक़ाम किस कीमत पर हासिल किया जा रहा है?
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) ने इस मामले पर विज्ञप्ति जारी कर कहा कि 13 जनवरी, 2020 को वाराणसी के तेलियाना रेलवे फाटक इलाके में सैकड़ों मजदूरों के घरों को प्रशासन द्वारा जबरन ध्वस्त कर दिया गया, जिनमें से कई सारे दलित समाज के हैं. इनमें से ज्यादातर लोगों के रहने के लिए कोई दूसरी जगह मुहैया नहीं कराई गई है. कोरोना महामारी के साथ कड़ाके की ठंड के बीच लोगों को उनके घर से बेदख़ल करना न सिर्फ अमानवीय है बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भी उल्लंघन है. सबसे बड़ी बेशर्मी की बात तो यह है कि वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है! ‘सबका साथ, सबका विकास’ की नारेबाजी के बावजूद, गरीब और श्रमिक वर्ग के समुदायों को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में भी बुनियादी सम्मान और अधिकारों की गारंटी नहीं है।
यह पहला मामला नहीं है जहाँ पर इस तरह से लोगों को बिना वैकल्पिक आवास मुहैया कराए उनके घरों को उजाड़ दिया गया हो. पिछले 4-5 सालों के दौरान बनारस में ऐसी कई बस्तियों को उजड़ा जा चुका है जिसके बाद तमाम जनवादी संगठनो द्वारा इनके रहने की उचित व्यवस्था के लिए प्रदर्शन भी किये गए, लेकिन सरकार या जिला प्रशासन में इस बात का कोई फर्क पड़ता नज़र नहीं आ रहा है|
NAPM ने आगे कहा कि दरअसल ये योगी और मोदी सरकार के मजदूर विरोधी चरित्र को दर्शाता है. उजाड़ी गई बस्तियों में रहने वाले ज्यादातर लोग सफाई कर्मचारी, दैनिक वेतन मजदूर और घरों में काम करने वाले हैं. ऐसे में अचानक से घर उजड़ जाने के कारण इनके स्वास्थ्य के साथ साथ इनकी आजीविका पर भी ख़तरा मंडरा रहा है. फ़िलहाल इनमें से ज्यादातर लोग सडकों पर रहने को मजबूर हैं.
‘स्मार्ट सिटी’ के नाम पर वाराणसी प्रशासन द्वारा जबरन सैकड़ों वंचित, श्रमिक और दलित समुदाय के लोगों के आशियाने को, बिना पुनर्वास उजाड़ने की कार्यवाही का NAPM कड़ी शब्दों में निंदा करता है और साथ ही प्रशासन से मांग करता है कि:
1. वह तुरंत विस्थापित किए गए इन लोगों के रहने की उचित व्यवस्था करे
2. सभी विस्थापित लोगों को उचित और न्यायपूर्ण मुआवजा तत्काल प्रदान करे.
3. बिना सम्पूर्ण और न्यायपूर्ण पुनर्वास, किसी भी मकान व बस्ती को न उजाड़े और लोगों को अपने घरों से बेदखल न करें.
इसके साथ ही चेन्नई, दिल्ली और देश के कई शहरों में लगातार मेहनतकशों के बस्तियों को उजाड़ा जा रहा है, जिनमें से अधिकांश वंचित जातियों–तबकों और अल्पसंख्यक समुदाय के हैं. कोरोना काल में बस्तियों को उजाड़ने पर केंद्र और सभी राज्य सरकारें तत्काल संपूर्ण रोक लगाएं.
