मैं एक मुस्लिम, एक ईसाई, एक बौद्ध और एक यहूदी भी हूं : मोहन भागवत के लिए गांधी का मेमो

Written by sabrang india | Published on: January 4, 2021
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शुक्रवार 1 जनवरी को कहा कि अगर कोई हिन्दू है तब वह देशभक्त होगा और यह उसका बुनियादी चरित्र एवं प्रकृति है। संघ प्रमुख ने महात्मा गांधी की उस टिप्पणी को उद्धृत करते हुए यह बात कही जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी देशभक्ति की उत्पत्ति उनके धर्म से हुई है। हालांकि मोहन भागवत यह कहना भूल गए कि महात्मा गांधी ने यह भी कहा था कि 'हां मैं एक मुस्लिम, एक बौद्ध और एक यहूदी भी हूं। 



भागवत ने हालांकि संघ के अपने 'नायक' नाथूराम गोडसे का उल्लेख नहीं किया जो अपने जीवन में हिंदू राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक थे, जिन्होंने 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की छात्री में गोली मारी थी। 

संघ प्रमुख ने कहा कि हिन्दू है तो उसे देशभक्त होना ही होगा क्योंकि उसके मूल में यह है। वह सोया हो सकता है जिसे जगाना होगा, लेकिन कोई हिन्दू भारत विरोधी नहीं हो सकता। जब तक मन में यह डर रहेगा कि आपके होने से मेरे अस्तित्व को खतरा है और आपको मेरे होने से अपने अस्तित्व पर खतरा लगेगा तब तक सौदे तो हो सकते हैं लेकिन आत्मीयता नहीं।

उन्होंने कहा, महापुरुषों को कोई अपने हिसाब से परिभाषित नहीं कर सकता.'' उन्होंने कहा कि यह किताब व्यापक शोध पर आधारित है और जिनका इससे विभिन्न मत है वह भी शोध कर लिख सकते हैं। गांधीजी ने कहा था कि मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकलती है। मैं अपने धर्म को समझकर अच्छा देशभक्त बनूंगा और लोगों को भी ऐसा करने को कहूंगा। गांधीजी ने कहा था कि स्वराज को समझने के लिए स्वधर्म को समझना होगा।

जे के बजाज और एम डी श्रीनिवास लिखित पुस्तक ‘मेकिंग आफ ए हिन्दू पैट्रियट : बैकग्राउंड आफ गांधीजी हिन्द स्वराज' का लोकार्पण करते हुए मोहन भागवत ने यह बात कही। भागवत ने कहा कि किताब के नाम और मेरा उसका विमोचन करने से अटकलें लग सकती हैं कि यह गांधी जी को अपने हिसाब से परिभाषित करने की कोशिश है।

गांधी पर भागवत की टिप्पणी, और उनके भाषण से अन्य सभी धर्मों के बहिष्कार ने तीव्र आलोचना को आमंत्रित किया। 



भागवत इतने पर ही नहीं रुके और उन्होंने कहा कि धर्म के बारे में गांधी की समझ यह कहती है कि '' विविधता में एकता हमारी भावना है और केवल नीति का विषय नहीं है। गांधीजी ने कहा था कि मैं अपने धर्म का सख्ती से पालन करूंगा लेकिन अन्य धर्मों का भी सम्मान करूंगा। भारतीय चिंतन का मूलमंत्र यही है। अंतर का मतलब अलगाववाद नहीं है।

भागवत ने आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के साथ गांधी की राय के बीच एक कड़ी खोजने की कोशिश की और कहा "गांधीजी ने स्पष्ट रूप से कहा कि पश्चिमी सभ्यता ने हमारी अपनी संस्कृति को बर्बाद कर दिया है और हम 'धर्मभ्रष्ट' बन गए हैं। डॉ. हेडगेवार भी कहते थे कि दूसरों को दोष मत दो। तुम गुलाम हो गए क्योंकि तुम गुलाम होने के लिए तैयार थे। आपमें कुछ कमी थी। मैंने गांधीजी में इस तरह के विचार को देखा।"

भागवत द्वारा जारी पुस्तक में दावा किया गया है कि 1893-94 के दौरान गांधी को दक्षिण अफ्रीका में उनके मुस्लिम नियोक्ता और ईसाई सहयोगियों द्वारा धर्मांतरण के लिए दबाव डाला गया था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। और 1905 तक, वह एक कट्टर हिंदू बन गए थे।
 

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