द्वारा जारी:
मेधा पाटकर (नर्मदा बचाओ आंदोलन, जन-आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); डॉ सुनीलम, आराधना भार्गव (किसान संघर्ष समिति), राजकुमार सिन्हा (चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति); पल्लव (जन-आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, मध्य प्रदेश)
अरुणा रॉय, निखिल डे, शंकर सिंह (मज़दूर किसान शक्ति संगठन); कविता श्रीवास्तव (PUCL); कैलाश मीणा (जन-आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, राजस्थान); प्रफुल्ल समांतरा (लोक शक्ति अभियान)
लिंगराज आज़ाद (समजवादी जन परिषद्, नियमगिरि सुरक्षा समिति); लिंगराज प्रधान, सत्य बंछोर, अनंत, कल्याण आनंद, अरुण जेना, त्रिलोचन पुंजी, लक्ष्मीप्रिया, बालकृष्ण, मानस पटनायक (जन-आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, ओडिशा)
संदीप पांडेय (सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया); ऋचा सिंह,
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) ने इस मामले पर विज्ञप्ति जारी कर कहा कि 13 जनवरी, 2020 को वाराणसी के तेलियाना रेलवे फाटक इलाके में सैकड़ों मजदूरों के घरों को प्रशासन द्वारा जबरन ध्वस्त कर दिया गया, जिनमें से कई सारे दलित समाज के हैं. इनमें से ज्यादातर लोगों के रहने के लिए कोई दूसरी जगह मुहैया नहीं कराई गई है. कोरोना महामारी के साथ कड़ाके की ठंड के बीच लोगों को उनके घर से बेदख़ल करना न सिर्फ अमानवीय है बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भी उल्लंघन है. सबसे बड़ी बेशर्मी की बात तो यह है कि वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है! ‘सबका साथ, सबका विकास’ की नारेबाजी के बावजूद, गरीब और श्रमिक वर्ग के समुदायों को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में भी बुनियादी सम्मान और अधिकारों की गारंटी नहीं है।
यह पहला मामला नहीं है जहाँ पर इस तरह से लोगों को बिना वैकल्पिक आवास मुहैया कराए उनके घरों को उजाड़ दिया गया हो. पिछले 4-5 सालों के दौरान बनारस में ऐसी कई बस्तियों को उजड़ा जा चुका है जिसके बाद तमाम जनवादी संगठनो द्वारा इनके रहने की उचित व्यवस्था के लिए प्रदर्शन भी किये गए, लेकिन सरकार या जिला प्रशासन में इस बात का कोई फर्क पड़ता नज़र नहीं आ रहा है|
NAPM ने आगे कहा कि दरअसल ये योगी और मोदी सरकार के मजदूर विरोधी चरित्र को दर्शाता है. उजाड़ी गई बस्तियों में रहने वाले ज्यादातर लोग सफाई कर्मचारी, दैनिक वेतन मजदूर और घरों में काम करने वाले हैं. ऐसे में अचानक से घर उजड़ जाने के कारण इनके स्वास्थ्य के साथ साथ इनकी आजीविका पर भी ख़तरा मंडरा रहा है. फ़िलहाल इनमें से ज्यादातर लोग सडकों पर रहने को मजबूर हैं.
‘स्मार्ट सिटी’ के नाम पर वाराणसी प्रशासन द्वारा जबरन सैकड़ों वंचित, श्रमिक और दलित समुदाय के लोगों के आशियाने को, बिना पुनर्वास उजाड़ने की कार्यवाही का NAPM कड़ी शब्दों में निंदा करता है और साथ ही प्रशासन से मांग करता है कि:
1. वह तुरंत विस्थापित किए गए इन लोगों के रहने की उचित व्यवस्था करे
2. सभी विस्थापित लोगों को उचित और न्यायपूर्ण मुआवजा तत्काल प्रदान करे.
3. बिना सम्पूर्ण और न्यायपूर्ण पुनर्वास, किसी भी मकान व बस्ती को न उजाड़े और लोगों को अपने घरों से बेदखल न करें.
इसके साथ ही चेन्नई, दिल्ली और देश के कई शहरों में लगातार मेहनतकशों के बस्तियों को उजाड़ा जा रहा है, जिनमें से अधिकांश वंचित जातियों–तबकों और अल्पसंख्यक समुदाय के हैं. कोरोना काल में बस्तियों को उजाड़ने पर केंद्र और सभी राज्य सरकारें तत्काल संपूर्ण रोक लगाएं.
द्वारा जारी:
मेधा पाटकर (नर्मदा बचाओ आंदोलन, जन-आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); डॉ सुनीलम, आराधना भार्गव (किसान संघर्ष समिति), राजकुमार सिन्हा (चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति); पल्लव (जन-आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, मध्य प्रदेश)
अरुणा रॉय, निखिल डे, शंकर सिंह (मज़दूर किसान शक्ति संगठन); कविता श्रीवास्तव (PUCL); कैलाश मीणा (जन-आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, राजस्थान); प्रफुल्ल समांतरा (लोक शक्ति अभियान)
लिंगराज आज़ाद (समजवादी जन परिषद्, नियमगिरि सुरक्षा समिति); लिंगराज प्रधान, सत्य बंछोर, अनंत, कल्याण आनंद, अरुण जेना, त्रिलोचन पुंजी, लक्ष्मीप्रिया, बालकृष्ण, मानस पटनायक (जन-आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, ओडिशा)
संदीप पांडेय (सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया); ऋचा सिंह,